अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

महिला जगत-7

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किस प्रकार से ख़ुश रहें।
हमारे जन्म के पहले दिन ही ईश्वर अपनी तत्व दर्शिता द्वारा हमसे कहता है कि जीवन मधुर है और हमें अपने जीवन काल में ये सीखने का प्रयास करना चाहिए कि उचित मार्ग कौन सा है ताकि उसपर चलकर हम मधुर जीवन व्यतीत कर सकें। यदि हमारा मनोबल सुद्धढ़ होगा और हम प्रसन्न चित रहें गे तो ईश्वर के इस वरदान द्वारा हम अपनी ख़ुशियों में दूसरों के भी भागीदार बना सकते हैं।
परन्तु हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि शान्ति एवं प्रसन्नता की भावना उत्पन्न करने के लिए आन्तिरक अभ्यास की आवश्यकता है। ख़ुश और प्रसन्नचित रहना संभव है एक अल्प अवधि के लिए हमें ख़ुश करे या हंसा दे परन्तु आन्तरिक अभ्यास के बिना ये बड़ी जल्दी हमारी आत्मिक परेशानी एवं उदासीनता का कारण बन जाता है।

जीवन में संभव है घर, गाड़ी या आधुनिक घरेलु उपकरण इत्यादि ख़रीदने पर हमें ख़ुशी हो परन्तु उल्लेखनीय है कि वास्तविक प्रसन्नता के लिए इन चीज़ों की आवश्यकता नहीं है। हमें ईश्वरीय वरदानों तथा विभूतियों को प्राप्त करके अधिक प्रसन्नता होनी चाहिए। दूसरों से प्रेम करना, रिश्तेदारों से मिलना - जुलना, अपने परिवार और साथियों का सम्मान और नैतिक मूल्यों का पालन जीवन में वास्तविक प्रसन्नता का कारण बनता है। यहां पर हम मधुर जीवन व्यतीत करने की कुछ पद्धितयों पर प्रकाश डाल रहे हैं।

हमें परिस्थितियों पर दृष्टि रखनी चाहिए।
जैसे घर पर अपने परिवार वालों के साथ भोजन करते समय हमें अपने कल की परीक्षा की चिन्ता करने के स्थान पर अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सोचना चाहिए, उनसे बात करनी चाहिए।
जब हम किसी रोचक घटना को याद करके हंसते हैं तो प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले हॉरमोनों की संख्या में वृद्धि हो जाती है और तनाव उत्पन्न करने वाले हॉरमोन कम हो जाते हैं।

वर्तमान समय में अधिकांश लोग पूरी नींद नहीं सो पाते। हमें अपने सोने का समय निर्धारित करना चाहिए। जो कार्य हमें पसन्द नहीं हैं या उनमें रूचि नहीं है उन्हें अपनी गतिविधियों से निकाल देना ही उचित है। जो कार्य करने हैं उनकी सूची बनाएं। इनमें से जो जो कार्य कर चुके हैं उनपर निशान लगा दें। इससे मनुष्य को शान्ति का आभास होता है। एक समय में एक ही काम करें। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जिन लोगों के कई व्यवसाय होते हैं उनको उच्च रक्त चाप का अधिक ख़तरा रहता है। ये याद रखिए कि टेलिफ़ोन पर बात करने के साथ - साथ खाना बनाने या सफ़ाई करने से कहीं बेहतर ये है कि आप आराम से एक कुर्सी पर बैठ कर टेलिफ़ोन पर बात करें।

अपने बगीचे में रूचि लीजिए। इससे ताज़ी हवा मिलने और शारीरिक सक्रियता के अतिरिक्त तनाव कम होगा और आप प्रसन्नचित होंगे। अपने हाथ से लगाए हुए पौघों को फूलते - फलते देख कर कौन है जिसका मन फूला नहीं समाए गी नए अनुसंधानों से पता लगा है कि सुगंघ मनुष्य में तनाव को कम करती है फूलों के बगीचे में टहलने से मनुष्य को अपूर्व शान्ति का आभास होता है। आज के इस शोरशराबे के जीवन में पुस्तकालय, संग्रहालय, बाग़ या धार्मिक स्थल शान्त स्थान समझे जाते हैं।
शान्ति प्राप्त करने के लिए इनमें से किसी का भी चयन किया जा सकता है।

दूसरों की सहायता करना, मनुष्य में सहायता की भावना उत्पन्न करने के अतिरिक्त हतारे भीतर ये भावना भी उत्पन्न करता है कि हम अपनी समस्याओं को महत्वहीन समझें। प्रसन्नचित लोग दूसरों की सहायता के लिए अधिक तत्पर रहते है और दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहने वाले अधिक प्रसन्नचित रहते हैं नि:सन्देह किसी की सहायता करके जो आनन्द प्राप्त होता है उसको वार्णित नहीं किया जा सकता है।

आप अवश्य ही जानते होंगे कि तनाव को दूर करने के लिए व्यायाम हर दवा से बेहतर है। आप अकेले टहलकर अपने बारे में सोच कर लाभ उठा सकते हैं। धीरे - धीरे पैदल चलने से हृदय की गति सुचारू रूप से चलती है, रक्त चाप नियंत्रित रहता है। अपने निकट संबंधियों के साथ अपने संबंधों को महत्व देना चाहिए। विभिन्न आयु के १,३०० पुरूष एवं महीलाओं पर अनुसंधान द्वारा पता चला है कि जिन लोगों के घनिष्ठ मित्रों की संख्या अधिक है उनमें रक्तचाप, रक्त की चर्बी, शरकरा तथा तनाव के हॉरमोन अपनी उचित सीमा में होते हैं। इसके विपरित अकेले रहने वाले या जिनके मित्र कम हैं ऐसे लोगों में समय से पूर्व मृत्यु का ख़तरा अधिक रहता है।

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जिन लोगों में मज़बूत धार्मिक आस्था है वे अधिक प्रसन्नचित होते हैं। ऐसे लोग कठिनाइयों का सामना करने में अधिक सक्षम होते हैं। ईश्वर पर आस्था द्वारा मनुष्य अपने जीवन का अर्थ समझ लेता है। यहां तक कि यदि मनुष्य को धर्म पर अधिक विश्वास न भी हो परन्तु आध्यात्मवाद में उसकी रूचि हो,फिर भी सकारात्मक विचारों द्वारा वह अपना जीवन मधुर बना सकता है।

अन्त में हम ये कहें गे कि हमारे पास जो ईश्वरीय विभूतियां हैं यदि हम उनकी गणना करें तो हम देखें गे कि वो कृपालु तथा दयालु ईश्वर हमसे कितना प्रेम करता है।
हमारा स्वास्थय, हमारे मित्र, हमारा परिवार, हमारी स्वतन्त्रता और शिक्षा इत्यादि हर चीज़ उसी की प्रदान की हुई विभूति है।

जो लोग इन विभूतयों को दृष्टिगत रखते हुए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं, वे अपने जीवन में सुखी रहते हैं क्योंकि उन्हें ईश्वर पर पूरा भरोसा रहता है।
और इस प्रकार मनुष्य अपने जीवन की हर सफलता तथा विफलता को ईश्वर की इच्छा समझ कर स्वीकार कर लेता है। और इस प्रकार मनुष्य का जीवन मधुर हो जाता है।

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