प्रेमी पर प्रेम पात्र का प्रभाव
इंसान दोस्ती समाजिकता रहन सहन और बैठक के सिलसिले में जिस समय महबूब की मुहब्बत की सीमा में क़दम रखता है तो यह वह नही है जो बहुत आसानी के साथ महबूब के प्रभाव को स्वीकार कर लेता है बल्कि यह महबूब है जो मुहब्बत के माध्यम से अच्छे प्रभाव , रूहानी महत्व और आत्मिक सुन्दरता को आशिक़ के अंदर डाल देता है और धीरे धीरे मुहब्बत करने वाले को आपने दूसरे अस्तित्व में बदल देता है।
इश्क़ अज़ माशूक़ अव्वल सर ज़नद
ता बे आशिक़ जलवए दीगर कुनद
आशेक़ी रा क़ाबेलीयत लाज़िम अस्त
तालिबे हक़ रा हक़ीक़त लाज़िम अस्त
अनुवाद ,
इश्क़ पहले माशूक़ के दिल में पैदा होता है , उसके बाद आशिक़ के दिल में उसका जलवा ज़ाहिर होता है।
आशिक़ी के लिये इश्क़ की योग्यता आवश्यक है , सत्य व हक़ की चाहत रखने वाले के लिये वास्तविकता आवश्यक है।
इंसान जिस समय इल्म और जानकारी के साथ मेहरबान ख़ुदा को अपने अपने महबूब के तौर पर चुनता है और दिल को उसके इश्क़ में गिरवी रख देता है तो अल्लाह ताला की तरफ़ से कमालात और रुहानी बुलंदियां उसके ज़रफ़ के एतेबार से धीरे धीरे उसके अंदर प्रकट होने लगते हैं।
उस बरकत और रहमत के मरहले में स्वर्ग से निकाला गया आदम चमकते हुए सूरज की तरह शब्दों के क्षितिज से निकलता है और तौबा के महान पड़ाव से होता हुआ ख़ुदा तक पहुँच जाता है।
इस प्रकाशमयी पड़ाव पर पहुँचने के बाद अय्यूब (अलैहिस सलाम) मुसीबतों और कठिनाईयों की तीव्र मौजों के सामने सब्र करते हैं और अपने ख़ुदा की निगाह में एक नेक और अच्छे बंदे होने का ओहदा प्राप्त कर लेते हैं और सदैव के लिए सब्र और पाएदारी का नमूना बन जाते हैं।
इस बुलंद स्थान पर हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल (अलैहिस सलाम) तस्लीम और सुपुर्दगी के क्षितिज से प्रकट होते हैं और बाप बहुत ही शौक़ और ज़ौक़ के साथ अपने महबूब की आज्ञा का पालन करने के लिए हज़रत इस्माईल (अलैहिस सलाम) को क़ुरबान करने के लिए तौयार हो जाता है , और जब उनको इसी महबूब के कारण मिनजिनीक़ में रख कर भड़कती हुई आग में फेंका जाता है तो उनको उसका कोई डर नही होता है।
इसी पड़ाव पर पहुँच कर हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस सलाम) कनआन के गहरे कुएं में अपने दोस्त का करम और उसकी मेहरबानियां पाते हैं और कुएं के अंधेरे में अपनी आत्मा और दिल को रौशन रखने के लिए अपने महबूब के प्रकाश से नूर प्राप्त करते हैं , और अपने परवरदिगार के करम की आशा में अपने आप सुकून और इत्मीनान को सुरक्षित रखते हैं , और अंत में अज़ीज़े मिस्र के सिंहासन से प्रकट होते हैं।
इस आत्मिक द्रण्टि के आधार पर फ़िरऔन के डर से पूर्ण रूप से रूपोश हो जाते हैं और दस साल तक जंगल में हज़रत शुऐब (अलैहिस सलाम) की भेड़ों को चराते हैं और फिर मिस्र वापस जाते समय सीना की घाटी में क़दम रखते हैं , वहां पर अपने महबूब के नूर को पवित्र घाटी में प्रकट होते हुए देखते हैं और माशूक़ की आवाज़ को सुनते हैं और उससे बात करने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं और अंत में कलीमुल्लाह की पदवी प्राप्त करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) अपनी मारेफ़त पर भरोसा करते हुए आरम्भ से ही अपने महबूब ख़ुदा का चुनाव करते हैं और अपने जीवन की अंतिम सांस तक अपने दोस्त के साये और उसकी दोस्ती एवं मोहब्बत में अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं , और फिर आपका वुजूद गुणें से इस प्रकार परिपूर्ण हो जाता है कि आप फ़रमाते हैः
من رانی فقد رای الحق
जिसने मुझे देखा उसने बेशक हक़ को देखा है।
आपने (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) इस आत्मिक संबंध और रूहानी दोस्ती और मिलाप के माध्यम से ऐसा रुतबा प्राप्त कर लिया कि ख़ुदावंदे आलम ने आपके नाम को तशह्हुद में अपने नाम के साथ वाजिब कर दिया और काफ़िरों एवं मुशरिकों के ईमान लाने के लिए अपनी तौहीद के इक़रार के साथ साथ आपके इक़रार को भी वाजिब किया है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके अहलेबैत (अ) से प्रभावित होना
अगर इंसान मारेफ़त के साथ पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के साथ समाजिकता और दोस्ती का वातावरण बना ले , और इल्म एवं समझ के साथ उनका चाहने वाला और हो जाए तो आप (स) का पवित्र वुजूद अपने गुणों से इंसान को इस प्रकार भर देगा कि इंसान अपने पहले वुजूद या साइक्लोजिस्टों के अनुसार अपनी फ़ितरी अना अर्थात मैं से दूर हो जाएगा और अपने अस्तित्व की सीमा अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम (स) का दूसरा वुजूद बन जाएगा , यानी ऐसा वुजूद जो हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अलैहिस सलाम) पूर्ण रूप से साकार हो गया था , इसी कारण पैग़म्बरे अकरम (स) ने आप के बारे में फ़रमायाः
لحمک لحمی، دمک دمی، و سلمک سلمی و حربک حربی
तुम्हारा गोश्त मेरा गोश्त , तुम्हारा ख़ून मेरा ख़ून , तुम से संधि मुझसे संधि और तुमसे जंग मुझसे जंग है।
ऊँटों को चराने वाला ओवैस जब तक रूहानी दुनिया में पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) का दोस्त नही बना था और उनको नही पहचानता था तब तक वह ऊँटों को चराने वाला ओवैस था , लेकिन जब मारेफ़त का वादी में पैग़म्बरे इस्लाम (स) को पहचान गया और रूहानी दुनिया में आप (स) की दोस्ती और साथ की तरफ़ आ गया और अपने महबूब के क़रीब आ गया तो ओवैस के वुजूद में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्रभाव ने ओवैस को इस मंज़िल पर पहुँचा दिया कि वह तौहीद के बाग़ का ख़ुश्बूदार फूल बन गया और पैग़म्बरे अकरम (स) मदीने में रहते हुए यमन की तरफ़ से ओवैस में से ख़ुदा की ख़ुश्बू को सूँघ रहे थे।।
गुफ़्त अहमद ज़े यमन बूई ख़ुदा मी शनवम
अनुवाद
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा कि यमन से मुझे ख़ुदा (के सच्चे भक्त) की ख़ुशबू आ रही है।
सलमान इस दोस्ती , सामाजिकता , इश्क़ और मोहब्बत से इस मंज़िल पर पहुँच गए थे कि पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने उनके वुजूद के महत्व के सलमान के जीवन के क्षितिज से प्रकट किया और सलमान “अस्सलमानो मिन्ना अहलुल बैत ” की मंज़िल पर पहुँच गए।
इंसान जब अहले बैत और मासूम इमामों (अ) की मोहब्बत को अपने अंदर समो लेता है तो उन सम्मानित हस्तियों के गुण इंसान के जीवन में प्रकट होने लगते हैं , और वह उनका दूसरा वुजूद बन जाता है।
बहरहाल यह महबूब जो मज़बूत संबंध के माध्यम से मोहब्बत करने वाले के ज़ाहेरी वुजूद और फ़ितरी अनानिय को समाप्त कर देता है और उसको माशूक़ का दूसरा वुजूद बना देता है।
वास्तव में वास्तविक मोहब्बत करने वाला वही महबूब है लेकिन दूसरे वुजूद में और वास्तविक आशिक़ वही माशूक़ है लेकिन दूसरे रूप में।
अच्छे महबूब ना केवल दुनिया में अच्छे प्रभावों और कमाल को इंसान में डालते हैं और इंसान में आश्चर्य जनक प्रभाव छोड़ते हैं बल्कि आख़ेरत में भी अपने महबूबों के साथ होने वाली तीव्र मोहब्बत के कारण उनको क़यामत भयानक और डरावने माहौल से बचाते हैं और अपने साथ जन्नत ले जाते हैं जहां पर दोस्ती , रहन सहन और मोहब्बत के साथ एक दूसरे के पास सदैव रहेंगे।
" و حسن اولئک رفیقا "
और यह नेक दोस्त हैं।
आशिक़ में सही माशूक़ का जलवा , आशिक़ की आत्मा को माशूक़ की आत्मा के साथ एक कर देता है और उसकी आत्मा एवं दिल को माशूक़ की आत्मा और दिल से मिला देता है , यहां तक कि भी घटना और मुसीबतों के तूफ़ान में भी अपने माशूक़ से जुदा नही होता है।
वफ़ादार दोस्त
अबू अमामा बाहुली जो कि अमीरुल मोमिनीन (अलैहिस सलाम) के चाहने वाले थे , एक बार मोआविया के पास गए वह मोआविया जो कि हक़ और इमाम अली (अ) का बहुत बड़ा दुश्मन था और जिसके पास बहुत अधिक माल और दौलत और देश का ख़ज़ाना था।
मोआविया ने उनको अपने पास बुलाकर अपने पास बिठाया और आदेश दिया कि इनके लिए खाना लाया जाए , उसके बाद अपने हाथ से उसने उनके सर और दाढ़ी के बालों पर इत्र लगाया और आदेश दिया कि सोने के सिक्कों से भरी हुई थैली लाई जाए , उसके बाद अबू की तरफ़ देखा और कहाः तुम्हें ख़ुदा की क़सम है यह बताओ कि मैं अच्छा हूँ या अमीरुल मोमिनीन (अ) ?
अबू अमामा ने कहाः मैं कभी भी ख़ुदा और उसके बंदों से झूठ नही बोलता , तुमने ऐसी बात पूछी है तो सच सच कहता हूँ ख़ुदा की क़सम! अमीरुल मोमिनीन (अ) तुझ से बहुत अच्छे और करीम हैं , और इस्लाम में सबसे आगे हैं और पैग़म्बरे अकरम (स) से सबसे अधिक क़रीब हैं और इस्लाम में उन्होंने सबसे अधिक कठिनाइयां बर्दाश्त कीं।
रसूले ख़ुदा (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) के चचा ज़ाद भाई , हज़रत ज़हरा (सलामुल्ला अलैहा) को पति , जन्नत को जवानों के दोनों सरदार के बाप , हज़रत हमज़ा के भतीजे और हज़रत जाफ़र के भाई हैं , तू कहां और वह कहां , तू यह सोचता है कि मझे कुछ पैसे दे कर ख़रीद लेगा , और मैं तुझे उनसे अच्छा कह दूँगा ? तू समझता है कि मैं तेरे पास मोमिन आया हूँ और काफ़िर हो कर वापस जाऊँगा! तूने अपने आप को धोखा दिया है।
उसके बाद वह मोआविया के पास से उठे और क्रोध की हालत में उसके दरबार से बाहर निकल गए , मोआविया ने सोने के सिक्कों से भरी हुई थैली उनके पास भेजी लेकिन अबू अमामा ने उसको स्वीकार नही किया , जबकि अबू अमामा को पैसे की बहुत आधिक आवश्यकता थी!!
एई बे बहिश्ते ख़ाके कूयत
चश्मे हमे आरेफ़ान बे सूयत
गीती हमे पर ज़े शूरे इश्क़त
आलम हमे मस्त अज़ सूयत
दर दहर नयाफ़तम निगारी
बाशद सनमा बे ख़लक़ व ख़ूयत
गश्तम ज़े क़ुयूद आलम आज़ाद
ता गश्त दिलम असीर मूयत
इश्क़े रुख़े तू बे बरद अज़ दिल
हर आरज़ूई जुज़ आरज़ूयत
जान मी दहमत बे मुज़देगानी
गर आवुरदम नसीम , हूयत
नासेह ना कुनद मलामते मा
गर बेनिगरद आन रुख़ ना कूयत
बर बसते लबान ख़ूयश लामे
अज़ हर चे ग़ैर ग़ुफ़्तुगूयत
अनुवाद
ऐ वह कि जिसके गली की ख़ाक स्वर्ग है , जिसकी ओर समस्त आध्यात्मिकों की दृष्टि लगी रहती है।
सारा संसार तेरे इश्क़ के जोश से भरा हुआ है , सारा संसार तेरे (इश्क़) के जाम से मस्त है।
संसार में कोई ऐसा सनम नही मिला जिससे तेरा चेहरा और आदतें मिलती हों।
दुनिया की क़ैद से स्वतंत्र हो कर धूमा तब जाकर मेरा दिल तेरी ज़ुल्फ़ों असीर हो सका है।
तेरे हसीन रूप के इश्क़ ने दिल से सबकी आरज़ू निकाल दी है अब केवल तेरी आरज़ू है।
जान ख़ुशख़बरी के बदले में दे दूंगा अगर सुबह की हवा तेरी महक को मेरे पास लाई।
उपदेश देने वाले मेरी आलोचना नही करें , अगर वह तेरे हसीन चेहरे को देख लें।
अपने होटों को तेरी बातों के अलावा सब बातों के लिये सी लिया है।
इमामे सादिक़ (अ) का पड़ोसी
एक आदमी इमामे सादिक़ (अलैहिस सलाम) का पड़ोसी था और आप से दिल की गहराइयों से मुहब्बत करता था।
एक दिन इमामे सादिक़ (अ) ने सुना कि उनका पड़ोसी अपने घर को एक लाख दिरहम में बेच कर जा रहा है जबकि उसके घर की क़ीमत चालीस हज़ार दिरहम से अधिक नही है।
इमाम (अ) ने उसको बुलाकर पूछा तुम अपना घर क्यों बेच रहे हो ? उसने जवाब दियाः मैं आर्धिक रूप में कमज़ोर हो गया हूँ और घर को बेचने के अतिरिक्त मेरे पास और कोई चारा नही है।
आप ने फ़रमायाः लोग कहते हैं कि तुम्हारे घर की क़ीमत चालीस हज़ार दिरहम के बराबर है , फिर उसको तुम एक लाख दिरहम में क्यों बेच रहे हो ? उसने रोते हुए कहाः हे रसूल अल्लाह (स) के बेटे मैं आपका शिया और आपका आशिक़ हूँ , और आपके पास से एक क्षण के लिए भी अलग नही होना चाहता , आर्थिक संकट के कारण घर को बेचने और आपसे दूर जाने पर विवश हूँ , मेरे घर की क़ीमत चालीस हज़ार दिरहम है और साठ हज़ार दिरहम आपका पड़ोसे होने के कारण हैं जो मैं ले रहा हूँ।
इमाम सादिक़ (अ) ने जिनका अख़लाक़ ख़ुदा और रसूल का अख़लाक़ था। ख़ुद के लिए ज़रूरी समझा कि मुहब्बत का जवाब मुहब्बत से दिया जाए और सामने वाले की मुहब्बत का सम्मान किया जाए और
هَلْ جَزَاء الْإِحْسَانِ إِلَّا الْإِحْسَانُ
(क्या नेकी का जवाब नेकी के सिवा कुछ और है ?) का क़ानून उसके लिए भी रखा जाए , इसलिए इमाम (अ) ने उससे फ़रमायाः अपने घर को मेरे हाथों बेच दो , उसने कहाः मैं अपने दिल की गहराईयों से इस घर को आपके हवाले करता हूँ और आपको भेट करता हूँ , लेकिन आपने उसे बेचने पर बहुत ज़ोर दिया।
मालिक ने कहाः जब आप बेचने पर इतना ज़ोर दे रहे हैं तो मैं आपको उसी मामूली क़ीमत यानी चालीस हज़ार दिरहम में बेच दूँगा , इमाम (अ) ने फ़रमायाः तुमने जो क़ीमत दूसरों को बताई है मैं उसी एक लाख़ दिरहम में इसको ख़रीदूँगा , उसके बाद आपने अपने सेवक से फ़रमायाः एक लाख दिरहम घर के मालिक को दे दो , सेवक ने एक लाख दिरहम उसको दे दिये , जब वह इमाम के पास से जाने के लिए उठा तो इमाम (अ) ने उससे फ़रमायाः इस एक लाख दिरहम के अतिरिक्त जो कि घर की क़ीमत है , घर भी मैंने तुमको वापस कर दिया।
जी हां , इंसान अच्छे लोगों के साथ समाजिकता कर के दुनिया में भी रूहानी और दुनियावी लाभ प्राप्त करता है और आख़ेरत में भी उनके मक़ाम और रुतबे के साथ साथ अल्लाह ताला के विशेष करम को भी प्राप्त करता है और बुरे एवं ग़लत लोगों की संगत में रहकर अपने जीवन को तबाह और बरबाद कर देता है और अपने महत्व को समाप्त कर देता है और अपने आप को दुनिया के अपमान और आख़ेरत के अज़ाब से दो चार करता है।
सच्ची दोस्ती का महत्व
सही दोस्ती और मेल मिलाप से संबंधित पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) से रिवायत करते हैं कि आपने (स) अपने सहाबियों से फ़रमायाः
ای عری الایمان اوثق؟ فقالوا : اللہ و رسولہ اعلم و قال بعضھم : الصلاۃ و قال بعضھم : الزکاۃ، و قال بعضھم : الصیام، و قال بعضھم الحج و العمرۃ، و قال بعضھم الجھاد، فقال رسول اللہ صلی اللہ علیہ و آلہ و سلم لکل ما قلتم فضل و لیس بہ و لکن اوثق عری الایمان الحب فی اللہ و البغض فی اللہ و نوالی اولیاء اللہ و التبری من اعداء اللہ
ईमान का सबसे मज़बूत स्तंभ क्या है ? उन्होंने कहाः ख़ुदा और उसका रसूल बेहतर जानते हैं , कुछ दूसरों ने कहाः नमाज़ , कुछ ने कहाः ज़कात , और कुछ ने कहाः रोज़ा , हज , उमरा जिहाद आदि , उसके बाद पैग़म्बरे अकरम (स) ने कहाः तुम लोगों ने जो यह सब बताया इस सबका अपना एक स्थान और सम्मान है , लेकिन ईमान का सबसे मज़बूत स्तंभ यह है कि मोहब्बत हो तो ख़ुदा के लिए और नफ़रत और दुश्मनी हो तो ख़ुदा के लिए और ख़ुदा के दोस्तों से दोस्ती और उसके दुश्मनों से बेज़ारी और संबंध तोड़ लेना चाहिए
निःसंदेह नेक इंसान वह है दो ख़ुदाई कामों को पसंद करता हो और बुरे एवं शैतानी कामों से नफ़रत करता हो इसलिए अगर किसी में इस प्रकार की सिफ़तें पाई जाती हों तो नेक नेक लोगों के गुण उसने अंदर जमा हो जाते हैं और बुरे लोगों की बुराई उससे दूर हो जाती हैं।
अच्छाई को पहचानने की कसौटी
इमाम बाक़िर (अलैहिस सलाम) ने नेकी को अपनाने और बुराई से नफ़रत करने को अच्छाई की कसौटी बताया हैः
اذا اردت ان تعلم ان فیک خیراً فانظر الی قلبک فان کان یحب اھل طاعۃ اللہ و یبغض اھل معصیتہ ففیک خیر وللہ یحبک و ان کان یبغض اھل طاعۃ اللہ و یحب اھل معصیتہ فلیس فیک خیر و اللہ یبغضک والمرء مع من احب
जब तुम यह देखना चाहों कि तुम्हारे अंदर भलाई पाई जाती है तो अपने दिल की तरफ़ देखो , अगर तुम ख़ुदा के आदेशों का पालन करने वालों को पसंद करते हो और उसकी अवहेलना करने वालों से नफ़रत करते हो तो तुम्हारे अंदर भलाई पाई जाती है , और ख़ुदा भी तुमको दोस्त रखता है , और अगर ख़ुदा के आदेशों का पालन करने वालों के साथ दुश्मनी और उसकी अवहेलना करने वालों को दोस्त रखते हो तो तुम्हारे अंदर भलाई नही पाई जाती और ख़ुदा तुम्हारा दुश्मन है और इंसान वही व्यक्ति है जो ख़ुदा को दोस्त रखता है।
जो लोग ख़ुदा के लिए और ख़ुदा की राह में एक दूसरे से मोहब्बत और दोस्ती रखते हैं , क़यामत के दिन वह लोग , ख़ुदावंदे आलम के विशेष कमर को पाएंगे।
अब्दुल्ला बिन मसूद ने पैग़म्बरे अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः
المتحابون فی اللہ عزوجل علی اعمدۃ من یاقوت احمر فی الجنۃ یشرفون علی اھل الجنۃ فاذا اطلع احدھم ملا حسنہ بیوت اھل الجنۃ : اخرجوا ننظر المتحابین فی اللہ عزوجل قال : فیخرجون و ینظرون الیھم احدھم وجھہ مثل القمر فی لیلۃ البدر، علی جباھھم : ھولاء المتحابون فی اللہ عزوجل
जो लोग ख़ुदा की राह मे दोस्ती करते हैं वह जन्नत में लाल याक़ूत स्तंभो पर क़ाएम होंगे , जन्नत के लोगों से आगे (अधिक सम्मान वाले) होगें , उनमें से जब भी कोई सामने आएगा तो उसका सौन्दर्य जन्नत में रहने वालों के घरों को प्रकाशमयी कर देगा , जन्नत वाले कहेंगेः अपने घरों से बाहर आओ ताकि ख़ुदा की राह में दोस्ती करने वालों को हम भी देख लें , वह बाहर निकलेंगे वह जन्नत वाले उन लोगों को देखेंगे उनमें से हर एक का चेहरा चौदहवीं के चाँद की तरह चमक रहा होगा , उनकी पेशानी (माथे) पर लिखा होगाः यह लोग ख़ुदा के लिए और ख़ुदा की राह में दोस्ती करते थे।
रोग निवारण नुस्ख़ा
हमारे मासूम इमामों (अलैहिमुस सलाम) ने नेक अच्छे लोगों के साथ रहन सहन , उनके साथ सामाजिकता और दोस्ती को दिल के लिए शिफ़ा देने वाली दवा बताया हैः
دواء القلوب و جلاوؤھا فی خمسۃ اشیاء : قرآءۃ القرآن المجید باتدبیر، وخلاء البطن، و قیام اللیل، و التضرع فی السحر و مجالسۃ الصالحین
दिल की दवा और उसकी चमक के लिए पाँच चीज़ें हैः ग़ौर और फ़िक्र के साथ क़ुरआन पढ़ना , अधिक खाने और हराम से पेट को ख़ाली रखना , आधी रात को नमाज़े शब के लिए जागना , सुबह के समय रोना और नेक लोगों के साथ रहन सहन और समाजिकता।
दोस्ती के कारण
अगर लोगों के बीच दोस्ती के कारण रूहानी चीज़ें हो जाएं तो यह दोस्ती सदैव बनी रहेगी , बल्कि उसकी व्रद्धि और कमाल का भी कारण बनेगी , और अगर इसके उलट दोस्ती का कारण माल और दौलत और पद आदि हों तो इस प्रकार की दोस्ती सदैब बाक़ी नही रहेगी , बल्कि यह पस्ती , परेशानी , जंग ना अमनी और एकता के समाप्त होने का कारण बनेगी।
अगर दोस्ती के कारण ज़ाहेरी कारणों में से कोई हो तो उसके समाप्त होती ही दोस्ती भी समाप्त हो जाएगी , क्योंकि , मीठी चीज़ मक्खियों की अपनी तरफ़ खींचती है , और इंसान के जीवन में यह ज़ाहेरी चीज़ें भी दोस्ती को मक्खियों की तरह ख़ींचती हैं , जैसा कि एक शायर ने कहा हैः
ईन दग़ले दोस्तान के मी बीनी
मगसाननद गिर्दे शीरीनी
अनुवाद ,
धोखेबाज़ और मक्कार दोस्त उन मक्खियों की तरह हैं जो मिठाई के इर्द गिर्द चक्कर लगाती है।
लोगों विशेषकर जवानों से यह प्रश्न है कि मक्खियों जैसे दोस्ती का इंसान के जीवन में गंदगी फैलाने और बरबाद करने के अतिरिक्त और क्या रोल हो सकता है ?
जो दोस्ती ज़ाहेरी और दुनियावी कारणों से होती है उस दोस्ती का नतीजा ग़म और परेशानी , उम्र और समय का बरबाद होना , और इंसानी इज़्ज़त की बरबादी होना है।
इस प्रकार की दोस्ती में रूह और दिलों के संबंध दिन ब दिन कमजोर होते जाते हैं , मुहब्बत की लौ बुझ जाती है और मुहब्बत की गर्मी समाप्त होने लगती है।
इस प्रकार की दोस्ती की समाप्ती पर इंसान ग़फ़लत की नींद से इस प्रकार के उठता है जिस प्रकार से सोया हुआ इंसान अचानक जागता है , और ग़म एवं हसरत के साथ हाथ मलता है , शर्मिंदगी के कारण अपने होंटों को चबाता है , और अपने उन दोस्तों पर लानत करता है जिन्होंने धोखा धड़ी , माल और दौलत , पद और सम्पत्ती को प्राप्त करने के लिए उसे धोखा दिया , और अपना पेट भरा है और अपनी इच्छाओं को जानवरों की तरह पूरा किया है , उस समय यह अपनी उम्र के बरबाद होने पर आँसू बहाता है , उस समय अपने दोस्तों से धोखा खाने के बाद दूसरों से भी नफ़रत करने पर मजबूर हो जाता है और जिस प्रकार भेड़ बकरियां भेड़िये को देख कर भाग जाती हैं , उसी तरह यह इंसानों से भागने लगता है , और इंसानों को देख कर उसको डर लगने लगता है और वह सोचता है कि सब उसको दोखा देने के लिए उसके पास आ रहे हैं!।
रूहानी दोस्ती में कि जिसका आधार ईमान , मोहब्बत और दोस्ती है , इस प्रकार की दोस्ती कभी भी जुदाई , नफ़रत और दुश्मनी में नही बदलती है
बिलाल पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) से जुदा नही हुए चाहे उनके शरीर को ज़ख़्मों से छलनी ही क्यों ना कर दिया गया , अबूज़र हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अलैहिस सलाम) से अलग नही हुए , चाहे उनको तपते हुए रेगिस्तान रबज़ा में तड़ीपार ही क्यों ना कर दिया गया , अब्बास बिन शबीब शाकेरी ने हज़रत इमाम हुसैन (अलैहिस सलाम) को अकेला नही छोड़ा , चाहे आशूर के दिन जंग के मैदान में पत्थर , लकड़ी और तीर एवं तलवार से उनके बदन को टुकड़े टुकड़ें ही क्यों ना कर दिया गया , और कुमैत बिन ज़ैदे असदी ने अहले बैत (अ) की मोहब्बत को दिल से ना निकाला चाहे चालीस साल तक सूली पर चढ़े रहे!
इस प्रकार की दोस्ती में इलाही इश्क़ , मोहब्बत जान निछावर कर देना और एक रूहानी लगाव है।
इंसान इस इश्क़ के कारण हैवानी संबंधों और माद्दियात की ज़ंजीरों से उसी प्रकार स्वतंत्र हो जाता है जिस प्रकार एक परिंदा , पिंजरे से आज़ाद होता है , दुनियावी चीज़ों से निकल कर इलाही और आसमानी चीज़ों में प्रवेश कर जाता है , दिल दिमाग़ और अक़्ल इलाही दोस्ती के कारण काम करने लगते हैं और दिल , रूहानी जीवन से जीवित हो उठता है , इंसान की इन्सानियत जाग उठती है और आदमियत का वृक्ष फल देने लगता है।