सामाजिकता

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सामाजिकता लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: परिवार व समाज

सामाजिकता

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: उस्ताद हुसैन अंसारीयान
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

इस्लाम सम्पूर्ण और अविनाशी विधान

इस्लाम , स्वस्थ विश्वासों , सही आचरण , अच्छे चरित्र , स्थिर अहकाम और आदेशों एवं निषेधों का संग्रह है। यह सृष्टि की उत्पत्ती से ही ईश्वर का धर्म था और इस के अंत तक ईश्वर का धर्म रहेगा।

इस धर्म के नियम और सिद्धांत प्रत्येक काल में मनुश्य की आवश्यकता के अनुसार वही (ख़ुदा का आदेश जो फ़रिश्ते के ज़रिये नबी तक पहुचता है) के माध्यम से रसूले अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के पाक ह्रदय पर उतारे गये हैं और आप (स) लोगों के अनुदेश के लिए इन सिद्धांतों का वर्णन किया करते थे।

पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) की रिसालत के मध्य में जब आपने ग़दीरे ख़ुम में अमीरुल मोमिनीन अली (अलैहिस सलाम) को मोमिनीन का संरक्षक , लोगों की स्वामी , शासक और मार्ग दर्शक बनाया गया तो यह इस्लाम धर्म के सिद्धातों के पेश करने , हलाल एवं हराम का वर्णन करने और वास्तविक्ता को प्रमाणित करने लिहाज़ से सम्पूर्ण हुआ और लोगों को महाप्रलय तक आप (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के अतिरिक्त किसी और को पैग़म्बर , क़ुरआन के अतिरिक्त दूसरी किताब और इस्लाम के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म से नि:स्पृह (बे नियाज़) कर दिया गया और उनको ऐसी वास्तविक्ता के पास ला दिया गया जिसके माध्यम से वह महाप्रलय तक अपने माद्दी और मानवी सिद्धांतो की आवश्यकता को पूरा कर सकें।

الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الإِسْلاَمَ دِينًا

आज मैने तुम्हारे लिये धर्म को सम्पूर्ण कर दिया है और अपनी अनुकम्पा को सम्पूर्ण कर दिया है और तुम्हारे लिये इस्लाम धर्म को मनोनीत कर दिया है।

इमाम मुहम्मद बाक़िर (अलैहिस सलाम) फ़रमाते है:

وکانت الفریض ۃ تنزل بعد الفریض ۃ الاخری و کانت الولای ۃ آخر الفراءض فانزل الل ہ عزول(الْيَوْمَ أَكْمَلْتُ لَكُمْ دِينَكُمْ وَأَتْمَمْتُ عَلَيْكُمْ نِعْمَتِي وَرَضِيتُ لَكُمُ الإِسْلاَمَ دِينًا )

पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के अवतरण काल में निरंतर विभिन्न प्रकार के अहकाम अवरोहित होते थे , मुसलमानो की विलायत और मार्ग दर्शता अन्तिम आवश्यक काम था (जिसको अवरोहित करने के बाद) ईश्वर ने यह आयत अवरोहित की (आज मैने तुम्हारे लियह धर्म को सम्पूर्ण कर दिया है और अपनी अनुकम्पा को सम्पूर्ण कर दिया है और तुम्हारे लिये इस्लाम धर्म को मनोनीत बना दिया है।)

एक कथन में इमाम जाफ़र सादिक़ (अलैहिस सलाम) फ़रमाते हैं:

पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) की सेवा में जिबरईल उपस्थित हुए और कहा ऐ मुहम्मद , ईश्वर आप पर सलाम भेजता है और आपसे कहता है अपनी उम्मत (मुसलमानों) से कहो कि आज तुम्हारे धर्म को अबी तालिब के बेटे अली (अलैहिस सलाम) के मार्ग दर्शन और विलायत के माध्यम से पूर्ण कर दिया और अपनी अनुकम्पा को तुम पर सम्पूर्ण कर दिया और तुम्हारे लिये इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया। और इसके बाद अब कोई आदेश अवरोहित नही करूंगा। इससे पहले नमाज़ , ज़कात , रोज़ा , और हज को आदेश बना कर उतार चुका हूँ और विलायत एवं उत्तराधिकारी का ऐलान पाँचवा और अन्तिम आदेश है , और इन चारों आदेशों को भी अबी तालिब के बेटे अली (अलैहिस सलाम) की विलायत एवं नबी का उत्तराधिकारी मानने के बिना स्वीकार नही करूंगा।

इस वास्तविकता का वर्णन कर देना आवश्यक है कि पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) और अइम्मा मासूमीन (अलैहिमुस सलाम) के तमाम कथन , ईश्वरीय आदेशों और क़ुरआनी आयतों की व्याख्या हैं , जो कि विश्वस्त किताबों से विश्वासपात्र रावी (किसी बात को बयान करने वाला) से ली गयी हैं , यह सारे कथन समय के अनुसार और लोगों की आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा एवं ज्ञान के स्रोत और अलौकिक परिवार से निकले है।

इस्लाम , स्वस्थ विश्वासों , सही आचरण , अच्छे चरित्र का नाम है और इंसानों को ईश्वर के आदेशों को बिना किसी तर्क के स्वीकार कर लेना चाहिये , जिस समय इस्लाम इंसानों की माद्दी और मानवी (लौकिकि एवं अलौकिक) जीवन के सम्पूर्ण व्यवहारिक एवं सदाचारिक पक्षो में विश्वास के साथ विराजमान हो जाता है तो वह इंसान को मुसलमान की परिधि से निकाल कर उस के वास्तविक आशय में प्रविष्ट कर देता है परिणाम स्वरूप इंसान को परलोक एवं संसार दोनो का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है।

ईश्वर के सारे आदेशों को स्वीकार कर लेने का मूल्य इतना अधिक है कि तमाम अम्बिया और औलिया ने विनती एवं विलाप के साथ इसकी इच्छा की है।

हज़रत इब्राहीम और इस्माईल (अलैहिमुस सलाम) ने काबे का निर्माण करने के बाद दुआ के लिये हाथ उठाया और ईश्वर से कहाः

رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُّسْلِمَةً لَّكَ

हे ईश्वर! हम दोनो को अपना मुसलमान और आज्ञाकारी बना दे और हमारी संतान में भी एक आज्ञाकारी उम्मत पैदा कर।

हज़रत याक़ूब (अलैहिस सलाम) ने अपने बेटों को वसीयत (मरते समय कहना कि मेरे पश्चात ऐसा ऐसा किया जाये) करते समय कहा और इस बात की इब्राहीम (अ) और याक़ूब (अ) ने अपनी संतान को वसीयत की और कहाः

وَوَصَّى بِهَا إِبْرَاهِيمُ بَنِيهِ وَيَعْقُوبُ يَا بَنِيَّ إِنَّ اللّهَ اصْطَفَى لَكُمُ الدِّينَ فَلاَ تَمُوتُنَّ إَلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ

और इसी बात की इब्राहीम (अ) और याक़ूब (अ) ने अपनी औलाद को वसीयत की कि ऐ मेरे बेटों , ईश्वर ने तुम्हारे लिये धर्म को निर्वाचित कर दिया है अब उस समय तक संसार से ना जाना जब तक वास्तविक मुसलमान न हो जाओ।

हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस सलाम) ने ईश्वर के दरबार में इस प्रकार से प्रार्थना कीः

تَوَفَّنِي مُسْلِمًا وَأَلْحِقْنِي بِالصَّالِحِينَ

मुझे संसार से आज्ञाकारी उठाना और सदाचारियों की पंक्ति मे रखना।

ईश्वर को केवल इस्लाम धर्म स्वीकार्य है

इंसान की पूरे माद्दी और मानवी जीवन काल मे न्यायिक स्तर पर अनुदेश और उसकी इन्सानियत के आधार को दृढ़ करते हुऐ उसको गुणों एवं विभूति का स्रोत बना देना , इस्लाम के अतिरिक्त कोई और धर्म नही कर सकता है।

इस्लाम ईश्वर के समक्ष सर झुकाता है और उसके आदेशों का संचालन करते हुऐ इंसान के जीवन को संसार मे पवित्र जीवन और परलोक मे अशीयतुर राज़िया बना देता है और चूंकि कोई भी अध्यापक या संस्कृति एवं सभ्यता , इस्लाम की तरह सम्पूर्ण और शक्तिमान नही है इसलिए ईश्वर ने इसको इंसानों के लिये धर्म विधान बनाया है और इस्लाम के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म को स्वीकार नही किया है।

ईश्वर ने जिस प्रकार से संसार मे इस्लाम को इंसान के लिये मनोनीत धर्म जाना है उसी प्रकार महाप्रलय मे भी वह अपने भक्तों से केवल इसी धर्म को मांगेगा।

ईश्वर संसार में अपने मनोनीत धर्म के बारे मे कहता हैः

رَضِيتُ لَكُمُ الإِسْلاَمَ دِينًا ।

तुम्हारे लिये इस्लाम धर्म को मनोनीत बना दिया है।

और महाप्रलय मे इस्लाम के लिये कहता हैः

وَمَن يَبْتَغِ غَيْرَ الإِسْلاَمِ دِينًا فَلَن يُقْبَلَ مِنْهُ وَهُوَ فِي الآخِرَةِ مِنَ الْخَاسِرِينَ

और जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई भी धर्म मानेगा तो वह धर्म उससे स्वीकार नही किया जाएगा और वह महाप्रलय के दिन घाटे उठाने वालों मे होगा।

इस्लाम सारे संसार का धर्म है

यह पवित्र धर्म आत्मा के अनुसार ईश्वर के सामने सिर झुकाने और उसके आदेशों का पालन करना है इसलिए यह धर्म केवल इन्सानो के लिए नही है बल्कि यह अपनी उत्पत्ति के पड़ाव मे इस संसार की सारी चीज़ों को सम्मिलित है।

क़ुरआने मजीद इस बारे में फ़रमाता हैः

وَلِلّهِ يَسْجُدُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ مِن دَآبَّةٍ وَالْمَلآئِكَةُ وَهُمْ لاَ يَسْتَكْبِرُونَ

और अल्लाह ही के लिए आसमान की सारी चीज़ें और ज़मीन के सारे चलने वाले और फ़रिश्ते सजदा करते हैं और कोई अभिमान एवं घमंड करने वाला नही है

दूसरी आयत में फ़रमाता हैः

وَالنَّجْمُ وَالشَّجَرُ يَسْجُدَانِ

और बेल बूटियां और वृक्ष सब उसी को सजदा कर रहे हैं।

बहरहाल अपनी उत्पत्ति के पड़ाव में इस्लाम सारी सृष्टि का धर्म है लेकिन तशरीअ (आदेश के पड़ाव) में मनुष्य के लिए ईश्वर का मनोनीत धर्म है।

सारी सृष्टि के ऊपर जो दृण और मज़बूत व्यवस्था शासन कर रही है वह तकवीनी इस्लाम है। (उत्पन्न इस्लाम)

इंसान अगर सारी सृष्टि और दृण एवं मज़बूत व्यवस्था से लाभ उठाना चाहता है तो उसको इस्लामी आदेशों (तशरीई इस्लाम) को मानना पड़ेगा और वह अपने जीवन की सारी लौकिक एवं अलौकिक (माद्दी एवं मानवी) आवश्यकताओं को इस्लाम पर आस्था रखने और उसके आदेशों का पालन करने के माध्यम से पूरा कर सकता है और इस संसार एवं परलोक का सौभाग्य प्राप्त कर सकता है।

सामाजिकता इस्लाम की दृष्टि में

इस्लाम धर्म में ईश्वर की अराधना (इबादत) , एकाकी , समाजी , अर्थव्यवस्था , सियासत , ब्रह्माज्ञान , बुद्धि और ज्ञान जैसी सारी चीज़े पाई जाती हैं , इसीलिए क़ुरआने करीम ने इसको संपूर्ण धर्म जाना है और इसी संपूर्णता की वजह से सामाजिकता की तरफ़ ध्यान दिलाया है जो मनुष्य के लिए अति आवश्यक है और सही सामजिकता की वयाख्या करने के लिए मार्ग दर्शन है चाहे वह अम्बिया , अइम्मा और ईश्वरीय दूतों के साथ आत्मा का संबन्ध हो या उनके समक्ष हो , और चाहे उनकी अनुपस्तिथि में , इसी प्रकार सामाजिकता चाहे पत्नी , बेटे , माँ , बाप और संबंधियों के साथ हो या दूसरे व्यक्तियों के साथ , इस्लाम ने ऐसे नियम बना दिये हैं कि अगर कोई सामाजिकता की सारी समस्याओं में इन आदेशों का पालन करे तो कल्याण एवं सौभाग्य उसके क़दम चूमेंगें और सामाजिकता से माध्यम से एक दूसरे के दोस्त हो जाऐगें और इस प्रकार से अपनी कुछ लौकिक एवं अलौकिक (माद्दी एवं मानवी) समस्याओं या दूसरे की समस्याओं का हल निकाल सकेगें।

सामाजिकता का महत्व

सामाजिकता सृष्टि के नियम के अनुरूप है

बहरहाल इस सारी सृष्टि पर एक नियम शासन कर रहा है इस प्रकार से कि आत्मज्ञानी इसको एक मानते हैं , जैसे कि सारे संसार सारी उत्पत्ति इंसान को निमंत्रण दे रही है किः

सारे इंसान अपने जीवन को दोस्ती और मुहब्बत से जरिये और सब मिल जुल कर माद्दी मानवी (लौकिक एवं अलौकिक) सदाचार इंसानी आचरण में एक दूसरे की सहायता करें और एक दूसरे की ख़ुशी और ग़म में सम्मिलित हों और एक दूसरे के जीवन के रिक्त स्थान को अच्छे व्यवहार से भरें , और ईश्वर एवं परलोक पर आस्था और इस्लाम के जीवनदायी नियमों का ज्ञान रखते हुए सामजिकता एवं दोस्ती के साथ जीवन यापन करें , ताकि सबकी दुनिया एवं परलोक सौभाग्यमय हो जाए और कल्याण एवं सौभाग्य सदा उन के संग रहे और इस प्रकार की सामजिकता और दोस्ती की छाया में सुख शांति , प्यार मुहब्बत , और श्रेष्ठता और बड़ाई से जीवन यापन करें।

यह दोस्ती और मिलाप चीज़ों के बीच विशेषकर मनुष्य के लिए महान प्रतिफल को जन्म देती है। ऐ काश कि इंसान भी एक दूसरे के लिए मैत्री , दोस्ती एवं पार्श्व वर्ती के साथ एक दूसरे के जीवन में अच्छे विचार व्यक्त करते ताकि जीवन का वातावरण स्वर्ग जैसा हो जाता और सदैव एक दूसरे से इंसानी एवं सद्व्यवहारिक लाभ उठाते। नि:सन्देह इस प्रकार की दोस्ती और पार्षदता केवल ईश्वर , महाप्रलय , इस्लाम धर्म के नियमों का पालन करने , अम्बिया , क़ुरआन और मासूमीन (ईश्वरीय दूत) पर आस्था रखने से ही मिल सकती है।

अब्र व बाद व मह व ख़ुर्शीद व फ़लक दर कारन्द

ता तू नानी बे कफ़ आरी व बे ग़फ़्लत नख़ुरी

बे हमे अज़ बहरे तू सर गश्ते व फ़रमान बरदार

शर्ते इंसाफ़ नबाशद के तू फ़रमान नबरी

अनुवादः बादल , हवा , चाँद , सूरज और आसमान सब तुम्हारे लिये काम में लगे हैं ताकि तुम हाथ में आई हुई रोटी को बेख़बरी में न खाओ , सब तुम्हारे के लियह आदेश का पालन करने में लगे हैं लिहाज़ा , यह न्याय नही है कि तुम (अल्लाह के) आदेश का पालन न करो।

सृष्टि का मेलजोल एवं मैत्री

इस वास्तविक्ता की व्याख्या कि सारी सृष्टि एक दूसरे से मिली हुई है करने के लिए एक बहुत बड़ी पुस्तक लिखने की आवश्यकता है , इसलिए हम यहां पर इससे संबंधित कुछ आवश्यक पहलुओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।

अगर सृष्टि के बीच बुद्धिमान और शक्तिमान पैदा करने वाला , कृपालु और बुद्धिमान उत्पत्ति कर्ता इस प्रकार की दोस्ती मिलाप उत्पन्न न करता तो नि:सन्देह जीवन इस प्रकार न होता और सृष्टि का क्रम इतना सुंदर और व्यवस्थित एवं संगठित आकृति में प्रकट न होता।

सारी सृष्टि एक दूसरे मे समाहित है , यानी एक का जीवन दूसरे के जीवन पर निर्भर है , दूसरे शब्दों में यह कहा जाए कि हर एक का अस्तित्व दूसरे के अस्तित्व को पूर्ण करता है।

मानो इस संसार की सारी सृष्टि के सारे अंश और सेल्स एक शरीर से बने हैं , और उनके बीच जीवन का एक संबंध स्थापित है , इस प्रकार से कि अगर इस संसार में कोई छोटा सा दोष भी प्रकट हो जाए और एक प्राणि वर्ग भी समाप्त हो जाए तो दूसरे प्राणियों के जीवन के लिए भी संकट उत्पन्न हो जाएगा।

अब हम यहां पर प्राणि वर्ग के बीच छोटा सा नमूना पेश करते हैं।

पक्षियों के पंख और मनुष्य का जीवन

अगर पक्षियों के पंख न होते तो इंसान व जानवर जीवित न रहते , अगर विश्वास नही होता तो इस पर ध्यान दें।

पंख , पक्षियों के शरीर को सर्दी एवं गर्मी से बचाने के लिए उन का वस्त्र हैं , और उड़ने में बहुत सहायता करते हैं , अगर पक्षियों के पंख न होते तो सर्दी एवं गर्मी मे वह जीवित नही रह सकते और शीघ्र ही सब समाप्त हो जाऐंगे फिर क्या होगा ?

कीड़े मकोड़े (जो कि अधिक्तर पक्षियों का खाना हैं) अधिक हो जाऐगें और जब यह अधिक हो जाऐंगे तो वह सदैव बढ़ते ही रहेगें और फैलते रहेगें , खेती को खा जाऐंगे , शस्यस्थल और गोचर समाप्त हो जाऐंगे , हरियाली और वृक्ष समाप्त हो जाऐंगे , चरने और घास खाने वाले जानवर खाना न होने के कारण मर जाऐगें , और फिर शाकाहारों के बाद मांसाहारो का नंबर आएगा वह भी मर जाऐंगे और धरती ख़ाली हो जाएगी और कोई भी चलने फिरने वाला प्राणी दिखाई नही देगा , इसी प्रकार कीड़ों की अधिकता से कीटाणु अधिक हो जाऐंगे और जब कीटाणु अधिक होगें तो मनुष्य , जानवर , घास फूंस सब समाप्त हो जाऐंगे।

पानी और ताप

धरती का पानी सूरज की ऊषमा से भाप बनता है , भाप ऊपर ठंडे स्थल में जाकर बादल बनता है , बादल वर्षा बनते हैं और सभी जानते हैं कि अगर धरती पर वर्षा न हो तो क्या होगा!

क्या आप यह भी जानते हैं कि अगर सूरज की ऊषमा ठीक मात्रा मे धरती के पानी तक न पहुंचे तो वर्षा नही होगी ? अगर पानी को भाप बनने के लिए बहुत अधिक मात्रा मे ताप की आवश्यकता होती तो कभी वर्षा न होती , जो भाप ऊपर जाती है वह अगर ठंडे स्थल में न पहुंचे तो भी वर्षा नही हो सकती , जो भाप ठंडे स्थल में पहुंती है अगर उसमें एक स्थान पर एकत्र होने की योग्यता न होती तो न ही बादल बनते और न वर्षा होती , अगर बादलो में दोष रह जाता तो वर्षा न होती अगर धरती का आक्रषण वर्षा की बूंदों को अपनी ओर न खींचता तो वर्षा न होती और वर्षा में सहायक अनगिनत कारण न होते तो वर्षा न होती।