पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत
वह एक रहस्यमय रात थी। चांद का मंद प्रकाश नूर नामक पर्वत और उसके दक्षिण में स्थित मरूस्थल पर फैला हुआ था। मक्का और उसके आसपास की प्रकृति पर गहरी निद्रा छायी हुई थी। हर ओर आश्चर्य में डालने वाला एक मौन व्याप्त था। उन रहस्यम क्षणों में अचानक एक अनोखा और बिजली जैसा प्रकाश, आसमान में चमका और पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के सामने क्षतिज पर छा गया। आपको अपने अस्तित्व में एक अजीब सी भावना का आभास हुआ। अचानक एक वैभवशाली अस्तित्व हज़रत मुहम्मद (स) के सामने प्रकट हुआ। पैग़म्बरे इस्लाम आकाश में जिस ओर भी दृष्टि दौड़ाते वह अस्तित्व हर क्षितिज पर दिखायी देता। वह ईश्वरीय दूतों तक ईश्वरीय संदेश वही पहुंचाने वाला फ़रिश्ता, जिबरईल था। जिरईल ने कहाः पढ़िये अपने प्रभु का नाम लेकर। वह प्रभु जिसने आपको और सभी मनुष्यों को पैदा किया। पढ़िये और उसको बड़ाई के साथ याद कीजिए। जिसने आपको पढ़ना सिखाया। अपने प्रभु का नामक लेकर पढ़िये जिसने सृष्टि की रचना की। जिसने मनुष्य को जमे हुए ख़ून से पैदा किया। पढ़िये कि आपका प्रभु सबसे महान है। जिसने क़लम द्वारा शिक्षा दी और मनुष्य को वह सब बताया जो वह नहीं जानता था। हज़रत मुहम्मद (स) ने, जिनका पूरा अस्तित्व ईश्वरीय प्रेम में डूबा हुआ था, उस आसमानी अस्तित्व के साथ पढ़ना आरंभ किया।
एक बार फिर आत्मा में समा जाने वाली आवाज़ वातावरण में गूंजी। हे मोहम्मद, आप ईश्वर के पैग़म्बर हैं और मैं उसका फ़रिश्ता जिबरईल हूं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) उन विचित्र क्षणों में, कि जब संसार नींद में डूबा हुआ था, ईश्वर ने मक्के में अमीन अर्थात अमानतदार व ईमानदार के नाम से विख्यात हज़रत मोहम्मद (स) को पैग़म्बरी के महान पद पर सुशोभित कर दिया।
इस महाघटना के पश्चात पैग़म्बरे इस्लाम हेरा नामक गुफा से बाहर निकले। तारे अभी भी झिलमिला रहे थे और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सामने चांद अपने बारीक रूप में छटा बिखेर रहा था और मक्के का वातावरण शांत था। किन्तु यह मौन एक ऐसे आंदोलन की पृष्टठभूमि था जिसने संसार के अस्तित्व में फिर से प्राण डाल दिए। पूरी सृष्टि ईश्वर द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम (स) के इस सम्मान पर गुनगुना रही थी। मानो पहाड़, मरुस्थल और जो कुछ आकाश व पृथ्वी पर था सबकुछ धीमे स्वर में कह रहे हों सलाम हो आप पर हे ईश्वर के सर्वश्रेष्ठ बंदे!
पैग़म्बरे इस्लाम (स) सोच-विचार में डूबे धीरे-धीरे क़दम बढ़ा रहे थे। वह अपने घर पहुंचना चाहते थे ताकि थोड़ा आराम करके इस महा-रहस्य को अपनी जीवनसाथी हज़रत ख़दीजा को बताएं। यह सोच कर पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने घर की ओर चल पड़े।
जब हज़रत ख़दीजा ने घर का द्वार खोला तो उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम की काली व तेज भरी आखों में विशेष चमक दिखायी दी। उनके दमकते हुए चेहरे का तेज कई गुना हो गया था। हज़रत ख़दीजा समझ गयीं कि कोई घटना घटी है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने थोड़ा आराम करने के पश्चात हज़रत ख़दीजा को वह सब कुछ बताया जिसे उन्होंने देखा था। हज़रत ख़दीजा के मन में एक हलचल मच गयी। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स) से कहाः सलाम हो आप पर हे ईश्वर के पैग़म्बर! ईश्वर की सौगंध! जिसके हाथ में ख़दीजा का प्राण है, यह आपकी सदाचारिता व कठिनाइयां सहन करने का बदला है। इस प्रकार हज़रत ख़दीजा पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर सबसे पहले ईमान लायीं।
अंधकार पर प्रकाश के प्रभुत्व व मानवता के पुनर्जीवन के इस दिवस पर एक बार फिर आप सबको हार्दिक बधाइयां।
जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) को ईश्वर ने अंतिम ईश्वरीय दूत बनाया उस समय संसार में उहापोह मची हुयी थी। अंधविश्वास व अज्ञानता के अंधकार ने मानवीय मूल्यों को इस प्रकार कुचल दिया था कि उसके चिन्ह दिखायी नहीं पड़ते थे। मनुष्य अपने मौलिक अधिकारों से वंचित था। हेजाज़ अर्थात वर्तमान सउदी अरब के एक बड़े भूभाग में महिला को पिता, पति या बड़े पुत्र की संपति समझा जाता था और वह उसे मीरास के रूप में अपने साथ ले जाता था। मनुष्य को वस्तु समझने का सबसे घृणित रूप, रीति-रिवाजो व धर्म के नाम पर होने वाले समारोहों में दिखायी देता था। कुछ क़बीलों में बेटियों को जीवित क़ब्र में दफ़्न करने का दृष्य बड़ा ही हृदय विदारक होता था। हर बुराई में निर्दयता व नृशंसता मौजूद थी। मनुष्य के सीने में ऐसा कठोर हृदय था कि वह ईश्वर के बजाए पत्थर व सितारों को पूजता था। धरती के दूसरे क्षेत्रों में लोगों की हत्या करना और युवराजों व अपदस्थ राजाओं को अंधा करना राजनैतिक प्रतिस्पर्धियों की एक आम शैली थी। ईश्वर को साकार रूप में देखने की अपनी इच्छा के कारण मनुष्य सूर्य और चंद्रमा, जैसी आसमानी चीज़ों, नाना प्रकार के पशुओं यहां तक कि मनुष्य को पूजने लगा था और इस अंधकार से बुद्धिमत्ता की ओर बढ़ना बहुत कठिन लग रहा था।
हर ओर फैले हुए इस संकटमय वातावरण में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने सुधार का ध्वज फहराया।
इतिहास में है कि मक्के का एक निवासी कहता हैः मैंने पैग़म्बरे इस्लाम को देखा कि वह लोगों से अनन्य ईश्वर की उपासना के लिए कह रहे थे ताकि उन्हें मोक्ष मिल जाए। किन्तु कुछ लोग उनका मखौल उड़ा रहे थे और कुछ उनपर धूल-मिटटी फेंक रहे थे। कुछ दूसरे उन्हें गालियां दे रहे थे। इसी बीच एक बच्ची जिसके चेहरे से चिंता झलक रही थी, पानी से भरा एक बर्तन लायी। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपना हाथ और चेहरा धोया और उस बच्ची से कहाः बेटी! चिंतित न हो! धैर्य रखो! अपने पिता के पराजित होने का भय न रखो। ईश्वर के धर्म की ही विजय होगी।
एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) मस्जिद में लोगों के बीच भाषण देते हुए कह रहे थेः हे लोगो! एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करो। सच बोलो और आपसी फूट से बचो! इस बीच एक गुट ताली बजाने लगा ताकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) की आवाज़ लोगों के कानों तक न पहुंचे और उसने मखौल भरे स्वर में पैग़म्बरे इस्लाम से कहाः मोहम्मद! तुम्हारे प्रभु ने और क्या कहा है? कहो, ताकि हम हंसें। किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम ने, शत्रु की यातनाओं पर ध्यान दिए बिना, धैर्य व स्नेह भरे मन से अपना हाथ आसमान की ओर उठाया और कहाः हे प्रभु! लोगों का मार्गदर्शन कर। इन्हें मार्ग दिखा! ये लोग अज्ञानी हैं।
वास्तव में मनुष्य का मार्गदर्शन व मोक्ष पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के दायित्व का मुख्य संदेश है। पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी अज्ञानता, अनेकेश्वरवाद, अंधविश्वास और दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण रोकने की दिशा में महाक्रांति लायी। इसीलिए बुद्धिजीवी, पैग़म्बरे इस्लाम (स) को मानव जीवन के इतिहास में आध्यात्म, मूल्यों के पालन और सामाजिक जीवन के क्षेत्र में सबसे बड़ी क्रान्ति का आधार मानते हैं। उन्होंने लोक-परलोक, दायित्वबोध, अर्थव्यवस्था और राजनीति, नैतिकता तथा आध्यात्म सहित हर छोटे-बड़े मामलों में मनुष्य के सामने उपाय पेश किए हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मानवता, न्याय और तर्क के माध्यम से मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ मार्ग दिखाया।
पवित्र क़ुरआन के शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम (स) की पैग़म्बरी ने मनुष्य के सामने नया मार्ग खोला और उसका अत्याचार व अज्ञानता के अंधकार से प्रकाश व मोक्ष की ओर मार्गदर्शन किया। जैसाकि पवित्र क़ुरआन के सूरए अहज़ाब की आयत क्रमांक 43 में ईश्वर कहता हैः वह, वह है जो स्वंय और उसके फ़रिश्ते तुम मोमिनों पर सलाम भेजते हैं ताकि तुम्हें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएं। इस अंधकार से अभिप्राय हर प्रकार का अंधकार है जिसका प्रभाव पूरे विश्व में, मनुष्य के जीवन में और इतिहास के सभी कालखंडों में दिखाई देता है। जैसे अनेकेश्वरवाद व नास्तिकता का अधंकार, अज्ञानता व अत्याचार का अंधकार, अन्याय व भेदभाव का अधंकार, नैतिकता से दूरी का अधंकार, भाई बंधुओं को मारने का अंधकार और ग़लत सोच का अन्धकार, जो भौतिकता का परिणाम है और जिसमें आज का मनुष्य ग्रस्त हो चुका है।
यह कहना उचित होगा कि आज के समाज को, जो आध्यात्मिक शून्य व बहुत अधिक अनैतिकता में ग्रस्त है, समय के किसी भी कालखंड की तुलना में ईश्वरीय दूतों की शिक्षाओं की बहुत अधिक आवश्यकता है। आज के युग में देशों के पास विगत की तुलना में बेहतर व व्यापक नियम हैं किन्तु अनुभवों ने यह दर्शा दिया है कि मानव द्वारा बनाए गए नियम उसके आत्मिक रोग के निदान के लिए पर्याप्त नहीं हैं। सामाजिक, आर्थिक व सुरक्षा संबंधी परिस्थितियां किसी भी समय की तुलना में इस समय अधिक जटिल हो चुकी हैं और यह सबकुछ वर्चस्ववादी शक्तियों के वर्चस्व की देन है। दूसरी ओर आजके मनुष्य का मानसिक स्तर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के संदेश को समझने के लिए अधिक परिपक्व हो चुका है। ज्ञान जितना अधिक विस्तृत होगा इस्लाम का संदेश भी उतना ही फैलता जाएगा और बड़ी शक्तियां मानवीय भावनाओं के दमन और मनुष्य को अपने वश में करने के लिए पाश्विक हथकंडे जितना अधिक अपनाएंगी इस्लाम का प्रकाश उतना ही अधिक चमकेगा और मनुष्य को अपनी आत्मा की तृप्ति के लिए इसकी उतनी ही अधिक आवश्यकता पड़ेगी। आज इस्लाम के संदेश को समझने और अपनाने के लिए मनुष्य में व्याकुलता दिखाई पड़ रही है। वही संदेश जो एकेश्वरवाद, आध्यात्म, न्याय और मानवीय मूल्यों का संदेश है। जैसा कि लोगों विशेषकर वर्तमान समय के लोगों ने अपनी महाक्रान्तियों से यह दर्शा दिया है कि उन्हें आध्यात्म और नैतिकता की आवश्यकता है जो केवल ईश्वरीय दूतों की शिक्षा में ही मिलेगी।
पैग़म्बरे इस्लाम अपनी पैग़म्बरी का उद्देश्य, संसार में नैतिकता को उसके चरम पर पहुंचाना बताते हुए कहा करते थेः मुझे नैतिकता को संपूर्ण चरण तक पहुंचाने के लिए भेजा गया है। यह इस भौतिक संसार की ज़जीर की खोई हुई वह कड़ी है जिसे अंतिम ईश्वरीय दूत मानवता के लिए उपहार में लाया है।