वायु और वर्षा
क्या आप जानते हैं कि जीवित वस्तु और घास के जीवन में वायु कितनी प्रभावी है ? क्या आप जानते हैं कि संसार में हवा चलने में क्या प्रबंध और व्यवस्था छुपी हुई है ?
वायु वर्षा बनाती है , अगर हवा न हो तो वर्षा नही हो सकती , प्रकृति के जानकार कहते हैं कि बादल एक बिजली (विधुत) की तरह है अगर एक प्रकार की हो तो एक दूसरे को दूर करती है और अगर दो तरह की हो तो एक दूसरे को खीचती है।
वायु की विशेषता यह है कि वह दो प्रकार की विधुत को एकत्र करती है परिणाम स्वरूप एक विधुत दूसरी को आकर्शित करती है और विधुत का मिलाप होता है और वर्षा इसी मिलाप का परिणाम होती है , इसलिए इन दो विधुतों के मिलाप एवं मैत्री से जो प्रभावी कार्यकर्ता उत्पन्न होता है और उसको वर्षा का नाम दिया जाता है वह हवा है।
मौसमी हवायें जो महासागरों की तरफ़ से आती हैं और गर्म क्षेत्रों में चलती हैं अगर यह हवायें न चलें तो वहा पर गर्मी की अधिकता से जीवन व्यतीत करना कष्टकारी हो जाता , वायु गर्मी की अधिकता को कम करती है और इन क्षेत्रों को मनुष्य के जीवन अनुसार बनाती है , इन्ही क्षेत्रों में से एक हिन्दुस्तान है जो बहुत गर्म प्रदेश है लेकिन हवा ने इस भूखंड को जीवन के अनुसार बना दिया है।
दरियाई और ज़मीनी हवायें जो रात दिन गर्म क्षेत्रों में चलती रहती हैं इन हवाओं ने समुद्र तट पर रहने वालों के जीवन को आसान बना दिया है।
गर्म क्षेत्रों से गर्म वायु ठंडे इलाक़ो की तरफ़ जाती है और वहां की सर्दी को कम करती है , जैसे इंग्लैड के लिए गल्फ़ इस्ट्रेम और जापान के लिए गल्फ़ वल्ड ( gulf world)
भूमध्य रेखा से नीचे की गर्मी को विद्धान लोग जानते हैं और वह जानते है कि इसकी गर्मी प्रकृति के अनुसार बढ़ती रहती है , उत्तरीय और दक्षिणीय ध्रुव के मुक़ाबले में भूमध्य रेखा के क्षेत्रों में वहां बहुत ही तेज़ होती है जिसके कारण वहां के लोग बहुत आसानी से जीवन बसर करते हैं।
क्षेत्रों की बारिश के हालात को वायु बदल देती है , इन्डोनेशिया जैसे देशों में वर्षा ऋतु को गर्मी की ऋतु कहा जाता है , लेबनान में बारिश सर्दियों में होती है।
कुछ क्षेत्रों में शायद हिन्दुस्तान का एक शहर भी इसी में से है , जहां पूरे साल वर्षा होती है , हिन्दुस्तान के इस क्षेत्र में एक साल में ग्यारह मीटर तक बारिश हो जाती है पृथ्वी पर वर्षा ऋतु की भिन्नता कारण बनती है कि मनुश्य हर तरह की वनस्पति से लाभ उठा सकता है।
ज़्यादातर वनस्पतियों में नर और मादा दोनो पहलू पाए जाते हैं जैसे मनुष्य मे दोनो पाए जाते हैं , अकसर वनस्पतियों में क़लम लगा दी जाए तो वह बहुत ज़्यादा फल देते हैं और अगर यह न किया जाए तो अच्छे फल नही देते हैं।
कुछ वृक्षों की क़लम इंसान लगाता है जैसे खजूर की नेकिल कुछ दूसरे वृक्षो की क़लम नर और मादा के माध्यम से हुवा करती है , इससे पता चलता है कि अगर हवा यह काम न करे तो पूरी दुनिया में अच्छे फल न पायें।
खजूर के वृक्ष के क़लम मे भी हवा का प्रभाव होता है , हवा के माध्यम से क़लम का अर्थ यह है कि वायु नर वृक्ष के कणों को लेकर मादा वृक्ष तक पहुंचा देती है , इस के अलावा कीड़ों के माध्यम से भी यह काम होता है।
अब तक जो बयान किया वह वायु की सेवा से संबंधित था अगरचे हवा की सेवायें इससे बहुत अधिक हैं।
कुकुरमुत्ता और जलबक
कुकुरमुत्ता अपने अंदर हरे रंग का मूल द्रव्य (क्लोरोफ़िल) न होने के कारण (जो कि अकसर वनस्पतियों में कार्बन लेने के लिए होता है और यह शकर और चर्बी आदि बनाने के काम आता है) सदैव प्रयत्न करता है कि क्लोरोफ़िल वाली घास से दोस्ती करे और इस प्रकार अपने जीवन के लिए उचित आहार प्राप्त करे। इसलिए यह “जलबक से दोस्ती करता है (जो ख़ुद भी एक दूसरे दर्द से ग्रस्त है यानी उसमें पृथ्वी की शक्ति और खनिज पदार्थ को अपने अंदर प्राप्त करके की योग्यता नही होती है लेकिन इसके बदले उसमे क्लोरोफ़िल बहुत अधिक होता है) दोनो तरफ़ से इस दोस्ती और उपनिवेश के प्रस्ताव के माध्यम से कुकुरमुत्ता जलबक से क्लोलोफ़िल प्राप्त करता है और जलबक कुकुरमुत्ते से शक्ति लेता है।
क्या कुकुरमुत्ता और जलबक एक साथ मिलकर अपने इस बुद्धिमता पूर्ण सहयोग के माध्यम से एक सचेत , बसीर , और हकीम (बुद्धिमान) मबदा (पैदा करने वाला) की तरफ़ अनुदेश कर सकता है ?
घास और जानवर
हर वनस्पति अपने समान वनस्पति उत्पन्न करती है और यह ख़ुद एक आश्चर्य जनक और जटिल वनस्पतियों को उत्पन्न करती है जो कि ईश्वरेच्छा और विस्तिरित प्रोग्राम के अधीन अंजाम पाता है , आपने उनकी परिचित एवं प्रचलित आकृतियों को बहुत बार देखा होगा , अधिक जानकारी के लिए हम दूसरे उदारहण पेश करते हैं:
फूल और वनस्पतियों के विभिन्न समूह अपने कारख़ानों और निजी ग्रंथियों के कारण विभिन्न फूलों के शीरे को बनाते हैं और चुने हुए कीड़ों को अपने इर्द गिर्द इकट्ठा करते हैं ताकि यो कीड़े , क़लम लगाने का काम करें , जिस के फल स्वरूप अगले साल और अगली नस्ल के फूलों और पौधों को तैयार करने के लिए आवश्यक बीज तैयार हो सकें।
यही वह स्थान है जहां वनस्पतियां अपने जमा किये हुए विभिन्न शीरों के माध्यम से कीड़ों को अपने साथ दोस्ती पर बाध्य करते हैं या दूसरे शब्दों मे यह कहा जाए कि ईश्वरीय व्यवस्था ने जानवरों को वनस्पति की उत्पत्ति की सेवा के लिए बनाया है।
इस जटिल प्रक्रिया और राज़ को इस विद्या के जानकार डाक्टर जान विलियम क्लातेस की दृष्टि से अध्ययन करें जो कि जीव विज्ञान के गुरू या फ़िज़ियोलाजी , प्रकृति और फ़लसफ़े के डाक्टर और विभिन्न प्रकार के कीड़ों की विरासत मे माहिर हैं , वह कहते हैः
विश्व के जटिल विषयों में से एक विषय एक तरह का इजबारी संबंध और समागम है जो कुछ उत्पत्तियों के बीच जैसे एक चुने हुए फूल और एक ख़ास जानवर के बीच देखने को मिलता है। इस गहरे संबंध के एक चरितार्थ यूका फूल और यूका मक्खी के अंदर पाया जाता है। यूका फूल के सर नीचे की तरफ़ होता है और इस फूल के मादा के भाग नर फूल से नीचे की तरफ़ होता है , फूल की मादा का भाग जहां बीज को जाना चाहिए , इस प्रकार से है कि उसमे अपने आप बीज प्रवेश नही कर सकता , यूका का बीज मादा यूका मक्खी सूर्यास्त के थोड़ी ही देर बाद उठा कर ले जाती है और फिर यूका मक्खी इस बीज का एक भाग को मुंह मे दबाती है और मादा फूल की ओर उड़ती है , फूल के बीज को उस पर छिड़कती है और अपने बीज के कुछ दाने उस पर रखती है , फिर इस के ऊपरी भाग को इस बीज से छिपा देती है जिस को वह लेकर आई है।
फूल बहुत अधिक दाने देता है जिस मे से कुछ को मक्खी के नवजात कीड़े खा लेते हैं और उसमें से कुछ दाने नये फूल बनाते है , यूका फूल की नस्ल के बाक़ी रहने का राज़ इसकी उत्तपत्ति से लेकर आज तक केवल इसी मक्खी के माध्यम से होता है।
इंजीर और उसके अंदर छोटे छोटे मच्छरों के बीच भी इसी प्रकार का संबंध पाया जाता है।
इंजीर के वृक्ष के गुच्छे दो प्रकार के होते हैं , इनमे से कुछ मे नर फूल भी होते हैं और मादा फूल भी होते है और कुछ मे केवल मादा फूल होते हैं , लेकिन यह सब फूल मादा मक्खियों के माध्यम से क़लम कारी करते हैं , इस प्रकार कि इन फूलों के ऊपर विभिन्न पत्ते होने के कारण उनके प्रवेश को पार करना बहुत कठिन होता है इसलिए बेचारे कीड़े बहुत ही परिश्रम के साथ उसके अंदर जा पाते हैं और उसके अंदर जाते समय उन के पर उखड़ जाते हैं लेकिन ईश्वरेच्छा उनको इस कठिन कार्य पर मजबूर करती है जिस के कारण वह उसके अंदर दाख़िल हो जाते हैं।
अगर फूल उस प्रकार के हैं जिसमें नर और मादा दोनों पाये जाते हैं तो उस में मादा मक्खी अंडे देती है और ख़ुद मर जाती है , बाद में वह अंडे मक्खी बन जाते हैं , नर मक्खियां मर जाती हैं और मादा मक्खियां फूल से बाहर आ कर दूसरे फूलो की तरफ़ उड़ान भरती हैं , लेकिन यह मक्खियां फूलों के अंदर से बाहर आने से पहले फूल के अंदर मौजूद बीज मे लिपट जाती हैं ताकि उस बीज को दूसरे फूलों तक पहुंचा सकें।
अगर दूसरे फूल जिन के ऊपर यह मक्खियां बैठती हैं , उस प्रकार की हैं जिसमें नर और मादा दोनो पाये जाते हैं तो यह गत कार्य दोबारा होता है और अगर नया फूल केवल नर हो तो उस फूल की गहराई अधिक होने के कारण यह मक्खियां उस फूल पर अंडे दिये बिना उस पर बैठने के बाद वहां से उड़ जाती हैं लेकिन उन के इस थोड़ी देर बैठने के कारण उसमें जो बीज लिपटा होता है उसके माध्यम वह उसमें क़लम लगा देती है जिस के परिणाम स्वरूप यह फूल बड़ा होने के बाद इंजीर में बदल जाता है।
जब अमरीका में इंजीर का पहला वृक्ष लाया गया तो उस पर फूल नही आए , काफ़ी समय बाद उन लोगों ने ध्यान दिया कि इस वृक्षों को लाते समय इन के साथ जो मक्खियां होती हैं वह उन को नही लाए थे , इसलिए जब उन ख़ास मक्खियों को लाया गया तो उन वृक्षो पर फल आने लगे और इंजीर अमरीकी व्यवसाय का प्रमुख अंग बन गयी।
इंसानी शरीर
इंसान को शरीर के ऐतेबार से एक पूरे शहर से तुलना की जा सकती है , जिसमें जीवन की आवश्यकता के सारी चीज़े पाई जाती हैं जैसे मकान , रास्ते , बहुत शक्तिशाली दूर संचार (फोन , टेलीग्राफ़ , इन्टरनेट आदि) गोदाम , रसोई घर , जीविका बांटने के केन्द्र (कोटे) इसी प्रकार विधुत , पानी की पाइप लाइन , रहने के लिए बहुत अधिक मकान आदि।
हाँ , इस बात पर अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि एक शरीर बनावट किसी शहर की बनावट से बहुत अधिक जटिल है क्योकि शरीर बहुत पलते लाखों सेल्स से बना है जिन में आपस में एक सहमती और एकता पाई जाती है और अपनी इसी अद्रितीय सहमती से एक दूसरे को बनाया है , दूसरे शब्दों मे यह कहा जाय कि इन सेल्स ने आश्चर्य जनक नक़्शे के माध्यम से एक दूसरे को बनाया है जो रत्ती भर भी उस सीमा का उल्लंघन नही करता है।
सामाजिकता की आवश्यकता
सामाजिकता मनुष्य के जीवन का अभिन्य अंग है , और यह जीवन के लिए बहुत आवश्यक है , यहां तक कि अच्छी सामाजिकता दुनिया एवं परलोक में सौभाग्य और बुरी सामाजिकता दुनिया एवं परलोक के दुर्भाग्य का कारण बन जाता है।
दोस्ती और दोस्त की तलाश एक ऐसी वास्तविकता है जिस की तरफ़ सारे इंसानो की प्रकृति और नेचर खिंचा चला जाता है और इंसान के अंदर इस का अस्तित्व इतना अधिक पाया जाता है कि कुछ विद्धानों ने इस को इंसान की स्वाभाविक प्रवृति और अभिलाषा का अंग जाना है।
यह स्वाभाविक प्रवृति और स्वभाविक खिचाव इस कारण से है कि ईश्वर ने मनुष्य को समूह का अंग और सामाजवादी पैदा किया है और उसकी माद्दी और मानवी आवश्यकताओं को पूरा करना दूसरों की कर्तव्य बनाया है।
इंसान की पैदाइश का राज़ इस प्रकार से है कि वह दूसरों के बिना अकेला जीवन नही गुज़ार सकता और समाज से दूर रहते हुए एक कोने में बैठ कर दूसरों के बिना अपने जीवन को संम्पूर्ण नही कर सकता है।
प्रत्यक्ष तौर पर इंसान एकांत चाहता है लेकिन फिर भी जीवन चलाने के लिए वह दूसरो के परिश्रम और कोशिश का मोहताज रहता है और अंत में वह एकांत में भी समाजिक जीवन व्यतीत करता है।
इस्लाम में सामाजिकता
दूसरों के साथ जीवन जीने की इच्छा और दोस्त बनाने की ख़्वाहिश को हज़रत आदम (अलैहिस सलाम) से लेकर इस्लाम के अवतरण तक , इस्लाम (क्योंकि ईश्वर की परम्परा इंसान की उत्पत्ति से लेकर महाप्रलय तक है) ने सदैव इस का ध्यान रखा है और इस के संबंधित बुहत से परिणाम देने वाले विधान और नियम बता कर इंसान को अनुदेश का रास्ता दिखाया है।
प्रत्येक काल में क़ुरआने मजीद की आयात और रिवायात (रसूल (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) या मासूम इमाम (अलैहमुस सलाम) से ली जाने वाली बातें) में सामाजिकता की तरफ़ ध्यान दिलाया गया है और इस से संबंधित मनुष्य की बहुत आधिक रहनुमाई की गई है।
इस्लाम ने दुःस्वभावी और बदचलनों एवं दुष्कृत लोगों के साथ रहने और ज़िन्दगी बसर करने को (क्योंकि उसके साथ दोस्ती और संपर्क , पथभ्रष्टता , बर्बादी , इंसानियत की बर्बादी का कारण है) को शैतान जाना है। पूरे इतिहास ऐसे इंसान को ईश्वर के रास्ते से भटके और संसार एवं परलोक में सौभाग्य और ख़ुश क़िस्मती का दुश्मन माना गया है और उसको गुनाह एवं पाप का कारण मानते हुए अपने दोस्त के लिए बुरा जाना है , और इस तरह की सामाजिकता और मेल मिलाप का नतीजा लज्जा और पछतावा मात्र है।
وَإِنَّهُمْ لَيَصُدُّونَهُمْ عَنِ السَّبِيلِ وَيَحْسَبُونَ أَنَّهُم مُّهْتَدُونَ حَتَّى إِذَا جَاءنَا قَالَ يَا لَيْتَ بَيْنِي وَبَيْنَكَ بُعْدَ الْمَشْرِقَيْنِ فَبِئْسَ الْقَرِينُ
और यह शैतान ऐसे लोगों को रास्ते से रोकते हैं और यह यही ख़्याल करते हैं कि यह हिदायत प्राप्त कर चुके हैं , यहां तक कि जब हमारे पास आऐंगे तो कहेंगे कि काश हमारे और उनके बीच पूरब और पश्चिम जितनी दूरी होती यह तो बड़ा बुरा साथी निकला।
सामाजिकता के दो पहलू
सामाजिकता , मेल मिलाप और दोस्ती इस्लाम की दृष्टि में अपने सारे अर्थों के साथ इंसान के कल्याण और अच्छाई के लिए रास्ता समतल करती है , या अपने सारे अर्थों के साथ इंसान के लिए बुराई के लिए रास्ता तैयार करती है।
अच्छे मेल मिलाप और दोस्ती का नतीजा सौभाग्य एवं कल्याण होता है और बुरे मेल मिलाप और दोस्ती का नतीजा पछतावा और दुर्भाग्य होता है।
कुछ चीज़ों की अच्छाई आंशिक होती है और उसकी तरफ़ रुचि भी कम होती है , कुछ कामों की बुराई कम होती है , लेकिन कुछ वास्तविक्ताओं की अच्छाई बहुत अधिक और कुछ चीज़ों की बुराई बहुत अधिक होती है जिससे इंसान बर्बाद हो जाता है।
दूसरों के साथ दोस्ती , मेल मिलाप और सामाजिकता उन विषयों में से है कि अगर यह सही हों और उनका सही चुनाव किया जाए तो यह इंसान के लिए दुनिया एवं परलोक मे सौभाग्य का कारण बनती हैं और अगर ग़लत हों और उनका सही चुनाव न किया जाए तो उनकी बुराई दुनिया एवं परलोक मे सदैव मनुष्य के साथ रहती है।
कभी कभी इंसान आत्मा की बुराई , बुरे आचरण और शैतानी चरित्र के कारण नर्क में चला जाता है लेकिन सही और अच्छी दोस्ती , भलाई चाहने वाले और शुभ चिंतक मोमिन के कारण उसका रास्ता बदल जाता है और वह दोस्त से अच्छा स्वभाव , अदब , सभ्यता और तमीज़ हासिल करने के कारण स्वर्ग और सीधे रास्ते पर चल पड़ता है।
कभी इंसान आत्मा की सुन्दरता और अच्छाई , अच्छे आचरण , और ईश्वरीय चरित्र के कारण स्वर्गीय हो जाता है और अपनी दुनिया एव परलोक के सौभाग्य को प्राप्त कर लेता है लेकिन कभी कभी अच्छे ज़ाहिर और बे अदब एवं बे दीन आत्मा के कारण अपने रास्ते को बदल देता है और बुराई का प्रभाव होने के कारण नर्क और बुराई की तरफ़ क़दम बढ़ा देता है।
इतिहास मे दोनो प्रकार के लोग बहुत पाए जाते हैं और क़ुरआन करीम ने बहुत सी आयात में इन दोनों समूह की तरफ़ इशारा किया है और दोनो को अच्छी सामाजिकता के लिए शिक्षा एवं नसीहत बनाया है।
हज़रत नूह (अलैहिस सलाम) के बेटे ने अपने बाप से अलग होने के बाद हक़ और वास्तविक्ता का इन्कार करने वालों , वासना में लिप्त , पथभ्रष्ट और भटकाने वाले बे अदबों की दोस्ती और मेल मिलाप का चुनाव किया और उनके आचरण और चाल ढाल को इस प्रकार स्वीकार कर लिया कि उसके अंदर से ईश्वरीय और इंसानी व्यक्तित्व समाप्त हो गया और पानी की लहरों और मौजों के बीच डूब जाने बाले आज़ाब (गुनाह का फल) का शिकार हो गया और ईश्वर के दरबार मे बेटे की मुक्ति के लिए हज़रत नूह (अ) की दुआ स्वीकार नही हुई!!
وَنَادَى نُوحٌ ابْنَهُ وَكَانَ فِي مَعْزِلٍ يَا بُنَيَّ ارْكَب مَّعَنَا وَلاَ تَكُن مَّعَ الْكَافِرِينَ قَالَ سَآوِي إِلَى جَبَلٍ يَعْصِمُنِي مِنَ الْمَاء قَالَ لاَ عَاصِمَ الْيَوْمَ مِنْ أَمْرِ اللّهِ إِلاَّ مَن رَّحِمَ وَحَالَ بَيْنَهُمَا الْمَوْجُ فَكَانَ مِنَ الْمُغْرَقِينَ وَقِيلَ يَا أَرْضُ ابْلَعِي مَاءكِ وَيَا سَمَاء أَقْلِعِي وَغِيضَ الْمَاء وَقُضِيَ الأَمْرُ وَاسْتَوَتْ عَلَى الْجُودِيِّ وَقِيلَ بُعْداً لِّلْقَوْمِ الظَّالِمِينَ وَنَادَى نُوحٌ رَّبَّهُ فَقَالَ رَبِّ إِنَّ ابُنِي مِنْ أَهْلِي وَإِنَّ وَعْدَكَ الْحَقُّ وَأَنتَ أَحْكَمُ الْحَاكِمِينَ قَالَ يَا نُوحُ إِنَّهُ لَيْسَ مِنْ أَهْلِكَ إِنَّهُ عَمَلٌ غَيْرُ صَالِحٍ فَلاَ تَسْأَلْنِ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ إِنِّي أَعِظُكَ أَن تَكُونَ مِنَ الْجَاهِلِينَ
नूह ने अपने बेटे को आवाज़ दी जो अलग जगह पर था कि बेटे हमारे साथ कश्ती (नाव) में सवार हो जाओ और काफ़िरों में न हो जाना , उसने कहा मै अनक़रीब (जल्द ही) पहाड़ पर पनाह (शरण) ले लूंगा वह मुझे पानी से बचा लेगा। नूह ने कहा आज ईश्वर के आदेश से कोई बचाने वाला नही है सिवाए उसके जिस पर ख़ुद ईश्वर कृपा करे और फिर दोनो के बीच मौज आ गई और वह डूब गया , और क़ुदरत (ईश्वर) का आदेश हुआ कि ऐ पृथ्वी अपने पानी को निगल ले और ऐ आसमान अपने पानी को रोक ले। और फिर पानी घट गया और काम तमाम कर दिया गया और कश्ती जूदी नामक पहाड़ पर ठहर गई और आवाज़ आई मौत अत्याचार एवं अन्याय करने वालें के लिए है , और नूह ने अपने ईश्वर को पुकारा हे ईश्वर , मेरा बेटा मेरे अहल मे से है और तेरा वादा (अहल के बचाने का) सच्चा है और तू बेहतरीन न्याय करने वाला है , इरशाद हुआ कि नूह यह तुम्हारे अहल मे से नही है उसका अमल सही नही है इसलिए मुझसे उस चीज़ के बारे में प्रश्न न करो जिसका तुम्हें ज्ञान नही है। मै तुम्हें नसीहत करता हूँ ताकि तुम्हारा शुमार जाहिलों में से न हो जाए।
पिसरे नूह बा बदान बेनशिस्त
ख़ानदाने नबूवतश गुम शुद
सगे असहाबे कहफ़ रोज़ी चंद
पै नेकान गिरफ़्त व आदम शुद
अनुवादः नूह (अ) का बेटा बुरी संगत में रहा तो नबूवत उसके ख़ानदान से चली गई , असहाबे कहफ़ का कुत्ता कुछ दिन अच्छों के साथ रहा तो इंसान हो गया।
दोस्ती एवं सामाजिकता का आश्चर्य जनक प्रभाव वह चाहे अच्छा हो या बुरा इससे कभी भी इंकार नही किया जा सकता।
जिस समय इंसान विशेषकर जवानी के दिनों में जब उसकी भावना , चेतना और ख़्वाहिशात बुलंदी पर होते हैं , किसी अच्छे इंसान से टकरा जाए और उसकी अच्छे चरित्र और आदत से लाभ उठाते हुए उसका दोस्त और साथी बन जाए , उसके साथ उठे बैठे तो निःसंदेह ही उसका अच्छा और पवित्र होना इस इंसान में असर करेगा , और जिस समय इंसान पथभ्रष्ट , बुरे चरित्र और बे अदब इंसान के पास बैठेगा और वह बोलने की योग्यता भी नही रखता होगा तो उसकी बुरी राह और ग़लत अंदाज़ और आदत उस पर प्रभाव डालेगी और वह उसको दुर्भाग्य और योग्यताओं को सामने आने से रोक दोगी।
प्रभावित होना और प्रभावित करना
जब इंसान किसी साथी से दिल लगाये और दोनो एक दूसरे से प्यार करने लगें तो दोस्ती के प्रभाव का विषय एक ऐसी वास्तविक्ता है कि अगर इस्लाम इसकी व्याख्या न करता तो इसकी वास्तविक्ता कभी किसी पर प्रकट न होती और चूंकि इस्लाम ने इस वास्तविक्ता के तमाम पहलुओं पर प्रकाश डाला है और उसकी व्याख्या की है और इससे संबंधित किसी भी पहलू को बिना व्याख्या के नही छोड़ा है , जो इंसान के जीवन में इस विषय की श्रेष्ठता और महत्व का सबूत है।
इंसान सामाजिकता के माध्यम से (चाहे उसकी मर्ज़ी हो या न हो) प्रभावित होता है और उसमें कभी भी यह शक्ति नही होती है कि वह प्रभावित होने और साथी के प्रभावित करने को समाप्त कर सके और अगर ऐसा न होता तो इंसान के जीवन मे यह सब अच्छे और बुरे लक्षण और चिन्ह पैदा न होते।
और चूंकि इंसानी प्रवृति (जैसा कि हमने कहा) बहुत तेज़ी से इस प्रभाव को स्वीकार करती है , क़ुरआने करीम ने अत्याचारियों और उन लोगों से जो ईश्वरीय आदेशों को नही मानते हैं , उनके साथ उठने-बैठने से मना किया है और फ़रमाया हैः जब वास्तविक्ताओं का ज्ञान और ईश्वरीय निशानियों की जानकारी हो जाए और हिदायते हक़ (ईश्वरी की तरफ़ राहनुमाई) का सूरज तुम्हारी आत्मा के क्षितिज से उदय कर जाए और तुम्हें सीधे रास्ते की राहनुमाई कर दे तो हुक़ूक़ की हदों से तजावुज़ करने वालों (सही रास्ते से हट जाने वालो) के साथ सामजिकता न करना और याद आने के बाद फिर ज़ालेमीन (अत्याचारियों) के साथ न बैठना।
चरित्र का प्रभाव स्वीकार करना इतना अधिक तेज़ और ज़्यादा है कि क़ुरआने करीम इस संबंध मे फ़रमाता हैः
और उसने किताब (क़ुरआन) में यह बात नाज़िल (अवरोहित) कर दी है कि जब आयाते इलाही (ईश्वरीय निशानियां) के बारे में यह सुनो कि उनका इंकार और इस्तेहज़ा (मज़ाक उड़ाना) किया जा रहा है तो ख़बरदार उनके साथ हरगिज़ न बैठना जब तक वह दूसरी बातों में मसरूफ़ न हो जाएं वरना तुम उनही के मिस्ल (तरह) हो जाओगें ख़ुदा कुफ़्फ़ार और मुनाफ़ेक़ीन सबको जहन्नम (नर्क) में एक साथ इकट्ठा करने वाला है।
जिन तत्वों से हमारा शरीर बना है वह इसी संसार के तत्व है , स्वतंत्र तत्व , प्रभावित करने वाले और प्रभावित होने वाले हैं और हम भी इन्ही तत्वों से बने हैं इसलिए हम में भी प्रभावित करने और प्रभावित होने वाले तत्व पाये जाते हैं और इसीलिए यह नियम सदैव हम पर लागू होगा।
हम जिन विषयों से भी संबंध रखते हैं उनसे प्रभावित होते हैं और बहुत सी चीज़ों पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं।
जब हम शरीर के किसी भाग में प्रभाव डालते हैं या प्रभावित होते हैं तो निःसंदेह आत्मा , रूह और जान में भी प्रभाव छोड़ते और प्रभावित होते होंगे क्योकि इनमें निर्मलता और स्वच्छता पाई जाती है।
आप किसी एक व्यक्ति की विभिन्न प्रकार की निगाहों को अपनी तरफ़ ग़ौर से देख़े तो हर प्रकार की निगाह जान और आत्मा पर एक अलग प्रकार का प्रभाव छोड़ती है।
क्रोधित और ग़ुस्से से भरी हुई दृष्टि एक प्रभाव और साधारण दृष्टि एक अलग प्रभाव छोड़ती है , मुहब्बत भरी निगाह वैभव शाली का प्रभाव और आश्चर्य एवं प्रश्न वाली निगाह एक अलग प्रभाव छोड़ती है।
विभिन्न प्रकार की आवाज़ें (ध्वनियां) विभिन्न प्रकार का रहन सहन भी इंसान पर विभिन्न प्रकार का प्रभाव छोड़ते हैं।
सामजिकता की कहानी दो दिलों की एक दूसरे से मुलाक़ात की कहानी की तरह है और दो आत्माओं का मुहब्बत भरे रिश्ते के माध्यम से मिलना और प्रभावित करने के ऐतेबार से दोनो की दृष्टि बहुत तेज़ है।
जब कोई किसी से दोस्ती करता है और उसकी दोस्ती एवं साथ को पसंन्द करता है चाहे सामने वाला अच्छा हो या बुरा , वह चाहता है कि रह प्रकार से स्वंय को उसके जैसा बनाए और सजाए रखे ताकी अपनी दोस्ती को दृढ़ और मज़बूत करने के लिए उसको प्रसन्न कर सके।
दूसरे शब्दों में यह कहा जाए कि जब कोई व्यक्ति किसी के साथ दिली और दोस्ती का रिश्ता बनाता है और सामने वाले के आकर्षण और सुन्दरता के कारण वह उसके अधिकार में चला जाता है तो कुछ दिनो के बाद सामने वाले का अस्तित्व उसके बराबर हो जाता है , यहां तक कि उसके रहन सहन और चाल चलन को देखने वाले (चाहे वह शारीरिक हो या सदाचारिक एवं व्यवहारिक) उसके दोस्त को याद करने लगते हैं और कहते हैः मानो यह वही है!
इस मिलाप और चेहरे मोहरे में आवश्यक नही है कि इंसान का महबूब शारीरिक तौर से उपस्थित हो बल्कि कभी कभी कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के गुणों और पवित्र रहन सहन को दूसरो से सुनकर या अध्ययन करने से अवगत हो जाता है और उसके दिल में उसकी मुहब्बत घर कर लेती है और इस मुहब्बत के प्रभाव में वह अपने महबूब के हुलिये और रहन सहन को अपना लेता है और वह इस सीमा तक पहुंच जाता है कि अपने आप को अपने महबूब का अस्तित्व बना देता है।
सही प्रभाव स्वीकार करने का उदाहरण
विशिष्ट किताबों में रिवायत बयान की गई है कि जब हज़रत अली अकबर (अलैहिस सलाम) ख़ुदा की राह में जिहाद और इस्लाम की रक्षा के लिए मैदाने करबला की तरफ़ चले तो इमाम हुसैन (अलैहिस सलाम) ने ख़ुदा की बारगाह में कहाः
اللَّهُمَ اشْهَدْ فَقَدْ بَرَزَ إِلَيْهِمْ غُلَامٌ أَشْبَهُ النَّاسِ خَلْقاً وَ خُلُقاً وَ مَنْطِقاً بِرَسُولِك
हे ख़ुदा! इस क़ौम पर साक्षी रहना निःसंदेह जंग के मैदान में इनकी तरफ़ ऐसा व्यक्ति गया है जो , व्यवहार , आचरण और चाल चलन में तेरे पैग़म्बर (स) से बहुत अधिक समानता रखता है।
हज़रत अली अकबर (अ) ने पैग़म्बरे अकरम (स) के स्वभाव को अपने चचा हज़रत इमाम हसन (अ) और अपने पिता हज़रत इमाम हुसैन (अ) से सुना था और आपके (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) तौर तरीक़े एवं चाल चलन को क़ुरआन में देखा था इसलिए इन सब चीज़ों के देखते हुए आप पैग़म्बरे इस्लाम (स) से बहुत अधिक मोहब्बत करने लगे थे और इसी मोहब्बत और आपसे प्रभावित होने के कारण आप पैग़म्बरे इस्लाम (स) के समान हो गए थे , जैसा एक मासूम इमाम , हज़रत इमाम हुसैन (अ) ने इस वास्तविक्ता की तरफ़ इशारा किया है।
पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ख़ुदा की सही पहचान और ख़ुदा से मोहब्बत करने के कारण दयालू परवरदिगार की सिफ़तों के वाहक बन गए थे , यहां तक कि क़ुरआने मजीद ने पैग़म्बरे अकरम (स) के अनुसरण और उनकी बैअत को ख़ुदा की बैअत माना है जैसा कि इर्शाद होता हैः
... مَّنْ يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللّهَ
जिसने पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) का अनुसरण किया उसने वास्तव में ख़ुदा का अनुसरण किया है।
إِنَّ الَّذِينَ يُبَايِعُونَكَ إِنَّمَا يُبَايِعُونَ اللَّهَ يَدُ اللَّهِ فَوْقَ أَيْدِيهِمْ فَمَن نَّكَثَ فَإِنَّمَا يَنكُثُ عَلَى نَفْسِهِ وَمَنْ أَوْفَى بِمَا عَاهَدَ عَلَيْهُ اللَّهَ فَسَيُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا
निःसंदेह जो लोग आपकी बैअत करते हैं वह लोग वास्तव में ख़ुदा की बैअत करते हैं और उनके हाथों के ऊपर अल्लाह का हाथ है अब इसके बाद जो बैअत तोड़ देता है वह अपने ही विरुद्ध कार्य करता है और जो ख़ुदा से किए गए वादे को पूरा करता है ख़ुदा बहुत जल्द उसको बहुत बड़ा इन्आम देगा।
दुआ ए जोशन कबीर के पैतालीसवें बंद में ख़ुदावंदे आलम को हबीब के नाम से याद किया गया है और चौहत्तरवें बंद में रफ़ीक़ (दोस्त) के नाम से याद किया गया है
पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने ख़ुदा को अपना हबीब और दोस्त बनाया और अपने महबूब एवं दोस्त और अत्यधिक मोहब्बत और इश्क़ के कारण उसकी सिफ़तों और अस्मा (नामों) को अपने अंदर समा लिया जिसका असर यह हुअ कि उनका अनुसरण ख़ुदा का अनुसरण और उनकी बैअत ख़ुदा की बैअत हो गई।
मीसमे तम्मार , रशीद बजरी , उमर बिन होमोक़े ख़ज़ाई और मालिके अश्तर आदि ने अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अलैहिस सलाम) को अपनी दोस्ती मोहब्बत और साथी के तौर पर चुना , यहां तक कि इन लोगों ने काफ़ी हद तक अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) की सिफ़तों को अपने अंदर समो लिया था और व्यवहार एवं चाल चलन में अपके जैसे हो गए थे।
अगर सामाजिकता और दोस्ती को सही सिद्धांत पर स्वीकार किया जाता तो निःसंदेह लोगों का जीवन शांति अमन और भरोसे वाली हो जाती
अगर लोग ग़लत काम करने वालों से दूर हो जाते , उसके साथ रहन सहन और दोस्ती ना करते , उनके ख़ुश होकर ना मिलते और उनके साथ समाजिकता के लिए यह शर्त रखते कि वह अपना व्यवहार और चाल चलन बदलें तो चरित्रहीनों और बुरा काम करने वालों की संख्या बहुत कम हो जाती और शायद समाज से उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता।
अफ़सोस कि चरित्रहीनों , बुरे काम करने वालों और फ़ासिक़ों के लिए जीवन की सारी राहें खुली हुई हैं और बहुत से लोग उनको अपनाने के लिए तैयार रहते हैं और इस प्रकार उनके लिए प्रभाव छोड़ने का रास्ता तैयार करते हैं , इंसान और इन्सानियत से ख़यानत करने का रास्ता बनाते हैं और जहां तक इन लोगों में शक्ति होती है बहुत जल्द लोगों को अपने जैसी सोच रखने वाला बना देते हैं और उनके अपने रंग में रंग लेते हैं।
चरित्रहीनों और बुरे काम करने वालों के मार्ग दर्शन के लिए उनके बीच बैठना आवश्यक है लेकिन यह मेल मिलाप और बैठना उस समय सही है जब मार्ग दर्शन करने वाले में इतनी रूहानी शक्ति हो कि वह लोग उस पर अपना प्रभाव ना छोड़ सकें और उसको यह लोग उसके अपने अंधकारमयी जीवन का अंग ना बना सकें।
अगर ख़ुदावंदे आलम हज़रत मूसा (अलैहिस सलाम) और हज़रत हारून (अलैहिस सलाम) को आदेश देता है कि फ़िरऔन के मार्ग दर्शन और उसकी हिदायत के लिए उसके पास जाएं तो यह इसलिए था कि पता था कि हज़रत मूसा (अलैहिस सलाम) और हज़रत हारून (अलैहिस सलाम) फ़िरऔन के चरित्र और उसकी बातों से प्रभावित नही होंगे।
कुछ रिवायतों के अनुसार हज़रत मूसा (अ) और हज़रत हारून (अ) ने पच्चीस साल तक रात दिन फ़िरऔन औऱ फ़िरऔनियों को ख़ुदा की तरफ़ बुलाया और उनके साथ उठे बैठे , लेकिन फ़िरऔन और उसके अनुयायियों की हवा हवस और उनके ग़रुर एवं घमंड के कारण इन लोगों ने इन दोनों नबियों के निमंत्रण को स्वीकार नही किया , और इन दोनों नबियों ने फ़िरऔन और उसके साथियों के साथ उठने बैठने और समाजिकता बनाने के बावुजूद उनके तौर तरीक़ों और चाल चलन को स्वीकार नही किया।
فَقُولَا لَهُ قَوْلًا لَّيِّنًا لَّعَلَّهُ يَتَذَكَّرُ أَوْ يَخْشَى , اذْهَبَا إِلَى فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَى
तुम दोनों फ़िरऔन की तरफ़ जाओं क्योंकि वह (ख़ुदा के सामने) सरकश हो गया है , उससे नर्मी से बात करना कि शायद वह नसीहत मान ले (और वास्तविक दीन को स्वीकार कर ले) या डर जाए।
मार्गदर्शन के लिये साथ रहना
तेहरान में जहां मैं रहता हूँ वहा एक जवान रहता है तो शराब , जुआ , जैसी बुराईयों , नाजाएज़ संबंधों और लोगों के हक़ को बरबाद करने में किसी प्रकार की कोताही नही करता था , और उससे जानने वालों में कोई भी ऐसा नही था जो उसको इन बुराईयों से रोकता।
एक दिन मैं अपने एक मोमिन दोस्त से मिलने के लिए उसके पास गया , वह एक ऐसा मोमिन था जिसमें बहुत से नेक गुण पाए जाते थे और वह लोगों की समस्याओं को हल किया करता था , मेरे मोमिन दोस्त ने उस जवान का मार्ग दर्शन किया उस इस प्रकार उसने बहुत से नेक गुण और इंसानी सिफ़तें और व्यवहार सीख लिए थे , जब मैं उसके पास पहुँचा तो वह जवान उसी के पास बैठा हुआ था , उसकी बातों से लग रहा था कि उसने अपनी आदतें बदल दी हैं और शैतान के रास्ते से रहमान के रास्ते पर आ गया है , उसके इस बदलाओ को देख कर मैं समझ गया कि उसके अंदर कोई ऐसा गुण पैदा हो गया है जिसने उसके ख़ुदा का रास्ता दिखा दिया है और उसको हलाकत एवं बर्बादी से बचा लिया है।
मैंने उससे पूछा कि तुम्हारे साथ ऐसी कौन सी अच्छी घटना घटी है जिसके कारण तुमने शैतान का रास्ता छोड़कर हक़ और हक़ वालों की पैरवी और उनका रास्त अपना लिया है ?
उसने जवाब दियाः जुमेरात की रात को मैं मस्त होकर शराब को अड्डे से बाहर आया और बहुत अधिक शाराब पीने का कारण मैं सड़क के किनारे गिर गय , जब मुझे होश आया तो मैंने देखा कि मेरा सर एक आलिमे दीन के ज़ानू पर है और वह मेरे सर पर अपना हाथ फेर रहे हैं , उन्होंने मुझ से कहा कि मेरे साथ उस मस्जिद में चलो जहां मैं रोज़ नमाज़ पढ़ाता हूँ और जुमे की सुबह को दुआ ए नुदबा पढ़ता हूँ।
मैंने शरमाते हुए उनसे कहा कि इस हालत में मस्जिद में जाना ठीक नही है!
उन्होंने कहा कि नही बल्कि मस्जिद जाने के लिए तुम्हारी यही हालत सबसे अधिक अच्छी है! बहतु कहने और इसरार करने के बाद अंत में उन्होंने मुझे साथ जाने के लिए तैयार कर लिया और मेरे हाथ में हाथ डाल कर वह मुझे मस्जिद ले गए , बहुत ही मोहब्बत के साथ उन्होंने मुझे वज़ू करने और नमाज़ पढ़ने के लिए कहा , नमाज़ के बाद मुझे मस्जिद के आफ़िस में ले गए और अपने हाथों से उन्होंने मेरे लिए नाश्ता बनाया और मुझसे कहा कि इमाम ज़माना (अलैहिस सलाम) के दस्तरख़ान पर खाना खाओ , और शायद मस्जिद के इसी खाने , वहां नमाज़ पढ़ने और वहां के खाने ने मेरा इलाज कर दिया और मैं सही रास्ते पर आ गया।
يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءتْكُم مَّوْعِظَةٌ مِّن رَّبِّكُمْ وَشِفَاء لِّمَا فِي الصُّدُورِ وَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ
हे लोगों! निःसंदेह तुम्हारे पास परवरदिगार की तरफ़ से नसीहत और दिलों की एतेक़ादी (आस्था वाली) और व्यवहारिक बीमारियों के लिए शिफ़ा का सामान मार्ग दर्शन और ईमान लाने वालों के लिए रहमत और मार्ग दर्शन का सामान क़ुरआन आ चुका है।
इस आलिमें दीन के मार्ग दर्शन और मुहब्बत के कारण मैने गुमराही से बच गया और मैंने ख़ुदा के रास्ते को चुन लिया और एक दीनदार एवं मोमिन लड़की से मेरी शादी हो गई और अब मैं ख़ुदा की कृपा से अपनी हिदायत पा चुकी ज़िन्दगी और इस आलिमे दीन की मुहब्बत और दोस्ती और बैठक से पूर्ण रूप से प्रसन्न हूँ।
नैशापूर में लेखक के साथ घटने वाली आश्चर्य जनक घटना
नैशापूर में एक व्यक्ति है जिसकी इमाम ज़माना (अलैहिस सलाम) से मुहब्बत हर इंसान की ज़बान पर आम है और वह व्यक्ति जब नबियों और इमामों की यादगार यानी इमाम ज़माना (अ) का नाम सुनता है तो उसकी आँखों से आँसू जारी हो जाते हैं , उसने ज़िल हिज्जा महीने के दूसरे हफ़्ते में ईदे विलायत के अवसर पर तबलीग़ करने के लिए मुझे वहा बुलाया।
वहां पर तब्लीग़ करते हुए मुझे अभी कुछ ही दिन बीते थे कि मेरे एक दोस्त जो कि आलिमे दीन थे और मशहद में रहते थे मुझसे मिलने के लिए नैशापूर आए , मैंने उनसे बहुत कहा कि वह मेरी मजलिस के समाप्त होने तक नैशापूर में मेरे पास रहें।
मैं उस ज़माने में इमामे सज्जाद (अलैहिस सलाम) कु दुआओं की किताब सहीफ़ ए सज्जादिया की व्याख्या (तफ़्सीर) करने में लगा हुआ था , एक दिन मेरे उस आलिमे दीन दोस्त ने शहर के पास बाईपास रोड पर चहल क़दमी करने की इच्छा प्रकट की , मैने उनकी बात स्वीकार कर ली और क़लम छोड़कर उनके साथ सड़क पर टहलने के लिए निकल गया।
अभी हम पैदल चल ही रहे थे कि एक जवान ने हमारे पास पहुँच कर अपनी गाड़ी के ब्रेक लगाए और उसने बहुत ही मोहब्बत के साथ हमसे कहा कि आप लोग जहां तक जाना चाहते हैं मैं आप लोगों को पहुँचा दूँगा , मेरे दोस्त ने हाथ और आँखों के इशारे से कहा कि इसको अपने साप से हटा दो और इसकी गाड़ी में सवार ना होना इसलिए कि पता नही यह गाड़ी किसकी है और यह किस मक़सद से यहां आया है।
मैंने उस जवान के हुलिये को ग़ौर से देखा , उसके जिस्म पर छोटी आस्तीन वाली एक शर्ट थी जिससे पता चलता था कि निःसंदेह यह जवान एक अपरिचित संस्क्रति में खोया हुआ है और यह एक ऐसा बीमार है जिसको एक मेहरबान डॉक्टर , साथ रहने वाले , चाहने वाले दोस्त और एक शुभ चिंतक मित्र की आवश्यकता है , मैं उसकी गाड़ी में सवार हो गया और अपने आलिमे दीन दोस्त से भी गाड़ी में सवार होने के लिए कहा।
मेरा आलिमे दीन दोस्त ना चाहते हुए भी डरते हुए मेरे साथ गाड़ी में सवार हो गया , यह उस समय की बात है जब ईरान के उत्तर और पश्चिम में काफ़िर सद्दाम के हामियों के साथ जंग हो रही थी और अंधे मुनाफ़िक़ प्रतिदिन शरह किसी ना किसी कोने में बे गुनाह लोगों की जान ले रहे थे और ख़ानदानों को दाग़दार कर रहे थे।
उस नौजवान ड्राइवर ने मुझ से पूछाः कहां जाएंगे ? मैंने कहाः जहां तुम्हारा दिल चाहे , वह मेरे जवाब से प्रसन्न हो गया और कहने लगा कि कहां के रहने वाले हो ? मैंने कहाः तेहरान , फिर उसने पूछा इस शहर में क्या कर रहे हो ? मैंने कहा तुमसे मुलाक़ात के लिए आया हूँ , वह इस प्रकार की मुलाक़ात से और वह भी एक आलिमे दीन से जिसकी उसे आशा भी नही थी बहुत ख़ुश हो गया।
मुझसे कहने लगाः मैं आर्थिक रूप से बहुत मज़बूत हूँ , और मेरे पास दो मंज़िला मकान है जिसमें अकेला रहता हूँ , मेरी इच्छा है कि आप कुछ देर के लिए इस घर में मेरे मेहमान बनें।
मैंने उसके घर जाना स्वीकार कर लिया , मेरे आलिमे दीन दोस्त नें देश की ख़राब हालात के कारण हाथ के इशारे से मुझसे कहा कि इसके घर ना जाओ , लेकिन मैंने ख़ुदी की कृपा और उसकी मेहरबानी एवं अम्र बिल मारूफ़ एवं नही अनिल मुनकर (अच्छाई का हुक्म देना और बुराई से रोकना) के वाजिब होने की वजह से उसके घर जाने का पक्का इरादा कर लिया।
घर पहुँचने के बाद उसने हमें अपने घर के अतिथि कक्ष में बिठाया उस अतिथि कक्ष की चारों दीवारों पर अलग अलग प्रकार की गंदी , उत्तेजक और पश्चिमी फ़िल्मी दुनिया की औरतों की अर्द्ध नग्न तस्वीरे लगी हुई थीं , मेरे आलिमे दीन दोस्त जो कि मुत्तक़ी और मुक़द्दस व्यक्ति थे ने मुझसे कहाः यह कैसा नर्क है जिसमें हम आ गए हैं ? इस कमरे में ज़मीन देखने या आँखें बंद रखने के अतिरिक्त और कोई चारा नही है ?!
मैंने उनसे कहा हिम्मत से काम लो , धैर्य रखे शायत इस शहर में हमारे सफ़र का मक़सद यह था कि हम इस जवान से परिचित हों और कुछ देर उसके साथ बैठें ताकि यह इस बुराई से नजात प्राप्त कर सके , क्योंकि ख़ुदावंदे आलम अपने सारे बंदों पर मेहरबान एवं कृपालू है और उसने हर गुनाह करने वाले के लिए तौबा का द्वार खोल रखा है जैसा कि दुआ में भी आया हैः
انت الذی فتحت لعبادک بابا الی عفوک سمیتہ التوبۃ فقلت توبو الی اللہ توبۃ نصوحا فما عذر من اغفل دخول الباب بعد فتحہ
हे ख़ुदा! तू ही है जिसने अपने बंदों के लिए माफ़ी के द्वार खोल रखे हैं और उसका नाम तौबा रखा है , इसलिए तूने फ़रमायाः सब ख़दावंदे आलम की तरफ़ ख़ालिस तौबा के साथ वापस आ जाओ , इसलिए जो व्यक्ति इन द्वारों के खुलने के बाद में दाख़िल ना हो उसके लिए क्या बहाना हो सकता है ?
कुछ देर के बाद वह जवान कमरे में आया और हमें स्वागत कहने के बाद हमारे लिबास जो कि पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) का लिबास है और हमारी तरफ़ कोई ध्यान दिये बिना बेशर्मी से कहने लगाः मेरे घर की फ्रिज में बेहतरीन शराब और अफ़्ग़ानिस्तान की बेहतरीन अफ़ीम और गांजा मौजूद है , चाय और फल खाने के बाद आप जो भी कहें आपके सामनें पेश कर देता हूँ!!
वह अपनी इस पेशकश के साथ सोच रहा था कि अपने दो नए मेहमानों की (अरगचे दोनों आलिमे दीन हैं) इस प्रकार अच्छी मेज़बानी करे।
मग़रिब की नमाज़ में अभी एक घंटा बाक़ी था , मैंने उससे कहा कि आज रात मेरी अपने एक मेहमान दोस्त से मुलाक़ात है और वह दोस्त भी ऐसा है जो कि बहुत प्यारा , चाहने वाला , सहायता करने वाला और मेहरबान है और वह शराब और नशे वाली चीज़ों से बहुत नफ़रत करता है , इसलिए अगर उसने शराब और नशे वाली चीज़ों की ज़रा सी बू भी सूँघ ली तो मुझे डर है कि वह मुझसे दूर हो जाएगा , और उसको छोड़ने की मुझमें हिम्मत नही है और यह एक ऐसी हानि होगी जिसकी जिसकी मैं कभी भी भरपाई ना कर सकूँगा।
तुम मुझे मेरे उस दोस्त और माशूक़ की वजह से इन जीज़ों से दूर ही रखो , उसने भी बहुत ख़ुशी से मेरी बात मान ली और केवल चाए और फल ही हमारे सामने पेश किए
मेरे आलिमे दीन दोस्त ने हाथों और आँखों के इशारे से मुझसे कहा कि इन चीज़ों को खाने से बचूँ , मैंने धीरे से उनसे कहाः हम यहां पर जितना भी खाएंगे उसका ख़ुम्स दे देंगे ताकि किसी प्रकार का कोई संदेह ना रह जाए।
मग़रिब के समय उस जवान ने मुझसे कहाः शहर के किस स्थान पर तुम अपने दोस्त से मिलने के लिए जाओगे ? मैंने कहाः नैशापूर की जामा मस्जिद के पास , उसने कहा कि मैं वहां आप लोगों को पहुँचा दूँगा।
मस्जिद के पास गाड़ी रोक कर वह हमारे साथ नीचे उतरा और पूछाः तुम्हारा दोस्त अभी नही आया ? मैंने कहाः मेरा दोस्त यहां पर है। उसने कहा मुझे भी अपने दोस्त को दिखाओ , मैंने कहा मेरा महबूब और दोस्त ख़ुदा है जिसके साथ अज़ान के समय नमाज़ के माध्यम से मुलाक़ात है और यह मुलाक़ात का समय है जिसके लिए मैं आया हूँ।
वह जवान भौचक्का और आश्चर्य चकित रह गया और उसने अपना सर गरेबान में छिपाने का प्रयत्न करने लगा और लज्जित हो गया , मैंने उससे कहाः जी हां , वह मेरा महबूब है जो शराब , नशे वाली चीज़ों , जुआ , नाजाएज़ संबंधो और हराम माल से नफ़रत करता है , और मैं नही चाहता कि इन चीज़ों में लिप्त होने के कारण वह मुझ से दूर हो जाए और हमारे संबंध समाप्त हो जाएं।
जवान ने कहाः मैंने उस घर में कोई ऐसी रात नही गुज़ारी जब मैंने नशे वाली चीज़ों और शराब ना पी हो , भिन्न प्रकार की कैसेटें और अर्द्ध नग्न फ़िल्में ना देखी हों , लेकिन आज रात की इस मुलाक़ात से मैंने पक्का इरादा कर लिया है कि इन सारी चीज़ों को छोड़ दूँगा , लेकिन मैं तुमसे चाहता हूँ कि कल तुम मेरे पास अवश्य आना , मैंने उसकी बात स्वीकार कर ली , और अगले दिन दस बजे जामा मस्जिद के पास उससे मिलने का वादा कर लिया।
दस बजे वह आया , मुझे और मेरे दोस्त को शहर की कुछ ज़ियारत गाहों (धार्मिक स्थलों) जिनमें से क़दमगाह भी थी ले गया , और हमसे कहा कि रात को हम उसी के पास रहें , और संयोग से वह रात भी शबे जुमा (गुरुवार की रात) थी , दूसरी तरफ़ लोग दुआ ए कुमैल के लिए मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे क्योंकि मुझे वहां पर तक़रीर (भाषण) भी करनी थी , और उस जवान को नही मालूम था कि मैं इस शहर की मस्जिद में तक़रीर कर रहा हूँ।
मैंने मजलिस का पता उसको दिया , दुआ ए कुमैल आरम्भ होने से पहले ही वह वहां पहुँच गया , बहुत अधिक भीड़ होने के कारण मजलिस में दाख़िल होने का रास्त नही था , मैंने इशारे से उससे कहा कि मेरे पास आ जाओ , उसको क़िबले की तरफ़ अपने पास बिठाया , सारी लाइटों को बंद कर दिया गया , पूर्ण अंधेरे में दुआ ए कुमैल पढ़ी गई।
दुआ ए कुमैल के बाद मैंने देखा कि उस जवान की दोनों आँखें बहुत अधिक रोने और बहुत अधिक आँसू बहाने के कारण लाल ख़ून हो रही थीं , मैंने उससे कहाः ख़ुदावंदे आलम ने तुम्हारे सारे गुनाह माफ़ कर दिए , पाक और पवित्र जीवन आरम्भ करो , उसके बाद मैंने उससे विदा ले ली और ख़ुदा हाफ़िज़ कर लिया , और उसी रात नैशापूर से तेहरान वासप आ गया।
तीन साल तक मुझे उसके बारे में कुछ पता ना चल सका , मैं मशहद की एक यात्रा के दौरान अपने उसी आलिमे दीन दोस्त से मिलने के लिए गया , उसने कहाः मैंने एक दिन इमाम रज़ा (अलैहिस सलाम) के रौज़े में उस जवान को देखा , उसने आप के बारे में पूछा , मैंने कहाः तेहरान ही में हैं , फिर उसने उसी यात्रा के बारे में बात शुरू की और कहाः मैंने सच्ची तौबा कर ली है और नैशापूर से मशहद आ गया हूँ , और यहां पर इमाम रज़ा (अलैहिस सलाम) की कृपा से एक नेक और दीनदार बीवी मिल गई है जिसने मेरे मार्ग दर्शन और परिवर्तन में बहुत अधिक साथ दिया है।
जी हाः एक घंटे के सही और स्वच्छ साथ और सही दोस्ती के माध्यम से अगरचे कम ही मात्रा में इस्लामी शिक्षा का प्रसार किया जाए तब भी राह से भटके हुए लोगों का मार्ग दर्शन हो सकता है।
इसीलिए अगर बुरे और फ़ासिक़ लोगों के दोस्ती करने और उनके साथ रहन सहन करने में इंसान पर बुरा प्रभाव पड़े और इंसान के व्यवहार और आदतें प्रभावित हों तो इस्लाम की निगाह में इस प्रकार की दोस्ती और रहन सहन हराम है , और अगर इंसान का ईमान सुरक्षित रहे तो उनके मार्ग दर्शन और सही रास्ता दिखाने के लिए दोस्ती करना आवश्यक है , बल्कि अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर के आधार पर वाजिब है।