मर्व में इमामे रज़ा (अ.) की मौजूदगी से नाराज़गी
इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम उस बात से कि मामून लानतुल्लाहे अलैह के पास और अपने नबी-ए-करीम (स.) के शहरे मदीना से दूर थे। बहुत ज़्यादा रंजीदा ख़ातिर थे , यहां तक कि इस बाबत ख़ुदा से मौत मांगा करते थे।
1- यासिर नामी ख़ादिम से नक़्ल है कि जब भी जुमे के दिन हज़रत इमाम रज़ा (अ.) जामा मस्जिद से घर वापस आया करते , ऐसी हालत में कि रास्ते की गर्दो ग़ुबार बदन और लिबास पर हुआ करता और पसीना भी ख़ुश्क नहीं हुआ करता , अपने दोनों हाथ आसमान की तरफ़ उठा के फ़रमाया करतेः अल्लाहुम्मा इन काना फ़राजी मिम्मा अना फ़ीहे बिल मौते फ़अज्जिल लियस्साअत।
(ख़ुदा वन्द अगर मेरी निजात , जिस हाल में कि मैं हूं , मेरी मौत में है तो अभी इसी वक़्त मुझे मौत देदे)
और हज़रत हर वक़्त ग़मज़दा और अफ़सुर्दा रहा करते यहां तक कि इसी हालत में इस दुनिया से रुख़सत फ़रमा गये और इमाम अलैहिस्सलाम ने अपनी वलीऐहदी के बहुत ही कम अर्से में मुख़तसर ख़ुतबा जो पढ़ा उस से इन की निहायत ही अफ़सुर्दगी और ग़म व अन्दोह की निशान देही होती है।
शैख़ सुदूक़ एक रिवायत में लिखते हैं इमाम (अ.) ने मामून से फ़रमायाः यह कि मैं यहां (ख़ुरासान) में वलीऐहद हो गया हूं , इस अम्र ने मेरी नज़र में मेरी सूरते हाल और हैसियत में इज़ाफ़ा नहीं किया है जब मैं मदीने में था सवारी पर बेठ कर मदीने की गली व कूचों घूमता था और लोग मुझ से कुछ तलब करते और मैं भी उन की ख़्वाहिशें पूरी करता , मुख़तलिफ़ शेहरों में ख़ुतूत लिखता था और लोग भी मेरे ख़ुतूत पर ग़ौर दिया करते थे और मदीने में भी कुछ ज़्यादा प्यारा और अज़ीज़ कोई दूसरा नहीं था। जो ख़ुदा वन्दे आलम ने इस से पहले मुझे नेमतें अता की हैं उन में तुम ने कोई इज़ाफ़ा नहीं किया है।
नतीजाः
इमाम रज़ा (अ.) की वलीऐहदी के सिलसिले में मजमूई तौर पर वारिद होने वाली रिवायतों से यह नतीजा लिया जा सकता है।
1- इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम वलीऐहदी क़बूल करने पर राज़ी नहीं थे।
2- हज़रत की वलीऐहदी की मिसाल मिस्री फ़राग़ना के क़ुफ़्र व ज़ुल्म वाले दरबार में इंकारे बातिल और और हक़ को हासिल करने के लिये हज़रत युसूफ़ की वलीऐहदी जैसी थी।
3- जैसा कि ज़िक्र किया गया है कि इमाम (अ.) यह ओहदा क़बूल करने पर मजबूर थे।
4- हज़रत की वलीऐहदी का ओहदा एक ज़ाहिरी अम्र था जो हक़ीक़त से ख़ाली था।
5- इस ओहदे का क़बूल करना , अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम के ज़माने की छे रुकनी शुरा में शमूलियत जैसा मजबूरी की हालत में और अदमे रज़ा मन्दी की बुनियाद पर था।
इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम की दुआऔ से बारिश की अलामत
शैख़ सुदुक़ लिखते है जिस वक़्त मामून ने इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम को वलीऐहद बनाया , उस के बाद से कुछ अरसे तक बारिश नबहीं हुई मामून के तरफ़ दारों और इमामे रज़ा (अ.) पर एतेराज़ करने वाले मुख़ालेफ़ीन ने कहाः जब से इमामे अली रज़ा (अ.) यहां आये हैं और वलीऐहद बने हैं तब से ख़ुदा ने बारिश नाज़िल नहीं की है।
यह बात मामून के कानों तक पहुंची तो उसको बहुत सदमा हुआ , इमाम अलैहिस्सलाम से अर्ज़ कियाः काफ़ी अर्से से बारिश नहीं हुई है , काश कि ख़ुदा वन्दे आलम से दुआ करते कि लोगों के लिये बारिश हो जाती।
इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः ठीक है , मामून ने अर्ज़ कियाः कब दुआ करेंगे ? इमाम ने फ़रमायाः पीर के दिन (जब कि उस दिन जुमे का दिन था) क्यों कि पिछली रात , रसूले ख़ुदा (स.) को ख़्वाब में देखा जब कि अमीरुल मोमिनीन हजरत अली अलैहिस्सलाम भी उन के साथ थे , उन्हों ने फ़रमायाः कि मेरे बच्चे पीर तक सब्र करो , फ़िर उस दिन ख़ुदा से बारिश की दुआ करो , ख़ुदा भी लोगों पर बारिश नाज़िल करेगा फ़िर यह लोग ख़ुदा के नज़दीक तुम्हारी अज़मत और मक़ाम व मर्तबे को समझ जायेंगे।
पीर का दिन आया , इमाम (अ.) बियाबान की तरफ़ गऐ और उसी वक़्त लोग भी अपने घरों से बाहर निकले और नज़ारा देखने लगे , इमाम (अ.) मिंबर पर तशरीफ़ ले गये , ख़ुदा की हम्द व तारीफ़ की और अर्ज़ कियाः ख़ुदा वन्द! तूने हम ऐहले बैत के हक़ को बड़ा समझा , तेरे हुक्म के सबब लोगों ने हम से तमस्सुक किया है। और तेरी रेहमत व फ़ज़्ल और एहसान व नेमत की उम्मीद रखते हैं इस लिये उन पर बे ज़रर , फ़ाएदे मन्द बारिश नाज़िल फ़रमा , लेकिन यह बारिश तभी नाज़िल फ़रमाना जब यह लोग अपने घरों को लौट जायें।
रावी कहता हैः ख़ुदा की क़सम , उसी वक़्त आसमान में बादलों की गरदिश शुरु हो गई , बिजली कड़की , आवाज़ें गूंजने लगीं और लोगों में भगदड़ मच गई कि बारिश शुरु होने से पहले अपने घरों को पहुंच जायें।
इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः ऐ लोगों! होसला रखो यह बादल तुम्हारे लिये नहीं हैं। बल्कि फ़लां सरज़मीन के लिये हैं वह बादल चले गये और उस की जगह दूसरे बादल बिजली की कड़क और गरज के साथ आ गये , लोगों ने वहां से जाने का इरादा ही किया था कि इमामे रज़ा (अ.) ने फ़िर फ़रमायाः यह बादल भी फ़लां जगह के लिये हैं , इसी तरह दस मर्तबा बादल आये और चले गये और अलैहिस्सलाम हर मर्तबा फ़रमाते थे यह तुम्हारे लिये नहीं हैं बल्कि फ़लां इलाक़े के लिये हैं फिर ग्यारहवीं मर्तबा बादल घिर कर आया तो इमाम ने फ़रमायाः यह बादल तुम्हारे लिये हैं जाओ जाकर ख़ुदा की अता कर्दा नेमत और फ़ज़ीलत की ख़ातिर उस का शुक्रिया अदा करो। उठो और अपने घरों को जाओ क्योंकि जब तक अपने घरों को नहीं जाओगे बारिश नहीं हो गी। उसके बाद ख़ुदा के करम से बारिश हो गई फिर इमाम (अ.) मिंबर से नीचे तशरीफ़ लाये और लोग भी अपने घरों को रवाना हो गऐ उस के बाद जब बारिश शुरु हुई तो इस क़दर हुई कि नेहरें तालाब और घड़े और पानी के ज़ख़ीरे वग़ैरा सब भर गये लोग कहने लगेः हैनाइन ले वलादे रसूल अल्लाह (स.) करामातुल्लाह अज़्ज़ा व जल्लाह। ख़ुदा की करामतें फ़रज़न्दे रसूले ख़ुदा (स.) को मुबारक हों।
फिर इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम अवाम की तरफ़ बढ़े जिन्होंने इजतेमा कर रखा था , आप ने फ़रमायाः ऐ लोगों ख़ुदा वन्दे आलम जो नेमतें तुम्हें अता करता है , उस में तक़वा इख़तियार करो और ख़ुद को गुनाह और नाफ़रमानी में मुबतला न कर के उन्हें ख़ुद से दूर करो , और ख़ुदा की हमेशा इताअत करो और ख़ुदा का शुक्र बजालाते रहो।
इमाम अलैहिस्सलाम के हुक्म से दो शेर एक गुस्ताख़ को निगल गये
हज़रत इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम से बारिश हो जाने के बाद आप की मक़बुलियत और अज़मत में मज़ीद इज़ाफ़ा हो गया लेकिन कज अंदेशी और बुग़ज़ व हसद रखने वालों को हिदायत नसीब न हुई और कुछ लोग तो इमाम (अ.) की शान में गुस्ताख़ी कर बैठे उन्हीं में एक जो कि मामून के दरबार में मुलाज़िम था और उस का नाम हमीद बिन मेहरान था , इमाम (अ.) के पास आकर कहाः
ऐ फ़रज़न्दे मूसा , तुम अपनी हदों से गुज़र चुके हो ख़ुदा वन्दे आलम ने मोअय्यन और मुक़र्र वक़्त पर बारिश नाज़िल की , तुम ने उसे उपनी दुआओं का नतीजा क़रार दिया और इस बात को ख़ुदा के नज़दीक अपनी क़ुरबत और मक़ाम व मर्तबे में अज़मत की दलील क़रार दिया , ऐसा लगता है कि तुम ने इब्राहीम ख़लीलुल्लाह अलैहिस्सलाम की मानिन्द मोजिज़ा कर दिया हो कि उन्हों ने परिन्दों को ज़िब्ह किया उन के बाल व पर नोचे और गोश्त को पहाड़ की चोटी पर रखने बाद उन्हों आवाज़ दी तो ख़ुदा के हुक्म पर ज़िन्दा हो कर परवाज़ करने लगे अगर तुम सच्चे हो तो इन दो शैरों को जो कि मामून की मसनद के ग़िलाफ़ पर तसवीर की शक्ल में थे इशारा करते हुऐ कहा इन्हें ज़िन्दा करो और मुझ पर हमला करने के लिये बोलो , अगर ऐसा नहीं किया तो न तो यह और न तुम्हारी दुआ से जो बारिश हुई तुम्हारे लिये कोई मोजिज़ा नहीं होगा।
इमाम (अ.) उस आदमी के बुग़्ज़ और हसद को देख कर ग़ुस्से में आ गये और चिल्ला कर बोले ऐ शैरों! इस फ़ाजिर शख़्स को उस के अंजाम तक पहुंचा तो मुह से आवाज़ निकलते ही वह दोनों शैर अपनी असली हालत में आगये और पलक झपकते ही उस आदमी को चीर फ़ाड़ कर के चट कर गऐ यहां तक कि ज़मीन पर पड़ा हुआ ख़ून भी चाट गऐ , और उस का नाम व निशान मिटा दिया लोग हैरत ज़दा हो कर यह माजरा देख रहे थे। जब यह वाक़ेआ ख़त्म हो गया तो शैरों ने इमामे रज़ा (अ.) से अर्ज़ किया कि ऐ वली-ए-ख़ुदा अब आप क्या हुक्म देते हैं। क्या आप की इजाज़त है कि इस मामून को भी चीर फ़ाड़ ढालें मामून ने इन दोनों शैरों की बात सुन कर बेहोशी इख़तियार कर ली इमाम (अ.) ने फ़रमायाः नहीं रुक जाओ , फिर इमाम ने अपने बात दोहराई और फ़रमायाः जाओ अपनी जगह वापस चले जाओ , फिर वह अपनी तसवीर की हालत में तबदील हो गऐ।
जब मामून को होश आया तो उस ने कहा ख़ुदा का शुक्र है कि इस ने हमें हमीद बिन मेहरान जैसे आदमी से बचा लिया।
ईद का वाक़ेआ और इमाम अलैहिस्सलाम
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को वली ऐहद हुऐ कुछ अर्सा गुज़र गया और ईद का मोक़ा आया (इमाम (अ.) की दुआओं और मुनाजात से पता चलता है कि वह ईदुज़्ज़ोहा का मोक़ा था) मामून ने हज़रत को कहलवाया कि आप तैय्यार रहें और ख़ुद नमाज़ पढ़ाईये और लोगों के लिये ख़ुत्बे पढ़ें ताकि उन्हें सुकून और इतमेनान हासिल हो।
इमाम (अ.) ने मामून को पैग़ाम भेजा
मेरे और तुम्हारे दर्मियान जो शर्तें रखी गईं हैं उन से तुम वाक़िफ़ होंगे यह तय नहीं पाया था कि मैं ममलेकती उमूर में मुदाख़ेलत करूं मामून ने कहा मैं यह चाहता हूं कि लोगों औकर सिपाहीयों के दिल को सुकून व इतमेनान हासिल हो और ख़ुदा वन्दे आलम ने आप को जो फ़ज़ीलत अता की हैं उस से लोगों को आगाह होना चाहिये इस बीच दोनों के दर्मियान बातों का सिलसिला और बहस जारी रही इमाम (अ.) का यह ही इसरार था कि मामून अपनी बात से पीछे हट जाये और इमाम (अ.) को नमाज़ न पढ़ानी पड़े जब इमाम ने देखा कि मामून का इसरार बढ़ता ही जा रहा है तो आप ने फ़रमायाः अगर इस काम से मुझे रोके रखोगे तो बहुत ही अच्छा और पसन्द दीदा होगा लेकिन अगर ज़्यादा मजबूर करोगे तो मैं अपने नाना रसूले अकरम और दादा अली बिन अबुतालिब की रविश पर अमल करते हुऐ घर से निकलुंगा और नमाज़ पढ़ाऊंगा।
मामून ने कहा आप जैसा मुनासिब समझें अमल करें लेकिन नमाज़ आप ही पढ़ाऐंगे। फिर उस ने सभी लोगों और लशकरों को हुक्म दिया कि सुब्ह के वक़्त इमाम के घर पर इजतेमा करें।
मामून के हुक्म के बा औरतों और मर्दों बूढ़े जवान हुकूमती , लशकरी सभी सरदार सिपाही इमाम के दर्वाज़े पर आकर जमा हो गऐ , जब सूरज नमूदार हुआ तो इमाम ने ग़ुस्ल किया , सूती कपड़ों का अमामा सर पर रखा अमामे का एक कोना सीने पर और दूसरा कोना दोनों शानों के बीच में क़रार दिया कुरते का दामन ऊपर कमर पर बांधा थोड़ा इत्र लगाया और अपने अतराफ़ के लोगों को भी ऐसा करने को कहा फिर तीर निमा असा हाथ में लिया और बाहर तशरीफ़ लाऐ रावी कहता है हम लोग भी हज़रत के साथ पीछे पीछे चल रहे थे , हज़रत ने अपना पांयचा ज़ानू तक चढ़ा रखा था और पैरों में नालैन नहीं थीं बल्कि नंगे पैर चल रहे थे आसमान की तरफ़ हाथ बुलन्द किया चार मर्तबा तकबीर बुलन्द आवाज़ में पढ़ी रावी कहता है कि इस क़दर अज़मत व जलाल टपक रहा था गोया आसमान और घर की दीवारें हज़रत का जवाब दे रही हों।
लशकरी और सिपाही नीज़ अवाम का मजमा इमाम के दरवाज़े पर मोअद्दब और दस्त बसता सफ़े बांधे खड़ा हुआ था इमाम (अ.) ने दरवाज़े पर रुके और फ़रमायाः अल्लाह होअकबर अल्लाह होअकबर , अल्लाह होअकबर अलामा हदाना , अल्लाह होअकबर अला मा रज़क़ना......
इमाम (अ.) ने इस तकबीर से अपनी आवाज़ बुलन्द की और हम ने भी अपनी आवाज़ें तकबीर के साथ बुलन्द कीं लोगों के अन्दर मानवीयत इस क़दर भर गई थी कि मर्व का पूरा शहर हरकत में आ गया था। सब की आंख़ों से आसूं जारी थे हर तरफ़ आहो बुका की फ़रयाद थी , इस हालत में इमाम (अ.) ने तीन मर्तबा सदा-ए-तकबीर बुलन्द की जब लशकरीयो और सिपाहीयों ने इमाम (अ.) को इस सादगी और नंगे पांव की हालत में मुशाहेदा किया तो सभी अपनी सवारियों से उतर गऐ और पा बरहेना चलने लगे , पूरा शहर नाला व फ़रयाद बन गया , लोगों को अपने आसूं और फ़रयाद पर क़ाबू पाना मुशकिल हो रहा था।
हज़रत थोड़ी दूर चलते और रुक कर नारा-ए-तकबीर बुलन्द करते थे और चार बार तकबीर की आवाज़ें बुलन्द फ़रमाते जाते थे। हम तो यह ही ख़यार कर रहे थे कि आसमान व ज़मीन और शहर की दीवारें हज़रत की तकबीर का जवाब दे रही हैं। हम भी आप की आवाज़ से आवाज़ मिला कर नारा-ए-तकबीर बुलन्द करते जा रहे थे। उसी वक़्त इस मलाकूती मंज़र की ख़बर मामून के कानों तक पहुंची फ़ज़्ल बिन सहल ने जिस के पास विज़ारते उज़मा और सदारते लशकर दोनों मंसब थे मामून से कहा कि ऐ अमीरुल मोमिनीन अगर इमामे रज़ा अलैहिस्सलाम इसी हालत में ईद गाह तक पहुंच गऐ तो लोग उन के शेदाई हो जायेंगे इस लियें मसलेहत इसी में है कि उन्हें ईद गाह तक न पहुंचने दिया जाये और रास्ते से ही वापस बुला लिया जाये।
मामून ने अपने आदमीयों को भेज कर इमाम (अ.) को घर वापस जाने का हुक्म दिया इमाम (अ.) ने भी अपनी नालैन तलब फ़रमाई उस को पहना और घर की जानिब लोट गये शैख़ मुफ़ूद ने इस रिवायत के ज़िम्न में लिखा है कि मामून ने पैग़ाम भेजा कि हम ने आप को तकलीफ़ दी इस लिये मुझे पसन्द नहीं कि आप को परेशानी हो इस लिये आप वापस लोट जायें इस बार भी वह ही ईद की नमाज़ पढ़ायेगा जो हमेशा पढ़ाता है हज़रत ने अपनी नालैन तलब की पहना और सवारी पर सवार हो कर घर लोट गये उस दिन लोगों की नमाज़ों में ख़लल वाक़े हो गया और लोग सहीह ठंग से नमाज़ न पढ़ सके।
मामून ने इमामे रज़ा (अ.) के दर्स व बहस पर पाबन्दी लगा दी और आप ने नफ़रीन की
इमामे रज़ा (अ.) की मौजूदगी की एक बरकत मर्व में आप की मौजूदगी में लोगों को मुख़तलिफ़ मज़ाहिब के आलिमों के दर्मियान बहस व मुनाज़ेरे के जलसों का इंऐक़ाद था , हालांकि ख़ुद मामून ने इस की मुनियाद रखी थी शायद इसी लिये इमाम जवाब न दे सके और उन्हों शर्मि ं दगी उठानी पड़ी लेकिन ख़ुद मामून ने उसे बन्द करने का हुम्द दिया।
शैख़ सुदूक़ ने अपनी सनद में अब्दुस्सलाम बिन हरवी के हवाले से नक़्ल करते हैं कि मामून को यह ख़बर दी गई कि हज़रत अली बिन मूसा रज़ा (अ.) बहस व मुनाज़ेरे के ऐहतेमाम करते हैं और लोग भी उन के इल्म व मालूमात के शेदाई होते जा रहे हैं (और यह बात हुकूमते वक़्त के लिये नुक़सार का सबब है) मामून ने अपने दरबान मुहम्मद बिन अम्र व तूसी और हाजिब को हुक्म दिया कि इजतेमा को बन्द कर दिया जाऐ उस ने भी लोगों को हज़रत के इस दरसी प्रोगिराम में शरीक होने से रोक दिया फिर मामून ने हज़रत को तलब किया और आप की सरज़निश और तेहक़ीर की , इमामे रज़ा (अ.) ग़ैज़ व ग़ज़ब की हालत में उस के दरबार से निकले और यह फ़रमाते हुऐ जा रहे थेः बे हक़्क़े मुसतफ़ा व मुरतज़ा और सैय्यदे निसवां उसे इस तरह नफ़रीन करूंगा कि इस शहर के सभी लोग यहां तक कि आवारा कुत्ते भी इस को मुसतरिद करेंगे और इस की तोहीन करेंगे , इस तरह कि उसकी ज़िन्दगी परेशान हो जायेगी।
फिर इमाम अलैहिस्सलाम अपने घर तशरीफ़ लाये और वुज़ू किया और नमाज़ के लिये उठ खड़े हुऐ और नमाज़ के क़ुनूत में एक लमबी दुआ पढ़ी जिस का इबतेदाई हिस्सा कुछ इस तरह से हैः अल्लाहुम्मा या ज़ल क़ुदरतिल जामेअते वर्रेहमतिल वासेअते.......................
इस दुआ के दर्मियान मामून और उस की हुकूमत के लिये लानत भेजते हुऐ फ़रमायाः
सल्ले अला मन शराफ़तिस सलाते अलैहि.................................................
(ख़ुदा वन्दा दुरूद भेज उस पर जिस पर दुरूद व नमाज़ निसार होने के बाद शराफ़त हालिस हुई और उस से मेरा बदला ले जिस ने मेरी तेहक़ीर की और मुझ पर सितम किया , मेरे शियों को मेरे दरवाज़े से भगा दिया , उसे ज़िल्लत व ख़वारी का मज़ा चखा दे।
हक़ का दिफ़ा हज़रत की शहादत का सबब हुआ
शैख़ सुदूक़ ने अपनी सनद में मुहम्मद बिन सनान के हवाले से नक़्ल किया है कि मैं ख़ुरासान में अपने मौला हज़रत इमामे रज़ा (अ.) की ख़िदमत में था मामून ने पीर और जुम्मेरात के दिन दरबारे आम लगा रखा था और ऐसे मौक़े पर इमामे रज़ा (अ.) को भी अपने
साथ बैठाया करता था एक दिन मामून को ख़बर मिली कि सूफ़ीया के एक बाशिन्दे ने चौरी की है , हुक्म दिया कि उस को दरबार में हाज़िर किया जाये जब दरबार में हाज़िर हुआ तो मामून ने देखा चौर की पैशानी पर सजदे का निशान है , उस ने कहाः इस ख़ूबसूरत असर के होते हुऐ चौरी जैसा गिनोंहना काम करते हो क्या तुम ने इबादत के ख़ूबसूरत आसार के और ज़ाहिर तौर पर नेक असर के होते च ो री की है ?
उस ने कहा अमल की ज़रूरत ने मुझे इस काम पर मजबूर किया क्यों कि तुम ने ख़ुम्स और बैतुल माल से मेरा हक़ मुझे नहीं दिया , मामून ने कहा , बैतुल माल और ख़ुम्स से तुम्हारा केसा हक़ है ?
जवाब दियाः ख़ुदा वन्दे आलम ने ख़ुम्स के इसतेमाल को 6 तरीक़ों से जाइज़ क़रार दिया है और फ़रमाया हैः वालमू इन्नमा ग़निमतुम........... (इनफ़ाल आयत 41) और बैतुल माल के इसतेमाल के भी छे तरीक़े क़रार दिये हें , मा अफ़ाअल्लाहो अला रसूलेही......... (हशर आयत 7) और एक तरीक़ा और ज़रीआ-ए-इसतेमाल , सफ़र में दरपैश मुशकिल और मुसीबत में मुबतला लोगों की मदद करना है और तुम मुझे मेरा हक़ नहीं दे रहे हो ताकि मैं अपने वतन पहुंच सकू और मेरे पास कोई और ज़रीआ और चीज़ नहीं है। इस के अलावा मैं क़ुर्आन का जानकार और उस से वाक़फ़ियत रखता हूं।
मामून ने कहाः क्या तुम्हें इस सिलसिले में जो बक़वास कर रहे हो ख़ुदा की मुक़र्र करदा सज़ा का इल्म है और क्या मैं तुम्हें इस सिलसिले में तुम्हें तंमबीह और पाक करूं ?
सूफ़ी ने कहाः हर गिज़ नहीं , पहले तुम ख़ुद से शुरु करो ख़ुद को पाक करो उस के बाद दूसरों को तंमबीह और पाक करो पहले ख़ुद पर ख़ुदा की मुक़र्र करदा हद को जारी करो उसके बाद दूसरों पर जारी करो।
मामून ने हज़रत की तरफ़ रुख़ किया और कहाः इस सिलसिले में आप क्या फ़रमाते हैं इमामे रज़ा (अ.) ने फ़रमायाः फ़ा क़ाला इन्नाहु यक़ूलो , सरिक़ता फ़सरेक़ा फ़रमायाः वह कहता है कि तुम ने चौरी की है इस लियें उस ने भी चौरी की है।
मामून को बहुत ग़ुस्सा आया उस ने सूफ़ी की तरफ़ रुख़ कर के कहा ख़ुदा की क़सम तुम्हारा हाथ क़लम कर दूंगा सूफ़ी ने जवाब दियाः क्या तुम मेरा हाथ काटोगे जब कि तुम मेरे नोकर और ग़ुलाम हो ?
मामून ने कहाः वाय हो तुझ पर मैं तेरा ग़ुलाम क ै से हो गया ?
सूफ़ी ने जवाब दियाः क्यों कि तुम्हारी मां को मुसलमानों के बैतुल माल से ख़रीदा गया इस लिहाज़ से तुम दुनिया में मशरीक़ व मग़रिब सभी मुसलमानों के जब तक कि तुम्हें अज़ाद न करा दिया जाये ग़ुलाम रहोगे लेकिन जहां तक मेरे हिस्से का सवाल है मैंने अभी तक अपने हक़ से तुम्हें आज़ाद नहीं किया है दूसरी तरफ़ तुम ने लोगों के ख़ुम्स के माल में ख़ुर्द व बुर्द की है और मेरे ख़ानदाने रिसालत का भी हक़ अदा नहीं किया है। और दूसरी बात यह कि जो चीज़ ख़ुद ख़बीस और नापाक हो वह अपने जैसी किसी दूसरी चीज़ को पान नहीं किया करती है इस लिये पाक चीज़ ही नापाक चीज़ को पाकीज़ा बना सकती है। और अगर किसी की गरदन पर ख़ुद ही हद वाजिब हो वह दूसरों पर हद जारी नहीं कर सकता है इस लिये सब से पहले ख़ुद तुम पर हद जारी करनी होगी क्या तुम ने ख़ुदा का वह इर्शाद नहीं सुना हैः जिस में फ़रमाया कि अतामोरुनन नासा बिलबिर्रे व तनसौना अनफ़ोसाकुम.........
(क्या तुम लोगों को नेकी की दावत देते हो जब कि ख़ुद को भुला बैठे हो हालांकि आसमानी किताबें पढ़ते हो क्या तुम ग़ौर व फ़िक्र नहीं करते हो ? (बक़रा आयत 2)
मामून ने (जो के शायद लाजावाब हो गया था) इमाम (अ.) की तरफ देखा और बोला इस बारे मे क्या ख़याल है ? इमाम (अ.) ने फरमाया ख़ुदा-वन्दे-आलम ने अपनी वही के ज़रिये मुहम्मद (स.) से फ़रमाया फ़ा लिल्लाहिल हुज्जतुल बालेग़तो खुदा वन्दे आलम के लिए वाज़ेह और वसी और मुसतेहकम दलील है। (अनआम आयत 149) और यह दलील व हुज्जत इस तरह है जाहिल व नादान लोग अपनी नादानी के बावजूद इन से आगाह व वाक़िफ़ हैं इस तरह ज़िस तरह दाना इंसान अपने इल्म की रौशनी से आगाह व वाक़िफ़ है और दुनिया व आख़ेरत भी हुज्जत व दलील की वजह से क़ायम है। और इस आदमी ने भी अपने लिए हुज्जद और दलील बयान की है (इस तरह इमाम ने इस अजनबी इंसान का दिफ़ा किया) उस के बाद मामून ने हुक्म दिया और सूफी को आज़ाद कर दिया गया लेकिन व ख़ुद एक अरसे तक लोगो की नज़रो से पोशिदा रहा और उसके बाद हमेशा ही इमाम को रास्ते से हटाने के फ़िराक़ में रहा और सर अंजाम हज़रत को ज़हरे दग़ा से शहीद कर दिया
मैं और हारून एक ही जगह दफ़्न होंगे
शैख़ सुदूक़ ने अपनी सनद में मूसा बिन मेहरान के हवाले से नक़्ल किया है कि उन्हों ने कहाः अली बिन मूसा रज़ा (अ.) को मदीने की मस्जिद में देखा कि हारून रशीद ख़ुत्बा पढ़ रहा था उन्हों ने मुझ से फ़रमायाः क्या तुम मुझे और उसे देख रहे हो ? हम दोनों एक ही मक़बरे में दफ़्न होंगे।
एक दूसरी रिवायत में नक़्ल किया गया है कि रावी ने कहाः मिना या अरफ़ात में थे कि हज़रत रज़ा (अ.) ने हारून की तरफ़ देखा और फ़रमायाः हम और हारून जड़ी हुई उंगलियों की तरह एक ही साथ रहेंगे हम लोग हज़रत का मक़सद नहीं समझ पाये कि हज़रत के इस जुमले का मक़सद क्या है और जब तूस में हज़रत की वफ़ात हो गई तब मामून ने हुक्म दिया कि इमामे रज़ा (अ.) को हारून की बग़ल में दफ़्न किया जाये।
रसूले ख़ुदा ने इमाम रज़ा (अ.) की शहादत की ख़बर दी
शैख़ सुदूक़ अपनी सनद मे इमामे सादिक़ और उन्होंने अपने वालिद और उन्होंने भी अपने आबाओ अजदाद अलैहिमुस्सलाम के हवाले से नक़्ल किया है कि रसूले ख़ुदा (स.) ने फ़रमायाः सातुदफ़नो बिज़अतुन मिन्नी बे अर्ज़े ख़ुरासान.........................(मुसतक़बिल में मेरे जिस्म का एक तुकड़ा ख़ुरासान की सर ज़मीन में दफ़्न होगा उस जगह की जो मोमिन भी ज़ियारत करेगा ख़ुदा वन्दे आलम उस पर जन्नत वाजिब करेगा और उस का ज़िस्म जहन्नुम की आग से मेहफ़ूज़ होगा और दोज़ख़ की आग उस पर हराम होगी।
हज़रत अली (अ.) ने इमाम (अ.) की शहादत की ख़बर दी
हज़रत अली (अ.) के हवाले से भी नक़्ल किया है कि उन्हींने फ़रमायाः सायुक़तलो रजोलुन मिन वुलदी बे अर्ज़े ख़ुरासान बिस्सिम्मे ज़ुलमन......... (मेरे बच्चो मे से एक मुसतकबिल मे ज़हर दगा के ज़रिऐ खुरासान की सर ज़मीन मे मोत को गले लगायेगा इस का नाम से मेरे नाम से और उस के वालिद का नाम इमरान बिन मूसा के फरज़न्द से मुशाबेह होगा)
बस जान लो कि जो भी दयारे ग़ैर मे उन की ज़ियारत करेगा ख़ुदा वन्दे आलम उस के नये और पुराने गुनाहों को माफ़ कर देगा चाहे उसके गुनाहों की तादाद आसमान के सितारों और बारिश के क़तरों और दरख़्त के पत्तों की तादाद जितनी ही क्यों न हो।
इमामे रज़ा (अ.) की शहादत के बारे में इमामे सादिक़ (अ.) का बयान
शैख़ सुदूक़ अपनी सनद में हुसैन बिन ज़ैद के हवाले से नक़्ल करते हैं कि उन्हों ने कहाः कि मैं ने हज़रत इमामे जाफ़रो सादिक़ को फ़रमाते हुऐ सुना है कि मेरे फ़रज़न्द मूसा से एक ऐसा बच्चा दुनिया में आयेगा जिसका नाम अमीरुल मोमिनीन (अ.) से मिलता होगा और वह ख़ुरासान की सरज़मीने तूस में ज़हरे दग़ा रे ज़रिये शहीद होगा और वहीं पर मज़लूमाना तौर परर दफ़्न कर दिया जायेगा लिहाज़ा हर कोई उसकी ज़ियारत करेगा और उन की निसबत मारेफ़त रखता होगा ख़ुदा वन्दे आलम उस को उन लोगों के बराबर जिन्हों ने फ़त्हे मक्का से क़ब्ल इंफ़ाक़ और जिहाद किया था , अज्र अता करेगा।