पैकरे शुजाअत शैख़ महमूद शलतूत
शैख़ महमूद शलतूत पांच शव्वाल सन 1310 हिजरी को मिस्र के बोहैरा इस्टेट में वाक़े शहर (इताइल बारुद) के एक देहात (मन्शात नबी मनसबर) में वहाँ के एक इल्मो अदब परवर घराने में पैदा हुए आपके बाप शैख़ मुहम्मद ने आपका नाम महमूद रखा और बेटे की तालीमो तरबीयत की राह में अन्थक कोशिश की।
तालीम का आगाज़
अभी महमूद की उम्र की सातवीं बहार नहीं गुज़री थी कि बाप का इन्तेकाल हो गया आप के चचा अब्दुल क़वी शल्तबत ने आपकी सरपरस्ती का बेड़ा उठाया। इब्तेदा से ही महमूद के तमाम कामों में महारत व इस्तेदाद के आसार नुमायाँ थे इसी लिए आपके चचा ने उलूम व मआरिफ़े इस्लामी के हुसूल की ख़ातिर गाँव के मकतब में भेज दिया।
मिस्र के मकतिब में यह क़ानून था कि दुरुसे अदबीयीत की तालीम हासिल करने से पहले तालिबे इल्म पूरे कुरआन को हिफ्ज़ करे। महमूद भी दूसरे तालिबे इल्मों की तरह हर चीज़ से पहले कुरआन को हिफ्ज़ करने में मशगूल हुए और बड़े मुख्तसर अरसे में कुरआन हिफ्ज़ कर लिया।
तकमीली तालीम
शैख़ महमूद शलतूत ने सन 1328 हिजरी में (बमुताबिक सन् 1906 ई.) में इल्मी कमालात के हुसूल की ख़ातिर इस्कन्द्रिया का सफ़र किया और इस्कन्द्रिया युनिवर्सिटी में तालीम हासिल करने लगे।
आपकी इल्मी सलाहीयत व क़ाबेलियत से वहाँ के असातीद और तालिबे इल्मों को हैरत हुई आपने अपनी अन्थक कोशिशों को बरूए कार लाकर सन् 1340 हिजरी (मुताबिक 1928) में इस्कन्द्रिया युनिवर्सिटी से वहाँ की सबसे बड़ी इल्मी सनद हासिल की। और कॉलेज की मुम्ताज़ शागिर्दी की हैसियत से आपका तआरुफ़ हुआ जबकि अभी आपकी उम्र सिर्फ 25 साल थी, आप सन् 1341 हिजरी में (फरवरी 1919 ई.) में अपनी तालीम मुकम्मल करने के बाद उसी कॉलेज में बहैसियत उस्ताद तदरीस में मशगूल हो गये।
शैख़ शलतूत की तालीमो तदरीस का ज़माना मिस्र के अवामी इन्क़ेलाब का दौर था जिसकी क़यादत सअद ज़गलूल कर रहे थे। मिस्र के शहर और देहात सअद ज़गलूल की हिमायत और ग़ासिबों के खेलाफ़ मुज़ाहेरात से छलक रहे थे शैख़ शलतूत में ग़ैर जानिब दार नहीं रहे और अपने इन्क़ेलाबी फरीज़े पर अमल करते हुए मिस्री अवाम के इन्क़ेलाब में ज़बान व कलम से ख़िदमत में मशगूल हुए।
अल अज़हर में वुरुद
शैख़ शलतूत जो शैख़ मुहम्मद मुस्तफ़ा मराग़ी से तअज्जुब खेज़ अक़ीदत रखते थे और बड़े मुताअस्सिर थे जिस वक्त शैख़ मराग़ी सन 1360 हिजरी (1938) में अल अज़हर युनिवर्सिटी के रईस थे उन्हें शैख़ महमूद शलतूत का एक मक़ाला मुतालेआ करने से शलतूत की गहरी फिक्र, अदबियाते अरब पर तसल्लुत और निगारिश में महारत का अन्दाज़ा हुआ उन्होंने शैख़ शलतूत से अल अज़हर युनिवर्सिटी की आलिया क्लासों में तदरीस की दावत दी। शलतूत जो कि इस्कन्द्रिया युनिवर्सिटी में शागिर्दों की तालीमो तरबीयत में मशगूल थे। उस दावत पर लब्बैक कहते हुए क़ाहेरा रवाना हो गये और अल अज़हर युनिवर्सिटी में बहैसियत उस्ताद के तहरीस में मशग़ूल हो गये।
आपकी पै दर पै कामयाबियाँ बाइस हुईं की सन 1361 हिजरी (मुताबिक सन 1929 ई, में आपका इन्तेख़ाब अल अज़हर युनिवर्सिटी के खुसूसी मरहले के लिए मुदर्रिस की हैसियत से हुआ।
असातीद
शैख़ शलतूत ने बहुत से असातेज़ा के सामने ज़ानू ए अदब तह किया है लेकिन तीन असातेज़ा का आपकी तॉलीमो तरबीयत में बड़ा अहम किरदार रहा है:
1- उस्ताद शैख] अलजीज़ादीः आप शैख] शलतूत के इस्कन्द्रिया कॉलेज में उस्ताद थे।
2- शैख़ अब्दुल मजीद सलीमः शैख़ सलीम ने सन 1304 हिजरी (अक्तूबर सन 1882) में मिस्र में आँख खोली, मुकद्देमाती तॉलीम हासिल करने के बाद अल अज़हर युनिवर्सिटी में दाखिल हुए और 1330 हिजरी में उसी युनिवर्सिटी से फारीगुत्तहसील हुए। तॉलीम पूरी करने के बाद आप काज़ी, मुदर्रीस, हैयते फतवा के मिम्बर की हैसियत से काम करने लगे और आप शैख़ मुहम्मद अब्दहु के शागिर्दों में शुमार होते हैं सन् 1340 हिजरी मुताबिक सन 1918 ई, में अपनी तहसीलात को मुकम्मल करने के बाद उसी कालेज में उस्ताद की जगह तदरीस करने में मशगूल हो गये। शैख़ शलतूत की तालीमो तदरीस का जमाना (सन 1341 हिजरी बमुताबिक सन 1919 ई) सअद ज़गलूल की रहबरी व क़यादत में मिस्र के अवामी इन्क़ेलाब के हम अस्र था। मिस्र के शहरों देहात सअद ज़गलूल की हिमायत और ग़ासिबों के ख़िलाफ़ मुज़ाहेरात से सरशॉर थे। शैख़ शलतूत भी बेतरफ़ व ग़ैर जानिबदार न थे और अपनी इन्क़ेलाबी ज़िम्मेदारियों पर अमल पैरा थे और अपनी ज़बान व कलम से मिस्री अवाम के इन्क़ेलाब की ख़िदमत में मसरुफ थे।
अल अज़हर युनिवर्सिटी में दाख़िला
शैख़ मुहम्मद मुस्तफ़ा मराग़ी का अल्लामा शलतूत पर काफी हद तक अक़ीदती, मज़हबी असर था शैख़ मराग़ी ने जब सन् 1360 हिजरी मुताबिक सन 1938 ई में अल अज़हर युनिवर्सिटी की रियासत व ज़आमत संभावी। उसी दौरान आपने शैख़ महमूद शलतूत का एक मक़ाला मुतालआ फ़रमाया और उनके गहरे अफ्कार, अरबी अदबीयात पर तसल्लुत और कलम व बयान पर उनके ग़ल्बे का अन्दाज़ा होता है, इसी लिए शलतूत को अल अज़हर युनिवर्सिटी के आला कलासों में तदरीस की दावत दी गई उस ज़माने में शैख़ शलतूत इस्कन्द्रिया कॉलेज में तालिबे इल्मों की तालीमो तरबीयत में मशगूल थे शैख़ मराग़ी के दावत नामे पर लब्बैक कहते हुए क़ाहेरा का सफर इख़्तेयार किया और अल अज़हर युनिवर्सिटी के सुतुहे आलिया के उस्ताद बन गए।
पै दर पै आप की कामयाबियाँ इस बात का सबब बनीं की सन 1361 हिजरी मुताबिक सन 1929 ई में अल अज़हर युनिवर्सिटी के शुसूसी मर्हले के मुदर्रीस का मर्तबा व दर्जे पर चुने जाऐं.
असातिदः-
शैख शलतूत ने बहुत से असातेज़ा के महज़र से कस्बे फैज़ किया है लेकिन तीन असातेज़ा का आपकी तॉलीमो तरबीयत में बड़ा अहम किरदार रहा है:
1. उस्ताद शैख] अलजीज़ादीः आप शैख] शलतूत के इस्कन्द्रिया कॉलेज में उस्ताद थे।
2. शैख़ अब्दुल मजीद सलीमः शैख़ सलीम ने सन् 1304 हिजरी (अक्तूबर सन 1882) में मिस्र में आँख खोली, मुकद्देमाती तॉलीम हासिल करने के बाद अल अज़हर युनिवर्सिटी में दाखिल हुए और 1330 हिजरी में उसी युनिवर्सिटी से फारीगुत्तहसील हुए। तॉलीम पुरी करने के बाद आप काज़ी, मुदर्रीस, हैयते फतवा के मिम्बर की हैसियत से काम करने लगै और आप शैख़ मुहम्मद अब्दहु के शागिर्दों में शुमार होते हैं।
शैख़ अब्दुल मजीद सलीम, तक़रीब बैनल मज़ाहिब के संस्थापकों में से एक और उस तन्ज़ीम के सरगर्म रुक्न थे। आप की ख़ास सिफ़त सराहत और शुजाअत थी। यही वजह है कि जब आपने देखा कि सन 1368 हिजरी में हुकूमत अल अज़हर युनिवर्सिटी के उमूर में मुदाख़ेलत कर रही है तो आपने बे नज़ीर सरीह इक़्दाम करते हुए अल अज़हर युनिवर्सिटी की रियासत व ज़आमत से इस्तिफा दे दिया। दरबारे शाह का रईस दीवान, जो आपके इस इक़्दाम से बेहद नाराज़ था अब्दुल मजीद सलीम को घमकी दे बैठा और बोलाः इस इक़्दाम से उन्हे बहुत से ख़तरात का सामना करना पड़ेगा। शैख़ सलीम ने कमाले शुजाअत व सराहत के साथ जवाब दिया कि जब तक मैं अपने घर और मस्जिद के दरमीयान हरकत कर रहा हूँ मुझे कोई ख़तरा लाहक़ नहीं है। (बी आज़ार शीराज़ी सन 1379 श सफहा 24)
शैख़ सलीम ने तक़रीब और इस्लामी इत्तेहाद के मैदान में बरसों सई व कोशिश के बाद 10 सफर सन् 1374 हिजरी बरोज़े पन्ज शन्बा इस दारे फ़ानी को अलविदा कहा। (खफाजी, जिल्द 1, सफहा 306)
शैख़ मुहम्मद मुस्तफ़ा मराग़ी: शैख़ मराग़ी सन् 1303 हिजरी मुताबिक मार्च सन 1881 ई शहरे मराग़ा में पैदा हुए, जो मिस्र के सोहाज इस्टेट का तआल्लुका है। इब्तेदाई तालीम के बाद कुरआने मजीद हिफ्ज़ करने में मशगूल हुए और बड़ी मुख़्तसर मुद्दत में हाफिज़े कुरआन बन गए। आप शैख़ मुहम्मद अब्दहु के शागिर्दों और मुरीदों में से थे और उनके अफ्कार से मुत्अस्सिर होकर तक़रीब की राह पर गामज़न हुए थे।
रशीद रज़ा ने आपके बारे में लिखा हैः आप शैख़ मुहम्मद अब्दहु के ख़ालिस तरीन भाईयों और मुरीदों में से थे। (बी आज़ार शीराज़ी सन 1379 श सफहा 24)
जिस वक्त मुहम्मद अब्दहु ने सुडान का सफ़र किया तो उन्हें अपने साथ ले गए और आप वहाँ मुक़द्देमात के फ़ैसले में मशगूल हुए शैख़ शलतूत अपने उस उस्ताद की इन अल्फाज़ में तारीफ़ करते हैं: शैख़ मुहम्मद मराग़ी के पास जो कुछ इल्म अक़्ल व अफ्कार थे वह सब जनाब मुहम्मद अब्दहु के शागिर्द होने की वजह से थे।
मजमा दारुत तक़रीब के रईस जनाब मुहम्मद तक़ी क़ुम्मी उनके बारे में लिखते हैं किः आप (शैख़ मराग़ी) बा वकार और बा शख्सियत इन्सान थे और वड़ी मुनज्ज़म और वसीअ फिक्रो नज़र के मालिक थे। आप बड़े फ़आल थे और अशख़ास के दरमीयान तअल्लुकात बनाने और बुनियादी नुकात पर इत्तेफाक़े राय पैदा करने में बहुत बड़ा हिस्सा रखते थे उन्होंने बहुत से उलमा व बुज़ुरगाने दीन की जिनमें सरे फ़ेहरिस्त शैख़ मुस्तफ़ा अब्दुल रज्ज़ाक़ और शैख़ अब्दुल मजीद सलीम थे, के लिए माहौल साज़गार किया। (बी आज़ार शीराज़ी सन 1379 श सफहा 65)
शैख़ मराग़ी ने बहुत से इल्मी आसार क़ुरआन और इस्लामी मआरिफ़ के मैदान में छोड़े हैं जिनमें से एक (अवलिया उल महजूरीन) है जिसमें कुरआन के तर्जुमे लुग़वी अबहास और सुर ए लुकमान, हुजरात, हदीद, अस्र व गरा की तफ्सीर पर मुश्तमिल दुरुस हैं। (अहमदी सन 1383 श, सफहा 54)
आपने माहे रमज़ान सन् 1368 हिजरी में इस दारे फ़ानी को अलविदा किया और आपके जनाज़े को अज़ीमुश्शान तशीय के बाद बीबी सय्यदा नफीसा के मक़बरे में दफ़्न किया गया। (मिजाहिद, सन 1994 ई जिल्द 1, सफहा 400)
शागिर्दान
1. अब्बास महमूद एक़ाद
अब्बास महमूद एक़ाद, शायर, मोजद्दद, नक़्क़ाद और मिस्र के मारुफ व मशहूर ख़बर निगार थे। सन 1311 हिजरी मुताबिक सन 1889 ई में शहरे इस्वान में आँख खोली, आपका अस्ली पेशा ख़बर निगारी था लेकिन शेर गोई में बहुत माहिर थे, आपके अक्सर आसार जिनमें आपका दीवाने शेर, वहीयुल अरबईन, हदियतुल करवान और आबेरानुस्सबील, शेरो शायरी के मैदान में और दो किताब अबक़रीयता मुहम्मद और अबक़रीयता उमर, इस्लामी शख़्सीयात के सिलसिले में तॉलीफ़ की है। (अल्मुन्जद फील आलाम, सफ़हा 471)
2. शैख़ अली अब्दुर रज़्ज़ाक
अल अज़हर युनिवर्सिटी से इस्तिफ़ा
शैख़ मुस्तफ़ा मराग़ी मुसम्मम थे कि अल अज़हर में अपने इस्लाही प्रोप्रामों को अमली जामा पहनायेंय़ इसी लिए मिस्री हुकूमत की तव्ज्जोह मबज़ूल कराने के लिए अपना इस्लाही लाएह ए अमल हुकूमते वक्त को पेश किया और शैख़ शलतूत ने भी कई मकाला लिख कर शैख़ मराग़ू के प्रोग्रामों की हिमायत की और उनके इस्लाही लाएह ए अमल को अल अज़हर युनिवर्सिटी की अमली सक़ाफ़ती हालत के बेहतर बनाने की राह में मोवस्सर इक्दाम करार दिया।
फासिद और मग़रीब से वाबस्ता मिस्री हुकूमत ने इस लाएह की मुख़ालेफ़त की लेहाज़ा शैख़ मराग़ू ने ऐतेराज़ के तौर पर अल अज़हर युनिवर्सिटी की रियासत व ज़आमत से इस्तेफा दे दिया। मिस्र की हुकूमत ने आपका इस्तीफा कबूल करते हुए शैख़ मुहम्मद ज़वाहरी को अल अज़हर युनिवर्सिटी का नया रईस चुन लिया। उन्होंने अल अज़हर की ज़आमत व क़यादत संभालते ही दरबारी प्रोग्रामों को इजरा करना शुरु कर दिया लेकिन ज़िन्दा दिल उलमा की मुख़ालेफ़त से र बरु हुए। ज़वाहरी ने अपने को मुख़ालेफ़ीन के मौज मारते समन्दर के रुबरु देख कर उस मुख़ालेफ़त के अस्ली अवामील को माज़ूल कर दिया जिन में शैख़ शलतूत भी थे जिन्हें सन 1352 हिजरी में अपनी पोस्ट से बर्खास्त कर दिया गया।
आप माज़ूली के बाद बेकार नहीं बैठे रहे और अपने शागिर्द शैख़ अली अब्दुर्रज़्ज़ाक के साथ शरई मोहकमे की वकालत में और अख़बार की कालम नवीसी में मशगूल हो गये। आप अपने उसूली और बुनियादी मौकिफ़ से ज़र्रा बराबर पीछे नहीं हटे और अपने मक़ालों का अल अज़हर के अन्दर इस्लाहात की ज़रुरत पर ताकिद करते रहे।
अल अज़हर के ज़िम्मेदारों को बहुत जल्द ऐहसास हो गया कि बुज़ुर्ग असातिज़ा जैसे शलतूत के न होने से अल अज़हर युनिवर्सिटी की हैसियत पर हर्फ़ आ रहा है लेहाज़ा सन 1257 हिजरी मुताबिक सन् 1935 में दोबारा आप को अल अज़हर युनिवर्सिटी में तदरीस की दावत दी गई इस तरह आप उसी साल दुबारा अल अज़हर के शरीअत कॉलेज में पढ़ाने लगे।