सामाजिकता

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सामाजिकता लेखक:
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
कैटिगिरी: परिवार व समाज

सामाजिकता

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: उस्ताद हुसैन अंसारीयान
: मौलाना सैय्यद एजाज़ हुसैन मूसावी
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सामाजिकता
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सामाजिकता

सामाजिकता

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

दोस्ती में पहचान प्रतिभा की आवश्यकता

जो व्यक्ति अपनी तरक़्क़ी और कमाल , अदब और तरबियत और दुनिया एवं आख़ेरत से मोहब्बत करता है , और अपने जीवन में हानि और नुक़सान और फ़ितना एवं फ़साद नही चाहता है उसके लिए आवश्यक है कि वह अपने वास्तविक दोस्तों और दोस्तों के भेस में रहने वाले दुश्मनों की पहचान करे।

इस पहचान और मारेफ़त को प्राप्त करने के लिए क़ुरआने करीम के अतिरिक्त और कोई दूसरा रास्ता नही है , क़ुरआने करीम और उसकी आयातों को पहचानने के दो रास्ते हैः एक यह कि ज्ञानियों और उलेमा की शागिर्दी अख़्तियार करके इस्लामी शिक्षा को ग्रहण करें और दूसरे किसी ऐसी मजलिस में समिलित हों जिनमें ख़ुदा का ज्ञान रखने वाले उलेमा और ज्ञानि लोगं इस्लामी शिक्षा को लोगों के सामने बयान करते हैं और अहले बैत (अलैहिमुस सलाम) के मकतब का प्रचार करते हैं।

इंसान जब क़ुरआन और रिवायतों को समझने लगता है तो क़ुरआने मजीद के माध्यम से अपने सच्चे दोस्त को पहचान लेता है जो ख़ुदा , नबी और इमाम (अ) हैं , और इस वास्तविक्ता को जान लेता है कि इनके अतिरिक्त सभी दोस्त के भेस में छिपे हुए दुश्मन हैं।

निःसंदेह पहचान एवं मारेफ़त मोहब्बत का कारण होती है क्योंकि इंसान जब अच्छाईयों को पहचान लेता है तो उसी पहचान के अंदर से इश्क़ और मोहब्बत की आग , की लपटें तेज़ हो जाती हैं तो यही मोहब्बत करने वाले के अस्तित्व में महबूब के नेक गुणों को भर देती है।

आशिक़ इस बात को जानता है कि माशूक़ अपने आशिक़ से उसी समय राज़ी औऱ प्रसन्न होता है जब वह अपने गुणों को आशिक़ के अंदर देख ले , क्योंकि ख़ुदावंदे आलम क़ुरआने करीम में फ़रमाता हैः

إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ

निःसंदेह ख़ुदावंदे आलम एहसान करने वालों को दोस्त रखता है।

क्योंकि ख़ुदावंदे आलम सारी सृष्टि को विशेषकर इंसान के साथ एहसान और नेकी करता है , और जब किसी व्यक्ति में इस चीज़ को देखता है कि वह दूसरों के साथ अच्चे आचरण और एहसान के साथ पेश आ रहा है तो वह उससे इश्क़ करने लगता है , इस कारण से ख़ुदावंदे आलम क़ुरआने मजीद में फ़रमाता हैः

إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ

निःसंदेह ख़ुदावंदे आलम इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है।

क्योंकि ख़ुदावंदे आलम स्वंय सारी सृष्टि के साथ इन्साफ़ करता है और जब वह देखता है उसका कोई बंदा किसी के साथ अच्छा व्यवहार कर रहा है औऱ नेकी से पेश आ रहा है और दोस्तों के साथ आदालत से पेश आ रहा है तो वह उससे मोहब्बत करने लगता है। क़ुरआने करीम में फ़रमाता हैः

إِنَّ اللّهَ يُحِبُّ الْمُتَّقِينَ

निःसंदेह ख़ुदावंदे आलम मुत्तक़ियों को दोस्त रखता है।

बहर हाल इंसान मारेफ़त औऱ पहचान के बाद ख़ुदावंदे आलम , नबियों , इमामों और ख़ुदा के वलियों से मोहब्बत करने लगता है और उनसे इश्क़ के माध्यम से उनके व्यवहार और गुणों को अपना लेता है और उनसे जुड़ने के बाद उनका महबूब बन जाता है।

बिलकुल उसी प्रकार जब कोई व्यक्ति , वास्तविक और नेक बंदों को पहचान लेता है तो उनके अंदर पाए जाने वाले नेक गुणों को देखते हुए उनसे मोहब्बत और दोस्ती करने लगता है औऱ उनके साथ दोस्ती और समाजिकता से उनके सारे गुणों को स्वीकार कर लेता है और दुनिया एवं आख़ेरत का स्वभाग्य प्राप्त कर लेता है।

सामाजिकता और महाप्रलय

कुछ उलमा का मानना है कि इंसान शब्द उन्स से लिया गया है और उन्स एक ऐसी वास्तविक्ता है जो इंसान की आत्मा से संबंधित है , इसी कारण इंसान तन्हाई और अकेले पन से घबराता है और दोस्तों के साथ उठने बैठने और समाजिकता के पसंद करता है।

सामाजिकता अपना ने वाले रूही लगाव के कारण एक दूसरे पर आत्मिक , विचारिक , रूहानी और बातेनी औऱ व्यव्हारिक प्रभाव डालते हैं , अगर यह सामाजिकता और रहन सहन ख़ुदाई और इंसानी संविधानों पर आधारित हो तो इंसान अपने साथी के अक़ीदों कार्यों और व्यवहार से प्राप्त किए हुए प्रभावों के अनुसार कार्य करता है , जिसकी मिसाल उस दाने की तरह जो जीवन की खेती में बोया जाए और आख़ेरत में ख़ुदा की मर्ज़ी और जन्नत के रूप में काटा जाए , और यह वही वास्तविक्ता है जिसकी तरफ़ पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने इशारा किया है

الدنیا مزرعۃ الآخرۃ

दुनिया आख़ेरत की खेती है।

जी हां जैसा कि प्रसिद्ध हैः

المجالسۃ موثرۃ

सामाजिकता और दोस्ती अपना प्रभाव छोड़ती है।

यह प्रभाव इतना महत्व पूर्ण है कि इसका नतीजा जन्नत और सदैव का स्वभाग्य होता है या नर्क और सदैव का दुर्भाग्य होता है।

क्या इस दुनिया में कोई ऐसी मिसाल पाई जाती है कि किसी ने गेहूँ बोए हों और जौ काटी हो , मसूर बोई हो और चने काटे हों ? जो व्यक्ति ग़लत संगत और बुरे दोस्तों से दोस्ती करता है उसको इस बात का इन्तेज़ार नही करना चाहिए कि उसके बुरे दोस्त जो प्रभाव पड़ेंगे , वह दुनिया और आख़ेरत में उसे फ़ाएदा पहुँचा सकेंगे।

पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने फ़रमायाः

وَ مَنْ‏ يُطِعِ‏ الشَّيْطَانَ‏ يَعْصِ‏ اللَّهَ وَ مَنْ يَعْصِ اللَّهَ يُعَذِّبْهُ اللَّه ‏

जो शैतान का अनुसरण करता है वह ख़ुदा की नाफ़रमानी करता है और जो ख़ुदा की नाफ़रमानी करे ख़ुदा उसको अज़ाब में गिरफ़्तार कर देता है।

इंसान की आत्मा अस्तित्व और माहियत के एतेबार से ऐसी होती है जो ज़ाहेरी और बातेनी हिसों से बहुत अधिक प्रभावित होती हा , जिस चीज़ को भी कान सुनता है , आँख देखती है , और खाल स्पर्श करती है , उसको इंसान की आत्मा तुरन्त स्वीकार कर लेती है और इंसान उन्हीं प्रभावों के अनुसार कार्य करता है जो उसकी आत्मा में समा गए हैं।

आँख जब किसी सुन्दर दर्शय को देखती है तो इंसान की आत्मा अपने आप को उस आकृति तक पहुँचाना चाहती है और अपने इस लक्ष्य के प्राप्त करने के लिए विचलित हो जाती है।

सामाजिक वास्तविकता से कटने का परिणाम

दीन , दीनदारी , अच्छे व्यवहार और मुहब्बत के आधार पर दोस्ती और सामाजिकता , वास्तव में इंसान के अस्तित्व के साथ मेल , ख़ुदा की मुहब्बत में डूब जाने और नबियों एव वलियों के दिलों में स्थान पाने का कारण है और क़यामत के दिन शिफ़ाअत करने वालों की शिफ़ाअत का स्थान है।

अगर जीवन इस प्रकार ना होता तो फिर कहना चाहिए कि यह जीवन नर्क वालों के जीवन का एक नमूना है , क़यामत के दिन नर्क वाले , ख़ुदा के करम और उसकी रहमत से दूर होंगे और उनको शिफ़ाअत करने वालों की शिफ़ाअत नसीब ना होगी।

क़ुरआने करीम ने इस संबंध में फ़रमाया हैः

إِنَّ الَّذِينَ يَشْتَرُونَ بِعَهْدِ اللّهِ وَأَيْمَانِهِمْ ثَمَنًا قَلِيلاً أُوْلَئِكَ لاَ خَلاَقَ لَهُمْ فِي الآخِرَةِ وَلاَ يُكَلِّمُهُمُ اللّهُ وَلاَ يَنظُرُ إِلَيْهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَلاَ يُزَكِّيهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ

जो लोग ख़ुदा से किए गए वादे और क़सम को (दुनियावी मक़सद को प्राप्त करने के लिए) थोड़ी क़ीमत पर बेच डालते हैं उनके लिए आख़ेरत में कोई हिस्सा नही है और ना ख़ुदा उनसे बात करेगा और ना क़यामत के दिन उनकी तरफ (करम और रहमत वाली) निगाह करेगा और ना उन्हें गुनाहों की गंदगी से पाक बनाएगा और उनके लिए भयानक अज़ाब है।

كُلُّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ رَهِينَةٌ، إِلَّا أَصْحَابَ الْيَمِينِ، فِي جَنَّاتٍ يَتَسَاءلُونَ، عَنِ الْمُجْرِمِينَ، مَا سَلَكَكُمْ فِي سَقَرَ، قَالُوا لَمْ نَكُ مِنَ الْمُصَلِّينَ، وَلَمْ نَكُ نُطْعِمُ الْمِسْكِينَ، وَكُنَّا نَخُوضُ مَعَ الْخَائِضِينَ، وَكُنَّا نُكَذِّبُ بِيَوْمِ الدِّينِ، حَتَّى أَتَانَا الْيَقِينُ، فَمَا تَنفَعُهُمْ شَفَاعَةُ الشَّافِعِينَ

हर नफ़्स अपने आमाल में गिरफ़्तार है , अलावा असहाबे यमीन के , वह जन्नतों में रह कर आपस में सवाल कर रहे होंगे मुजरिमों के बारे में (उनकी तरफ़ देखकर कहेंगे) आख़िर तुम्हें किस चीज़ ने नर्क में पहुँचा दिया ? वह कहेंगे हम नमाज़ नही पढ़ते थे , और मिसकीनों को खाना नही खिलाते थे , लोगों के कामों में समिलित हो जाया करते थे , और क़यामत के दिन को झुठलाया करते थे , यहां तक कि हमें मौत आ गई , तो उन्हें सिफ़ारिश करने वालों की सिफ़ारिश भी कोई लाभ ना पहुँचाएगी।

बेशक जब उनका व्यवहार थोड़ा सा भी ख़ुदावंदे आलम , नबियों और सालेहीन के अख़्लाक़ से मेल नही खाता तो फिर उनकों ख़ुदा की रहमत और शिफ़ाअत करने वालों की शिफ़ाअत कैसे प्राप्त हो सकती है ? किस प्रकार यह लोग मुहब्बत करने वालों की मुहब्बत से लाभ उठाएंगे ? किस प्रकार ख़ुदावंदे आलम क़यामत के दिन इन पर करम भरी निगाह डालेगा और किस प्रकार शिफ़ाअत करने वाले उनको नर्क के अज़ाब से बचाएंगे ?

पवित्र एवं अपवित्र साथी

महान दायित्व

क़ुरआने करीम की आयतें , इस्लामी रिवायतें और इस्लामी शिक्षा इस बात की तरफ़ इशारा करती हैं कि जीवन में दोस्ती और साथ और समाजिकता एक बड़ा वाजिब और महान दायित्व है।

इंसान अगर ऐसे व्यक्ति को दोस्त के तौर पर चुने जिसका दिमाग़ गंदा और हलका हो और वह पेट और शहवत के अतिरिक्त किसी दूसरी चीज़ के बारे में ना सोचता हो। ख़ुदा , क़यामत , दीन , दीनदारी , अख़्लाक़ और नेक अमल से ग़ाफ़िल हो और किसी इंसान से दोस्ती और समाजिकता में दुनियावी मज़े और टाइम पास करने के अतिरिक्त उसका कोई दूसरा लक्ष्य ना हो तो निःसंदेह इस प्रकार के दोस्त का चुनाव करके उसने ख़ुद अपने आपको बरबाद और अपनी दुनिया एवं आख़ेरत दोनो को ख़राब कर लिया है , ख़ुदावंदे आमल को अपने से नाराज़ किया , अपने सौभाग्य से लापरवाही की है और ख़ुदावंदे आलम के महान वाजिब को नज़र अंदाज़ किया है , संक्षिप्त रूप से यह कह दिया जाए कि उसने क़यामक के लिए बहुत ही बुरे सामाने सफ़र का चुनाव किया है।

ख़ुदावंदे आलम , सारे नबियों , मासूमीन और ख़ुदा के वलियों की सब से महत्व पूर्ण नसीहत यह है कि “ ख़राब और बुरे साथ से बचो। ”

ग़लत इंसान से दोस्ती ज़हर से भी अधिक जानलेवा , हर ख़तरे से अधिक ख़तरनाक , और हर बुरे काम से अधिक बुरा है , क्योंकि ग़लत साथी , इंसान के दीन , ईमान , एतेबार और इज़्ज़त को बरबाद कर देता है और इंसान को ख़ुदा की रहमत और बरकत से महरूम एवं दूर कर देता है।

ता तवानी मी गुज़र अज़ यारे बद

यार बद बदतर बुवद अज़ मारे बद

मारे दब तनहा तू रा बर जान ज़नद

यारे बद बर जान व बर ईमान ज़नद

अनुवाद

निःसंदेह ऐसे दोस्त से अधिक ख़तरनाक और क्या चीज़ हो सकती है जो इंसान के जीवन में आने के बाद उसको मेहरबान ख़ुदा से जुदा कर देता है , आदमी के जीवन को गंदा कर देता है और इन्सानियत की जड़ों को सुखाकर एक नाज़ुक फूल को कांटे में बदल देता है और इंसान के आबाद व्यक्तित्व को बुरे अख़्लाक़ के वीराने में बदल देता है और इंसान को ख़ुदा से दूर और उसके ख़ानदान के सामने अपमानित कर देता है!!

यह नापाक चेहरे , बुरी सिफ़तें , भूतों की तरह फ़साद फैलाने वाले लोग अपनी बातों , लेखों और आदतों एवं तौर तरीक़ों के माध्यम से इंसान को नर्क की आग और सदैव बाक़ी रहने वाले अज़ाब की तरफ़ बुलाते हैं और यह कहना भी सही है कि उन लोगों पर अफसोस! जो पागलों , कम अक़्लों और इंसान की सूरत में रहने वाले जानवरों के निमंत्रण को स्वीकार करें और उनकी ग़ुलामी का दाग़ अपने माथे पर लगाएं।

أُولئِكَ يَدْعُونَ إِلَى النَّار

यह मुशरिक लोग (ना केवल लोगों को बल्कि अपनी औलाद तक को) नर्क की तरफ़ बुलाते हैं

बुरा साथी

बुरा साथी जिसको क़ुरआने करीम ने ख़तरनाक शैतान और हानि पहुँचाने वाला लुटेरा कहा है , वह इंसान के सम्मान को बरबाद करने के बाद उसको बंद आँखों के साथ हलाकत और मौत की वादी में ढकेल देता है। अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब (अलैहिस सलाम) के कथन अनुसार यह इंसान के रूप में देव है जिसका चेहरा इंसान का है और दिल जानवर का है। अगर बुरा साथी दोस्ती और समाजिकता के माध्यम से इंसान की जीवन में प्रवेश कर जाए और उसका पूरा कंट्रोल अपने हाथ में ले ले तो उसकी दुनिया और आख़ेरत दोनों को बरबाद कर देता है और इस बात का कारण बन जाता है कि इंसान के लिए रहमत के सारे दरवाज़े बंद हो जाएं और अज़ाब एवं क्रोध के दहाने उसकी तरफ़ खुल जाएं।

इस बात को नही भूलना चाहिए कि इंसान के जीवन में बुरा दोस्त स्वंय उसकी मर्ज़ी से आता है और इस बारे में इंसान बरी नही कर सकता और यह नही कह सकता कि इसपर उसका कोई कंट्रोल नही है और सारी बुराईयों एवं ग़लत कामों को बुरे दोस्त के माथे नही मढ़ सकता है। बुरे दोस्त का सबसे बुरा रोल यह है कि वह बुराई , गुनाह और ग़लत काम का निमंत्रण देता है , इसलिए इंसान को अपने इरादे और इख़्तियार से काम लेते हुए ख़ुदावंदे आलम के बताए हुए हिदायत के रास्तों पर चलते हुए इस क़ातिल और ख़तरनाक व्यक्ति को अपने आप से दूर करना चाहिए , और उसका निमंत्रण स्वीकार करने से इन्कार कर देना चाहिए , क्योंकि दुनिया और आख़ेरत की भलाई , भविष्य सौभाग्य ख़ुदावंदे आलम के आदेशों का पालन करने और उसके दुश्मनों विशेषकर बुरे दोस्तों से दूरी करने के बाद ही प्राप्त हो सकता है।

बुरा दोस्त एक ऐसा वुजूद है जिसके ऊपर अक़्ल के स्थान पर जहल , दिल के स्थान पर शहवत (इच्छाएं) और हक़ के स्थान पर शारीरिक इच्छाओं का कंट्रोल है , और उसका लक्ष्य इंसान को वास्तविक्ताओं से ख़ाली करने के साथ साथ उसकी दुनिया और आख़ेरत को बर्बाद करना है।

दोस्त रूपी दुश्मन की निशानियां

हर ज़माने में शैतानी गुणों वाले इंसान बहुत ख़तरनाक होते हैं जो विशेषकर जवानों को अपनी तरफ़ खींचते हैं और उसके सामने दोस्ती और साथ की पेशकश करने के बाद उसने माल और सम्पत्ति से ग़लत फ़ाएदा उठाते हैं , औऱ उनके इंसानी गुणों को बर्बाद कर देते हैं।

यह लोग अपने ख़ूबसूरत चेहरे , सुन्दर मुसकान , मीठी मीठी बातों और धोखे से अपने आपको इंसानों जैसा प्रकट करते हैं और इस जाल से इंसान की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं और जब इंसान को अपनी मक्कारी भरी मोहब्बत के जाल में फसा लेते हैं तो वह अपने वसवसों को आरम्भ करते हैं और धीरे धीरे एक लंबी अवधि के बाद इंसान को ख़ुदा , हक़ और हक़ीक़ , इबादत , आत्मा की पवित्रता और अच्छी बैठकों से दूर कर देते हैं और इसी प्रकार इंसान को शहवत और शारीरिक इच्छाओं की तरफ़ भेज देते हैं , फिर इंसान को अपने हाथों की कटपुतली और अपनी बुराईयों एवं गुनाहों का ग़ुलाम बना लेते हैं , इसके बाद इंसान की नेकियों और अच्छाइयों की बसी बसाई दुनिया में आग लगा देते हैं और ऐसा काम करते हैं जिससे शर्मिंदगी के दिन वापस लौटने का मौक़ा हाथ नही आता और नजात एवं बचने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं।

इस प्रकार के ख़तरनाक और दोस्त के रूप में दुश्मन को इन निशानियों के माध्यम से पहचानना को कठिन काम नही है ।

जब आप देखें कि कोई आपके कान में हक़ से दूर होने की सरगोशी कर रहा है और और आप यह बात समझ जाएं कि वह तुमको अपनी आरज़ुओं का ज़रिया बनाने की कोशिश कर रहा है और तुम्हे अच्छाइयों और नेकियों से नाता तोड़ने का आदेश दे रहा है , समाज के अच्छे लोगों को तुम्हारी निगाह में ज़लील और बुरे लोगों को तुम्हारे सामने अच्छा बताने की कोशिश कर रहा है तो समझ लो कि वह ख़तरनाक ज़ालिम , शैतानी गुणों वाला इंसान अपनी मक्कारियों से अपने आपको तुम्हारा दोस्त प्रकट करना चाहता है , उस समय तुम्हारा काम यह है कि उसकी तरफ़ दोस्ती का हाथ ना बढ़ाओ , उसके साथ समाजिकता ना बनाओ , उसके संबंध में अक़बा बिन अबी मोईत की सीख भरी कहानी (जिसकी तरफ़ सूरा फ़ुरक़ान की 29वीं आयत में इशारा हुआ है) से लाभ लेते हुए अपने आपको उस ज़ालिम के चंगुल से निजात दिलाओ।

उक़बा बिन अबी मुईत की खेदजनक कथा

उक़बा की गिनती मक्के के बुत परस्तों और मुशरिकों में होती थी , और उसके अपने ख़ानदान के साथ बहुत अच्छे संबंध थे।

उसका एक दोस्त था जिसका नाम अबी बिन ख़लफ़ था वह हर समय , चाहे वह यात्रा में हो या वतन में , आने जाने में , गली कूचो में सदैव उसके साथ रहता था वह एक ऐसा दोस्त था जो शैतान का अनुयायी और देव के गुणों वाला होने में कोई उसका मुक़ाबला नही कर सकता था।!

एक बार उक़बा एक व्यापारिक यात्रा से वापस आया तो उसने मक्के के बड़े लोगों और पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) को अपने घर दावत पर बुलाया , उस दावत में किन्ही कारणवश अबी बिन ख़लफ़ उपस्तिथ नही था।

जब सब मेहमान आ गए और दस्तरख़ान बिछ गया तो सबने खाना खाना शुरू कर दिया , उक़बा ने देखा कि पैग़म्बरे अकरम (स) खाना नही खा रहे हैं , तो उक़बा ने आपसे खाना ना खाने का कारण पूछा , तो आपने (स) फ़रमायाः मैं तुम्हारा खाना उस समय तक नही खाऊँगा जब तक तुम ख़ुदा के एक होने और मेरे रसूल होने की गवाही नही दोगे , इस्लाम और मुसलमानों के दाएरे में नही आओगे अगर तुम यह काम करोगे तो तुम्हारे ऊपर रहमत और जन्नत के द्वार खुल जाएंगे।

उक़बा ने फौरन कलमा पढ़ लिया और पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने भी खाना खाना शुरू कर दिया।

दावत के बाद जब उक़बा अपने शैतान के अनुयायी और बुत परस्त दोस्त के पास गया तो उसने उसके (उक़बा को) बहुत डांटा फट्कारा औऱ उससे कहा कि तुम कैसे अपने दीन को छोड़कर मुहम्मद (स) के दीन में दाख़िल हो गए ?!

उक़बा ने इस्लाम लाने का वाक़ेआ उसके सामने बयान किया , अबी बिन ख़लफ़ ने बहुत ही कठोर लहजे में उससे कहाः मैं तुम्हे उस समय तक राज़ी नही होंगा जब तक तुम मुहम्मद (स) को झुठलाओगे नही!!

भाग्य के मारे उक़बा ने अपने दोस्त दिखने वाले ग़द्दार दुश्मन को अपने से दूर करने की कोशिश नही की और पास आई भलाई एवं प्राप्त हुए सौभाग्य को बचाने के बजाए नर्क के रास्ते पर चल पड़ा , उक़बा उस गंदे दोस्त को प्रसन्न करने के लिए पैग़म्बरे अकरम (स) के पास गया और बहुत ही बेशर्मी के साथ पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ऊपर थूक दिया।

आपने (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) उसके लिए भविष्य वाणी की कि वह हिजरत से पहले तक जीवित रहेगा और जब मक्के से बाहर आएगा तो हक़ की तलवार से उसको इन्तेक़ाम लेते हुए क़त्ल किया जाएगा। आपकी यह भविष्य वाणी बद्र की जंग में सच्ची साबित हुए , उक़बा बद्र की जंग में नर्क पहुँचा और उसका बुरा दोस्त अबी बिन ख़लफ़ ओहद की जंग में क़त्ल हुआ।

सूर ए फ़ुरक़ान की सत्ताईसवीं और अठ्ठाईसवीं आयत पैग़म्बरे इस्लाम (स) को सांत्वना देने और इस गंदे इंसान के मनहूस अंजाम को बयान करने के लिए नाज़िल हुईं जो स्वंय गुमराह और दूसरों को गुमराह करने वाले शैतानी दोस्त के चक्कर में पड़ गया था।

وَيَوْمَ يَعَضُّ الظَّالِمُ عَلَى يَدَيْهِ يَقُولُ يَا لَيْتَنِي اتَّخَذْتُ مَعَ الرَّسُولِ سَبِيلًا، يَا وَيْلَتَى لَيْتَنِي لَمْ أَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِيلًا، لَقَدْ أَضَلَّنِي عَنِ الذِّكْرِ بَعْدَ إِذْ جَاءنِي وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِلْإِنسَانِ خَذُولًا

उस दिन ज़ालिम अपने हाथों को (हसरत और नाउम्मीदी से) दांतों से काटेगा और कहेगा कि काश मैंने रसूल के साथ ही रास्ता चुना होता , हाए अफ़सोस काश मैंने फ़लां व्यक्ति को (जो मेरे दुर्भाग्य का कारण बना) अपना दोस्त ना बनाया होता , उसने तो ज़िक्र (क़ुरआने करीम) के आने के बाद मुझे गुमराह कर दिया और शैतान तो हमेशा इंसान को (भटकाने करने के बाद हलाकत की वादी में) ज़लील करने वाला है।

जी हां! ख़ुदावंदे आलम के कहे अनुसार बुरा साथी शैतान है और निःसंदेह शैतान इंसान का दुश्मन है , वह इंसान को घाटे और हानि में डालने के बाद उसको भटकाने और हैरत और दुनिया के तूफ़ानों और मुसीबतों में डालकर हमेशा के लिए चला जाता है।

وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِلْإِنسَانِ خَذُولًا

और शैतान तो हमेशा इंसान को (भटकाने करने के बाद हलाकत की वादी में) ज़लील करने वाला है।

दोस्त और साथी वह नही है जो इंसान की बुराईयों एवं ऐबों और रूहानी कमियों को बढ़ाए और इंसान की शराफ़त और सम्मान में भयानक आग लगा दे बल्कि वास्तविक सच्चा दोस्त वह है जो इंसान की बुराईयों और उसके ऐबों को कम करते हुए उसकी कमियों को दूर करे और अपने दोस्त की रूही और आत्मिक ख़ामियों को दूर करे।

इमाम सादिक़ (अलैहिस सलाम) ने अच्छे साथी के बारे में फ़रमायाः

أَحَبُ‏ إِخْوَانِي‏ إِلَيَ‏ مَنْ أَهْدَى إِلَيَّ عُيُوبِي‏

मेरा सबसे प्यारा भाई वह है जो मुझे मेरी बुराईयों को पहचनवाए।

इन्साफ़ को चाहने वाला और सौभाग्य प्राप्त करने वाला इंसान जब अपने दोस्त के माध्यम से अपनी बुराईयों को जानकारी प्राप्त करता है तो वह अपनी बुराईयों को दूर करने की कोशिश करता है और अपने शरीफ़ दोस्त और साथी के कारण इंसानी गुणों की बुलंदी और सम्मान की चोटी पर पहुँच जाता है।

अइ ग़ज़ाली गुरेज़म अज़ यारी

कि अगर बद कुनम , नको गोयद

मुख़्लिसे आन शवम कि ऐबम रा

हम चू आइने रू बरू गोयद

ना कि चूल शाने बा हज़ार ज़बान

पुश्ते सर रफ़ते मू बे मू गोयद।

अनुवाद

ऐ ग़ज़ाली ऐसे दोस्तों से भागता हूं जो मेरी बुराई की प्रशंसा करता है।

मैं ऐसे मित्रों को इच्छुक हूं जो मेरी कमियों को मुझे आईने की तरह दिखाये।

ऐसे दोस्तों को पसंद नही करता जो कंधे की तरह , हज़ार ज़बान से मेरे पीठ पीछे सबसे मेरी बुराई करें।

जो दोस्त और साथी , ईमान , अख़लाक़ और नेक अमल से ख़ाली हो और इसी कारण नेक गुणों करामत आदि से भी ख़ाली हो वह ऐसी आग है जो वृक्ष को उसकी डालों और पत्तियों के साथ जला देती है और अंत में इंसान को इस दुनिया में लज्जित और अपमानित कर देता है , उसकी दोस्ती और साथ कारण बनता है कि वह आख़ेरत में भी सख़्त अज़ाम में गिरफ़्तार हो जाए और नर्क में जो उनके सदैव रहने का स्थान है बुरे , नालाएक़ दोस्तो को देखने के कारण उसकी आत्मा अज़ाब में पड़ जाए।

ग़लत संगत आत्मा के लिये दर्दनाक सज़ा

किताबों में सीख देने वाली कहानियों के अंतर्गत बयान किया गया है कि एक बाद बादशाह अनूशीरवान ने आदेश दिया कि उसके सबसे बड़े वज़ीर बूज़र जमहर को क़ैदख़ाने में डाल दिया जाए , उसका यह वज़ीर बहुत अक़्लमंद और ज्ञानी था वह “कलीला और दिमना ” पुस्तक को हिन्दुस्तान से ईरान ले गया था।

एक दिन बादशान ने जेल के दरबान से कहाः बूज़र जमहर से भेंट करों और अपने तौर पर उसका हाल चाल पता करो।

जेल के दरबान ने बूज़र जमहर का हाल चाल पूछा तो बूज़र जमहर ने कहाः मेरे पास एक दवा है जिसको मैं अपने आप को ख़ुश और प्रसन्न रखने के लिए प्रयोग करता हूँ और वह दवा है ख़ुदा पर भरोसा रखना , इसके अतिरिक्त अपनी हालत पर प्रसन्न हूँ और ख़ुश हूँ कि अगर इसके अतिरिक्त किसी और हालत में होता तो और कठिनाईयों एवं समस्याओं में घिरा होता।

इससे पता चलता है कि क़ैदख़ाने ने बूज़र जमहर के व्यक्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव नही डाला था और उसने अपने बीवी बच्चों और लोगों से दूर रहने को ख़ुदावंदे आलम पर भरोसा करने और अपनी हालत पर राज़ी रहने से पूरा कर लिया।

अनूशीरवान चाहता था कि जेल उसके लिए अज़ाब बन जाए , लेकिन जब उसने देखा कि वह वहां पर भी ख़ुश है तो बहुत क्रोधित हुआ , उसने अपने साथियों से मशविरा किया कि बूज़र जमहर को कैसे परेशान किया जाए , उनमें से एक ने कहाः अगर तुम यह चाहते हो कि क़ैदख़ाना उसके लिए अज़ाब बन जाए तो किसी पागल और कम अक़्ल इंसान को उसके पास क़ैदख़ाने में छोड़ दो , क्योंकि अक़्लमंद इंसान की आत्मा पागल औऱ कम अक़्ल के पास रहने से पीड़ित हो जाती है। तब एक पागल को तलाश करके बूज़र जमहर के पास क़ैदख़ाने में छोड़ दिया गया , कुछ ही समय बीता था कि उस कम अक़्ल ने रोना शुरू कर दिया , बूज़र जमहर ने उससे कहाः रो क्यों रहे हो ? क़ैदख़ाने की कठिनाईयां और बीवी बच्चों की दूरियां शीघ्र ही समाप्त हो जाएगी और अंत में तुम आज़ाद हो जाओगे , उस पागल ने कहाः मैं इस कारण से नही रो रहा हूँ , बल्कि मैं अपने बकरे के कारण रो रहा हूँ जिससे मैं बहुत मोहब्बत करता हूँ और तुम जब भी बात करते हो या खाना खाते हो और तुम्हारी दाढ़ी हिलती है तो मुझे अपने बकरे की याद आ जाती है!!

उस दिन से बूज़र जमहर को रूह के अज़ाब औऱ उसकी सज़ा का अनुभव हुआ , क्योंकि यह स्वभाविक है कि नापाक़ और बुरे का साथ रुह के लिए एक सज़ा है।

दिल व दिमाग़ पर होने वाले अत्याचार की दुहाई

इटली के एक सत्ता धारी के मरने के बाद उसके व्यक्तिगत संदूक़ से एक ख़त मिला जिसमें लिखा थाः मेरे मरने के बाद इटली के लोगों से मेरी तरफ़ से क्षमा मांगना और कहना कि वह मेरे लिए दुआ करें क्योंकि मैंने देश और देश की जनता के साथ ग़द्दारी की है।

उसके बाद उसने अपनी ग़द्दारी को इस प्रकार बयान कियाः मैं एक गांव का रहने वाला था , जो देश की राजधानी से बहुत दूर था , मैं एक समान्य सा आदमी था और एक बहुत ही ग़रीब ख़ानदान का था , और व्यवहार के एतेबार से बहुत ही आज़ाद जीवन व्यतीत करता था , एक दिन मेरी वासना भरी निगाहें पड़ोसी की बहुत ही सुन्दर लड़की पर पड़ीं , मैं रिश्ता लेकर उसके घर गया तो उसके माँ बाप ने रिश्ता स्वीकार करने से इन्कार कर दिया।

मैं उस लड़की को बहुत चाहता था और उस तक पहुँचने का पक्का इरादा कर चुका था , मैंने सोंच लिया के जैसे भी हो मैं उसको पाकर रहूँगा।

एक दिन मैंने सुना कि एक सोना बेचने वाल राजाधानी से हमारे गांव आया और बहुत अधिक पैसा देकर उस लड़की को ख़रीद कर राजधानी ले गया।

अब मेरा उस गांव में रहना कठिन हो गया था और मैं भी बहुत ही कठिनाईयों और मुसूबतों के साथ राजधानी चला गया , उस लड़की को बहुत तलाश किया लेकिन उसका कुछ पता ना चला।

कुछ समय के बाद देश में ग़ुलामों की आज़ादी के लिए एक पार्टी बनाई गई , मैंने भी उस पार्टी में अपना नाम लिखवा दिया और उसका मिम्बर बन गया , इस पार्टी ने बहुत बड़े पैमाने पर राजधानी में अपनी गतिविधियां आरम्भ कर दीं और एक लंबे समय के बाद मेरे शुमार इस पार्टी के बड़े लोगों में होने लगा

कुछ ही समय के बाद इस पार्टी का सत्ता पर अधिकार हो गया और मैं भी इस पार्टी का एक मिम्बर होने के नाते हुकूमत करने वालों में शामिल हो गया!

कुछ समय के बाद मैंने अपने एक विश्वासपात्र से कहाः जो सोना चाँदी बेचने वाले लोग लड़कियों का कारोबार करते हं उनको शाम के खाने पर बुलाया जा , लगभग चालीस लोगों को जिनके पास बहुत अधिक माल और दौलत थी खाने पर बुलाया गया , रात को एकांत में उन सबको क़त्ल करने का आदेश दिया और क़त्ल के बाद सबको एक स्थान पर दफ़न करवा दिया ताकि किसी को पता ना चल सके , मैं एक आदमी को क़त्ल करना चाहता था और वह एक जौहरी था जो मेरी माशूक़ा को उनके घर वालों से ख़रीद कर राजधानी ले आया था , लेकिन चूँकि मैं उसको पहचानता नही था इसलिए मैंने सोचा कि सब को समाप्त कर दूँ ताकि उनके घरों में उसको तलाश किया जा सके , चलीस घरों से शिकायतें आईँ कि उनके मर्द ग़ाएब हो गए हैं , मैंने आदेश दिया कि सबको उनके दास और दासियों के साथ बुलाया जाए ताकि मैं उनको तसल्ली दे सकूँ , सब आए लेकिन उनमें वह लड़की ना थी।

काफ़ी समय के बाद मुझे पता चला कि इटली की सुन्दर लड़कियों को पड़ोसी देश को बहुत अधिक क़ीमत पर बेचा जा रहा है , मैंने एक ऐसा काम किया जिसके कारण इटली और पड़ोसी देश में जंग छिड़ गई , बहुत घमासान जंग हुई , जंग के दिनों में एक रात जब जंग कुछ हलकी थी , मैं आराम कर रहा था , फ़ौज के एक अड्डे से बहुत अधिक शोर उठा जिससे मैं जाग गया , मैंने आदेश दिया कि पता किया जाए कि यह कैसा शोर है मुझे ख़बर दी गई कि दो तीन सिपाही एक वेश्या के चक्कर में लड़ रहे हैं , मैंने कहाः उस औरत और सिपाहियों को मेरे पास लेकर आओ , उस औरत और सिपाहियों को मेरे पास लाया गया जब मैंने ग़ौर से उस औरत को देखा , तो यह वही लड़की थी जिसको मैं वासना भरी निगाहों से देखा करता था और उसका आशिक़ हो गया था!!

एक वेश्या के चक्कर में मैंने लड़कियों को ख़रीदने और बेचने वाले चालीस सोनारों को बेगुनाह क़त्ल कर दिया , देश के ख़ज़ाने और लोगों को बिना किसी कारण जंग की आग में जला दिया , इसलिए लोगों से माफ़ी मांगना और उनसे क्षमा चाहना।

नफ़्स की यह हालत है कि वह अपनी आँखों से ग़लत देखता है और कानों से ग़लत सुनता है , उसके बाद वह नफ़्से अम्मारा (बुराई की तरफ़ ले जाने वाला) में बदल जाता है , या दूसरे शब्दों में यूँ कह दिया जाए कि एक ख़तरनाक अज़दहे का रूप धर लेता है जो हर पल दीन , ईमान , और इंसानी गुणों को निलगता रहता है और पचाता रहता है।

आयतों व हदीसों की चेतावनी

इस संबंध में ख़तरे इतने अधिक हैं कि परवरदिगारे आलम जो इंसान को सौभाग्य और तरक़्क़ी और आगे बढ़ते हुए देखना चाहता है , क़ुरआने मजीद में साफ़ शब्दों के साथ इंसान को सावधान कर रहा है कि बुरे साथियों से बचो , उनके साथ दोस्ती ना करो और किसी भी प्रकार से उनकी विलायत और सरपरस्ती को स्वीकार ना करो , ख़ुदावंदे आलम इस सिलसिले में मोमिनों के दामन को उनसे पाक जानता है और उसने बुरे साथियों से उनके संबंधों को तोड़ दिया है , चाहे वह रिश्ते के एतेबार से कितने ही क़रीबी क्यों ना हो।

لَا تَجِدُ قَوْمًا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ يُوَادُّونَ مَنْ حَادَّ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَلَوْ كَانُوا آبَاءهُمْ أَوْ أَبْنَاءهُمْ أَوْ إِخْوَانَهُمْ أَوْ عَشِيرَتَهُمْ

आप कभी ना देखेंगे कि जो क़ौम अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान रखने वाली है वह उन लोगों से दोस्ती कर रही है जो अल्लाह और उसके रसूल से दुश्मनी करने वाले हैं चाहे वह उनके बाप , दादा , या औलाद या भाई या ख़ानदान और क़बीले वाले ही क्यों ना हों।

जी हां अगर बाप , दादा या औलाद या भाई या ख़ानदान और क़बीले वालों का चेहरा शैतानी हो और इंसान विश्वास कर ले कि वह उसको ख़ुदा से दूर करना चाहते हैं और इंसानी इज़्ज़त को बरबाद करते हुए उसकी दुनिया और आख़ेरत को समाप्त कर देना चाहते हैं तो ख़ुदा की मर्ज़ी के अनुसार उनकी दोस्ती से बचना चाहिए , और अपने माँ बाप से केवल सम्मान और उनके एहतेराम को बनाए रखने के लिए संबंध रखना चाहिए।

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَتَّخِذُوا عَدُوِّي وَعَدُوَّكُمْ أَوْلِيَاء تُلْقُونَ إِلَيْهِم بِالْمَوَدَّةِ وَقَدْ كَفَرُوا بِمَا جَاءكُم مِّنَ الْحَقِّ

हे ईमान वालों ख़बरदार मेरे और अपने दुश्मन को दोस्त मत बनाना कि तुम उसकी तरफ़ दोस्ती की पेशकश करो जब्कि उन्होंने हक़ का इन्कार कर दिया है जो तुम्हारे पास आ चुका है और वह रसूल को और तुमको केवल इस बात पर निकाल रहे हैं कि तुम अपने परवरदिगार (अल्लाह) पर ईमान रखते हो।

रसूले ख़ुदा (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने फ़सादियों और बुरे लोगों से दूर रहने औऱ उनकी तरफ़ ध्यान ने देने को आवश्यक बताया है और जो लोग इंसान की दुनिया और उसकी आख़ेरत को हानि पहुँचाते हैं विशेषकर जो लोग दीन और दीनदारी के लिए ख़तरनाक हैं उनसे दूर रहने को कहा है आप (स) फ़रमाते हैः

إِذَا رَأَيْتُمْ‏ أَهْلَ‏ الرَّيْبِ‏ وَ الْبِدَعِ‏ مِنْ بَعْدِي فَأَظْهِرُوا الْبَرَاءَةَ مِنْهُمْ وَ أَكْثِرُوا مِنْ سَبِّهِمْ وَ الْقَوْلَ فِيهِمْ وَ الْوَقِيعَةَ وَ بَاهِتُوهُمْ كَيْلَا يَطْمَعُوا فِي الْفَسَادِ فِي الْإِسْلَامِ وَ يَحْذَرَهُمُ النَّاسُ وَ لَا يَتَعَلَّمُوا مِنْ بِدَعِهِمْ يَكْتُبِ اللَّهُ لَكُمْ بِذَلِكَ الْحَسَنَاتِ وَ يَرْفَعْ لَكُمْ بِهِ الدَّرَجَاتِ فِي الْآخِرَةِ

जब मेरे बाद बिदअत करने वालों को देखो जो कि दीन के विरुद्ध काम कर रहे हैं और इस्लाम के विश्वव्यापी और पूर्ण क़ानून में कमी या ज़्यादती कर रहे हैं , अक़ीदों और अहकाम में शक और संदेह कर रहे हैं , तो उनसे खुली हुई बेज़ारी अख़्तियार करो और सदैव उनको बुरा भला कहते रहो , उनको अपनी बातों और कामों से विद्रोही और ग़ैर मोतबर बताओ , उनके साथ इल्मी बहसें करो ताकि वह चकरा जाएं , ताकि वह बातिल और ग़लत बातें ना कर सकें , इस्लाम में फ़साद और बुराई फ़ैलाने की आशा समाप्त हो जाए , लोगों को उनसे दूर करो , उनकी बिदअतों को ना सिखाओ , अगर तुम इस प्रकार का अक़लमंदी वाला रवय्या अपनाओंगे तो ख़ुदा तुम्हारे अमाल नामे में नेकियां लिखेगा और इस प्रकार तुम्हारी आख़ेरत के मरतबे बुलंद हो जाएंगे।

रसूले अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने फ़रमायाः

الْمَرْءُ عَلَى‏ دِينِ‏ خَلِيلِهِ‏، فَلْيَنْظُرْ أَحَدُكُمْ مَنْ يُخَالِل‏

इंसान अपने दोस्त के दीन और धर्म के अनुसार कार्य करता है , इसलिए तुम में से हर एक को अक़्ल से सोचना चाहिए कि किसके साथ दोस्ती करो।

दूसरे स्थान पर रसूले अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने फ़रमायाः

مَنْ‏ كَانَ‏ يُؤْمِنُ‏ بِاللَّهِ‏ وَ الْيَوْمِ الْآخِرِ فَلَا يُوَاخِيَنَّ كَافِراً وَ لَا يُخَالِطَنَّ فَاجِراً وَ مَنْ آخَى كَافِراً أَوْ خَالَطَ فَاجِراً كَانَ كَافِراً فَاجِراً

जो भी ख़ुदा और क़यामत के दिन पर ईमान रखता है वह काफ़िर के साथ बहुत क़रीबी दोस्ती और संबंध नही बनाएगा और बुरे इंसान के साथ मेल जोल ना रखे जो भी काफ़िर के साथ बहुत अधिक दोस्ती बनाएगा या बुरे इंसान के साथ समाजिकता करेगा वह काफ़िर और बुरा हो जाएगा।

और रसूले अकरम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने फ़रमायाः

الْوَحْدَةُ خَيْرٌ مِنْ‏ قَرِينِ‏ السَّوْء

अकेले जीवन व्यतीत करना बुरे साथी के साथ ज़िन्दगी बसर करने से अच्छा है।

हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली (अलैहिस सलाम) से रिवायत हुई है कि आप से एक शाम के रहने वाले बूढ़े व्यक्ति से सवाल कियाः

बदी और बुराई में लिप्त साथी कौन है ? आपने फ़रमायाः

الْمُزَيِّنُ‏ لَكَ‏ مَعْصِيَةَ اللَّه ‏

जो ख़ुदा की अवहेलना को तुम्हारे लिए सजाने बनाने का प्रयत्न करे (और उनको तुम्हारी निगाह में सजाए ताकि तुम्हारे लि उसको करना आसान हो जाए)

इसी प्रकार रसूले इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहे व आलिहि वसल्लम) ने फ़रमायाः

ثَلَاثٌ‏ مَنْ‏ حَفِظَهُنَ‏ كَانَ‏ مَعْصُوماً مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ وَ مِنْ كُلِّ بَلِيَّةٍ مَنْ لَمْ يَخْلُ بِامْرَأَةٍ لَيْسَ يَمْلِكُ مِنْهَا شَيْئاً وَ لَمْ يَدْخُلْ عَلَى سُلْطَانٍ وَ لَمْ يُعِنْ صَاحِبَ بِدْعَةٍ بِبِدَعِه‏

जो व्यक्ति तीन चीज़ों की पाबंदी करेगा वह ख़ुदा की बारगाह से निकाले गए शैतान से अमान में रहेगा और हर बला से बचा रहेगा , एक नामहरम (अजनबी) औरत से साथ एकेले में ना रहे , दूसरे बादशाह के पास ना जाए , तीसरे बिदअत करने वाले की बिदअत में सहायता ना करे।

इमाम मूसा बिन जाफ़र (अलैहिस सलाम) ने हज़रत ईसा (अलैहिस सलाम) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः

يَا عَمَّارُ إِنْ‏ كُنْتَ‏ تُحِبُ‏ أَنْ تَسْتَتِبَّ لَكَ النِّعْمَةُ وَ تَكْمُلَ لَكَ الْمُرُوءَةُ وَ تَصْلُحَ لَكَ الْمَعِيشَةُ فَلَا تُشَارِكِ الْعَبِيدَ وَ السَّفِلَةَ فِي أَمْرِكَ - فَإِنَّكَ إِنِ ائْتَمَنْتَهُمْ خَانُوكَ وَ إِنْ حَدَّثُوكَ كَذَبُوكَ وَ إِنْ نُكِبْتَ خَذَلُوكَ وَ إِنْ وَعَدُوكَ أَخْلَفُوك إِنَ‏ صَاحِبَ‏ الشَّرِّ يُعْدِي‏ وَ قَرِينَ السَّوْءِ يُرْدِي فَانْظُرْ مَنْ تُقَارِن ‏

बेशक ख़ता करना वाले और गुनाह करने वाले लोग , दुश्मनी करते हैं और इंसान के हक़ को बरबाद करते हैं , ग़लत और बुरा दोस्त , इंसान को बरबाद कर देता है और उसकी इज़्ज़त एवं सम्मान को ख़ाक में मिला देता है , इसलिए दोस्त और साथी बनाने में ग़ौर एवं फ़िक्र से काम लो।

इमाम सादिक़ (अलैहिस सलाम) ने अम्मार बिन मूसा से फ़रमायाः

يَا عَمَّارُ إِنْ‏ كُنْتَ‏ تُحِبُ‏ أَنْ تَسْتَتِبَّ لَكَ النِّعْمَةُ وَ تَكْمُلَ لَكَ الْمُرُوءَةُ وَ تَصْلُحَ لَكَ الْمَعِيشَةُ فَلَا تُشَارِكِ الْعَبِيدَ وَ السَّفِلَةَ فِي أَمْرِكَ - فَإِنَّكَ إِنِ ائْتَمَنْتَهُمْ خَانُوكَ وَ إِنْ حَدَّثُوكَ كَذَبُوكَ وَ إِنْ نُكِبْتَ خَذَلُوكَ وَ إِنْ وَعَدُوكَ أَخْلَفُوك‏

हे अम्मार अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारे लिए नेमतें सदैव तैयार और बाक़ी रहें , तुम्हारी मर्दानगी और मुरुव्वत पूर्ण हो जाए और की अर्थ व्यवस्था पटरी पर आ जाए तो दासों और नीच लोगों को अपने जीवन में शरीक मत करो , क्योंकि अगर तुम उनको अमीन बनाओगे तो वह ख़यानत करेंगे , अगर वह तुमसे बात करेंगे तो झूठ बोलेंगे , अगर तुम मुसीबतों एवं मुश्किलों में घिर जाओगे तो वह तुमको छोड़ देंगे , अगर तुमसे कोई वादा करेंगे तो अपने वादे से मुकर जाएंगे।

इमामे सादिक़ (अलैहिस सलाम) ने दाऊदे रक़्क़ी से फ़रमायाः

انْظُرْ إِلَى‏ كُلِ‏ مَنْ‏ لَا يُفِيدُكَ مَنْفَعَةً فِي دِينِكَ فَلَا تَعْتَدَّنَّ بِهِ وَ لَا تَرْغَبَنَّ فِي صُحْبَتِهِ فَإِنَّ كُلَّ مَا سِوَى اللَّهِ تَبَارَكَ وَ تَعَالَى مُضْمَحِلٌّ وَخِيمٌ عَاقِبَتُه‏

जो लोग तुम्हारे दीन में तुम्हारी सहायता ना करें , उनसे दोस्ती ना करो , उस पर भरोसा ना करो और उसकी दोस्ती की तरफ़ ना जाओ क्योंकि ख़ुदावंदे आलम के अतिरिक्त हर जीज़ समाप्त हो जाने वाली है।

इमाम जवाद (अलैहिस सलाम) ने फ़रमायाः

إِيَّاكَ‏ وَ مُصَاحَبَةَ الشَّرِيرِ، فَإِنَّهُ كَالسَّيْفِ الْمَسْلُولِ، يَحْسُنُ مَنْظَرُهُ وَ يَقْبُحُ أَثَر

बुरे काम करने वाले और लोगों को परेशान करने वाले लोगों से दूर रहो क्योंकि वह मियान से निकली हुई तलवार की भाति है जिसका दर्शन अच्छा और उसका नतीजा बहुत बुरा है।