दुआऐ कुमैल
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तरजुमा
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اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ بِرَحْمَتِكَ الَّتِي وَسِعَتْ كُلَّ شَيْءٍ وَبِقُوَّتِكَ الَّتِي قَهَرْتَ بِهَا كُلَّ شَيْءٍ وَخَضَعَ لَهَا كُلُّ شَيْءٍ وَذَلَّ لَهَا كُلُّ شَيْءٍ
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ऐ अल्लाह मै तुझ से इल्तेजा करता हूँ , तुझे तेरी उस रहमत का वास्ता जो हर चीज़ को घेरे हुए है , तेरी उस कुदरत का वास्ता जिस से तू हर चीज़ पर ग़ालिब है , जिस के सबब हर चीज़ तेरे आगे झुकी है
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وَبِجَبَرُوتِكَ الَّتِي غَلَبْتَ بِهَا كُلَّ شَيْءٍ وَبِعِزَّتِكَ الَّتِي لاَ يَقُومُ لَهَاشَيْءٌ وَبِعَظَمَتِكَ الَّتِي مَلَأَتْ كُلَّ شَيْءٍ وَبِسُلْطَانِكَ الَّذِي عَلاَ كُلَّ شَيْءٍ
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और जिस के सामने हर चीज़ आजिज़ है , तेरी इस जब्र्रुत का वास्ता जिस से तू हर चीज़ पर हावी है , तेरी इस इज्ज़त का वास्ता जिस के आगे कोई चीज़ ठहर नहीं पाती , तेरी उस अजमत का वास्ता जो हर चीज़ से नुमाया है , तेरी उस सल्तनत का वास्ता जो हर चीज़ पर कायम है
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وَبِوَجْهِكَ الْبَاقِي بَعْدَ فَنَاءِ كُلِّ شَيْءٍ وَبِأَسْمَائِكَ الَّتِي مَلَأَتْ أَرْكَانَ كُلِّ شَيْءٍ وَبِعِلْمِكَ الَّذِي أَحَاطَ بِكُلِّ شَيْءٍ وَبِنُورِ وَجْهِكَ الَّذِي أَضَاءَ لَهُ كُلُّ شَيْءٍ
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तेरी उस ज़ात का वास्ता जो हर चीज़ के फ़ना हो जाने के बाद भी बाकी रहेगी , तेरे उन नामो का वासता जिन के असरात ज़र्रे ज़र्रे में तारी व सारी हैं , तेरे उस इल्म का वास्ता जो हर चीज़ का अहाता किये हुए हैं , तेरी ज़ात के उस नूर का वास्ता जिस से हर चीज़ रोशन है!
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يَا نُورُ يَا قُدُّوسُ يَا أَوَّلَ الْأَوَّلِينَ وَيَا آخِرَ الْآخِرِينَ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِيَ الذُّنُوبَ الَّتِي تَهْتِكُ الْعِصَمَ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِيَ الذُّنُوبَ الَّتِي تُنْزِلُ النِّقَمَ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِيَ الذُّنُوبَ الَّتِي تُغَيِّرُ النِّعَمَ
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ऐ हकीकी नूर! ऐ पाक व पाकीज़ा! ए सब पहलों से पहले , ऐ सब पिछलो से पिछले (ए अल्लाह मेरे सब गुनाह माफ़ कर दे जो अताब का मुस्तहक बनाते हैं! ऐ अल्लाह! मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जिन की वजह से बालाएं आती हैं! ऐ अल्लाह मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जो तेरी नेमतों से महरूमी का सबब बनते हैं!
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اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِيَ الذُّنُوبَ الَّتِي تَحْبِسُ الدُّعَاءَ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِيَ الذُّنُوبَ الَّتِي تُنْزِلُ الْبَلاَءَ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي كُلَّ ذَنْبٍ أَذْنَبْتُهُ وَكُلَّ خَطِيئَةٍ أَخْطَأْتُهَا
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ऐ अल्लाह , मेरे वो सब गुनाह बख्श दे जो दुआएं कबूल नहीं होने देते! ए अल्लाह , मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जो मुसीबत लाते हैं! ऐ अल्लाह , मेरी इन सारी खाताओं से दर गुज़र कर जो मैंने जान बूझ कर या भूले से की हैं!
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اللَّهُمَّ إِنِّي أَتَقَرَّبُ إِلَيْكَ بِذِكْرِكَ وَأَسْتَشْفِعُ بِكَ إِلَى نَفْسِكَ وَأَسْأَلُكَ بِجُودِكَ أَنْ تُدْنِيَنِي مِنْ قُرْبِكَ وَأَنْ تُوزِعَنِي شُكْرَكَ وَأَنْ تُلْهِمَنِي ذِكْرَكَ
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ऐ अल्लाह , मैं तुझे याद करके तेरे करीब आना चाहता हूँ ! तेरी जनाब में तुझी को अपना सिफारशी ठहराता हूँ , और तेरे करम का वास्ता दे कर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मुझे अपना कुर्ब अता कर ) मुझे अदाए शुक्र की तौफीक दे और अपनी याद मेरे दिल में डाल दे !
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اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ سُؤَالَ خَاضِعٍ مُتَذَلِّلٍ خَاشِعٍ أَنْ تُسَامِحَنِي وَتَرْحَمَنِي وَتَجْعَلَنِي بِقِسْمِكَ رَاضِياً قَانِعاً وَفِي جَمِيعِ الْأَحْوَالِ مُتَوَاضِعاً
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ऐ अल्लाह , मैं तुझ से खोज़ू व खुशू और गिरया व ज़ारी से अर्ज़ करता हूँ के तू मेरी भूल चूक माफ़ कर , मुझ पर रहम फार्म और तू में मेरा जो हिस्सा मुक़र्रर किया है , मुझे इस पर राज़ी , काने और हर हाल में मुतमईन रख!
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اللهم وأسألك سؤال من اشتدّت فاقته ، وأنزل بك عند الشدائد حاجته ، وعظم فيما عندك رغبته
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ऐ अल्लाह , मै तेरे हजूर में इस शख्स की मानिंद सवाल करता हूँ जिस पर सख्त फाके गुज़र रहे हों , जो मुसीबतों से तंग आकर अपनी ज़रुरत तेरे सामने पेश करे , जो तेरे लुत्फो करम का ज्यादा से ज्यादा खाहिश्मंद हो!
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اللهم عظم سلطانك وعلا مكانك ، وخفي مكرك ، وظهر أمرك ، وغلب قهرك ، وجرت قدرتك ، ولا يمكن الفرار من حكومتك
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ऐ अल्लाह , तेरी सल्तनत बहुत बड़ी है , तेरा रुतबा बहुत बुलंद है , तेरी तदबीर पोशीदा है , तेरा हुकुम साफ़ ज़ाहिर है , तेरा कहर ग़ालिब है , तेरी कुदरत कार फरमा है , और तेरी हुकूमत से निकल जाना मुमकिन नहीं है!
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اللهم لا أجد لذنوبي غافراًوَ لاَ لِقَبَائِحِي سَاتِراً وَلاَ لِشَيْءٍ مِنْ عَمَلِيَ الْقَبِيحِ بِالْحَسَنِ مُبَدِّلاً غَيْرَكَ لاَ إِلَهَ إِلاَّ أَنْتَ سُبْحَانَكَ وَبِحَمْدِكَ ظَلَمْتُ نَفْسِي وَتَجَرَّأْتُ بِجَهْلِي وَسَكَنْتُ إِلَى قَدِيمِ ذِكْرِكَ لِي وَمَنِّكَ عَلَيَ
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ऐ अल्लाह , मेरे गुनाह बख्शने , मेरे ऐब ढाँकने और मेरे किसी बुरे अमल को अच्छे अमल से बदलने वाला तेरे सिवा कोई नहीं है! तेरे इलावा और कोई माबूद नहीं है! तू पाक है , और मै तेरी ही हम्दो सना करता हूँ! मैं ने अपनी ज़ात पर ज़ुल्म किया और अपनी नादानी के बाएस बेग़ैरत बन गया! मै यह सोच कर मुतमईन हो गया के तू ने मुझे पहले भी याद रखा और अपनी नेमतों से नवाज़ा है!
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اللَّهُمَّ مَوْلاَيَ كَمْ مِنْ قَبِيحٍ سَتَرْتَهُوَكَمْ مِنْ فَادِحٍ مِنَ الْبَلاَءِ أَقَلْتَهُ وَكَمْ مِنْ عِثَارٍ وَقَيْتَهُ وَكَمْ مِنْ مَكْرُوهٍ دَفَعْتَهُ وَكَمْ مِنْ ثَنَاءٍ جَمِيلٍ لَسْتُ أَهْلاً لَهُ نَشَرْتَهُ
اللَّهُمَّ عَظُمَ بَلاَئِي وَأَفْرَطَ بِي سُوءُ حَالِي وَقَصُرَتْ بِي أَعْمَالِي وَقَعَدَتْ بِي أَغْلاَلِي وَحَبَسَنِي عَنْ نَفْعِي بُعْدُ أَمَلِي وَخَدَعَتْنِي الدُّنْيَا بِغُرُورِهَا وَنَفْسِي بِجِنَايَتِهَا
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ऐ अल्लाह , ऐ मेरे मालिक , तू ने मेरी कितनी ही बुराईयों की परदापोशी की , कितनी ही सख्त बालाओं को मुझ से टाला , कितनी ही नाज़िशों से मुझ को बचाया , कितनी ही आफतों को रोका! और मेरी कितनी ही ऐसी खूबियाँ लोगो में मशहूर कर दीं जिन का मै अहल भी ना था!
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وَمِطَالِي يَا سَيِّدِي فَأَسْأَلُكَ بِعِزَّتِكَ أَنْ لاَ يَحْجُبَ عَنْكَ دُعَائِي سُوءُ عَمَلِي وَفِعَالِي وَلاَ تَفْضَحْنِي بِخَفِيِّ مَا اطَّلَعْتَ عَلَيْهِ مِنْ سِرِّي وَلاَ تُعَاجِلْنِي بِالْعُقُوبَةِ عَلَى مَا عَمِلْتُهُ فِي خَلَوَاتِي مِنْ سُوءِ فِعْلِي وَإِسَاءَتِي وَدَوَامِ تَفْرِيطِي وَجَهَالَتِي وَكَثْرَةِ شَهَوَاتِي وَغَفْلَتِي
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ग़लतकारियां मेरी दुआ के कबूल होने में रुकावट ना बने! मेरे जिन भेदों से तू वाकिफ है इन की वजह से मुझे रुसवा ना करना , मै ने अपनी तन्हाईयों में जो बदी , बुराई और मुसलसल कोताही की है और नादानी , बढ़ी हुई खाहिशाते नफस और गफलत के सबब जो काम किये हैं मुझे उनकी सजा देने में जल्दी ना करना!
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وَكُنِ اللَّهُمَّ بِعِزَّتِكَ لِي فِي كُلِّ الْأَحْوَالِ رَءُوفاً وَعَلَيَّ فِي جَمِيعِ الْأُمُورِ عَطُوفاً
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ऐ अल्लाह , अपनी इज्ज़त के तुफैल हर हाल में मुझ पर मेहरबान रहना , और मेरे तमाम मामलात में मुझ पर करम करते रहना!
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إِلَهِي وَرَبِّي مَنْ لِي غَيْرُكَ أَسْأَلُهُ كَشْفَ ضُرِّي وَالنَّظَرَ فِي أَمْرِي إِلَهِي وَمَوْلاَيَ أَجْرَيْتَ عَلَيَّ حُكْماً اتَّبَعْتُ فِيهِ هَوَى نَفْسِي وَلَمْ أَحْتَرِسْ فِيهِ مِنْ تَزْيِينِ عَدُوِّي فَغَرَّنِي بِمَا أَهْوَى وَأَسْعَدَهُ عَلَى ذَلِكَ الْقَضَاءُ
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ऐ मेरे अल्लाह , ऐ मेरे परवरदिगार , तेरे सिवा मेरा कौन है जिस से मै अपनी मुसीबत को दूर करने और अपने बारे में नज़रे करम करने का सवाल करूँ! ऐ मेरे माबूद और मेरे मालिक , मै ने खुद अपने खिलाफ फैसला दे दिया क्योंके मै हवाए नफ़्स के पीछे चलता रहा और मेरे दुश्मन ने जो मुझे सुनहरे खाव्ब दिखाए मै ने इन से अपना बचाओ नहीं किया , चुनान्चेह इस ने मुझे खाहिशात के जाल में फंसा दिया , इस में मेरी तकदीर ने भी इस की मदद की! इस तरह मै ने तेरी मुक़र्रर की हुई बाज़ हदें तोड़ दीं और तेरे बाज़ अहकाम की नाफ़रमानी की!
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فَتَجَاوَزْتُ بِمَا جَرَى عَلَيَّ مِنْ ذَلِكَ بَعْضَ حُدُودِكَ وَخَالَفْتُ بَعْضَ أَوَامِرِكَ فَلَكَ الْحُجَّةُ عَلَيَّ فِي جَمِيعِ ذَلِكَ وَلاَ حُجَّةَ لِي فِيمَا جَرَى عَلَيَّ فِيهِ قَضَاؤُكَ وَأَلْزَمَنِي حُكْمُكَ وَبَلاَؤُكَ
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बहरहाल तू हर तारीफ़ का मुस्तहक है और जो कुछ पेश आया इस में खता मेरी ही है! इस बारे में तुने जो फैसला किया , तेरा जो हुक्म जारी हुआ और तेरी तरफ से मेरी जो आजमाईश हुई इस के खिलाफ मेरे पास कोई उज्र नहीं है!
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وَقَدْ أَتَيْتُكَ يَا إِلَهِي بَعْدَ تَقْصِيرِي وَإِسْرَافِي عَلَى نَفْسِي مُعْتَذِراً نَادِماً مُنْكَسِراً مُسْتَقِيلاً مُسْتَغْفِراً مُنِيباً مُقِرّاً مُذْعِناً مُعْتَرِفاً لاَ أَجِدُ مَفَرّاً مِمَّا كَانَ مِنِّي وَلاَ مَفْزَعاً أَتَوَجَّهُ إِلَيْهِ فِي أَمْرِي غَيْرَ قَبُولِكَ عُذْرِي وَإِدْخَالِكَ إِيَّايَ فِي سَعَةِ مِنْ رَحْمَتِكَ
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ऐ मेरे माबूद , मै ने अपनी इस कोताही और अपने नफस पर ज़ुल्म के बाद माफ़ी मांगने के लिए हाज़िर हुआ हूँ! मै अपने किये पर शर्मसार हूँ , दिल शिकस्ता हूँ , मै अपने करतूतों से बाज़ आया , बक्शीश का तलबगार हूँ , पशेमानी के साथ तेरी जनाब में हाज़िर हूँ , जो कुछ मुझ से सरज़द हो चूका , उस के बाद मेरे लिए ना कोई भागने की जगह है और ना कोई ऐसा मददगार जिस के पास मै अपना मामला ले जाऊं! सिर्फ यही है के तू मेरी माज़रत कबूल कर ले , मुझे अपने दामने रहमत में जगह देदे!
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اللَّهُمَّ فَاقْبَلْ عُذْرِي وَارْحَمْ شِدَّةَ ضُرِّي وَفُكَّنِي مِنْ شَدِّ وَثَاقِي يَا رَبِّ ارْحَمْ ضَعْفَ بَدَنِي وَرِقَّةَ جِلْدِي وَدِقَّةَ عَظْمِي
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ऐ मेरे माबूद , मेरी माफ़ी की दरखास्त मंज़ूर कर ले , मेरी सख्त बदहाली पर रहम कर और मेरी गिरह कुशाई फर्मा दे! ऐ मेरे परवरदिगार , मेरे जिस्म की नातवानी , मेरी जिल्द की कमजोरी और मेरी हड्डियों की नाताक़ती पर रहम कर!
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يَا مَنْ بَدَأَ خَلْقِي وَذِكْرِي وَتَرْبِيَتِي وَبِرِّي وَتَغْذِيَتِي هَبْنِي لاِبْتِدَاءِ كَرَمِكَ وَسَالِفِ بِرِّكَ بِي يَا إِلَهِي وَسَيِّدِي وَرَبِّي أَتُرَاكَ مُعَذِّبِي بِنَارِكَ بَعْدَ تَوْحِيدِكَ وَبَعْدَ مَا انْطَوَى عَلَيْهِ قَلْبِي مِنْ مَعْرِفَتِكَ وَلَهِجَ بِهِ لِسَانِي مِنْ ذِكْرِكَ وَاعْتَقَدَهُ ضَمِيرِي مِنْ حُبِّكَ وَبَعْدَ صِدْقِ اعْتِرَافِي وَدُعَائِي خَاضِعاً لِرُبُوبِيَّتِكَ
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ऐ वो ज़ात जिस ने मुझे वजूद बख्शा , मेरा ख्याल रखा , मेरी परवरिश का सामान किया , मेरे हक में बेहतर की और मेरे लिए ग़ज़ा के असबाब फराहम किये! बस जिस तरह तू ने इस से पहले मुझ पर करम किया और मेरे लिए बेहतरी के सामन किये , अब भी मुझ पर वो पहला सा फज़ल व करम जारी रख! ऐ मेरे माबूद , मेरे मालिक , ऐ मेरे परवरदिगार , मै हैरान हूँ के क्या तू मुझे अपनी आतिशे जहन्नम का अज़ाब देगा हालांकि मै तेरी तौहीद का इकरार करता हूँ , मेरा दिल तेरी मार्फ़त से सरशार है , मेरी ज़बान पर तेरा ज़िक्र जारी है , मेरे दिल में तेरी मुहब्बत बस चुकी है और मै तुझे अपना परवरदिगार मान कर सच्चे दिल से अपने गुनाहों का एतेराफ करता हूँ , और गिडगिडा कर तुझ से दुआ मांगता हूँ!
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هَيْهَاتَ أَنْتَ أَكْرَمُ مِنْ أَنْ تُضَيِّعَ مَنْ رَبَّيْتَهُ أَوْ تُبْعِدَ مَنْ أَدْنَيْتَهُ أَوْ تُشَرِّدَ مَنْ آوَيْتَهُ أَوْ تُسَلِّمَ إِلَى الْبَلاَءِ مَنْ كَفَيْتَهُ وَرَحِمْتَهُ
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नहीं ऐसा नहीं हो सकता , क्योंकि तेरा करम इस से कहीं बढ़ कर है के तू इस शख्स को बेसहारा छोड़ दे जिसे तुने खुद पाला हो या उसे अपने से दूर कर दे जिसे तू ने खुद अपना कुर्ब बख्शा हो या उसे अपने यहाँ से निकाल दे जिसे तुने खुद पनाह दी हो , या उसे बालाओं के हवाले कर दे जिस का तुने खुद ज़िम्मा लिया हो और जिस पर रहम किया हो , यह बात मेरी समझ में नहीं आती!
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وَلَيْتَ شِعْرِي يَا سَيِّدِي وَإِلَهِي وَمَوْلاَيَ أَتُسَلِّطُ النَّارَ عَلَى وُجُوهٍ خَرَّتْ لِعَظَمَتِكَ سَاجِدَةً وَعَلَى أَلْسُنٍ نَطَقَتْ بِتَوْحِيدِكَ صَادِقَةً وَبِشُكْرِكَ مَادِحَةً وَعَلَى قُلُوبٍ اعْتَرَفَتْ بِإِلَهِيَّتِكَ مُحَقِّقَةً وَعَلَى ضَمَائِرَ حَوَتْ مِنَ الْعِلْمِ بِكَ حَتَّى صَارَتْ خَاشِعَةً وَعَلَى جَوَارِحَ سَعَتْ إِلَى أَوْطَانِ تَعَبُّدِكَ طَائِعَةً وَأَشَارَتْ بِاسْتِغْفَارِكَ مُذْعِنَةً
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ऐ मेरे मालिक , ऐ मेरे माबूद , ऐ मेरे मौला , क्या तू आतिशे जहन्नम को मुसल्लत कर देगा इन चेहरों पर जो तेरी अजमत के बायेस तेरे हजूर में सज्दारेज़ हो चुके हैं , इन ज़बानों पर जो सिद्क़ दिल से तेरी तौहीद का इकरार करके शुक्रगुजारी के साथ तेरी मधा कर चुकी हैं , इन दिलों पर जो वाकई तेरे माबूद होने का ऐतेराफ कर चुके हैं , इन दिमागों पर जो तेरे इल्म से इस कद्र बहरावर हुए के तेरे हुज़ूर में झुके हुए हैं या इन हाथ पाँव पर जो इताअत के जज्बे के साथ तेरी इबादतगाहों की तरफ दौड़ते रहे और गुनाहों के इकरार करके मग्फेरत तलब करते रहे ?
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مَا هَكَذَا الظَّنُّ بِكَ وَلاَ أُخْبِرْنَا بِفَضْلِكَ عَنْكَ يَا كَرِيمُ يَا رَبِ وَأَنْتَ تَعْلَمُ ضَعْفِي عَنْ قَلِيلٍ مِنْ بَلاَءِ الدُّنْيَا وَعُقُوبَاتِهَا وَمَا يَجْرِي فِيهَا مِنَ الْمَكَارِهِ عَلَى أَهْلِهَا عَلَى أَنَّ ذَلِكَ بَلاَءٌ وَمَكْرُوهٌ قَلِيلٌ مَكْثُهُ يَسِيرٌ بَقَاؤُهُ قَصِيرٌ مُدَّتُهُ
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ऐ रब्बे करीम , ना तो तेरी निस्बत ऐसा गुमान ही किया जा सकता है और ना ही तेरी तरफ से हमें ऐसी कोई खबर दी गयी है! ऐ मेरे पालने वाले तू मेरी कमजोरी से वाकिफ है , मुझ में इस दुनिया की मामूली आज्मायीशों , छोटी छोटी तकलीफों और इन सख्तियों को बर्दाश्त करने की ताब नहीं जो अहले दुनिया पर गुज़रती हैं हालांकि वोह आजमाईश , तकलीफ और सख्ती मामूली होती है और इस की मुद्द्त भी थोड़ी होती है ,
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فَكَيْفَ احْتِمَالِي لِبَلاَءِ الْآخِرَةِ وَجَلِيلِ وُقُوعِ الْمَكَارِهِ فِيهَا وَهُوَ بَلاَءٌ تَطُولُ مُدَّتُهُ وَيَدُومُ مَقَامُهُ وَلاَ يُخَفَّفُ عَنْ أَهْلِهِ لِأَنَّهُ لاَ يَكُونُ إِلاَّ عَنْ غَضَبِكَ وَانْتِقَامِكَ وَسَخَطِكَ
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फिर भला मुझ से आखेरत की ज़बरदस्त मुसीबत क्योंकर बर्दाश्त हो सकेगी , जब की वहां की मुसीबत तूलानी होगी और इस में हमेशा हमेशा के लिए रहना होगा और जो लोग इस में एक मर्तबा फँस जायेंगे इन के अज़ाब में कभी कमी नहीं होगी क्योंकि वो अज़ाब तेरे गुस्से , इंतकाम और नाराजगी के सबब होगा
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وَهَذَا مَا لاَ تَقُومُ لَهُ السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ يَا سَيِّدِي فَكَيْفَ لِي وَأَنَا عَبْدُكَ الضَّعِيفُ الذَّلِيلُ الْحَقِيرُ الْمِسْكِينُ الْمُسْتَكِينُ
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जिसे ना आसमान बर्दाश्त कर सकता है ना ज़मीन! ऐ मेरे मालिक , फिर ऐसी सूरत में मेरा क्या हाल होगा जबकि मै तेरा एक कमज़ोर , अदना , लाचार , और आजिज़ बंदा हूँ
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يَا إِلَهِي وَرَبِّي وَسَيِّدِي وَمَوْلاَيَ لِأَيِّ الْأُمُورِ إِلَيْكَ أَشْكُو وَلِمَا مِنْهَا أَضِجُّ وَأَبْكِيلِأَلِيمِ الْعَذَابِ وَشِدَّهِ أَمْ لِطُولِ الْبَلاَءِ وَمُدَّتِهِ
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ऐ मेरे माबूद , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे मालिक , ऐ मेरे मौला , मै तुझ से किस किस बात पर नाला व फरयाद और आहोबुका करूँ ? दर्दनाक अज़ाब और इसकी सख्ती पर या मुसीबत और इस की तवील मीयाद पर!
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فَلَئِنْ صَيَّرْتَنِي لِلْعُقُوبَاتِ مَعَ أَعْدَائِكَ وَجَمَعْتَ بَيْنِي وَبَيْنَ أَهْلِ بَلاَئِكَ وَفَرَّقْتَ بَيْنِي وَبَيْنَ أَحِبَّائِكَ وَأَوْلِيَائِكَ
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बस अगर तू ने मुझे अपने दुश्मनों के साथ अज़ाब में झोंक दिया और मुझे इन लोगों में शामिल कर दिया जो तेरी बालाओं के सज़ावार हैं और अपने अहिब्बा और औलिया के और मेरे दरम्यान जुदाई डाल दी तो ,
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فَهَبْنِي يَا إِلَهِي وَسَيِّدِي وَمَوْلاَيَ وَرَبِّي صَبَرْتُ عَلَىعَذَابِكَ فَكَيْفَ أَصْبِرُ عَلَى فِرَاقِكَ وَهَبْنِي صَبَرْتُ عَلَى حَرِّ نَارِكَ فَكَيْفَ أَصْبِرُ عَنِ النَّظَرِ إِلَى كَرَامَتِكَ أَمْ كَيْفَ أَسْكُنُ فِي النَّارِ وَرَجَائِي عَفْوُكَ
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ऐ मेरे मालिक , ऐ मेरे मौला , ऐ मेरे परवरदिगार , मै तेरे दिया हुए अज़ाब पर अगर सब्र भी कर लूं तो तेरी रहमत से जुदाई पर क्यों कर सब्र कर सकूंगा ? इस तरह अगर मै तेरे आग की तपिश बर्दाश्त भी कर लूं तो तेरी नज़रे करम से अपनी महरूमी को कैसे बर्दाश्त कर सकूंगा और इस के इलावा मै आतिशे जहन्नुम में क्योंकर रह सकूंगा जबके मुझे तो तुझ से माफ़ी की तवक्क़ो है.
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فَبِعِزَّتِكَ يَا سَيِّدِي وَمَوْلاَيَ أُقْسِمُ صَادِقاً لَئِنْ تَرَكْتَنِي نَاطِقاً لَأَضِجَّنَّ إِلَيْكَ بَيْنَ أَهْلِهَا ضَجِيجَ الْآمِلِينَ وَلَأَصْرُخَنَّ إِلَيْكَ صُرَاخَ الْمُسْتَصْرِخِينَ وَلَأَبْكِيَنَّ عَلَيْكَ بُكَاءَ الْفَاقِدِينَ وَلَأُنَادِيَنَّكَ أَيْنَ كُنْتَ يَا وَلِيَّ الْمُؤْمِنِينَ يَا غَايَةَ آمَالِ الْعَارِفِينَ يَا غِيَاثَ الْمُسْتَغِيثِينَ يَا حَبِيبَ قُلُوبِ الصَّادِقِينَ وَيَا إِلَهَ الْعَالَمِينَ
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बस ऐ मेरे आका , ऐ मेरे मौला , मै तेरी इज्ज़त की सच्ची क़सम खा कर कहता हूँ के अगर तू ने वहां मेरी गोयाई सलामत रखी तो मै अहले जहन्नम के दरमियान तेरा नाम लेकर तुझे इस तरह पुकारूँगा जैसे करम के उम्मेदवार पुकारा करते हैं , मै तेरे हुज़ूर में इस तरह आहोबुका करूंगा जैसे फरयाद किया करते हैं और तेरी रहमत के फ़िराक में इस तरह रोवूँगा जैसे बिछुड़ने वाले रोया करते हैं! मैं तुझे वहां बराबर पुकारूंगा के तू कहाँ है ऐ मोमिनो के मालिक , ऐ आरिफों की उम्मीदगाह , ऐ फर्यादीयों के फरयादरस , ऐ सादिकों के दिलों के महबूब , ऐ इलाहिल आलमीन ,
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أَفَتُرَاكَ سُبْحَانَكَ يَا إِلَهِي وَبِحَمْدِكَ تَسْمَعُ فِيهَا صَوْتَ عَبْدٍ مُسْلِمٍ سُجِنَ فِيهَا بِمُخَالَفَتِهِ وَذَاقَ طَعْمَ عَذَابِهَا بِمَعْصِيَتِهِ وَحُبِسَ بَيْنَ أَطْبَاقِهَابِجُرْمِهِ وَجَرِيرَتِهِ وَهُوَ يَضِجُّ إِلَيْكَ ضَجِيجَ مُؤَمِّلٍ لِرَحْمَتِكَ وَيُنَادِيكَ بِلِسَانِ أَهْلِ تَوْحِيدِكَ وَيَتَوَسَّلُ إِلَيْكَ بِرُبُوبِيَّتِكَ
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तेरी ज़ात पाक है , ऐ मेरे माबूद , मै तेरी हम्द करता हूँ! मैं हैरान हूँ की यह क्योंकर होगा की तू इस आग में से एक मुस्लिम की आवाज़ सुने जो अपनी नाफ़रमानी की पादाश में इस के अंदर क़ैद कर दिया गया हो , अपनी मुसीबत की सजा में इस अज़ाब में गिरफ्तार हो और जुर्मो खता के बदले में जहन्नुम के तबकात में बंद कर दिया गया हो मगर वो तेरी रहमत के उम्मीदवार की तरह तेरे हुज़ूर में फरयाद करता हो , तेरी तौहीद को मानने वालों की सी जुबान से तुझे पुकारता हो और तेरी जनाब में तेरी रबूबियत का वास्ता देता हो!
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يَا مَوْلاَيَ فَكَيْفَ يَبْقَى فِي الْعَذَابِ وَهُوَ يَرْجُو مَا سَلَفَ مِنْ حِلْمِكَ أَمْ كَيْفَ تُؤْلِمُهُ النَّارُ وَهُوَ يَأْمُلُ فَضْلَكَ وَرَحْمَتَكَ أَمْ كَيْفَ يُحْرِقُهُ لَهِيبُهَا وَأَنْتَ تَسْمَعُ صَوْتَهُ وَتَرَى مَكَانَهُ أَمْ كَيْفَ يَشْتَمِلُ عَلَيْهِ زَفِيرُهَا وَأَنْتَ تَعْلَمُ ضَعْفَهُ أَمْ كَيْفَ يَتَقَلْقَلُ بَيْنَ أَطْبَاقِهَا وَأَنْتَ تَعْلَمُ صِدْقَهُ أَمْ كَيْفَ تَزْجُرُهُ زَبَانِيَتُهَا وَهُوَ يُنَادِيكَ يَا رَبَّهْ أَمْ كَيْفَ يَرْجُو فَضْلَكَ فِي عِتْقِهِ مِنْهَا فَتَتْرُكُهُ فِيهَا
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ऐ मेरे मालिक , फिर वो इस अज़ाब में कैसे रह सकेगा जबके इसे तेरी गुज़िश्ता राफ्त ओ रहमत की आस बंधी होगी या आतिशे जहन्नम उसे कैसे तकलीफ पहुंचा सकेगा जबके उसे तेरी फज़ल और तेरी रहमत का आसरा होगा या इस को जहन्नम का शोला कैसे जला सकेगा जबकि तू खुद इस की आवाज़ सुन रहा होगा और जहाँ वो है तू इस जगह को देख रहा होगा या जहन्नुम का शोर उसे क्योंकर परेशान कर सकेगा , जबकि तू इस बन्दे की कमजोरी से वाकिफ होगा या फिर वो जहन्नुम के तबकात में क्योंकर तड़पता रहेगा जबकि तू इस की सच्चाई से वाकिफ होगा या जहन्नुम की लपटें इस को क्योंकर परेशान कर सकेंगी जबकि वो तुझे पुकार रहा होगा ! ऐ मेरे परवरदिगार , ऐसे क्योंकर मुमकिन है के तू वो तो जहन्नुम के निजात के लिए तेरे फज्लो करम की आस लगाये हुए हो और तू उसे जहन्नुम ही में पड़ा रहने दे !
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هَيْهَاتَ مَا ذَلِكَ الظَّنُّ بِكَ وَلاَ الْمَعْرُوفُ مِنْ فَضْلِكَ وَلاَ مُشْبِهٌ لِمَا عَامَلْتَ بِهِ الْمُوَحِّدِينَ مِنْ بِرِّكَ وَإِحْسَانِكَ
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जहन्नुम ही में पड़ा रहने दे ! नहीं , तेरी निस्बत ऐसा गुमान नहीं किया जा सकता , ना तेरे फज़्ल से पहले कभी ऐसी सूरत पेश आयी और ना ही यह बात इस लुत्फो करम के साथ मेल खाती है जो तू तौहीद परस्तों के साथ रवा रखता रहा है ,
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فَبِالْيَقِينِ أَقْطَعُ لَوْ لاَ مَا حَكَمْتَ بِهِ مِنْ تَعْذِيبِ جَاحِدِيكَ وَقَضَيْتَ بِهِ مِنْ إِخْلاَدِ مُعَانِدِيكَ لَجَعَلْتَ النَّارَ كُلَّهَا بَرْداً وَسَلاَماً وَمَا كَانَ لِأَحَدٍ فِيهَا مَقَرّاً وَلاَ مُقَاماً
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इस लिए मै पुरे यकीन के साथ कहता हूँ के अगर तुने अपने मुन्कीरों को अज़ाब देने का हुक्म ना दे दिया होता और इनको हमेशा जहन्नुम में रखने का फैसला ना कर लिया होता तो तू ज़रूर आतिशे जहन्नुम को ऐसा सर्द कर देता के वो आरामदेह बन जाती और फिर किसी भी शख्स का ठिकाना जहन्नुम ना होता
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لَكِنَّكَ تَقَدَّسَتْ أَسْمَاؤُكَ أَقْسَمْتَ أَنْ تَمْلَأَهَا مِنَ الْكَافِرِينَ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ وَأَنْ تُخَلِّدَ فِيهَا الْمُعَانِدِينَ
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लेकिन खुद तू ने अपने पाक नामो की क़सम खाई है के तू तमाम काफिर जिन्नों और इंसान से जहन्नुम भर देगा और अपने दुश्मनों को हमेशा के लिए इसमें रखेगा !
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وَأَنْتَ جَلَّ ثَنَاؤُكَ قُلْتَ مُبْتَدِئاً وَتَطَوَّلْتَ بِالْإِنْعَامِ مُتَكَرِّماً : اَفَمَنْ كانَ مُؤْمِناً كَمَنْ كانَ فاسِقاً لا يَسْتَوُونَ
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तू जो बहुत ज्यादा तारीफ के लायक़ है और अपने बन्दों पर एहसान करते हुए अपनी किताब में पहले ही फरमा चुका है : "क्या मोमिन , फ़ासिक़ के बराबर हो सकता है ? नहीं , यह कभी बाहम बराबर नहीं हो सकते "!
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اِلهى وَسَيِّدى فَاَسْئَلُكَ بِالْقُدْرَةِ الَّتى قَدَّرْتَها وَبِالْقَضِيَّةِ الَّتى حَتَمْتَها وَحَكَمْتَها وَغَلَبْتَ مَنْ عَلَيْهِ اَجْرَيْتَها اَنْ تَهَبَ لى فى هذِهِ اللَّيْلَةِ وَفى هذِهِ السّاعَةِ كُلَّ جُرْمٍ اَجْرَمْتُهُ وَكُلَّ ذَنْبٍ اَذْنَبْتُهُ وَكُلَّ قَبِيحٍ اَسْرَرْتُهُ وَكُلَّ جَهْلٍ عَمِلْتُهُ كَتَمْتُهُ اَوْ اَعْلَنْتُهُ اَخْفَيْتُهُ اَوْ اَظْهَرْتُهُ وَكُلَّ سَيِّئَةٍ اَمَرْتَ بِاِثْباتِهَا الْكِرامَ الْكاتِبينَ الَّذينَ وَكَّلْتَهُمْ بِحِفْظِ ما يَكُونُ مِنّى وَجَعَلْتَهُمْ شُهُوداً عَلَىَّ مَعَ جَوارِحى
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ऐ मेरे माबूद , ऐ मेरे मालिक , मै तेरी इस कुदरत का जिस से तुने मौजूदात की तक़दीर बनाई , तेरे इस हतमी फैसले का जो तू ने सादिर किये हैं और जिन पर तू ने इन को नाफ़िज़ किया है इन पर तुझे क़ाबू हासिल है ! वास्ता देकर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के हर वो जुर्म जिस का मै मुर्तकिब हुआ हूँ और हर वो गुनाह जो मैंने किया हो , हर वो बुराई जो मैंने छुपा कर की हो और हर वो नादानी जो मुझ से सरज़द हुई हो , चाहे मैंने उसे छुपाया हो या ज़ाहिर किया हो , पोशीदा रखा हो या अफशा किया हो इस रात और ख़ास कर इस साअत में बख्श दे मेरी हर ऐसी बदअमली को माफ़ कर दे जिस को लिखने का हुक्म तुने किरामन कातेबीन को दिया हो , जिन को तुने मेरे हर अमल की निगरानी पर मामूर किया है और जिन को मेरे आज़ा व जवारेह के साथ साथ मेरे अमाल का गवाह मुक़र्रर किया है ,
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وَكُنْتَ اَنْتَ الرَّقيبَ عَلَىَّ مِنْ وَراَّئِهِمْ وَالشّاهِدَ لِما خَفِىَ عَنْهُمْ وَبِرَحْمَتِكَ اَخْفَيْتَهُ وَبِفَضْلِكَسَتَرْتَهُ وَاَنْ تُوَفِّرَ حَظّى مِنْ كُلِّ خَيْرٍ اَنْزَلْتَهُ اَوْ اِحْسانٍ فَضَّلْتَهُ اَوْ بِرٍّ نَشَرْتَهُ اَوْ رِزْقٍ بَسَطْتَهُ اَوْ ذَنْبٍ تَغْفِرُهُ اَوْ خَطَاءٍ تَسْتُرُهُ
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फिर इन से बढ़ कर तू खुद मेरे अमाल के निगरान रहा है और इन बातों को भी जानता है जो इन की नज़र से मख्फी रह गयीं और जिन्हें तुने अपनी रहमत से छुपा लिया और जिन पर तुने अपने करम से पर्दा डाल दिया ! ऐ अल्लाह , मै तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मुझे ज्यादा से ज्यादा हिस्सा दे हर इस भलाई से जो तेरी तरफ से नाज़िल हो , हर उस एहसान से जो तू अपने फज़ल से करे , हर उस नेकी से जिसे तू फैलाये , हर उस रिज़्क से जिस में तू वुसअत दे , हर उस गुनाह से जिसे तू माफ़ कर दे , हर उस ग़लती से जिसे तू छुपा ले !
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يا رَبِّ يا رَبِّ يا رَبِّ يا اِلهى وَسَيِّدى وَمَوْلاىَ وَمالِكَ رِقّى يا مَنْ بِيَدِهِ ناصِيَتى يا عَليماً بِضُرّى وَمَسْكَنَتى يا خَبيراً بِفَقْرى وَفاقَتى
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ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे माबूद , ऐ मेरे आका , ऐ मेरे मौला , ऐ मेरे जिस्मो जान के मालिक , ऐ वो ज़ात जिसे मुझ पर क़ाबू हासिल है , ऐ मेरी बदहाली और बेचारगी को जानने वाले , ऐ मेरे फ़क़रो फ़ाक़ा से आगाही रखने वाले ,
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يا رَبِّ يا رَبِّ يا رَبِّ اَسْئَلُكَ بِحَقِّكَ وَقُدْسِكَ وَاَعْظَمِ صِفاتِكَ وَاَسْماَّئِكَ اَنْ تَجْعَلَ اَوْقاتى مِنَ اللَّيْلِ وَالنَّهارِ بِذِكْرِكَ مَعْمُورَةً وَبِخِدْمَتِكَ مَوْصُولَةً وَاَعْمالى عِنْدَكَ مَقْبُولَةً حَتّى تَكُونَ اَعْمالى وَاَوْرادى كُلُّها وِرْداً واحِداً وَحالى فى خِدْمَتِكَ سَرْمَداً يا سَيِّدى يا مَنْ عَلَيْهِ مُعَوَّلى يا مَنْ اِلَيْهِ شَكَوْتُ اَحْوالى
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, ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , मै तुझे तेरी सच्चाई और तेरी पाकीज़गी , तेरी आला सेफात और तेरे मुबारक नामो का वास्ता देकर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मेरे दिन रात के औक़ात को अपनी याद से मामूर कर दे के हर लम्हा तेरी फ़रमाबरदारी में बसर हो , मेरे अमाल को क़बूल फ़रमा , यहाँ तक के मेरे सारे आमाल और अज्कार की एक ही लए हो जाए और मुझे तेरी फरमाबरदारी करने में दवाम हासिल हो जाए ! ऐ मेरे आका , ऐ वो ज़ात जिस का मुझे आसरा है और जिस की सरकार में , मै अपनी हर उलझन पेश करता हूँ !
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يا رَبِّ يا رَبِّ يا رَبِّ قَوِّ عَلى خِدْمَتِكَ جَوارِحى وَاشْدُدْ عَلَى الْعَزيمَةِ جَوانِحى وَهَبْ لِىَ الْجِدَّ فى خَشْيَتِكَ وَالدَّوامَ فِى الاِْتِّصالِ بِخِدْمَتِكَ حَتّى اَسْرَحَ اِلَيْكَ فى مَيادينِ السّابِقينَ ، وَاُسْرِعَ اِلَيْكَ فِى الْبارِزينَ ( ١ ) وَاَشْتاقَ اِلى قُرْبِكَ فِى الْمُشْتاقينَ وَاَدْنُوَ مِنْكَ دُنُوَّ الْمُخْلِصينَ وَاَخافَكَ مَخافَةَ الْمُوقِنينَ وَاَجْتَمِعَ فى جِوارِكَ مَعَ الْمُؤْمِنينَ
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ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , ऐ मेरे परवरदिगार , मेरे हाथ पाँव में अपनी इताअत के लिए क़ुवत दे , मेरे दिल को नेक इरादों पर क़ायेम रहने की ताक़त बख्श , और मुझे तौफीक़ दे के मै तुझ से क़रार , वाक़ई डरता रहूँ और हमेशा तेरी इताअत में सरगर्म रहूँ ताकि मै तेरी तरफ सबक़त करने वालों के साथ चलता रहूँ , तेरी सिम्त बढ़ने वालों के हमराह तेज़ी से क़दम बढाऊँ , तेरी मुलाक़ात का शौक़ रखने वालो की तरह तेरा मुश्ताक रहूँ , तेरे मुख़लिस बन्दों की तरह तुझ से नज़दीक हो जाऊं , तुझ पर यक़ीन रखने वालों की तरह तुझ से डरता रहूँ , और तेरे हुज़ूर में जब मोमिन जमा हों मै उन के साथ रहूँ !
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اَللّهُمَّ وَمَنْ اَرادَنى بِسُوَّءٍ فَاَرِدْهُ وَمَنْ كادَنى فَكِدْهُ وَاجْعَلْنى مِنْ اَحْسَنِ عَبيدِكَ نَصيباً عِنْدَكَ وَاَقْرَبِهِمْ مَنْزِلَةً مِنْكَ وَاَخَصِّهِمْ زُلْفَةً لَدَيْكَ فَاِنَّهُ لا يُنالُ ذلِكَاِلاّ بِفَضْلِكَ
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ऐ अल्लाह , जो शख्स मुझ से कोई बदी करने का इरादा करे , तू उसे वैसी ही सज़ा दे और जो मुझ से फ़रेब करे तू उस को वैसी ही पादाश दे ! मुझे अपने उन बन्दों में क़रार दे जो तेरे यहाँ से सबसे अच्छा हिस्सा पाते हैं जिन्हें तेरी जनाब में सबसे ज्यादा तक़र्रुब हासिल है और जो ख़ास तौर से तुझ से ज्यादा नज़दीक हैं क्योंकि यह रूतबा तेरे फज़्ल के बग़ैर नहीं मिल सकता !
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وَجُدْلى بِجُودِكَ وَاعْطِفْ عَلَىَّ بِمَجْدِكَ وَاحْفَظْنى بِرَحْمَتِكَ وَاجْعَلْ لِسانى بِذِكْرِكَ لَهِجاً وَقَلْبى بِحُبِّكَ مُتَيَّماً وَمُنَّ عَلَىَّ بِحُسْنِ اِجابَتِكَ وَاَقِلْنى عَثْرَتى وَاغْفِرْ زَلَّتى
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मुझ पर अपना ख़ास करम कर और अपनी शान के मुताबिक मेहरबानी फ़रमा ! अपनी रहमत से मेरी हिफाज़त कर , मेरी ज़बान को अपने ज़िक्र में मशग़ूल रख , मेरे दिल को अपनी मुहब्बत की चाशनी अता कर , मेरी दुआएं क़बूल करके मुझ पर एहसान कर , मेरी ख़ताएं माफ़ कर दे और मेरी लग़ज़िशें बख्श दे !
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فَاِنَّكَ قَضَيْتَ عَلى عِبادِكَ بِعِبادَتِكَ وَاَمَرْتَهُمْ بِدُعاَّئِكَ وَضَمِنْتَ لَهُمُ الإِجابَةَ فَاِلَيْكَ يا رَبِّ نَصَبْتُ وَجْهى وَاِلَيْكَ يا رَبِّ مَدَدْتُ يَدى
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चूंके तूने अपने बन्दों पर अपनी इबादत वाजिब की है , इन्हें दुआ मांगने का हुक्म दिया है और इनकी दुआएं क़बूल करने की ज़िम्मेदारी ली है , इसलिए ऐ परवरदिगार , मै ने तेरी ही तरफ रुख़ किया है और तेरे ही सामने अपना हाथ फैलाया है !
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فَبِعِزَّتِكَ اسْتَجِبْ لى دُعاَّئى وَبَلِّغْنى مُناىَ وَلا تَقْطَعْ مِنْ فَضْلِكَ رَجاَّئى وَاكْفِنى شَرَّ الْجِنِّ وَالإِنْسِ مِنْ اَعْدآئى ،
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बस अपनी इज्ज़त के सदक़े में मेरी दुआ क़बूल फ़रमा और मुझे मेरी मुराद को पहुंचा ! मुझे अपने फ़ज़्ल व करम से मायूस ना कर , और जिन्नों और इंसानों में से जो भी मेरे दुश्मन हों मुझ को इन के शर से बचा !
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يا سَريعَ الرِّضا اِغْفِرْ لِمَنْ لا يَمْلِكُ اِلا الدُّعاَّءَ فَاِنَّكَ فَعّالٌ لِما تَشاَّءُ يا مَنِ اسْمُهُ دَوآءٌ وَذِكْرُهُ شِفاَّءٌ وَطاعَتُهُ غِنىً اِرْحَمْ مَنْ رَأسُ مالِهِ الرَّجاَّءُ وَسِلاحُهُ الْبُكاَّءُ
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ऐ अपने बन्दों से जल्दी राज़ी हो जाने वाले , इस बन्दे को बख्श दे जिस के पास दुआ के सिवा कुछ नहीं , क्योंकि तू जो चाहे कर सकता है , तू ऐसा है जिस का नाम हर मर्ज़ की दवा है , जिस का ज़िक्र हर बीमारी से शिफा है , और जिस की इताअत सबे बेनेयाज़ कर देने वाली है , इस पर रहम कर जिस की पूंजी तेरा आसरा और जिस का हथियार रोना है !
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يا سابِغَ النِّعَمِ يا دافِعَ النِّقَمِ يا نُورَ الْمُسْتَوْحِشينَ فِى الظُّلَمِ يا عالِماً لا يُعَلَّمُ صَلِّ عَلى مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ وَافْعَلْ بى ما اَنْتَ اَهْلُهُ وَصَلَّى اللّهُ عَلى رَسُولِهِ وَالاْئِمَّةِ الْمَيامينَ مِنْ الِهِ وَسَلَّمَ تَسْليماً كَثيراً
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ऐ नेमतें अता करने वाले , ऐ बलाएँ टालने वाले , ऐ अंधेरों से घबराये हुओं के लिए रौशनी , ऐ वो आलिम जिसे किसी ने तालीम नहीं दी , मुहम्मद ( स ) और आले मुहम्मद ( स ) पर दुरूद व सलाम भेज और मेरे साथ वो सुलूक कर जो तेरे शायाने शान हो !
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