ज़ालिम हुकूमत के बारे में हज़रत इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम का नज़रया
सुलैमान जाफ़री का कहना हैः मैंने इमामे रज़ा (अ.) से पूछा सितमगर (हारून) जैसे ताग़ूत के लिये काम करने के सिलसिले में आप का क्या नज़रया है ? तो इमामे रज़ा (अ.) ने फ़रमायाः या सुलैमानो , अद्दुख़ूलो फ़ी आमालेहीम वल ओनो लहुम.......... (ऐ सुलैमान) उन के कामों में शरीक होना , उन की मदद करना और उन की ज़रूरीयात को फ़राहम करने में उन का साथ देना और कोशिश करना , कुफ़्र के बराबर और हम पल्ला है और उन की तरफ़ ज़्यादा ग़ौर करना और उन पर भरोसा करना , यह भी गुनाहे कबीरा में से है जिस की सज़ा दोज़ख़ की आग है।
शैख़ तूसीः शैख़ कलीनी और दूसरों ने हलन बिन हुसैन अनबारी (एक शिया) के हवाले से नक़्ल करते हुऐ लिख़ा है कि उन्हों ने कहाः मैंने हज़रत इमामे रज़ा (अ.) को एक ख़त रवाना कर के अपने काम का तरीक़ा बयान करते हुऐ फ़रीज़ा मालूम करना चाहा और लिख़ा मैं हुकूमते अब्बासी के दरबार में मुलाज़िम हूं और मुझे अपनी जान का ख़तरा है , क्यों कि वोह मुझे कहते हैं कि मैं राफ़ज़ी हूं और ख़लीफ़ को भी इस बात का पता चल गया है , इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने ख़त के जवाब में तहरीर फ़रमायाः तुम्हें जो ख़ौफ़ व ख़तरा है उस से बाख़बर हुआ , अगर तुम जानते हो कि जो मुलाज़ेमत तुम ने इख़तियार कर रख़ी है , और काम कर रहे हो , और यह ऐसा काम है जिस की ताकीद व सिफ़ारिश रसूले ख़ुदा ने फ़रमाई है और तुम्हारे इस काम से तुम्हारे हम मसलक शियों की मदद होती है , और तुम्हें जो कुछ नसीब होता है उस से दूसरों की भी मदद होती है , इस तरह कि तुम ख़ुद को उन में से एक क़रार देते हो तो इस तरह के उमूर की अंजाम देही ज़ालिम ओर सितमगर के दरबार में काम करने की बुराई को दूर कर देती है और अगर ऐसा नहीं है तो ज़ालिम व सितमगर के यहां काम करने की इजाज़त नहीं है।
इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम और हारून की हुकूमत का ज़माना
जैसा कि ज़िक्र किया गया है हज़रत इमामे रज़ा (अ.) का दौर 183 हिज्री से शुरू हुआ और 203 हिज्री में ज़हरे तग़ा से शहीद किये जाने के बाद इख़तेताम पज़ीर हुआ , हज़रत ने अपनी इस बीस बरस की मुद्दत को सतराह साल मदीने में और तीन साल मरू में गुज़ारी , हज़रत की इमामत के दस साल हारून रशीद के दौरे हुकूमत व सलतनत में और पांच साल लईन और पांच साल मामून के दौरे ख़िलाफ़त में गुज़ारे।
इमामे रज़ा (अ.) ने अपने वालिदे बुज़ुर्ग वार के बाद अपनी इमामत को ज़ाहिर किया और हारून रशीद के सिलसिले में अपने वालिदे बुज़ुर्ग वार की हिकमते अमली और को जारी रख़ा वह इस दस साला दौर में हारुन रशीद की ईज़ा रसानीयों से महफ़ूज़ न थे।
इमामे रज़ा (अ.) को शहीद करने की हारून की साज़िशः
शैख़ सुदूक़ अपनी सनद के हवाले से नक़्ल करते हैं कि जब हारून रक़्क़ा से जानिबे मक्का रवाना हो रहा था तो ईसा बिन जाफ़र ने उस से कहा याद करो उस क़सम को जो तुम ने ख़ाई थी कि मूसा बिन जाफ़र के बाद आले अबी तालिब में जो कोई भी इमामत का दावा करेगा उस को क़त्ल कर दिया जायेगा और अब मूसा बिन जाफ़र के बेटे अली ने इमामत का दावा कर दिया है और उन के शिया भी उन के सिलसिले में वही अक़ीदा रख़ते हैं जो उन के वालिद के सिलसिले में रख़ते थे हारून ने ग़ज़ब आलूद निगाहों से देखा और कहाः मा तरा तोरीदो अन अक़तोलहुम कुल्लोहुम......... तुम क्या चाहतो हो क्या मैं उन सब को मार डालूं ?
इस रिवायत से पता चलता है कि इमामे मूसा अल काज़िम (अ.) को शहीद करने के बाद हारून रशीद पर किस क़दर अवामी दबाओ था हालां कि जैसा कि पहले ज़िक्र किया गया है उस ने अपनी मंसूबा बंदी के ज़रीये इस तरह ज़ाहिर किया कि इमाम मूसा काज़ीम (अ.) रहलत फ़ितरी थी लेकिन लोगों को हज़रत की शहादत के बारे में पता चल गया और हारून को भी अवाम के बा ख़बर होने से आगाही थी इस लिये दूसरे जुर्म का इरतेकाब नहीं करना चाहता था और यह भी नक़्ल किया जाता है कि जब याहया बिन ख़ालिद बरमकी ने हारून से कहाः यह अली (मूसा बिन जाफ़र) के बेटे हैं जिन्हों ने अपने वालिद की जगह ले रखी है और इमामत का दावा कर रहे हैं (वह हारून को इमामे रज़ा (अ.) के ख़िलाफ़ भड़का रहा था) हारून ने कहाः मा यकफ़ीना मा सनाआना बे अबीहे ? हम ने जो कुछ इन के वालिद के साथ किया और उन्हें क़त्ल कर दिया क्या यह काफ़ी नहीं है ? क्या तुम यह चाहते हो कि हम इन सब को मार डालें ?
शैख़ सुदूक़ इस रिवायत के ज़ैल में कहते हैः बरमकीयों के दिल में ऐहले बैते रसील (स.) की निसबत दिल में बहुत ज़्यादा बुग़्ज़ व हसद था वह ख़ुल कर अपनी दुशमनी का इज़हार किया करते थे। यही वजह थी कि हज़रत इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने अर्फ़े के दिन उन पर लानत भेजी और ख़ुदा ने बरमकीयों की बुनयाद ही ख़त्म कर दी थी और वह ज़लील व ख़्वार हो कर रह गये यही याहया बरमकी था जिसका हाथ इमामे मूसा काज़िम (अ.) की शहादत में था। शैख़ कशी अब्दुल्लाह ताऊस से नक़्ल करते हैं कि उन्हों ने कहाः मैं ने इमामे रज़ा (अ.) से अर्ज़ कियाः क्या याहया बिन ख़ालिद ने आप के वादिल मूसा बिन जाफ़र (अ.) को ज़हर दिया था ? फ़रमायाः हां उसने तीस अदद ज़हर आलूद ख़ुरमे उन्हें दी थीं।
हारून उन से 189 हिज्री में बदज़न हुआ , उन के इक़तेदार के ख़िलाफ़ हो कर उन पर टूट पड़ा और उन की बुनियादों को उख़ाड़ फ़ेका।
हारून रशीद ने इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम को बुलाया मगर
सैय्यद इब्ने ताऊस हज़रत इमामे रज़ा (अ.) के हवाले से दुआ को नक़्ल करते हुऐ कहते हैः अबा सलत हरवी के हवाले से नक़्ल किया गया है कि उन्हों ने कहाः हज़रत इमामे रज़ा (अ.) अपने घर में बेठे हुऐ थे कि हारून रशीद का क़ासिद आया और बोला ऐ अबा सलत हारून रशीद ने इस वक़्त मुझे बुलाया है उस का मक़सद मुझे नुक़सान पहुंचाना है। लेकिन ख़ुदा की क़सम वह मुझे नुक़सान नहीं पहुंचा सकता और ऐसी हरकत अंजाम नहीं दे सकता जो मुझे न पसंद हो क्यों कि मेरे जद्दे आला की दुआऐं मेरे साथ हैं जो उन्हों ने मेरे हक़ में की थीं।
अबा सलत का कहना हैः मैं हज़रत के साथ ही था और हम लोग हारून रशीद के पास हाज़िर हुऐ हज़रत इमामे रज़ा (अ.) हारून की तरफ़ देखा और वह दुआ जो नहजुल दावात में तफ़सील से मौजूद है पढ़ी , जब हारून रशीद के रुबरु हुऐ तो हारून ने हज़रत की तरफ़ देखा और बोलाः ऐ अबुल हसन मैंने हुक्म दिया है कि आप को एक लाख़ दिरहम दिये जायें आप अपने ऐहले ख़ाना की ज़रूरीयात को तहरीर कर दें और जब हज़रत वहां से निकलने लगे तो हारून ने हज़रत की तरफ़ देखा और बोलाः अरदतो व अरादल्लाहो , वमा अदारल्लाहो ख़ैरुन
मुझे क्या करना था और क्या किया और ख़ुदा ने कुछ और ही चाहा था और जो कुछ ख़ुदा चाहता है अच्छा ही होता है।
हारून मुझे कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकता
कई रिवायतों से पता चलता है कि इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः हारून मुझे कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकता।
1- शैख़ कलीनी अपनी सनद के हवाले से सफ़वान बिन याहया से नक़्ल करते हैं कि जब मूसा बिन जाफ़र (अ.) का इंतेक़ाल हो गया तब इमामे रज़ा (अ.) ने अपनी इमामत के सिलसिले में बात उठाई हमें हज़रत के सिलसिले में ख़ौफ़ लाहक़ था लिहाज़ा हज़रत से अर्ज़ किया गया कि आज आप ने बहुंत बडा क़दम उठाया है और हमें इस ज़ालिह सितमगर बादशाह की तरफ़ से डर मेहसूस हो रहा है हज़रत ने फ़रमायाः वह जितनी ही चाहे कोशिश कर ले मुझ तक उस की रसाई नहीं हो सकती (वह मुझे कोई नुक़सान नहीं पहुंचा सकता है)
अल काफ़ी मुतरजिम 2/404 , हाशिया अल मुनाक़िब 4/340 , कशफ़ुल ग़िमा 2/273 , 315 , अल इर्शाद 2/2246 , अल बिहार 49/115 , हाशिया 6 , अल फ़ुसूलुल महिम्मा 247 ,
2- एक दूसरी रिवायत में मज़कूर है कि मुहम्मद बिन सना कहते हैं हारून रशीद के दौराने ख़िलाफ़त मैंने इमामे रज़ा (अ.) से अर्ज़ किया आप ने अम्रे इमामत में ख़ुद को मशहूर कर दिया है और अपने पिदरे बुज़ुर्ग वार की जगह हासिल कर ली है व कैफ़ा हारूना यक़तोरुद दमा जब कि हारून की तलवार से ख़ून टपक रहा है। यानी हमें डर है कि कहीं हारून आप को भी न क़त्ल कर डाले। हज़रत ने फ़रमायाः जिस बात ने मुझे निडर बना दिया है वह रसूले ख़ुदा का वह क़ौल है जिसमें उन्हों ने यह फ़रमाया है कि अगर अबू जहल मेंरे जिस्म के रुऐं को भी नुक़सान पहुंचाने में कामयाब हो गया तो जान लेना कि मैं पैग़म्बर नहीं हूं , और मैं तुम्हे कहता हूं किः इन अख़ाज़ा हारूनो मिन रासी शअरतन फ़शहदू इन्नी लसतो बे इमामिन (अगर हारून ने मेरे सर का एक बाल भी बांका कर दिया तो तुम गवाह रहना कि मैं इमाम नहीं रहूंगा)
हारून रशीद के दौरे ख़िलाफ़त में इमाम मुशकिलों में घिरे थे
शैख़ सुदूक़ और दूसरों ने एहमद बिन मुहम्मद बिन अबी नस्र बज़नती से नक़्ल करते हुऐ लिखा है कि मैं इमामे मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद हज़रत रज़ा (अ.) की इमामत में वाक़फ़िया गिरोह के ग़लत प्रोपोगंडे की वजह से शक में पड़ गया , मैंने हज़रत को एक ख़त तहरीर किया और मुलाक़ात करने की इजाज़त तलब की फ़िर मैंने अपने ज़हन में तीन सवाल तैयार किये ताकि हज़रत से तीन आयतों के बारे में पूछूंगा हज़रत की तरफ़ से ख़त का जवाब आया जिस में उन्हों ने तहरीर फ़रमाया था ख़ुदा वन्दे आलम हमें और तुम्हें आफ़ीयत अता फ़रमाऐ।
अम्मा मा तलबता मिनल इज़ने अलय्या , फ़इन्नद दुख़ूला एलय्या साबुन.........
और मेरे पास आने और मुलाक़ात करने की तरख़ास से बारे में तुम्हें बता दूं कि फ़िलहाल मेरे पास आना मुशकिल अम्र होगा क्यों कि लोगों से मनुलाक़ात करने के सिलसिले में हारून के सितमगर दरबार की तरफ़ से मुझ पर सख़तियां और पाबंदियां आएद की जा रही हैं और मुसतक़बिल में अगर ख़ुदा ने चाहा तो यह परेशानियां ख़त्म हो जाऐंगी।
बज़नती का कहना हैः इसी ख़त में मेरे सवालों का जवाब भी दे दिया जबकि ख़ुदा की क़सम मैंने अपने मजूज़ा सवालों को उन के पास लिख कर भी नहीं भेजा था , मैंने इस बात पर हैरत का इज़हार किया और फ़िर हज़रत की हक़्क़ानियत के सिलसिले में मेरा शक व शुबह दूर हो गया।
मज़कूरा रिवायत से पता चलता है कि इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम को उन के वालिद की शहादत के बाद नज़र बन्द रखा गया था और उन लोगों पर जो हज़रत से मुलाक़ात करने आया करते थे मुहाफ़ीज़ों के ज़रीये कड़ी नज़र रखी जाती थी और उन्हें तरह तरह से सताया जाता था।
अमीन के दौरे ख़िलाफ़त में इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम
हारून रशीद लानतुल्लाह अलैह ने ज़ुबेदा के बतन से पैदा होने वाले अपने बड़े बेटे अमीन को अपना वली एहद मुक़र्र कर के अपनी ज़िनदगी में ही लोगों से उस के लिये बेअत करा ली थी और अब्दुल्लाह मामून को जो कि ईरानी कनीज़ मेराजिल के बतन से दूसरा बेटा था अपना दूसरा जानशीन वली एहद मुक़र्र किया।
उस के बाद हारून 193 , हिज्री में अपने बेटे मामून के साथ ख़ुरासान रवाना हो गया ताकि वहां मुख़ालेफ़ीन को सरकूब कर सके और सरअंजाम उसी साल वहीं पर चल बसा और ख़ुरासान में दफ़्न कर दिया गया मसऊदी का कहना है , कि जब वह मरा तो उसकी उम्र 44 साल और 4 महीने थी उसने तीस साल छे महीने ख़िलाफ़त की , लेकिन याक़ूबी का कहना है उसकी मौत जमादीउल अव्वल 193 में चासील साल की उम्र में हुई।
इस मुद्दत के दौरान अमीन से इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम को कोई नुक़सान नहीं नहीं पहुंचा वह मदीने में आज़ाद थे। उन्हें शागिर्दों की तरबियत का बहतरीन मोक़ा मिल गया और शियों के उमूर की देख भाल की।
इमामे रज़ा (अ.) ने फ़रमाया मामून अमीन का क़त्ल करेगा
शैख़ सुदूक़ने हुसैन बिन बशार के हवाले से नक़्ल किया है कि उन्हों ने कहा कि हज़रत इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया यक़ीन जानो कि अब्दुल्लाह मुहम्मद का क़त्ल करेगा , मैंने हज़रत से अर्ज़ किया क्या हारून का बेटा मुहम्मद बिन हारून को मार डालेगा ? फ़रमायाः हां अब्दुल्लाह जो कि ख़ुरासान में है बग़दाद में मौजूद मुहम्मद बिन ज़ुबेदा का क़त्ल कर देगा (इमामे रज़ा के इस इर्शाद के बाद) पता चला कि अब्दुल्लाह ने मुहम्मद अमीन का क़त्ल कर दिया।
मामून के ज़माने में इमामे रज़ा अलैहिस्साम
अब्बादुल्लाह ने अपने भाई मुहम्मद अमीन का क़त्ल 198 हिज्री में किया था और ख़ुद ख़ुरासान में सातवें अब्बासी ख़लीफ़ा के उनवान से ख़ुरासान में तख़्त नशीन हुआ , लेकिन उसे अपनी हुकूमत का दवाम परेशान किये हुऐ था।
एकः- इमाम के पैरो कारों और अलवियों ने उसे तसलीम नहीं किया था और कुछ इलाक़ों में तो ऐलानिया मुख़ालेफ़त भी हो रही थी।
दोः- अब्बासी भी मामून के ख़िलाफ़ थे क्यों कि उसने अपने भाई अमीन का सर क़लम कर के नेज़े पर बुलन्द किया था जबकि अब्बासी , अमीन को ही अपना वलीएहद मानते थे और ज़ुबेदा के बेटे अमीन को जिस की मां अब्बासीयों में मशहूर थी , मामून पर फ़ौक़ीयत देते थे।
तीनः- अरब लोग भी अपने अरबी ताअस्सुब की वजह से मामून की ज़ेरे क़यादत जाने को तैयार नहीं थे क्योंकि वह देख रहे थे कि मामून ईरानीयों के ज़्यादा क़रीब आ गया है और उसका मुरब्बी और मोअल्लिम फ़ज़्ल बिन सहल बन गया है जोकि ईरानी है और वह मामून के दरबार में वज़ीरे आज़म और साथ में फ़ौज का कमांडर भी है।
चारः- ईरानी लोग ख़ास तौर पर ख़ुरासान के लोग ऐहले बैत अलैहिमुस्सलाम के शैदा और दोस्त थे जबकि मामून ख़ानदाने ऐहले बैत अलैहिमुस्सलाम का दुशमन और शदीद मुख़ालिफ़ था , इस लिये अवाम के दौरान कोई मक़बुलियत और मक़ाम व मंज़िलत हासिल नहीं कर सकता था , यह अम्र और दूसरे उमूर सबब बने कि मामून कोई रास्ता निकाले उसकी नज़र में बहतरीन रास्ता यही नज़र आया कि हज़रत इमामे रज़ा (अ.) को मदीने से बुलाऐ ताकि शियों और ख़ास कर अलवियों की तवज्जोह को मरकज़े ख़िलाफ़त की जानिब मबज़ूल कराऐ।
दूसरी बात जिसका ज़िक्र ज़रूरी है यह है कि हालांकि मामून यह दिखावा किया करता था कि वह इमामे रज़ा (अ.) का चाहने वाला और उन शिया है , इसी लिये हज़रत इमामे रज़ा (अ.) को अपनी ख़िलाफ़त और वलीएहदी की तजवीज़ भी पैश की लेकिन हक़ीक़त यह है कि इन सब का मक़सद उवामुन नास , ख़ुसूसन ऐहले बैत अलैहिमुस्सलाम के मानने वालों की तवज्जोह को अपनी जानिब कराना था। क्यों कि मामून के तारीख़ी वाक़ेआत इस बात की निशान देही करते हैं कि यह सब कारावाईयां दिखावे की थीं , वह मामून जिस ने ख़िलाफ़त व सलतनत को दांतो से पकड़ रखा हो और उसी ज़िम्न में अमीन को मौत के घाट उतार दिया हो , और उसका सर क़लम कर के नोके नेज़ा पर बुलन्द किया हो ताकि दूसरे लोग इबरत हासिल करें वह लोगों को हुक्म देता है कि अमीन पर लानत भेजें , ऐसा आदमी क्यों कर ख़िलाफ़ इमामे रज़ा (अ.) के हवाले कर देता ?
जी हां मामून एक सियासी आदमी था वह ख़ुद को शिया ज़ाहिर करता था , इसी लिये मरहूम अरबली जैसे कुछ दानिशवरों ने मामून के हाथों इमामे रज़ा (अ.) की शहादत को बईद क़रार देते हुऐ इस बाबत इंकार किया है और शैख़ मुफ़ीद की राय पर नुकता चीनी भी की है जिसे हम बाद में बयान करेंगे।
मामून की इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम को दावत
मामून अपने मक़सद को हासिल करने की ख़ातिर इमामे रज़ा (अ.) को दावत देकर ज़्यादा ही बुलाया करता लेकिन इमामे रज़ा (अ.) क़बूल नहीं फ़रमाते थे लेकिन मामून भी पीछा छोड़ने वालों में से नहीं था सरअंजान इमाम अलैहिस्सलाम ख़ुरासान की जानिब रवाना होते हैं।
मसऊदी ने लिखा है मामून ने दूसरी मर्तबा इमाम (अ.) को ख़त लिखा और उन्हें क़सम दी कि ख़ुरासान के लिये निकल पड़ें मामून ने अपने आदमियों को हुक्म दिया कि रजा बिन अबी ज़ह्हाक की सरबराही में एक दस्ता इमाम (अ.) को बसरा ऐहवाज़ और फ़ारस होते हुऐ ख़ुरासान लेकर आयेगा।
मामून का मक़सद यह था कि इमाम (अ.) कूफ़ा और क़ुम जैसे शिया बाशिनदेगाम वाले शहरों से उबूर न करें क्यों कि उसे यह ख़ौफ़ लाहक़ था कि लोग इन शहरों में इमाम का वालेहाना और पुर जौश ख़ैर मक़दम करेंगे और हो सकता है कि इन के साथ शामिल हो कर उस के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दें।
मदीना छोड़ते वक़्त क़बरे पैग़म्बर पर हाज़री
मदीना छोड़ कर ख़ुरासान की जानिब रवाना होने के मोक़े पर इमाम रज़ा (अ.) के ग़मो अनदोह का कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता था।
1- शैख़ सुदूक़ ने अपनी सनद में महहूल सजिसतानी से नक़्ल करते हुऐ लिखा है कि उन्हों ने कहाः जब हज़रत को मदीने से ख़ुरासान की जानिब तलब किया गया तब मैं वहीं पर मोजूद था हज़रत मस्जिदे नबवी में दाख़िल हुऐ ताकि अपने जद्दे अमजद रसूले अकरम (स.) को अलविदा कहें उन्हों ने कई मर्तबा ख़ुदा हाफ़िज़ी की और हर मर्तबा क़बरे रसूल (स.) की तरफ़ जाते और व यालू सोतहू बिल बुकाऐ वन नहीबे हर मर्तबा उन के गिरया करने की आवाज़ बुलन्द हो जाया करती थी मैं हज़रत की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और सलाम किया उन्हों ने सलाम का जवाब दिया मैंने हज़रत के दौराऐ ख़ुरासान पर मुबारक बाद पैश की।
फ़क़ाला ज़रनी (ज़ुरनी) फ़इन्नी उख़रजो मिन जवारे जद्दी...........................
फ़रमाया मुझे अकेला छोड़ दो , और फ़रमायाः मुझ से मुलाक़ात करो , यह सच है कि मुझे अपने जद्दे बुज़ुर्गवार की सरज़मीन से लेजाया जा रहा है और मैं दयारे ग़ैर में दुनिया से रुख़सत हुंगा और हारून की बग़ल में दफ़्न हुंगा।
रावी कहता हैः मैं भी हज़रत के साथ चल पड़ा और उस वक़्त तक साथ रहा जब हज़रत ने इस दारे फ़ानी को विदा किया और तूस में हारून की बग़ल में सुपुर्दे ख़ाक हुऐ।
मेरे लिये गिरया व ज़ारी करो
वह हसन बिन अली व शाए के हवाले से यह भी नक़्ल करते हैः कि उन्हों ने कहा इमामे रज़ा (अ.) ने मुझ से फ़रमाया जब मुझे मदीने से ख़ुरासान ले जाना चाहते थे तब मैंने अपने ऐहले ख़ाना को बुला कर कहाः जमाअतो अयाली फ़अमरतोहुम अन यबकू.................. मैंने अपने घर वालों को बुला कर कहा मेरे लिये इस क़दर रोयें ताकि मैं सुन सकूं फ़िर उन के दर्मियान बारह हज़ार दीनार तक़सीम किये और कहाः अम्मा इन्नी ला अरजेओ इला ऐयालेही अबादा (जान लो कि अब मैं अपने घर वालों की तरफ़ हर गिज़ लोट करर नहीं आ सकता) जी हां इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया मुझ पर गिरया व ज़ारी करो लेकिन जब आप के मज़लूम जद्दे आला इमामे हुसैन (अ.) अपने जवान बेटे के सरहाने तशरीफ़ लाऐ और .....सुना कि औरतें गिरया व ज़ारी कर रही हैं तो जाकर उन को चुप किया और फ़रमायाः उसकुतना फ़इन्नल बुकाआ अमामाकुन्ना (चुप हो जाओ कि अभी रोना बाक़ी है) और दूसरी जगह अपनी लख़ते जीगर सकीना से फ़रमाया मेरी बच्ची अपने आसूओं से अपने बाप का सीना छलनी न करो।
(मसाऐबुल ओलिया 1/399)
ख़ाना-ए-काबा के आख़री दीदार के मोक़े पर बाप का ख़ुदा हाफ़िज़ी और रुख़सत के वक़्त इमामे जवाद अलैहिस्सलाम का रद्दे अमल
मसऊदी और मरहूम अरबली उमय्या बिन अली के हवाले से नक़्ल करते हैं कि उन्हों ने कहा उसी साल जब हज़रत ख़ुरासान के लिये रवाना हुऐ मैं हज के मोक़े पर हज़रत के साथ मौजूद था , उस वक़्त इमामे रज़ा (अ.) के साथ उन के फ़र्ज़नद इमामे जवाद भी हाज़िर थे , हज़रत ने ख़ाना-ए-काबा से ख़ुदा हाफ़िज़ी की तवाफ़ किया और मक़ामे इब्राहीम में नमाज़ अदा की और इमामे जवाद अलैहिस्सलाम ख़ादिम के दौश पर थे और वह भी तवाफ़ कर रहे थे , उसके बाद इमाम (अ.) हुज्र-ए-इसमाईल के पास आये , वहां बेठे और ज़्यादा देर तक बेठे रहे। खादिम ने अर्ज़ किया मेरी जान आप पर क़ुर्बान हो आप ऊठ जाईये फ़रमाया मैं यहां से तब तक ऊठना नही चाहता जब तक कि ख़ुदा न चाहे , उस वक़्त हज़रत के चेहरे पर रंज व ग़म के आसार नुमायां थे। (व असतबाना फ़ी वजहिल ग़म) ख़ादिम हज़रत के पास आऐ और अर्ज़ किया आप पर फ़िदा हो जाऊं अबू जाफ़र (अ.) हुज्र-ए-इसमाईल में बेठे हैं और वहां से उठ नहीं रहे हैं इमामे रज़ा (अ.) अपनी जगह से उठे और फ़र्ज़नद की तरफ़ आये और फ़रमायाः ऐ मेरे हबीब उठ जाओ (क़ाला कैफ़ा अक़ूमो व क़द वद्दअतल बैता........ ) अर्ज़ किया में केसे यहां से उठ जाऊं जब कि आप ने ऐसी हालत में ख़ाना-ए-काबा से ख़ुदा हाफ़िज़ी की और अलविदा किया कि अब दोबारह लोट कर नहीं आयेंगे।
फ़िर इमाम (अ.) ने फ़रमाया मेरे हबीब उठ ख़ड़े हों और हज़रत जवाद अलैहिस्सलाम वालिद की इताअत में उठ ख़ड़े हुऐ।
इमामे जवाद अलैहिस्सलाम को रसूले ख़ुदा (स.) के हवाले किया गया
मसऊदी ने लिखा है कि जब इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपने ऐहलो अयाल से फ़रमाया कि मुझ पर गिरया व ज़ारी करो उसके बाद इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को मस्जिदुन नबी में लेकर आये उनका हाथ क़ब्रे रसूल (स.) पर रखा और ख़ुद को क़ब्रे रसूल (स.) पर गिरा दिया और पैग़म्बरे इस्लाम से दरख़ास्त की कि इमामे जवाद (अ.) की हिफ़ाज़त फ़रमायें इमाम मुहम्मद तक़ी ने अपने वालिद से अर्ज़ किया ऐ बाबा जान ख़ुदा की क़सम आप अपने रब की तरफ़ जा रहे हैं इमाम रज़ा (अ.) ने अपने सभी वकीलों को हुक्म दिया कि इमामे मुहम्मद तक़ी (अ.) का हुक्म मानें आप ने फ़रमाया इन की इताअत करें और इन की मुख़ालेफ़त न करें अपने भरोसे के शियों की मौजूदगी में हज़रत ने इमामे मुहम्मद तक़ी की इमामत और अपनी जानशिनी का ऐलान फ़रमाया। उसके बाद जैसा कि मामून ने हुक्म जारी किया था बरसा के रास्ते ख़ुरासान के लिये रवाना हुऐ।
मर्व की जानिब इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम की रवानगी और क़ुम आमद
बहर हाल इमाम (अ.) ने मामून के बहुत ज़्यादा इसरार और दबाओ में आकर मदीने से मर्व की तरफ़ रवानगी फ़रमाई। मरहुम सुदूक़ और कलीनी ने जो रिवायत नक़्ल की है उस से पता चलता है कि इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम का मक़सद सफ़र और हरकते बसरा ऐहवाज़ और फ़ारस होते हुऐ नीशापूर था लेकिन सैय्यद अब्दुल करीम बिन ताऊस मुतवफ़्फ़ी 693 हिज्री क़म्री ने फ़रहातुल ग़रा में नक़्ल किया है इमामे रज़ा (अ.) शहरे क़ुम में दाख़िल हुऐ और क़ुम के लोगों ने आप का वालेहाना इसतक़बाल किया हर कोई यह चाहता था कि इमामे रज़ा (अ.) उन के मेहमान बनें मगर हज़रत ने फ़रमाया मेरा नाक़ा यह ज़िम्मेदारी अंजाम देगा वह जहां रहेगा में वहां क़याम करूंगा फ़िर हुआ यह कि नाक़ा एक घर के दरवाज़े पर आकर रुका और वहीं बेठ गया उस घर के मालिक ने एक दिन पहले रात में ख़्वाब देखा था कि हज़रत इमामे रज़ा (अ.) कल उसके मेहमान होंगे फ़िर क्या था देखते ही देखते वह जगह अज़ीम व शान ज़ियारत गाह बन गई और मरहूम मोहद्दिस क़ुम्मी का कहना है कि वह जगह हमारे ज़माने में एक आबाद जगह और मदरसा बन गई।
अलबत्ता मरहूम सुदूक़ और कलीनी ने लिखा है कि मामून ने इमामे रज़ा (अ.) से कहा था कि जबल और क़ुम के रास्ते से सफ़र न करें।
इमामे रज़ा (अ.) निशापूर में दाख़िल हुऐ और वहां लोगों ने उन का पुर जोश ख़ैर मक़दम किया इस जगह के आलिमों ने इमामे रज़ा (अ.) से हदीस नक़्ल करने की दरख़ास्त की और इमाम (अ.) ने भी उन की दरख़ास्त के जवाब में सिलसिलातुज़ ज़हब की हदीस बयान फ़रमाई जो कि किताबे अरबाईन ओलिया में दर्ज है।
तारीख़े याक़ूबी में भी ज़िक्र है कि हज़रत को बसरा के रास्ते लाया गया और वह मर्व में दाख़िल हुऐ और किताब के ज़मीमे में ज़िक्र है कि हमेदान व क़ुम को बसरा का और कूफ़े का रास्ता कहा जाता है।
यह जगह मेरा मदफ़न है
शैख़ सुदूक़ अबासलत हरवी के हवाले से नक़्ल करते हैं कि उन्हों ने कहा कि उस के बाद हज़रत सनाबाद में हमीद बिन क़हतबह ताई (तूसी) के घर में दाख़िल हुऐ और वहां गऐ जहां हारून रशीद मक़बरे में दफ़न हुआ था , सुम्मा ख़त्ता बेयदेही इला जानिबे............
(उस के बाद उस क़ब्र के पास निशान खींना और फ़रमाया यह मिट्टी मेरी क़ब्र की है और इस में मैं दफ़्न हुंगा)
और बहुत जल्द ख़ुदा वन्दे आलम मेरे शियों और चाहने वालों के लिये आमदो रफ़्त का मक़ाम क़रार देगा ख़ुदा की क़सम जो वहां ज़ियारत को आयेगा ख़ानदाने रिसालत की तरफ़ से शिफ़ाअत और ग़ुफ़राने इलाही की सिफ़ारिश के बग़ैर वापस नहीं जा सकता।
मदीना-ए-मुनव्वरा से इमामे रज़ा (अ.) की हिजरत की बरकतें
इमामे रज़ा (अ.) अपने जद्दे बुज़ुर्गवार नबी-ए-करीम (स.) की मरक़द से अलग होने पर ख़ुश नहीं थे मगर हज़रत की ईरान आमद से बहुत सी बरकतें वुजूद में आईं।
पहलीः- हज़रत के खुरासान आमद से वसी पैमाने पर सक़ाफ़ती सियासी और समाजी आसार और हक़ की तोसीअ अमल में आई।
दूसरीः- मामून ख़ुद को शिया क़रार देता था उस ने इमामे रज़ा (अ.) के लिये बहुत सी इल्मी इजतेमाआत तशकील दिये और इमाम (अ.) ने दूसरे मज़ाहिब के उलेमा और काबेरीन से मुनाज़ेरात अंजाम दिये और हक़ वाज़ह करने के साथ शिया अक़ीदे की ख़ुसूसीयात को भी उजागर किया।
तीसरीः- इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ख़ुरासान में रौशन ज़िन्दगी ने मामून के चहरे को बरमला कर दिया , इमाम (अ.) की निसबत उसका जो ज़ालिमाना रवय्या था वह खुल कर ज़ाहिर हो गया। मामून ने इमाम (अ.) की इलमी बहस और मुनाज़ेरों की नशिस्त को बंद कर दिया , हज़रत को ईद की नमाज़ में शरीक होने से भी रोक दिया और सर अंजाम इमामे रज़ा (अ.) की शहादत ने इमाम को ज़लील व ख़्वार कर के रख दिया।
बहरहाल जो बरकतें रसूले ख़ुदा (स.) की मदीने की जानिब हिजरते इमामे हसन अलैहिस्सलाम की सुल्ह ने ज़ाहिर की इमामे रज़ा (अ.) की हिजरत ने भी वही बरकत ज़ाहिर की।
ख़िलाफ़त और वली ऐहदी सोंपने का वाक़ेआ
शैख़ सुदूक़ और दूसरों ने अबासलत हरवी के हवाले से नक़्ल किया है कि उन्हों ने कहा मामून ने इमाम अली बिन मूला रज़ा से अर्ज़ किया है ऐ फ़रज़न्दे रसूले ख़ुदा मेने आप की फ़ज़ीलत और इल्म व तक़वे इबातद को भी और ज़ोहद व पारसाई को देखते हुऐ कि आप मुझ से ज़्यादा अफ़ज़ल हैं और ख़िलाफ़त के हक़दार भी हैं इमाम ने फ़रमाया ख़ुदा की इबादत पर फ़ख़्र करता हूं और दुनिया में ज़ोहद इख़तियार कर के उस के अज़ाब से निजात की उम्मीद रखता हूं और इलाही हराम करदा चीज़ों से परहेज़ करते हुऐ ख़ुदा की अता करदा दौलत व नेमत और अल्लाह से कामयाबी की उम्मीद रखता हूं औऱ दुनिया में तवाज़ा की वजह से ख़ुदा वन्दे आलम के क़रीब आला व अरफ़ा मक़ाम व मंज़िलत का तलबगार हूं।
मामून ने कहा मैं ख़ुद को तख़ते ख़िलाफ़त से हटा कर आरप को ख़लीफ़ा मुक़र्र करना चाहता हूं और आप की बेअत करना चाहता हूं। फ़ क़ाला लहुर रज़ा इन कानत हाज़ेहिल ख़िलाफ़तो...
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उस से फ़रमाया अगर यह ख़िलाफ़त तुम्हारा हक़ है और ख़ुदा ने इस को तुम्हारे लिये क़रार दिया है तो जाइज़ नहीं है कि जो लिबास ख़ुदा ने तुम्हारे बदन पर क़रार दिया है उस को उतारो और किसी दूसरे को पहनाओ और अगर यह ख़िलाफ़त तुम्हारे लिये नहीं है तो तुम्हारे लिये यह जाइज़ नहीं है कि वह चीज़ मेरे लिये क़रार दो जो तुम्हारे लिये नहीं है।
मामून ने कहा ऐ फ़रज़न्दे रसूल (स.) ख़ुद आप के पास इस को क़बूल करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है आप को क़बूल करना है होगा इमाम ने फ़रमाया मैं दिली तौर पर हरगिज़ यह तजवीज़ क़बूल करने पर रज़ा मंद नहीं हूं।
मामून कुछ अर्से तक इमाम से दरख़ास्त करता रहा और दबाव डालता रहा लेकिन इमाम (अ.) के बारहा इंकार के बाद मामून मायूस हो गया तो बोला अगर ख़िलाफ़त क़बूल नहीं करेंगे और मेरी बेअत भी पसन्द नहीं है तो फ़िर आप मेरे वलीऐहद बन जाईये।
फ़ क़ालर्रज़ा वल्लाहे लक़द हद्दासनी अबी अन अबाऐही अन अमीरुल मोमिनीन..................
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः ख़ुदा की क़सम मेरे वालिद ने अपने आबा व अजदाद और उन्हों ने अमीरुल मोमिनीन और उन्हों ने रसूले ख़ुदा (स.) के हवाले से नक़्ल किया है कि उन्हों ने फ़रमाया यह बात यक़ीनी है कि मैं तुम से पहले मज़लूमाना तर्ज़ पर ज़हरे जफ़ा से क़त्ल किया जाऊंगा और इस दारे फ़ानी को अलविदा कहूंगा ऐसी हालत में कि आसमान और ज़मीन के फ़रिशते मुझ पर गिरया करेंगे दयारे ग़ैर में हारून रशीद की बग़ल में दफ़्न किया जाऊंगा।
मामून ने गिरया किया और कहा ऐ फ़रज़न्दे रसूले ख़ुदा (स.) आप को कौन क़त्ल करेगा या कोई नुक़सान पहुंचाने की गुसताख़ी करेगा जब कि मैं ज़िन्दा हूं फ़रमाया जब बताना होगा तो बताऊंगा कि कौन मुझे क़त्ल करेगा।
मामून ने कहा आप अपनी बातों से मेरी वलीऐहदी क़बूल करना नहीं चाहते ताकि लोग यह कहें कि आप ज़ाहिद हैं और इस दुनिया को तर्क कर दिया है।
इमाम ने फ़रमाया ख़ुदा की क़सम जब से उस पर्वरदिगार ने मुझे पैदा किया है मैंने कभी झूट नहीं बोला है और इस दुनिया में दुनिया के लिये ज़ोहद इख़तियार नहीं किया है और तुम्हारे इस मक़सद और ग़र्ज़ व ग़ायत से मैं बख़ूबी वाक़िफ़ हूं।
मामून ने कहा मेरा मक़सद किया है फ़रमाया क्या मैं अमान में हूं कहा हां आप अमान में हैं फ़रमाया तुम्हारा मक़सद यह है कि लोग यह न कहें कि अली बिन मूसा रज़ा ने दुनिया तर्क कर दी है बल्कि दुनिया ने इन को छोड़ दिया है क्या देखते नहीं कि दुनिया के लालच में आकर ख़िलाफ़त तक रसाई पाने की खातिर वलीऐहदी क़बूल कर ली है।
मामून हज़रत की बातें सुन कर ग़ज़ब नाक हो गया और बोला आप मुसलसल ऐसी बातें किये जा रहे हैं जो मुझे बिलकुल पसन्द नहीं है आप मेरी ताक़त व सलतनत में अमान में हैं ता हम अगर मेरी वीलऐहदी की तजवीज़ को नहीं माना तो गर्दन उड़ा दूंगा .........अबुल फ़रज भी लिखते हैं मामून ने इमाम को धमकाया और कहा अगर क़बूल नहीं किया तो मारे जायेंगे।
हज़रत इमाम रज़ा (अ.) वलीऐहदी क़बूल करने से कराहियत मेहसूस करते थे लेकिन क़बूल करने पर मजबूर हुऐ अलबत्ता क़बूल करने में भी बरकतें शमिल थीं।
शैख़ सुदूक़ और दूसरों ने रय्यान रे हवाले से नक़्ल किया है उन्हों ने कहा है मैं ने हज़रत रज़ा (अ.) से अर्ज़ किया ऐ फ़रज़न्दे रसूले ख़ुदा लोग यह कह रहे हैं कि आप ने ऐसी हालत में वलीऐहदी का ओहदा क़बूल किया जब कि आप ज़ोहद व तर्के दुनिया की बातें करते हैं इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः बे शक ख़ुदा वन्दे आलम इस बाबत मेरी अदमे रिज़ाईयत से आगाही रखता है जब कि उस को क़बूल करने और क़त्ल कर दिये जाने के दर्मियान पाया तब मैं ने इस को कबूल कर लिया।
इस सिलसिले में रिवायतें बहुत ज़्यादा पाई जाती हैं मिन जुमला यह रिवायत कि यासिर नक़्न करते हैं कि जब हज़रत ने वलीऐहदी का मंसब क़बूल कर लिया तो मैं ने हज़रत को जानिबे आसमान दोनों हाथ बुलन्द कर के यह अर्ज़ करते हुऐ सुना ख़ुदा वन्द तू बख़ुबी जानता है कि मैं इस सिलसिले में किस क़दर मजबूर और लाचार था इस लिये इस सिलसिले में मुझ से बाज़पुर्स मत करना। इसी तरह जिस तरह तूने अपने पैग़म्बर युसूफ़ से मिस्र की वलीऐहदी क़बूल कर लेने के बाद बाज़ पुर्सी नहीं की।
वलीऐहदी क़बूल करने की शर्तें
जैसा कि ज़िक्र किया गया जब इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को इन हालात का सामना करना पड़ा तो मामून लानतुल्लाह अलैह की ज़ोर ज़बरदस्ती और दबाओ में आकर फ़रमायाः मैं इस शर्त पर वलीऐहद बनुंगा कि किसी काम में अम्र व नहीं , नहीं करूंगा क़ज़ावत नहीं करूंगा किसी चीज़ की तबदीली नहीं करूंगा। दूसरी रिवायतों में यह आया है कि किसी को भी काम से बरख़ास्त नहीं करूंगा या काम पर नहीं रखूंगा फ़तवा नहीं दूंगा बल्कि दूर रह कर मशवेरत का काम अंजाम दूंगा मुझे इन सभी उमूर से दूर रखा जाये मामून ने भी इमाम (अ.) की सभी शर्तों को मान लिया।
यह वाक़ेआ पांच रमज़ान सन 201 हिज्री में रोनुमा हुआ।
और याक़ूबी का कहना है मामून ने पीर के रौज़ सात रमज़ान सन 201 हिज्री में ख़ुद के बाद हज़रत की वलीऐहदी पर मबनी बेअत अंजाम दी।
शैख़ मुफ़ीद अरबली और तबरसी रहमतुल्लाह अलैह ने लिखा है कि फ़िर मामून ने हज़रत इमामे रज़ा (अ.) से अर्ज़ किया आप लोगों से हम कलाम हों , इमाम ने पहले तो ख़ुदा की हम्दो सना की फिर फ़रमायाः इन्ना लना अलैकुम हक़्क़न बेरसूल अल्लाह व लकुम अलैना हक़्क़ा बेही......................................
मामून का ज़ाहिरी दिखावा तुम्हें धोका न दे
जी हां मामून का ज़ाहिरी तौर पर मंसूबा यह था कि इमाम का दिखावे के लिये अहतेराम तो किया जाये इसी लिये मुख़तलिफ़ मज़हबों के आलिमों में इमाम के लिये बेहस व मुबाहेसा और मुनाज़ेरे के इजतेमाआत मुनअक़िद करता और इमामे रज़ा (अ.) भी उन्हीं की आसमानी किताबों की रौशनी में उन से बात करते और उन पर ग़लबा हासिल किया करते थे , उसने हज़रत को अपना वलीऐहद तो क़रार दिया था लेकिन हक़ीक़त में यह सिर्फ़ एक सियासी चाल थी और हक़ीक़त से कोसों दूर भी मंदरजा ज़ैल रिवायतों पर ग़ौर फ़रमायें।
शैख़ सुदूक़ हसन बिन जहेम के हवाले से लिखते हैं कि उन्हों ने एक तवील रिवायत के ज़िम्न में कहा है कि इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने जब उलेमा के लिये दलीलें पैश कीं और सब का जवाब दे दिया तो घर तशरीफ़ लाये , मैं हज़रत की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ कीः ऐ फ़रज़न्दे रसूले ख़ुदा (स.) मैं ख़ुदा का शुक्र अदा करता हूं कि देख रहा हूं कि अमीरुल मोमिनीन (मामून) आप की इज़्ज़त व तकरीम बजालाते हैं और आप की बातें सुनते और मानते हैं।
इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः ऐ जेहम के बेटे , मामून का मेरे लिये अहतेराम व इज़्ज़त देना तुम्हें किसी मुग़ालते में न डाले। फ़इन्नहू सायक़तोलनी बिस्सिम्मे व होवा ज़ालेमुन (यक़ीनी तौर पर वह मुझे ज़हर देकर ज़ुल्म व जफ़ा के साथ क़त्ल कर डालेगा) और यह एक ऐशा अहद व वादा है जिस को मेरे आबाओ अजदाद ने रसूले ख़ुदा से नक़्ल किया है। ऐ जेहम के बेटे इस बात का इज़हार उस वक़्त तक किसी से न करो जब तक कि मैं ज़िन्दा हूं।
जेहम का कहना हैः मैंने भी यह बात किसी को नहीं बताई उस वक़्त तक जब तक कि तूस में हज़रत को ज़हर देकर हमीद बिन क़ेहतबा ताई के घर में हारून रशीद के बग़ल में सुपुरदे लहेद नहीं कर दिया गया।
एक रिवायत में आया है कि हज़रत ने फ़रमायाः ऐ जेहम के बेटे , मामून की बातों के धोके में न आना क्योंकि अंक़रीब ही वह मुझे अचानक और धोके से ख़त्म कर देगा और ख़ुदा वन्दे आलम उस से मेरा बदला लेगा।
इमाम अलैहिस्सलाम ने किसी को जो कि ख़ुश हो रहा था फ़रमायाः ख़ुशी मत बनाओ क्योंकि यह काम पूरा नहीं होगा।