हज़रत फ़ातेमा की शहादत
कृपालु मां हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत का दिन है। हालांकि इस महान हस्ती ने इस नश्वर संसार में बहुत कम समय बिताया किन्तु उनका अस्तित्व इस्लाम और मुसलमानों को बहुत से फ़ायदे पहुंचने का आधार बना। ऐसी महान हस्ती के जीवन व व्यक्तित्व की समीक्षा से किताबें भरी हुयी हैं और उनके जीवन से बहुत से पाठ मिलते हैं जैसे धर्मपरायणता, ईश्वर से भय तथा उन्हें जीवन का आदर्श बनाने की प्रेरणा। इस दुखद अवसर पर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन के मूल्यवान आयाम पर चर्चा करेंगे और ईश्वर से अपने लिए इस महान हस्ती को आदर्श बनाने की कामना करते हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम सबसे अधिक हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से स्नेह करते थे और आपका पवित्र वंश हज़रत फ़ातेमा ज़हरा से चला। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का प्रशिक्षण ईश्वरीय दूत के घर में हुआ। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम की ज़बान से क़ुरआन को सुना और उसके आदेशों को व्यवहार में उतार कर अपनी आत्मा को सुशोभित कर लिया। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के व्यक्तित्व ऐसे गुणों से सुसज्जित हैं कि कोई और महिला उनके स्तर तक पहुंचती ही नहीं। इसलिए पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें लोक-परलोक की महिलाओं की सरदार का ख़िताब दिया। इसके साथ ही हज़रत फ़ातेमा ज़हरा अरब प्रायद्वीप की तत्कालीन कलाओं से परिचित थीं। जैसा कि कुछ युद्धों में अपने पिता पैग़म्बरे इस्लाम के जख़्मों पर बहुत ही अच्छे ढंग से मरहम-पट्टी करती थीं। घर का काम भी बिना किसी की सहायता के करती थीं। उन्होंने अपने बच्चों का श्रेष्ठ ढंग से प्रिशिक्षण किया और ऐसे किसी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती थीं जिससे उनका और उनके परिवार का संबंध न हो। सिर्फ़ आवश्यकता पड़ने पर ही वे बात करती थीं और जब तक उनसे कोई कुछ नहीं पूछता उस समय तक उत्तर नहीं देती थीं।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की महानता के बारे में बहुत से कथन पाए जाते हैं।
अबु अब्दिल्लाह मोहम्मद बिन इस्माईल बुख़ारी सुन्नी समुदाय की सबसे प्रसिद्ध किताबों से एक सही बुख़ारी में पैग़म्बरे इस्लाम के एक कथन का उल्लेख करते हैं जिसमें उन्होंने कहाः फ़ातेमा मेरा टुकड़ा है जिसने उन्हें क्रोधित किया उसने मुझे क्रोधित किया। बुख़ारी एक और स्थान पर कहते हैः फ़ातेमा स्वर्ग की महिलाओं की सरदार हैं।
सुन्नी समुदाय के एक और बड़े धर्मगुरु अहमद इब्ने हंबल कि जिनके मत के अनुसरण करने वाले हंबली कहलाते हैं, अपनी किताब के तीसरे खंड में मालिक बिन अनस के हवाले से एक कथन का उल्लेख करते हैः पैग़म्बरे इस्लाम पूरे छह महीने तक जब वे सुबह की नमाज़ के लिए जाते तो हज़रत फ़ातेमा के घर से गुज़रते और कहते थेः नमाज़ नमाज़ हे परिजनो! और फिर पवित्र क़ुरआन के अहज़ाब नामक सुरे की 33 वीं आयत की तिलावत करते थे जिसमें ईश्वर कह रहा हैः हे पैग़म्बर परिजनो! ईश्वर का इरादा यह है कि आपसे हर बुराई को दूर रखे और इस तरह पवित्र रखे जैसा पवित्र होना चाहिए।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की एक पत्नी हज़रत आयशा के हवाले से इस्लामी इतिहास में आया है। वह कहती हैः मैंने बात करने में पैग़म्बरे इस्लाम से समानता में हज़रत फ़ातेमा जैसा किसी को नहीं देखा। वह जब भी अपने पिता के पास आती थीं तो पैग़म्बर उनके सम्मान में अपने स्थान से उठ जाते थे, उनके हाथ चूमते थे, उनका हार्दिक स्वागत करते थे और उन्हें अपने विशेष स्थान पर बिठाते थे और जब भी पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत फ़ातेमा के यहां जाते थे तो वह भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती थीं।
प्रसिद्ध धर्म गुरु फ़ख़रूद्दीन राज़ी ने पवित्र क़ुरआन के कौसर नामक सूरे की व्याख्या में कौसर से तात्पर्य कई बातें बताई हैं जिनमें से एक हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के वंश से पैग़म्बरे इस्लाम के वंश का आगे बढ़ना है। वह कहते हैः यह आयत पैग़म्बरे इस्लाम के शत्रुओं की ताने के जवाब में है जो पैग़म्बरे इस्लाम को अबतर कहते थे जिसका अर्थ हैः निःसंतान। इस आयत का उद्देश्य यह है कि ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम को ऐसा वंश देगा जो सदैव बाक़ी रहेगा। ध्यान देने से स्पष्ट हो जाता है कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन बड़ी संख्या में मारे गए किन्तु अभी भी पूरे संसार में वे बाक़ी हैं। जबकि बनी उमय्या परिवार में कि जिनके बच्चों की संख्या बहुत थी इस समय कोई उल्लेखनीय व्यक्ति नहीं है किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के बच्चों को देखें तो इमाम मोहम्मद बाक़िर, इमाम जाफ़र सादिक़, इमाम मूसा काज़िम, इमाम रज़ा इत्यादि जैसे महाविद्वान व महान हस्तियां आज भी अमर हैं।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का अस्तित्व विभिन्न आयामों से पूरी दुनिया के लोगों के लिए आदर्श है और शीया, सुन्नी तथा ईसाई विद्वानों तथा पूर्वविदों ने उनके जीवन की समीक्षा की है।
फ़्रांसीसी विचारक हेनरी कॉर्बेन की गिनती पश्चिम के बड़े दार्शनिकों में होती है। उन्होंने भी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के जीवन की समीक्षा की है। हेनरी कॉर्बेन ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के जीवन को ईश्वर की पूर्ण पहचान का माध्यम बताया है। उन्होंने अपनी एक किताब में कि जिसका हिन्दी रूपांतर आध्यात्मिक दुनिया है, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के बारे में लिखा हैः हज़रत फ़ातेमा के अस्तित्व की विशेषताओं पर यदि ध्यान दिया जाए तो यह कहा जा सकता है कि उनका अस्तित्व ईश्वर के अस्तित्व का प्रतिबिंबन है।
प्रसिद्ध फ़्रांसीसी पूर्वविद व शोधकर्ता लुई मैसिन्यून ने अपने जीवन का एक कालखंड हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के व्यक्तित्व के बारे में शोध पर समर्पित किया और उन्होंने इस संदर्भ में बहुत प्रयास किए हैं। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम और नजरान के ईसाइयों के बीच मुबाहेला नामक घटना के संबंध में एक शोधपत्र लिखा है जो मदीना में घटी थी। इस लेख में उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर संकेत किया है। वे अपने शोध-पत्र में कहते हैः हज़रत इब्राहीम की प्रार्थना में हज़रत फ़ातेमा के वंश से बारह प्रकाश की किरणों का उल्लेख है... तौरैत में मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और उनकी महान सुपुत्री और हज़रत इस्माईल और हज़रत इस्हाक़ जैसे दो सुपुत्र हसन और हुसैन की शुभसूचना है और हज़रत ईसा की इंजील अहमद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के आने की शुभसूचना देती है जिनके एक महान बेटी होगी।
क़ाहेरा विश्वविद्यालय में इस्लामी इतिहास के शिक्षक डाक्टर अली इब्राहीम हसन भी हज़रत फ़ातेमा की प्रशंसा में कहते हैः हज़रत फ़ातेमा ज़हरा का जीवन इतिहास के स्वर्णिम पन्ने हैं।
उन पन्नों में उनके महान जीवन के विभिन्न पहलुओं को हम देखते हैं किन्तु वह बिलक़ीस या क़्लुपित्रा जैसी नहीं हैं कि जिनका वैभव उनके बड़े सिंहासन, अथाह संपत्ति व अद्वितीय सौंदर्य में दिखाई देता है और उनका साहस लश्कर भेजने और पुरुषों का नेतृत्व करने में नहीं है बल्कि हमारे सामने ऐसी हस्ती है जिनका वैभव पूरी दुनिया में फैला हुआ है। ऐसा वैभव जिसका आधार धन-संपत्ति नहीं बल्कि आत्मा की गहराई से निकला आध्यात्म है।
सुलैमान कतानी नामक ईसाई लेखक, कवि और साहित्यकार ने, जो इस्लामी हस्तियों को पहचनवाने से संबंधित बहुत सी प्रसिद्ध किताबें लिखी हैं, अपनी एक किताब में जिसका हिन्दी रुपान्तरः फ़ातेमा ज़हरा नियाम में छिपी तलवार है, लिखते हैः हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा का स्थान इतना ऊंचा है कि उसके लिए ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का उल्लेख किया जाए। उनकी हस्ती के लिए इतना ही पर्याप्त है कि वह मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की बेटी, अली अलैहिस्सलाम की पत्नी, हसन और हुसैन अलैहेमस्सलाम की मां और संसार की महान महिला हैं। सुलैमान कतानी अपनी किताब के अंत में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को संबोधित करते हुए कहते हैः हे मुस्तफ़ा की बेटी फ़ातेमा! हे धरती की सबसे प्रकाशमय हस्ती। आप ज़मीन पर केवल दो बार मुस्कुराईं। एक बार पिता के चेहरे पर जब वह परलोक सिधारने वाले थे और उन्होंने आपको इस बात की शुभसूचना दी थी कि तुम मुझसे मिलने वाली पहली हस्ती होगी और दूसरी बार आप उस समय मुस्कुराईं जब आप इस नश्वर संसार को छोड़ कर जा रही थीं। आपका जीवन स्नेह से भरा रहा। आपने पवित्र व चरित्रवान जीवन बिताया। सबसे पवित्र मां जिसने दो फूल को जन्म दिए, उनका प्रशिक्षण किया और उन्हें दूसरों को क्षमा करना सिखाया। आपने इस धरती को व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ विदा कहा और अमरलोक सिधार गयीं हे पैग़म्बर की बेटी! हे अली की पत्नी! हे हसन और हुसैन की मां! और हे सभी संसार व युग की महान महिला!
इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के महान व्यक्तित्व की इन शब्दों में प्रशंसा करते हैः मुसलमान महिलाओं को चाहिए कि अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और पारिवारिक जीवन में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जीवन को बुद्धिमत्ता और ईश्वरीय पहचान की दृष्टि से आदर्श बनाएं और प्रार्थना, उपासना, इच्छाओं से संघर्ष, मंच पर उपस्थिति, सामाजिक, पारिवारिक, दांपत्य जीवन और बच्चों के प्रशिक्षण से संबंधित बड़े फ़ैसलों में उनका अनुसरण करें क्योंकि इस्लाम की इस महान हस्ती का जीवन यह दर्शाता है कि मुसलमान महिला राजनैतिक व व्यवसायिक मंच पर उपस्थिति और साथ ही समाज में शिक्षा, उपासना, दांपत्य जीवन और बच्चों के प्रशिक्षण के साथ सक्रिय भूमिका निभाने में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की अनुसरणकर्ता बन सकती है और ईश्वर के महान पैग़म्बर की महान बेटी को अपना आदर्श बना दे