मफ़ाहीमे क़ुरआन
अहले बैत (अ) क़ुरआन की नज़र में
- में प्रकाशित
उलमा-ए-हक़ ने इस सिलसिले में बड़ी बड़ी किताबें लिखी हैं और मुकम्मल तफ़सील के साथ आयात व उनकी तफ़्सीर का तज़करा किया है।
जन्नत
- में प्रकाशित
मर्द या औरत में जो भी अच्छे काम अंजाम दे और वह मोमिन भी हो तो उन लोगों को जन्नत में दाखिल कर दिए जाएगा और उन पर ज़रा भी ज़ुल्म नहीं होगा।
क़ुरआन से क़ुरआन की तफ़सीर का नमूना
- में प्रकाशित
खुदावंदे आलम अपनी किताब में कई जगह फ़रमाता है कि हर चीज़ का पैदा करने वाला ख़ुदा है। (सूर ए ज़ुमर आयत 65) जिस चीजॉ को शय या चीज़ कहा जाता है वह ख़ुदा के अलावा है। यही मज़मून क़ुरआने मजीद में चार बार आया है और उस के लिहाज़ से जो चीज़ भी दुनिया में मख़लूक़ फ़र्ज़ की जाये वह ख़ुदा ने ही पैदा की है और उस की ज़िन्दगी भी ख़ुदा से वाबस्ता है।
तहरीफ़ व तरतीबे क़ुरआन
- में प्रकाशित
तहरीफ़ का मसअला उम्मते क़ुरआन में इस क़द्र ज़ियादा अहमियत रखता है कि शायद कोई ऐसा साहिबे क़लम हो जिस ने क़ुरआन के बारे में कुछ लिखा हो और तहरीफ़ को मौज़ू ए सुख़न न बनाया हो।
इंसान के जीवन पर क़ुरआने करीम के प्रभाव
- में प्रकाशित
-
- लेखक:
- डा. रज़ाई
- स्रोत:
- हिन्दी अनुवादक- सैय्यद क़मर ग़ाज़ी
क़रआन पढ़ने वाला अल्लाह की याद से तिलावत शुरू करता है अर्थात कहता है कि बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम और यही ज़िक्र उसको अल्लाह की तरफ़ आकर्षित करता है।यूँ तो क़ुरआन पढ़ने वाला कभी भी अल्लाह की ओर से अचेत नही रहता । और यह बात उसकी आत्मा के विकास में सहायक बनती है।
एक से ज़्यादा शादियाँ
- में प्रकाशित
मौजूदा ज़माने का सबसे गर्म विषय एक से ज़्यादा शादियाँ करने का मसला है। जिसे बुनियाद बना कर पच्छिमी दुनिया ने औरतों को इस्लाम के ख़िलाफ़ ख़ूब इस्तेमाल किया है और मुसलमान औरतों को भी यह यक़ीन दिलाने की कोशिश की है कि एक से ज़्यादा शादियों का क़ानून औरतों के साथ नाइंसाफ़ी है और उनकी तहक़ीर व तौहीन का बेहतरीन ज़रिया है।
क़ुरआने मजीद और नारी
- में प्रकाशित
इस्लाम में नारी के विषय पर अध्धयन करने से पहले इस बात पर तवज्जो करना चाहिये कि इस्लाम ने इन बातों को उस समय पेश किया जब बाप अपनी बेटी को ज़िन्दा दफ़्न कर देता था और उस कुर्रता को अपने लिये इज़्ज़त और सम्मान समझता था।
पुरुष, महिलाओं के अभिभावक हैं
- में प्रकाशित
और हे पुरुषो! तुम्हें जिन महिलाओं की अवज्ञा का भय हो उन्हें आरंभ में समझा दो, फिर उन्हें बिस्तर में अकेला छोड़ दो और यदि फिर भी उन पर प्रभाव न हो तो उन्हें मारो फिर यदि वे तुम्हारी बात मानने लगें तो उनके विरुद्ध ज़ियादती का कोई मार्ग मत खोजो। नि:संदेह ईश्वर अत्यंत महान और सबसे उच्च है। (4:34)
क़ुरआने मजीद और औरतें 2
- में प्रकाशित
इस इरशादे गिरामी में ज़िना के दोनों मफ़ासिद की वज़ाहत की गयी है कि इज़्देवाज़ के मुमकिन होते हुए और उसके क़ानून के रहते हुए ज़िना और बदकारी एक खुली हुई बेहयाई है कि यह तअल्लुक़ उन्ही औरतों से क़ाएम किया जाए जिनसे अक़्द हो सकता है
कुरआन के चमत्कारी आयाम
- में प्रकाशित
-
- लेखक:
- आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी
- स्रोत:
- इस्लाम के मूल सिध्दांत
क्या वे कुरआन पर ध्यान नही देते अगर वह र्इश्वर अलावा किसी और के पास से होता तो उन्हे उस में बहुत विरोधाभास दिखार्इ देते।
सूर -ए- अनआम का संक्षिप्त परिचय
- में प्रकाशित
सारी प्रशंसा ईश्वर के लिए है जिसने आकाशों और धरती की रचना की और उनमें अंधकार तथा प्रकाश बनाया परंतु काफ़िर, लोगों व वस्तुओं को अपने पालनहार का समकक्ष ठहराते हैं।
क़ुरआन और अहकाम
- में प्रकाशित
ऐ ईमान वालो जब भी नमाज़ के लिए खड़े हो तो पहले अपने चेहरों को और कोहिनियों तक हाथों को धोओ और अपने सिर और गट्टे तक पैरों का मसह करो और अगर जनाबत की हालत में हों तो ग़ुस्ल करो और अगर मरीज़ हो या सफ़र में हों या पख़ाना वग़ैरह किया हो या औरतों के साथ हमबिस्तर हुए हो और पानी न मिले तो पाक मिट्टी से तयम्मुम कर लो, इस तरह कि अपने चेहरे व हाथों का मसह कर लो कि ख़ुदा तुम्हारे लिए किसी तरह की ज़हमत नही चाहता, बल्कि यह चाहता है कि तुम्हें पाक व पाकीज़ा बना दे और तुम पर अपनी नेअमतों को तमाम कर दे। शायद तुम इस तरह उसके शुक्र गुज़ार बंदे बनजाओ। ।(मायदह 6)
कुरआन में वादा और अमानत
- में प्रकाशित
महत्वपूर्ण आदेश आज्ञाकारी और पूर्ण समर्पित लोगों को ही दिए जाते हैं। जो लोग समर्पित नहीं होते वे किसी को अपना मार्गदर्शक भी नहीं मानते और न ही वे अपने घमंड में उनकी दिखाई राह पर चलते हैं। इसीलिए यहां जो आदेश दिए गए हैं, उनका संबोधन ईमान वालों से है।
वलीद बिन मुग़ीरा का क़िस्सा
- में प्रकाशित
जिन लोगों को क़ुरआने मजीद ने चैलेंज किया था उसमें से एक वलीद बिन मुग़ीरा था जो उस ज़माने में अरब के दरमियान फ़िक्र व तदब्बुर के लिहाज़ से बहुत मशहूर था
मुफ़स्सेरीन और उलामा की नज़र में मोहकम और मुतशाबेह के मआनी
- में प्रकाशित
मुमकिन है कि यह कहा जाये कि आयाते मुतशाबेहात से मक़सद और मुराद वही हुरुफ़े मुक़त्तेआ (हुरूफ़े मुख़फ़्फ़फ़) हैं जो कि बाज़ सूरों के शुरु में आते हैं
क़ुरआने मजीद में मोहकम व मुतशाबेह मौजूद है
- में प्रकाशित
हर मोमिन जो अपने ईमान में रासिख़ और साबित क़दम है उसका ईमानी फ़र्ज यह है कि आयात मोहकमात पर ईमान लाये और अमल करे
क़ुरआने मजीद ने क्यों दो तरीक़ों यानी ज़ाहिरी और बातिनी तौर पर बयान फ़रमाया है?
- में प्रकाशित
फ़िक्र व शऊर, मानवीयात को तसव्वुर और महसूस करने की ताक़त और शक्ती नही रखते।
पैग़मबरे अकरम (स) और आईम्मा (अ) के बयानात के हुज्जत होने के मअना
- में प्रकाशित
यह हुज्जत पैग़म्बरे अकरम (स) और आईम्म ए अहले बैत (अ) की ज़बानी वाज़ेह बयान के मुतअल्लिक़ है
ख़ुद क़ुरआने मजीद कैसी तफ़सीर कबूल करता है?
- में प्रकाशित
क़ुरआने मजीद यह भी चैलेंज करता है कि यह किसी इंसान का कलाम नही है
शिया मुफ़स्सेरीन और उनके मुख़्तलिफ़ तबक़ात का तरीक़ ए कार
- में प्रकाशित
शिया हज़रात क़ुरआने मजीद की नस्से शरीफ़ा के मुताबिक़ पैग़म्बरे अकरम (स) की हदीस को क़ुरआनी आयात की तफ़सीर में हुज्जत समझते हैं