अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन (अ.स.)

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अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन (अ.स.) लेखक:
कैटिगिरी: इमाम हसन (अ)

अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन (अ.स.)

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

लेखक: मौलाना नजमुल हसन करारवी
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अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन (अ.स.)
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अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन (अ.स.)

अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन (अ.स.)

लेखक:
हिंदी

यह किताब अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क की तरफ से संशोधित की गई है।.

माविया सजदा ए शुक्र में

मरवान हाकिमे मदीना ने जोदा बिन्ते अशअस के ज़रिए से अपनी कामयाबी की इत्तेला माविया को दी। माविया ख़बरे शहादत पाते ही ख़ुशी के मारे अल्लाहो अकबर कह कर सजदे में गिर पडा़ और उस के देखा देखी सारे दरबार वाले ख़ुशी मनाने के लिये नाराए तकबीर बलन्द करने लगे। उनकी आवाज़ें फ़ात्मा बिन्ते क़रज़आ के कानों में पहुँची जो माविया की बीवी थी , वो कहने लगी यह किस चीज़ की ख़ुशी है ? माविया ने जवाब दिया इमाम हसन की शहादत हो गई है। इस ख़ुशी में मैंने नाराए तकबीर बलन्द कर के सज्दाए शुक्र अदा किया है। फ़ात्मा बेइन्तेहा रंजीदा हुई और कहने लगीं अफ़सोस फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) क़त्ल किया जाये और दरबार में ख़ुशी मनाई जाये।(तारीख़ अबुल फ़िदा जिल्द 1 पृष्ठ 182, अक़्दुल फ़रीद जिल्द 2 पृष्ठ 211, ओकली पृष्ठ 336, रौज़तुल मनाज़िर जिल्द 11 पृष्ठ 133, तारीख़े खमीस जिल्द 2 पृष्ठ 328, हयातुल हैवान जिल्द 1 पृष्ठ 51, नूजूलुल अबरार पृष्ठ 5, अरजहुल मतालिब पृष्ठ 357 व अख़बारूल तवाल पृष्ठ 400 ) इब्ने क़तीबा ने इब्ने अब्बास के दरबारे माविया में पहुँच कर इस मौक़े की ज़बर दस्त गुफ़तगू लिखी है।(अल इमामत वल सियासत)

इमाम हसन (अ.स.) की तजहीज़ों तकफ़ीन

अल ग़रज़ इमाम हसन (अ.स.) की शहादत के बाद इमाम हुसैन (अ.स.) ने गु़स्लो कफ़न का इन्तेज़ाम फ़रमाया और नमाज़े जनाज़ा पढ़ी गई। इमाम हसन (अ.स.) की वसीयत के मुताबिक़ उन्हें सरवरे कायनात (स अ व व ) के पहलू में दफ़्न करने के लिये अपने कंधों पर उठा कर ले चले। अभी पहुँचे ही थे कि बनी उमय्या ख़ुसूसन मरवान वग़ैरा ने आगे बढ़ कर पहलू रसूल (स अ व व ) में दफ़्न होने से रोका और हज़रत आयशा भी एक खच्चर पर सवार हो कर आ पहुँची और कहने लगीं यह घर मेरा है मैं तो हरगिज़ हसन को अपने घर में दफ़्न होने न दूं गी।(तारीख़े अबुल फ़िदा जिल्द 1 पृष्ठ 183, रौज़तुल मनाज़िर जिल्द 11 पृष्ठ 133 ) यह सुन कर बाज़ लोगों ने कहा ऐ आयशा तुम्हारा क्या हाल है। कभी ऊँट पर सवार हो कर दामादे रसूल (स अ व व ) से जंग करती हो कभी खच्चर पर सवार हो कर फ़रज़न्दे रसूल (स अ व व ) के दफ़्न में मज़ाहेमत करती हो। तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये।(तफ़सील के लिये मुलाहेजा़ हों ज़िकरूल अब्बास पृष्ठ 51 ) मगर वह एक न मानी और ज़िद पर अड़ी रही यहां तक कि बात बढ़ गई। आप के हवाख़वाहों ने आले मोहम्मद (अ.स.) पर तीर बरसाए। किताब रौज़ातुल पृष्ठ जिल्द 3 पृष्ठ 7 मे है कि कई तीर इमाम हसन (अ.स.) के ताबूत में पेवस्त हो गये। किताब ज़िकरूल अब्बास पृष्ठ 51 में है कि ताबूत में सत्तर तीर पेवस्त हुए थे। तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 28 में है कि नाचार लाशे मुबारक को जन्नतुल बक़ी में ला कर दफ़्न कर दिया गया। तारीख़े कामिल जिल्द 3 पृष्ठ 182 में है कि शहादत के वक़्त आपकी उम्र 47 साल की थी।

आपकी अज़वाज और औलाद

आपने मुख़्तलिफ़ अवक़ात में 9 नौ बीवियां की। आपकी औलाद में आठ बेटे और सात बेटियां थीं। यही तादाद इरशादे मुफ़ीद पृष्ठ 208 और नूरूल अबसार पृष्ठ 112 प्रकाशित मिस्र में है। अल्लामा तल्हा शाफ़ेई मतालेबुस सूऊल के पृष्ठ 239 पर लिखते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) की नस्ल जै़द और हसने मुसन्ना से चली है। इमाम शिब्लन्जी का कहना है कि आपके तीन फ़रज़न्द अब्दुल्लाह , क़ासिम और उमरो करबला में शहीद हुए हैं।(नूरूल अबसार पृष्ठ 112 )

जनाबे ज़ैद बड़े जलीलुल क़द्र और सदक़ाते रसूल (स अ व व ) के मुतावल्ली थे उन्होंने 120 हिजरी में 90 साल की उम्र में इन्तेक़ाल फ़रमाया।

जनाबे हसने मुसन्ना निहायत फ़ाज़िल , मुत्तक़ी और सदक़ाते अमीरल मोमेनीन (अ.स.) के मुतवल्ली थे। आपकी शादी इमाम हुसैन (अ.स.) की बेटी जनाबे फ़ात्मा से हुई थी। आपने करबला की जंग में शिरकत की थी और बेइंतेहां ज़ख़्मी हो कर मक़तूलों में तब गये थे। जब सर काटे जा रहे थे तब उनके मामू अबू हसान ने आपको ज़िन्दा पा कर उमरे साद से ले लिया था। आपको ख़लीफ़ा सुलैमान बिन अब्दुल मलिक ने 97 हिजरी में ज़हर दे दिया था जिसकी वजह से आपने 52 साल की उम्र में इन्तेक़ाल फ़रमाया। आपकी शहादत के बाद आपकी बीवी जनाबे फ़ात्मा एक साल तक क़ब्र पर खेमा ज़न रहीं।(इरशादे मुफ़ीद पृष्ठ 211 व नूरूल अबसार पृष्ठ 269 )

शेख अब्दुल क़ादिर जीलानी

बरादराने अहले सुन्नत के अवाम का ख़्याल है कि शेख़ सय्यद अब्दुल का़दिर जीलानी और बरवायते इब्ने जंगी दोस्त और बरवायते इब्ने चंग दोस्त सय्यद थे और इनका नसब जनाबे हसने मुसन्ना इब्ने इमाम हसन बिन अली (अ.स.) तक पहुँचता है लेकिन उनके उलेमा इस से इनकार करते हैं।

1. इमाम उल अन्साब अहमद बिन अली बिन अल हुसैन बिन अली , बिन महन्ना अपनी किताब उमदतुल तालिब प्रकाशित बम्बई के पृष्ठ 112 पर लिखते हैं कि खुद शेख़ अब्दुल क़ादिर ने अपनी सियादत का दावा नहीं किया और न उनके बेटों ने किया है अलबत्ता इसकी इजाद उनके पोते क़ाजी़ अबुल सालेह नासिर बिन अबी बक्र बिन अब्दुल क़ादिर ने फ़रमाई है लेकिन अपने दावे के सुबूत में वह दलील लाने से क़ासिर रहे हैं। यहीं वजह है कि किसी अहले नसब ने आपका दावा तसलीम नहीं किया।

2. अल्लामाए दौरां ने सय्यद अहमद बिन मोहम्मद अल हुसैनी निसबे किताब शजरतुल अल अवलिया में रक़म तराज़ हैं कि तमाम उलेमाए इन्साब ने शेख़ सय्यद अब्दुल क़ादिर के सिलसिलाए सियादत से इन्कार किया है और किसी ने भी इनके सादात होने को नक़ल नहीं किया और ख़ुद उन्होंने भी सय्यद होने का दावा नहीं किया और उनकी ज़िन्दगी में किसी और ने भी इनको सय्यद नहीं कहा। ‘‘ अन अव्वल मन अज़हर हाज़ा अल दाआ अल बातलता हु अनसरा इब्ने अबी बक्र बिन अल शेख़ अब्दुल क़ादिर ’’ मालूम होना चाहिये कि इस दावाए बातिला को सब से पहले इनके पोते नसर बिन अबी बक्र ने ज़ाहिर किया है।

3. रिसाला सू़फ़ी जो बसर परस्ती ख़्वाजा हसन निज़ामी मंडी बहाउद्दीन ज़िला गुजरात से शाया होता था इसके जिल्द 3 पृष्ठ 6 में लिखा है सेयुम पीरे तरीक़त हज़रत ख़्वाजा मुहिउद्दीन अब्दुल क़ादिर जीलानी हैं। वलदियत आपकी क़दम बक़दम हज़रत ईसा के है सिलसिला नसब आपका हज़रत उमर फ़ारूख़ तक पहुंचता है।

इमाम शिब्लन्जी का इरशाद है कि आपकी विलादत 470 ई0 में और वफ़ात 561 ई0 में हुई है। आप हम्बलीउल मज़हब थे। आपकी वालेदा उम्मुल ख़ैर मक़ामे जबाल इलाक़ए तबरिस्तान की रहने वाली थीं। इस लिये आपको अब्दुल क़ादिर जिब्ली कहते हैं और जीलानी एज़ाज़ी तौर पर कहा जाता है।(नूरूल असार पृष्ठ 214 व इक़तेबासुल अनवार पृष्ठ 72 ) आप दो किताबों ग़नीयतुल तालेबैन और फ़तूहुल ग़ैब के मुसन्निफ़ हैं।(तारीख़े इस्लाम जिल्द 5 पृष्ठ 63 )

माविया इब्ने अबू सुफ़ियान का तारीख़ी र्ताअरूफ़

अमीरे माविया के र्ताअरूफ़ और आपके किरदार की आईना दारी के लिये अगरचे सिर्फ़ यही कहना काफ़ी है कि आप हज़रत अली (अ.स.) इमाम हसन (अ.स.) अम्मारे यासिर , मालिके अशतर और उम्मुल मोमेनीन हज़रत आयशा बिन्ते अबी बक्र , मोहम्मद इब्ने अबी बक्र नीज़ अब्दुर्रहमान इब्ने ख़ालिद इब्ने वलीद वग़ैराहुम के मुसल्लेमुल सुबूत क़ातिल हैं जैसा कि तहरीर किया जा चुका है लेकिन इससे आपकी नस्ली हालात और आपके किरदार के दिगर पहलू रौशन नहीं होते इस लिये ज़रूरत है कि कुतबे मोतबर के हवाले से चन्द चीज़ें निहायत मुख़्तसर लफ़्ज़ों में पेश कर दी जाऐ। बनाबरीं अर्ज़ है कि 1. नसायह काफ़िया पृष्ठ 95 व पृष्ठ 110 में है कि क़बीलाए क़ुरैश की इब्तेदा , क़सी इब्ने क़लाब से हुई जो औलादे क़अब इब्ने लवी से थे क़सी के चार बेटों में से एक का नाम अब्दुल मनाफ़ था। हाशिम और अब्दुल शम्स अब्दुल मनाफ़ के बेटे थे। हाशिम की ज़ुर्रियत से मोहम्मद व आले मोहम्मद (स अ व व ) में जो हाशमी कहलाते हैं और अब्दुल शम्स की तरफ़ मन्सूब हैं जो पसता क़द , चुन्धा , करंजा , बदशक्ल था जिसके चेहरे से शरारत व नहूसत नुमाया थी उमिया के मानी छोटी लौंडी के हैं। हस्सान बिन साबित ने इसके औलाद व अब्दुल शम्स होने से इन्कार किया है। देखो दीवाने हस्सान पृष्ठ 91 ,

2. अलहुर्रियत फी़ल इस्लाम मुसन्नेफ़ा अबुल कलाम अज़ादा के पृष्ठ 26 में है कि खि़लाफ़ते राशेदा के बाद बनू उमय्या का दौरे फ़ितना व बिदआत से शुरू होता है जिन्होंने निज़ामे हुकूमते इस्लामी की बुनियादं मुताज़लज़िल कर दीं।

3. ततहीर उल जिनान पृष्ठ 142 नसलहे काफ़िया पृष्ठ 106 में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने इरशाद फ़रमाया है कि हमारा सब से बड़ा दुशमन क़बीलाए बनी उमय्या है।

4. नियाबुल मोवद्दता पृष्ठ 148 में है कि क़बाएले अरब में सब से शरीर बनी उमय्या हैं।

5. तहरीरूल जेनान पृष्ठ 148 में है कि हर शै के लिये एक आफ़त है और दीने इस्लाम की आफ़त बनी उमय्या हैं।

6. तारीख़ उल ख़ुल़्फ़ा पृष्ठ 8 और तफ़सीरे नैशा पुरी में है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने ख़्वाब में देखा कि मिम्बर पर लंगूर कूद रहे हैं जिससे आपको बेइन्तेहां सदमा हुआ जिससे तसल्ली के लिये सूरए क़द्र नाज़िल हुआ जिसमें फ़रमाया गया है कि शबे क़द्र मुद्दते हुकूमत बनी उमय्या से बेहतर है।

7. रौज़तुल मनाज़िर बर हाशिया कामिल जिल्द पृष्ठ 85 में है कि शाजराए मलउना फ़िल क़ुरान से बुराद बनी उमय्या हैं।

8. तारीख़े आसम कूफ़ी पृष्ठ 242 में है कि अहदे जाहितयत में बनी उमय्या कि ग़िज़ा टिड्डी और मुरदार थी।

9. फ़तेहुलबारी इब्ने हजर असक़लानी जिल्द 5 पृष्ठ 65 में है कि ज़मानाए जाहिलयत में फ़ाहेशा औरतें अपने मकानों पर पहचान के लिये झन्डे लगाए रहती थीं।

10. नसायहे काफ़िया पृष्ठ 110 , समरतुल अवराक़ पृष्ठ 108 , अबुल फ़िदा जिल्द 1 पृष्ठ 188 , इब्ने शहना जिल्द 2 पृष्ठ 134 , एयर विंग पृष्ठ 48 , तज़किराए ख़वास अल उम्मता पृष्ठ 117 , तारीख़े आसम कूफ़ी पृष्ठ 236 वग़ैरा में है कि मशहूर फ़ाहेशा औरतें जिनके मकानों पर झन्डे थे , वह चार थीं , 1. ज़रक़ा , 2. नाबेग़ा , उमरो आस की मां , 3. हमामा , अमीरे माविया की दादी , 4. हिन्दा , अमीरे माविया की मां। और हिन्दा के मुताअल्लिक़ आसम कूफ़ी पृष्ठ 236 में है कि यह तमाम ऐबों की ख़ज़ीना दार थीं।

11. तारीख़े ख़ुल्फ़ा पृष्ठ 218 में है कि यह शायरा और बड़ी संग दिल थी। इसके एक शेर अहवाले मामून रशीद में दर्ज है जिसका तरजुमा यह है। हम ख़ूबसूरती में सितारए सुबह सादिक़ की बेटियां है। नर्म बिस्तरों पर हम किसी के साथ यूं मिलते हैं जैसे मुजामेअत करने वाला मस्त चकोर चांद के गिर्द घूमता है।(मुतख़ेबुल लुग़ात व सराह)

13. नसाए पृष्ठ 83 में है कि हस्सान इब्ने साबित ने हिन्दा की ज़िना कारी अपने अशआर में बयान की है और आं हज़रत को सुनाया हज़रत ख़ामोश रहे। अशआर मुलाहेज़ा हो दीवाने हस्सान पृष्ठ 40 से 60 में।

14. इब्ने क़तीबा ने लिखा है कि आं हज़रत (स अ व व ) ने उक़बा को मक़ामे सफ़ोरिया (शाम) का यहूदी फ़रमाया है।

15. निसाय काफ़िया पृष्ठ 110 में है कि उमय्या ने सफ़ोरिया की एक यहूदन लड़की से ज़िना किया था जिससे ज़कवान नामी लड़का पैदा हुआ था जिसकी कुन्नियत अबू उमरो मुक़र्रर की गई थी। यही अबू उमरो अक़बा का दादा है।

16. रौज़तुल अनफ़ असाबा व कामिल और हलबी में ज़कवान के ग़ुलामे उमय्या लिखा है।

17. आग़ाफ़ी अबुल फ़रह असफ़हानी 48ध्8 तरजुमा मुसाफ़िर में है कि उमय्या के बाद ज़कवान ने अपनी मां से निकाह कर लिया था।

18. अग़ाफ़ी अबुल फ़राह असफ़हानी निसाए काफ़िया हाशिया पृष्ठ 84 तज़किरए सिब्ते अब्ने जौज़ी में है कि इसी अबू उमर का बेटा मुसाफ़िर था जो सख़ावत और जमाली शेर गोई में मशहूर था। हिन्दा का उस से मोअशेक़ा हो गया और उससे हामेला हो गई जब हमल ज़ाहिर हो गया तो उसने मुसाफ़िर से कहा कि तू किसी तरफ़ चला जा। चुनान्चे वह हीरा को चला गया। उसके बाद हिन्दा अबू सुफ़ियान के तसर्रूफ़ में आ गई। जब मुसाफ़िर को पता लगा तो उसने फ़ेराक़ में जान दे दी। मुसाफ़िर के चले जाने के बाद हिन्दा मक़ामे अजयाद की तरफ़ चली गई और वहीं बच्चा जना।

19. सिब्ते इब्ने जोज़ी ने तज़किराए ख़वास अल उम्मता में लिखा है कि हज़रत आयशा ने उम्मे हबीबा ख़्वाहरे माविया को कहा , ‘‘ क़ातिल अल्लाह अब्नतुल राहता ’’ ख़ुदा लानत करे दुख़्तरे ज़ने ज़िना कार पर , और इमाम हसन (अ.स.) ने माविया को कहा , ‘‘ वक़द अलमत अल फ़राश्त लज़ी दलदत इलैहे ’’ मैं उस फ़र्श को जानता हूँ जिस पर तू पैदा हुआ है। उसके बाद इसकी तौज़ीह इब्ने जोज़ी ने यह की है ‘‘ क़ाला अल समीई वल हशाम इब्ने मोहम्मद अल कल्बी फ़ी किताब अल मुसम्मा बिल मसालिब वक़फ़त अला मानी क़ौल अल हसन माविया क़द अलिमतो अल फ़राशत लज़ी वलदत इलहै अन माविया कानाया अल अनाह मिन्नी अरबता मिन कुरैश ग़मारता इब्ने वलीद व मुसाफ़िर इब्ने अबी उमरो व अबी सुफ़ियान वल अब्बास व हूला कानू अन्दमा अबी सुफ़ियान व काना कुल यत्तहुम बेहिन्द ’’ यानी असमई और हश्शाम ने कहा है कि इमाम हसन (अ.स.) के क़ौल के यह मानी हैं कि , माविया , अबु सुफ़ियान , उमरो अब्बास और मुसाफ़िर चार आदमियों की तरफ़ मन्सूब है। ‘‘ अमा मुसाफ़िर बिन अबी उमरो फ़क़ाला अल कलबी आउम्मतुन नास अली अन माविया मिनहा ’’ कल्बी ने कहा कि जमहूर की राय थी कि माविया मुसाफ़िर इब्ने उमरो से है क्यों कि वही सब से ज़्यादा हिन्दा से मोहब्बत करता था। मसालिब इबने समआन में है कि पदरे हिन्दा ने इसका निकाह ‘‘ लोअदा ’’ माले कसीर अबू सुफ़ियान से किया।

‘‘ फ़ौज़अत माविया बाद सलासता अशहर ’’ निकाह के तीन माह बाद बत्ने हिन्दा से माविया पैदा हुआ। इसी लिये ज़महशरी ने रबीउल अबरार में माविया को चार यारी लिखा है। बरवायत हिन्दा का ताअल्लुक़ एक ख़ूब सूरत डोम से भी था जिसका नाम ‘‘ सब्बाह ’’ था। इसी से माविया का भाई अतबा इब्ने अबू सुफ़ियान पैदा हुआ। जैसा कि निसाए काफ़िया पृष्ठ 110 में है ‘‘ क़ाला अल शआबी फ़क़द असा रसूल अल्लाह अबी हिन्दा यौमे फ़तेह मक्का बशी मन हाज़ा ’’ इमामे शाबी का बयान है कि हिन्दा की ज़िना कारी की तरफ़ आं हज़रत (स अ व व ) ने फ़तेह मक्का के दिन उस मौक़े पर इशारा फ़रमाया था जब िकवह बैयत करने आई थी। हिन्दा ने कहा कि मैं किस चीज़ पर बैयत करूं ? हज़रत ने फ़रमाया कि तू उस चीज़ पर बैयत कर कि आज से ज़िना नहीं करेगी। उसने कहा कि हज़रत कहीं ‘‘ हुर्रा ’’ आज़ाद औरतें ज़िना करती हैं। ‘‘ मन्ज़र रसूल अल्लाह इला उमरे तबस्सुम ’’ यह सुन कर आपने हज़रत उमर की तरफ़ देख कर तबस्सुम फ़रमाया , मुलाहेज़ा हो।(माविया दायरतुल इस्लाह पृष्ठ 8 )

अल्लामा मजलिसी हयातुल क़ुलूब जिल्द 2 पृष्ठ 437 पर लिखते हैं कि हज़रत उमर ज़मानए जाहिलयत के अमली शाहिद थे। इसी लिये रसूल अल्लाह (स अ व व ) उनकी तरफ़ देख कर मुस्कुराए थे।

20. तमाम तवारीख़े इस्लाम में है कि इसी हिन्दा ने हज़रते हम्ज़ा को अपने एक आशिक़ हब्शी नामी से शहीद करा के उनका जिगर चबाना चाहा था और कान , नाक वग़ैरा काट कर अपने गले का हार बनाया था।

21. माविया का बाप जो अबू सुफ़ियान कहा जाता है वह बरवायत हयातुल हैवान ‘‘ तेली ’’ था।

22. आसम कूफ़ी पृष्ठ 236 में है कि यह शराबी था।

23. हयातुल क़ुलूब और नहजुल बलाग़ाह जिल्द 2 पृष्ठ 131 में है कि अबू सुफ़ियान ने ब जब्रो इक़राह इस्लाम क़ुबूल किया था।

24. माविया दायरतुल इस्लाह पृष्ठ 14 में है कि माविया 17 या 22 साल क़ब्ले हिजरत हिन्दा के शिकम में पैदा हुआ।

25. नहजुल बलाग़ह जिल्द 2 पृष्ठ 19 में है कि हज़रत अली (अ.स.) ने माविया को नसीक़ फ़रमाया है जिसके मानी मुत्तिहमुन नसब है।

26. जनातुल ख़ुलूद में है कि माविया का क़द लम्बा और आंखें सब्ज़ थीं।

27. तारीख़ुल ख़ुलफ़ा पृष्ठ 132 में है कि इसकी सूरत डरावनी है।

28. तारीख़े कामिल जिल्द 3 पृष्ठ 166 और निसाए काफ़िया पृष्ठ 21 में है कि मोहम्मद इब्ने अबी बक्र ने माविया को लईन इब्ने लईन कहा है।

29. उसने ग़लत तौर पर मशहूर किया कि अली (अ.स.) क़ातिले उस्मान हैं।(आसम कूफ़ी पृष्ठ 169 )

30. निसाए काफ़िया पृष्ठ 53 व हुलयातुल औलिया पृष्ठ 144 में है कि उसने ग़लत शोहरत दी कि माज़अल्लाह अली (अ.स.) नमाज़ नहीं पढ़ते।

31. निसाए काफ़िया पृष्ठ 53 में है कि माविया के हुक्म से उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास के दो कमसिन बच्चे मां की गोद में ज़िब्ह किये गये।

32. आसम कूफ़ी पृष्ठ 307 में है कि माविया ने यमन और हिजाज़ में 30,000 (तीस हज़ार) मुहिब्बाने अली (अ.स.) को क़त्ल किया।

33. निसाए काफ़िया पृष्ठ 61 में है कि माविया ने मालिके अशतर को ज़हर से शहीद करा दिया।

34. आसम कूफ़ी पृष्ठ 338 में है कि माविया ने मोहम्मद इब्ने अबी बक्र को गधे की खाल में सिलवा कर जलवा दिया।

35. इसी किताब में है कि जब हज़रत आयशा को इसकी ख़बर मिली तो बहुत रोईं और तहयात बद दुआ देती रहीं।

36. निसाई काफ़िया पृष्ठ 62 में है कि हज़रत अली (अ.स.) को इसकी इत्तेला मिली तो बक़ा बक़आ शदीदन बहुत रोय।

37. निसाई काफ़िया पृष्ठ 58 में सीरते मोहम्मदिया पृष्ठ 577 में है कि हजर इब्ने अदी सहाबिए रसूले करीम (स अ व व ) मोहब्बते अली (अ.स.) में क़त्ल किये गये और अब्दुर्रहमान इब्ने हस्सान ज़िन्दा दफ़्न किये गये।

38. निसाई काफ़िया पृष्ठ 43 में है कि उमर बिन हमक़ भी हुक्मे माविया से शहीद किये गये।

39. तबरी और निसाई काफ़िया पृष्ठ 52 में है कि माविया के एक आमिल समरता ने आठ हज़ार आदमियों को शहीद किया।

40. तारीख़े आसम पृष्ठ 334 व निसाए काफ़िया पृष्ठ 70 में है कि बसरे और कूफ़े में एक एक रात को पांच पांच सौ (500) मुहिब्बाने अली (अ.स.) क़त्ल किये गये।

41. तारीख़े कामिल इब्ने असीर जिल्द 3 पृष्ठ 133 में है कि माविया नमाज़ के हर क़ुनूत में हज़रत अली (अ स ) , इब्ने अब्बास , इमाम हसन (अ स ) , इमाम हुसैन (अ.स.) और मालिके अशतर पर लानत करता था।

42. निसाए काफ़िया पृष्ठ 170 में है कि माविया मोअल्लेफ़ुल क़ुलूब में था उसका कातिबे वही होना ग़लत है।

43. तारीख़े आसम पृष्ठ 46 में है कि माविया ने शोहदाय ओहद की क़ब्रों पर नहर जारी कराई और लाशों को दूसरी जगह दफ़्न करा दिया। लाशों के निकालने में एक बेलचा हज़रते हम्ज़ा के पैर में लग गया जिससे ख़ूने ताज़ा जारी हो गया।

44. मोलवी अमीर अली अपनी तारीख़े इस्लाम में लिखते हैं कि इमाम हसन (अ.स.) के तरके खि़लाफ़त के बाद माविया हक़ीकत में ही बादशाहे इस्लाम बन गया। इस तरफ़ ज़माने के अजीबो ग़रीब इन्के़लाब से हज़रते मोहम्मदे मुस्तुफ़ा (स अ व व ) के दुश्मानें ने उनकी औलाद का मौरूसी हक़ ग़ज़्ब कर लिया और बुत परस्ती के हामी उन जनाब के मज़हब और सलतन्त के सरदार और पेशवा बन गये। दारूल खि़लाफ़ा जो हज़रत अली (अ.स.) ने कूफ़े में मुक़र्रर किया था अब दमिश्क़ में मुन्तक़िल हो गया जहां माविया ईरानी और यूनानी शानो शौकत के साथ रहा करता था। वह अक्सर अपने दुश्मनों या मुख़ालिफ़ों का ज़हर या तलवार से काम तमाम कर देता था। रिश्तेदारी या खि़दमते इस्लाम भी उसके सफ़्फ़ाक हाथों से बचा न सकती थी और फिर मुवर्रिख़ ओबसरन ने नक़ल किया है कि बनी उमय्या का अव्वल ख़लीफ़ा सियाना , मुताफ़न्नी और सफ़्फ़ाक था। अपना मतलब निकालने के लिये किसी जुर्म के इरतेक़ाब से न डरता था। जबर दस्त ग़नीम को हलाक करा देना उसके बायं हाथ का खेल था। पैग़म्बरे इस्लाम के नवासे इमाम हसन (अ.स.) और मालिके अशतर को ज़हर से हालाक करा दिया। इसी तरह अब्दुल रहमान इब्ने ख़ालिद इब्ने वलीद को 45 हिजरी में ज़हर से तमाम करा दिया।(कामिल इब्ने असीर , तबरी , अबुल फ़िदा , रौज़ातुल सफ़ा , हबीब अल सैर) और उम्मुल मोमेनीन जनाबे आयशा को इस तरह ज़िन्दा गढ़े में दफ़्न कर दिया कि 56 हिजरी में आ कर एक मकान में गढ़ा खुदवा कर उसको ख़स पोश कर के आबनूस की कुर्सी बिछवाई और आयशा को दावत में बुलवा कर उस पर बिठाया , आयशा बैठते ही उस गढ़े में जा पड़ीं। माविया ने इस गढ़े को पत्थर और चूने से बंद करा दिया और मक्के की तरफ़ कूच कर गये।(हबीब उस सैर जिल्द 1 पृष्ठ 85, ओकली तारीख़े इस्लाम रबीउल अबरार , अवाएल सियूती , कामिल अल सफ़ीना , हदीक़ा हकीम सनाई , मुनाक़िबे मुर्तज़वी)

45. 51 ई0 में हजर इब्ने अदी को जो निहायत मुत्तक़ी व परहेज़गार और इबादत गुज़ार थे और उनके छ़ हमराहियों को और उमर इब्ने हमक़ सहाबी को सिर्फ़ इस जुर्म में कि वह दोस्त दाराने अली (अ.स.) में से थे और जब माविया का गर्वनर कूफ़े के मिम्बर पर अली (अ.स.) पर लानत करता तो यह रोकते और अली (अ.स.) की हिमायत करते थे , क़त्ल करा दिया।

46. खानदाने बनी उमय्या को क़ुरआन में शजराए मलऊना फ़रमाया है।

47. उनको , अली (अ.स.) उनकी औलाद और उनके शियों से सख़्त दुश्मनी थी चुनान्चे माविया हज़रत अली (अ.स.) पर तबर्रा करता था। उसने 41 हिजरी में हुक्म दिया कि ममालिके महरूसा की मस्जिदों मे ख़तीब मिम्बर पर बैठ कर हज़रत अली (अ.स.) पर तबर्रा किया करें और यह रस्म 99 हिजरी तक जारी रही जब कि उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने ख़ुतबे में से इस तबर्रा को निकलवा कर आयएःان الله یعمر بالعدل والاحسان

और ख़ुलफ़ाए अरबिया के नाम दाखि़ल कराये। मुलाहेज़ा हो , सही मुस्लिम , तिर्मिज़ी , मिनहाजुल सुन्नता , अक़्दुल फ़रीद , अबुल फ़िदा , कामिल इब्ने असीर , तबरी , तारीख़ अल खु़लफ़ा , फ़तावाए अज़ीज़ी , तफ़रीह उल अहबाब , ख़साएस निसाई।

इमाम ग़ज़ाली (र.) लिखते हैं कि हज़रत अली (अ.स.) पर शितम व तबर्रा एक हज़ार माह तक जारी रहा।(इसरारूल आलेमीन पृष्ठ 10 तबआ बम्बई) अल निसाएल काफ़िया के पृष्ठ 9 में है कि हज़रत अली (अ.स.) पर सत्तर हज़ार मिम्बरों पर सबबो शितम की जाती थी। माविया ने अबू हुरैरा , उमरे आस , मुग़ीरा इब्ने शेबा और उरवा इब्ने ज़ुबैर को इस अम्र पर मामूर किया था कि अली (अ.स.) की मनक़सत में झूठी हदीसे तय्यार करें।

48. इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पृष्ठ 9 पर है , शियाने अली (अ.स.) के माल व मता ज़ब्त कर लिये गये वो क़त्ल किये गये और इस क़दर उन पर ज़ुल्म किये गये कि कोई अपने को शिया न कह सकता था।

49. इब्ने अबिल हदीद जिल्द 2 पृष्ठ 9 , निसाए काफ़िया पृष्ठ 70 , किताब अल फ़ख़्री में है कि माविया उमूरे दुनिया में इस क़द्र मुनहमिक रहता और अपनी हिम्मत तदबीर उमूरे दुनिया में इतनी मसरूफ़ करता कि और सब बातें उसके सामने हेच समझता था।

50. दिन में पांच मरतबा खाता था और आख़री दफ़ा सब से ज़्यादा खा कर कहता था ऐ गु़लाम उठा ले खाते खाते थक गया मगर सेर नहीं हुआ। एक बछड़ा भून कर लाये वह एक ही मैदे की रोटी के साथ खा गया और साथ में चार मोटे मोटे गुर्दे। एक गर्म भेड़ का बच्चा और एक ठन्डे भेड़ का बच्चा और खजूरों से अलग मुंह मीठा किया। इसके आगे सौ (100) रतल बाक़लानी रूतब रखा गया वह सब खा गया।

51. इमाम निसाई फ़रमाते हैं कि रसूल अल्लाह (स अ व व ) ने उनके हक़ में बद दुआ की थी ला अशबा उल्लाह बतना ख़ुदा इसका पेट न भरे।

52. माविया अपना मतलब निकालने में खूंरेज़ी के मुताअल्लिक़ परवाह न करता था।

53. ओकली लिखता है कि वह ज़क्र बर्क कपड़े पहनता और शानो शौकत से बसर करता और हमेशा शराब पीता था।

54. हसन बसरी कहते हैं कि माविया की चार बातें ऐसी हैं कि उनमें से एक ही उसकी हलाकत के लिये काफ़ी है। 1. अव्वल मुस्तहक़ीने खि़लाफ़त को महरूम करके ज़बर दस्ती खि़लाफ़त पर क़ब्ज़ा करना। 2 , दूसरे यज़ीद को वली अहद बनाना जो बद अतवार , शराबी , हरीर पहनने वाला , गाना बजाना सुनने का शौकीन था। 3. तीसरे अबू सुफ़ियान के हरामी बेटे ज़ियाद को शरीयत के खि़लाफ़ अपना भाई बनाना। 4. चौथे हजर और उनके असहाब पर ज़ुल्म करना और उनको क़त्ल कराना।

55. इमाम शाफ़ेई फ़माते हैं कि चार सहाबी ऐसे हैं जिनकी गवाही क़ाबिले क़ुबूल नहीं। माविया , उमरो आस , मुग़िरा , ज़ियाद। हकीक़त यह है कि इस्लाम की इन्हीं चार फ़ितना ग़रों ने कमर तोड़ी है।

56. मसूदी लिखता है कि अहले शाम माविया के फ़रमा बरदार और इताअत गुज़ार ऐसे थे कि जंगे सिफ़्फ़ीन को जाते हुए माविया ने जुमे की नमाज़ बुध को पढ़ा दी और लोगों ने पढ़ ली।

57. फिर मसूदी लिखता है कि बनी उमय्या के अहद में आम लोगों के इख़्लाक़ में यह बात दाखि़ल हो गई थी कि सय्यद को सरदार न बनायें। बनी उमय्या बग़ैर आलिम होने के इल्म की बात कहते थे बिला तमीज़ फ़ाज़ील व मफ़जू़ल और फ़ायदा नुक़सान के जो उनके आगे हो जाय उसकी मुताबेक़त कर लेते थे और हक़ो बातिल में तमीज़ न करते थे।

58. माविया 60 हिजरी में अलील हुआ और उसने यज़ीद से कहा कि जो कुछ मांगना हो मांग ले। उसने कहा हुकूमत चाहता हूँ ताकि उसके ज़रिये से जहन्नुम से नजात हासिल कर लूँ। उसने यज़ीद का मुंह चूम लिया और कहा मुझे मंज़ूर है।(तारीख़े कामिल)

चुनान्चे यह यज़ीद जैसे दुश्मने इस्लाम को ख़लीफ़ा बना कर रजब 60 हिजरी में राहीए दार उल बवार हो गया।

(तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 पृष्ठ 33 )

59. यह मुसल्लेमाते तारीख़ी में से है कि माविया के हक़ में कोई एक हदीस भी वारिद न हुई और उसके बिदआत बे शुमार हैं। ततहिरूल जिनान , मौज़ूआते मुल्ला अली क़ारी पृष्ठ 48 व फ़तेहुल बारी में है कि माविया के हक़ में कोई भी ख़बर सही वारिद नहीं यही वजह है कि सही बुख़ारी में उसके लिये कोई बाब नहीं किया गया।

60. मफ़रूदात इमाम राग़िब असफ़हानी में है कि हज़रत अली (अ.स.) ने फ़रमाया था कि माविया के गले में जब तब ईसाईयों की सलीब न पड़ेगी उसे मौत न आयेगी। चुनान्चे आख़री वक़्त नसरानी किरस्टान ने तावीज़े शिफ़ा के नाम से उसके गले में सलीब डाल दी। उसके बाद उसका इन्तेक़ाल हो गया। यक़ीन है कि माविया नसरानी व ईसाई महशूर होगा। क्यों कि यह अली (अ.स.) का दुश्मन और उनको अज़ीयत देने वाला था , और हदीस में है कि ‘‘ मन अज़ी अलीयन बाएस यौमुल क़यामा यहूदिया ’’ जो अली (अ.स.) को अज़ीयत दे गा वह यहूदी या नसरानी मबऊस व महशूर होगा। निसाए काफ़िया , तारीख़ुल खुलफ़ा पृष्ठ 135 में है कि माविया ने चालीस साल हुकूमत की। 77 साल की उम्र पाई और 60 हिजरी में इन्तेक़ाल किया और दमिश्क़ (शाम) में दफ़्न किया गया।(1)

मैं कहता हूँ कि माविया के जुमला अमल व किरदार के नताएज एक तरफ़ और उसका हज़रत अली (अ.स.) और इमाम हसन (अ.स.) का क़त्ल करना एक तरफ़। यक़ीन करना चाहिये कि माविया की बख़्शिश क़तअन दुश्वार नामुम्किन और मोहाल है।

(1). सुना जाता है कि शाम में जिस जगह पर माविया की क़ब्र थी उस जगह चूड़िया बनाने की भट्टी बनी हुई है।

[[अलहम्दो लिल्लाह ये किताबः अबु मोहम्मद हज़रत इमाम हसन (अ.स.) जो कि किताबः चौदह सितारे एक हिस्सा है , पूरी टाईप हो गई खुदा वंदे आलम से दुआगौ हुं कि हमारे इस अमल को कुबुल फरमाऐ और इमाम हुसैन फाउनडेशन को तरक्की इनायत फरमाए कि जिन्होने इस किताब को अपनी साइट (अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क) के लिऐ टाइप कराया। 19-06-2016]]