बच्चों के साथ रसूले ख़ुदा (स.) का बर्ताव
ख़ुदा ने बच्चों की सूरत में अपनी एक बहुत बड़ी नेमत इंसान को अता की है और उन की सही तरबीयत और परवरिश का हुक्म दिया है क्यों कि बच्चे ही किसी क़ौम, समाज और मुल्क का फ़्युचर होते हैं। अगर उनकी परवरिश में कमी रह गई तो वह ख़ानदान, क़ौम, समाज और यहाँ तक कि पूरे मुल्क को बर्बादी की नोबत तक ले जा सकते हैं और अगर उन परवरिश सही हुई हो तो वह एक बेहतरीन समाज, तरक़्क़ी याफ़्ता मुल्क और मार्डन और कल्चर्ड क़ौम बनकर उभरते हैं।
इस्लाम ने बच्चों की परवरिश पर बहुत ज़ोर दिया है और ख़ासकर रसूले अकरम (स.) बच्चों के साथ बहुत मुहब्बत और हमदर्दी का रवैय्या रखते थे। यहाँ पर रसूले अकरम (स.) के बच्चों के साथ बर्ताव के कुछ नमूने पेश किए जा रहे हैं।
बच्चों से मुहब्बत और उनका एहतेराम
एक रोज़ रसूले ख़ुदा (स.) ने किसी बच्चे को गोद में बिठा लिया। बच्चे ने आप के लिबास पर पेशाब कर दिया। उसकी माँ ने जल्दी से उसे रसूल (स.) की गोद से छीन लिया जिसकी वजह से बच्चा रोने लगा। आपने फ़ौरन उस से कहा कि ऐसा मत किया करो। मेरे कपड़े तो पानी से पाक हो जाएंगे लेकिन तुम्हारे चीखने और बच्चे को इस तरह से खींचने से जो असर उस के नाज़ुक से दिल पर पड़ा है उसे किसी चीज़ से दूर नहीं किया जा सकता।
रसूले ख़ुदा (स.) की इस बात से समझ में आता है कि दूध पीता बच्चा भी हमदर्दी और प्यार को समझता है, सख़्ती और ग़ुस्सा उस पर असर डालता है।
रसूले ख़ुदा का यह तरीक़ा सारे ही बच्चों के साथ था। बहुत से लोग अपने बच्चों का नाम रखवाने के लिए उन्हें रसूले ख़ुदा (स.) के पास ले कर आते थे। रसूले ख़ुदा (स.) उन बच्चों को अपनी गौद में बिठा लेते थे। अक्सर ऐसा हो जाता था कि बच्चा आपकी गोद में पेशाब कर लेता था और उसके माँ-बाप या आप के अस्हाब चीख़ पुकार करने लगते थे मगर रसूले ख़ुदा (स.) उन्हें रोक दिया करते थे कि बच्चों पर चीख़ो नहीं और उसको अपनी गोद से अलग भी नहीं करते थे।
जब वह पेशाब कर लेता था तब आप बच्चे को उसके माँ-बाप को वापस दे दिया करते थे और फिर अपने कपड़ों को पाक किया करते थे।
आपने फ़रमायाः- कि अपनी औलाद का एतेराम करो और उसके साथ अच्छी तरह से पेश आया करो।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत है कि एक बार रसूले ख़ुदा (स.) नमाज़े ज़ोहर अदा कर रहे थे आप के पीछे बहुत से मुसलमान भी नमाज़ पढ़ रहे थे। आख़िर की दो रकअत नमाज़ आप ने बहुत जल्दी पढ़ ली। लोगों ने नमाज़ के बाद आप से पूछा, या रसूल अल्लाह! नमाज़ के बीच में कोई ख़ास बात हो गई थी क्या? रसूले ख़ुदा (स.) ने पूछा क्यों क्या हुआ? लोगों ने कहा कि आप ने आख़िर की दो रकअतें बहुत जल्दी से पढ़ा दीं। आप ने फ़रमायाः- क्या तुम ने बच्चे के रोने की आवाज़ नहीं सुनी?
इस जगह रसूले ख़ुदा (स.) ने बच्चे के रोने की वजह से नमाज़ जल्दी पढ़ ली ताकि लोग जाकर बच्चे को चुप करा सकें और दूसरी जगह बच्चे के एहतेराम की ही वजह से नमाज़ के सज्दे को लम्बा कर दिया।
एक दिन रसूले ख़ुदा (स.) बैठे हुए थे इमाम हसन (अ.) और इमाम हुसैन (अ.) आते हुए दिखाई दिये। आप अपनी जगह से खड़े हुए और उन के पहुंचने का इन्तेज़ार करने लगे। बच्चे धीरे-धीरे चल रहे थे, इस लिए रसूले ख़ुदा (स.) ख़ुद उन की तरफ़ बढ़े। उन्हें अपनी गोद में उठाया और अपने कन्धों पर बिठा लिया और चलने लगे और फ़रमाया कि मेरे बच्चों! तुम्हारी सवारी कितनी अच्छी है और तुम कितने बेहतरीन सवार हो।
दूसरे मुसलमानों के बच्चे भी आपकी इस मुहब्बत और एहतेराम से महरूम नहीं थे। एक दिन आप किसी सफ़र से वापस हो रहे थे कि रास्ते में कुछ बच्चे नज़र आये। आप उन के एहतेराम में रुक गए फिर आप ने बच्चों को अपने पास लाने के लिए कहा। आप के सहाबी बच्चों को उठा कर आप को देते, आप किसी को गोद में बिठाते और किसी को कन्धे पर बिठा लेते थे। फिर आप ने अस्हाब से फ़रमाया कि बच्चों को गोद में लिया करो और अपने कन्धों पर बिठाया करो। बच्चे आप के इस बरताव से बहुत ख़ुद हुए।
बच्चों को सलाम करना
अगर बच्चा बड़े को सलाम करे तो उसे उस के सलाम का बहुत ही अच्छी तरह जवाब देना चाहिए। अगर उसके सलाम का जवाब रवा-रवी में दिया जाए तो इस से बच्चे को अपनी तौहीन का एहसास होता है और इस से उसको तकलीफ़ पहुंचती है।
रसूले ख़ुदा (स.) एक दिन कुछ बच्चो के पास से गुज़रे, आपने बच्चों को सलाम किया और कुछ खाने को दिया और फ़रमाया कि पाँच चीज़ें ऐसी हैं जिन को मैं मरते दम तक नहीं छोड़ूँगा। उन्हीं में से एक बच्चों को सलाम करना है। मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरी यह सुन्नत मुसलमानों में बाक़ी रहे और वह भी इस पर अमल करें।
रसूले ख़ुदा (स.) ने बच्चों के साथ अच्छे सुलूक के लिए बहुत कुछ कहा है और इस पर ख़ुद भी अमल किया है। बच्चों से मुहब्बत करने, मेहरबानी से पेश आने, उन से किये हुए वादों को पूरा करने, उन के सर पर हाथ फेरने पर बहुत ज़ोर दिया है। आप हर सुब्ह बच्चों के सर पर हाथ फेरा करते थे।
रसूले ख़ुदा (स.) की मेहरबानी
ईद का दिन था, जश्न का समाँ था। लोग ग़रीबों की मदद कर रहे थे, फ़ितरा और सदक़ा तक़सीम हो रहा था, ईद की नमाज़ ख़त्म हुई, दुआ और ईद का ख़ुत्बा भी हुआ। इसके बाद मिठाई वग़ैरा भी तक़सीम हुई। इस जश्न और ख़ुशी के माहौल में रसूले ख़ुदा (स.) की नज़र एक बच्चे पर पड़ी जो एक ख़जूर के पेड़ के नीचे मैले कुचैले कपड़ों में बैठा हुआ था और उन बच्चों को देख रहा था जो बच्चे जश्न में शरीक थे। आप समझ गए कि यह बच्चा यतीम है आप उठे और बच्चे के पास गए और मुस्कुराते हुए फ़रमाया कि आज मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा बाप बन कर तुम्हारे साथ रहूँ। फिर बच्चे को ज़मीन से उठाया और अपनी गोद में ले लिया उसको इतना प्यार दिया कि बच्चा ख़ुश हो गया और मुस्कुराने लगा और फिर आप के साथ जश्न में शरीक हो गया।
बच्चों के साथ खेलकूद
आपने फ़रमाया कि जिस शख़्स के पास कोई बच्चा हो उसे उसके साथ बच्चा बन कर उसकी परवरिश करना चाहिए। एक शख़्स रसूले ख़ुदा (स.) की ख़िदमत में किसी जगह दावत में जाने के लिए निकला। उसने देखा कि घर के सामने इमाम हुसैन (अ.) खेल रहे थे। कुछ ही देर बाद रसूले ख़ुदा (स.) भी बाहर तशरीफ़ लाए। जब आप ने इमाम हुसैन (अ.) को देखा तो हाथ फैला कर उन की तरफ़ बढ़े ताकि उन को पकड़ लें मगर इमाम हुसैन (अ.) हसते हुए इधर उधर भागने लगे। रसूले ख़ुदा (स.) भी हंसते हुए आपके पीछे भागे और आप को पकड़ लिया। फिर गोद में उठा कर प्यार किया।
लोगों के बीच रसूल (स.) का यह बर्ताव इस लिए था कि क्यों कि आप समझाना चाहते थे कि माँ-बाप का फ़रीज़ा जहाँ अपने बच्चों की अच्छी परवरिश करना है वहीं उनके साथ खेलना और उन को ख़ुश रखना भी है।