ख़ुतब ए फ़िदक
प्रिय पाठकों हम आपके सामने पैग़म्बर की इकलौती बेटी वह बेटी जिसे आपने अम्मे अबीहा कहा , वह बेटी जो सारे संसार की औरतों की सरदार हैं, वह बेटी जो सच्ची है, वह बेटी जो पवित्र है वह बेटी जिसका क्रोध पैग़म्बर का क्रोध हैं और जिसकी प्रसन्नता पैग़म्बर की प्रसन्नता है, के फ़िदक के ख़ुतबे का कुछ भाग प्रस्तुत कर रहे हैं।
स्पष्ट रहे कि यह फ़िदक के पूरे ख़ुतबे का अनुवाद नहीं है बल्कि हम केवल उस भाग के कुछ अंशों को यहां पर अनुवादित कर रहे हैं जिसमें आपने फ़िदक और अपनी मीरास के सम्बंध में फ़रमाया है। अगर ईश्वर ने चाहा और हमको तौफ़ीक़ दी तो किसी दूसरे मौक़े पर हम आपके सामने पूरे ख़ुतबे का अनुवाद प्रस्तुत करेंगे
और तुम यह समझते हो कि हम अहलेबैत का मीरास में कोई हक़ नहीं है! क्या तुम लोग जाहेलियत का आदेश जारी कर रहे हो?! और ईमान वालों के लिए ईश्वरीय आदेश से बेहतर क्या आदेश हो सकता है? क्या तुम लोग नहीं जानते हो? निःसंदेह चमकते हुए सूर्य की भाति (यह बात) तुम्हारे लिए रौशन है कि मैं उनकी (पैग़म्बर) बेटी हूं। तुम मुसलमानों से यह आशा नहीं थी! क्या मेरे पिता की मीरास मुझ से बलपूर्वक छीनी जाएगी?
हे अबू क़हाफ़ा के बेटे, क्या कुरआन में लिखा है कि तुम तो अपने पिता से मीरास पाओ लेकिन मुझे अपनी पिता की मीरास न मिले? आश्चर्यजनक बात पेश की है या दीदादिलेरी के साथ रसूले ख़ुदा (स) के परिवार से क़ते रहम और वादे को तोड़ने के लिए यह कार्य किया है! क्या तुम ने जानबूझकर क़ुरआन को छोड़ दिया है और उसे अपनी पीठ के पीछ फेंक दिया है? ख़ुदा क़ुरआन में फ़रमाता है “सुलैमान ने दाऊद से मीरास पाई” (1) और जब यहया और ज़करिया की कहानी कहते हुए जहां ज़करिया ने फ़रमाया “ख़ुदाया... मुझे एक बेटा दे जो मुझ से और आले याक़ूब से मीरास पाए” (2) और फ़रमाया है “और मृत्कों के रिश्तेदारों में कुछ लोग दूसरों से क़ुरआन में मीरास पाने में दूसरों पर प्राथमिक्ता रखते हैं” (3) और फ़रमायाः “ख़ुदा तुम्हारी औलादों के सिलसिले में सिफ़ारिश करता है कि बेटे बेटियों से दोगुनी मीरास पाएंगे”। (4) और फ़रमाया है “अगर मरने वाला अपने पीछे कोई चीज़ छोड़ जाए तो माता पिता और परिवार वालों के लिए अच्छी वसीयत करे, यह वह हक़ हैं जिसे मुत्तक़ियों को पूरा करना चाहिए”। (5)
क्या तुम लोग यह समझते हो कि मेरे लिए मीरास में कोई हिस्सा नहीं है और मुझ तक मेरे पिता से कोई मीरास नहीं पहुंचेगी और मेरे औरे मेरे पिता के बीच कोई संबंध नहीं है?! क्या ख़ुदा ने तुम पर कोई आयत उतारी है कि जिससे मेरे पिता को उस (मीरास के क़ानून से) से निकाल दिया है? या तुम यह कह रहे हो कि हमारा दीन अलग अलग है
(क्योंकि यह इस्लामी क़ानून है कि अगर किसी मुसलमान की कोई औलाद काफ़िर हो जाए तो उसको मीरास में से कुछ नहीं मिलेगा और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा यहां पर यहीं बताना चाह रही हैं कि हे मुसलमानों क्या तुमको यह लगता है कि नबी की बेटी नबी के दीन से फिर गई है जो तुम उसको नबी की मीरास नहीं दे रहे हो, हज़रते ज़हरा के यह शब्द एक वास्तविक्ता को दिखा रहे हैं, यह कोई छोटी बात नहीं थी, और बाद के ज़माने ने यह दिखा भी दिया कि यह लोग पैग़म्बर के परिवार वालों को मुसलमान भी नहीं मानते थे उनके अतिरिक्त सम्मान की तो बाद ही दूर हैं, आप क्या समझते हैं कि कर्बला के मैदान में हुसैन का गला ऐसे ही काट दिया गया नहीं!बल्कि यह नारा दिया गया कि यह एक ख़ारेजी है, यह मुसलमान नहीं है, हुसैन के बाद अहलेहरम को ग़ुलामों को बेचे जाने वाले बाज़ार में लाया गया ताकि उनको बेचा जा सके। यह क्या था? इस्लामी क़ानून के आधार पर किसी मुसलमान को तो नहीं बेचा जा सकता है। यह यज़ीदी लोग अपने इस कार्य से बताना चाहते थे कि हम तो अहलेबैत को मुसलमान ही नहीं मानते हैं, सोंचिए कि जो लोग अहलेबैत को मुसलमान मानने के लिए तैयार न हो अगर वह इस्लाम के नाम पर मुसलमानों के ख़लीफ़ा बन जाए तो क्या होगा, और शायद इसीलिए इमाम हुसैन (अ) ने फ़रमाया था कि अगर यज़ीद जैसा इन्सान मुसलमानों का ख़लीफ़ा हो जाए तो इस्लाम पर फ़ातेहा पढ़ लेना चाहिए)
जो एक दूसरे से मीरास नहीं पाएंगे?! क्या मैं और मेरे पिता दोनों एक दीन के मानने वाले नहीं हैं?! या फिर तुम लोग क़ुरआन के आम और ख़ास के बारे में मेरे पिता (पैग़म्बर) और मेरे चचाज़ाद (अली) से अधिक जानते हो?!
अब जबकि तुम लोग फ़िदक को नहीं दे रहे हो तो ज़ीन और लगाम से सज़ी हुई इस सवारी को ले जाओ ताकि क़ब्र में यह तुम्हारी साथी हो और क़यामत के दिन तुम्हारी जान का वबाल हो। ईश्वर बेहतरीन फ़ैसला करने वाला और हज़रत मोहम्मद (स) बेहतरीन सरपरस्त और क़यामत बेहतरीन वादा स्थल है। थोड़े ही समय के बाद तुम लज्जित होगे, और क़यामत के दिन अन्याय करने वाले हानि उठाएंगे। और तुम उस समय लज्जित होगे जब उसका तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा, और हर महत्वपूर्ण ख़बर के घटने का एक समय है, और शीघ्र ही तुम समझ जाओगे कि अपमानित कर देने वाला अज़ाब किसके गरेबान को पकड़ेगा और कौन है वह जिस पर सदैव अज़ाब नाज़िल होगा।
पैग़म्बर (स) को सम्बोधित किया
फ़िर हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) ने अपने पिता की क़ब्र पर निगाह डाली और आपका दिल भर आया और आपने कुछ शेरों को पढ़ते हुए यह फ़रमायाः
हे पिता! आपकी वफ़ात के बाद बड़ी बड़ी घटनाएं और कठिन बातों ने सर उठा लिया, कि अगर आप उस समय होते तो दुख हमारे लिए बड़ा नहीं होता।
हम उस धरती की भाति जिसने मूसलाधार बारिश को खो दिया हो आपको को खो दिया, और आपकी क़ौम ख़राब (फ़ासिद) हो गई, तो आप इनपर गवाह रहे और गायब न हो। और हर हक़दार के लिए ख़ुदा के नज़दीक बरतरी है दूसरे रिश्तेदारों से। जब आप चले गए और मिट्टी हमारे और आपके बीच आ गई तो लोगों ने अपने कीनों को हम पर ज़ाहिर कर दिया।
अब जब्कि आप हमारे बीच से चले गए हैं और सारी ज़मीन छीन ली गई है तो लोग बने हुए चेहरों के साथ हमारे सामने आते हैं और हम ज़लील हो चुके हैं, और शीघ्र ही क़यामत के दिन हमारे परिवार पर अत्याचार करने वाला समझ जाएगा कि वह कहां जाएगा।
आप चौदहवी के चांद और रौशनी थे कि आपसे प्रकाश लिया जाता था और ख़ुदा की तरफ़ से आसमानी किताबें सम्मान के साथ आप पर नाज़िल होती थीं।
और जिब्रईल ईश्वरीय आयतों को लाने से हमसे मानूस थे और अपने जाने से आपने नेकियों एवं भलाइयों के सारे द्वार बंद कर दिए। मेरा शहर अपने सारे फैलाव के साथ मुझ पर तंग हो गया है और आपके दो नवासे ज़लील हो गए हैं जो मेरे लिए बला है।
काश आपके जाने से पहले हमको मौत आ गई होती जब आप हमारे बीच से जाते और मिट्टी का ढेर आप तक पहुंचने में रुकावट हो गया। हम अपने उस प्यारे के चले जाने के ग़म की मुसीबत में गिरफ़्तार हुए हैं जैसा ग़म किसी ने भी अरब और अजम में नहीं देखा है और ऐसे प्यारे के जाने का दुख नहीं देखा है।
तो जितना भी इस दुनिया में जीवित रहें और जब तक हमारी आँखें बाक़ी हैं आपके लिए बहते हुए आसुओं के साथ रोएंगे।
फिर आपने यह शेर पढ़ेः
जिस दिन तक आप जीवित थे मेरी हिमायत और समर्थन करने वाला था और मैं सुकून के साथ आती जाती थी और आप मेरे बाज़ू और सहायक थे, लेकिन आज एक व्यक्ति के सामने छोटी हो गई हूं और मैं उससे दूरी करूंगी और अपने हाथों से अत्याचारियों को दूर करूंगी।
जबकि क़ुमरी (फ़ाख़्ते की तरह का एक पक्षी) दुख के कारण रात के अंधेरे में डाली पर रोती है, मैं दिन को उजाले में अपनी मुसीबतों पर आंसू बहाती हूं।
अंसार से सम्बोधन
फ़िर आपने अंसार की तरफ़ निगाह की और फ़रमायाः
हे पैग़म्बर के ज़माने की निशानियों, और हे दीन की सहायता करने वालों और इस्लाम को पनाह देने वालों! मेरी सहायता करने में यह कैसी सुस्ती हैं और मेरी मदद में यह कैसी कमज़ोरी है और मेरे हक़ के बारे में यह कैसी कौताही है और यह कैसी नींद है जो मुझ पर अत्याचार के सिलसिले में तुम पर छाई हुई है?!
क्या पैग़म्बर मेरे पिता ने नहीं फ़रमायाः हर इन्सान का सम्मान उसके बच्चों के सामने बचाए रखो? कितनी जल्दी तुम लोगों ने अपना काम कर दिया, और कितनी तीव्रता से जिस कार्य का अभी समय नहीं आया ता उसको कर दिया!
और मैं जो मदद मांग रही हूं तुम्हारे पास उसकी शक्ति और जिस हक़ को मैं लेना चाहती हूं उसको लेने की ताक़त तुम्हारे पास हैं। क्या तुम आसानी से कह रहे हो कि मोहम्मद अल्लाह के रसूल इस दुनिया से चले गए? ख़ुदा की क़सम यह बहुत बड़ी घटना है जिसमें बड़ा शिगाफ़ है और हर रोज़ बढ़ता जा रहा है, और खाई पैदा हो रही है, पैग़म्बर के जाने से धरती पर अंधेर हो गया, और ईश्वर के ख़ास बंदे दुखी हो गए, और उन के जाने के दुख में चांद और सूरज पर ग्रहण लग गया और सितारे बिखर गए, उनकी वफ़ात से आशाएं निराशा में बदल गईं, माल बरबाद हो गए और पहाड़ टूट फूट गए , आपके अहले हमर का सम्मान नहीं किया गया, और आपकी हुर्मत का अपमान किया गया, उनके जाने से उम्मत फ़ितने में पड़ गई और अंधेरे ने हर स्थान को घेर लिया और सच्चाई मर गई।
ख़ुदा की क़सम पैग़म्बर की वफ़ात एक बहुत बड़ा दुख था के जिसके जैसी मुसीबत और दुख दुनिया में नहीं होगा और इस बड़ी मुसीबत के बारे में ईश्वरीय किताब (क़ुरआन) तुम्हारे घरों में और हर सुबह और शाम बता रही है और इसके बारे में तुम्हारे कान आवाज़ और फ़रियाद, तिलावत और समझाने की सूचना दी है।
और बताया है उस चीज़ के बारे में जो नबियों और ख़ुदा के दूतों को भूत में मिला था कि अन्तिम फ़ैसला और क़ज़ा एवं क़द्र निश्चिंत है। (जैसा कि फ़रमाया) “और मोहम्मद (स) केवल ख़ुदा के रसूल हैं उनसे पहले भी पैग़म्बर आए हैं, क्या अगर (वह) मर जाएं या क़त्ल कर दिए जाएं तो तुम अपनी जाहेलियत की तरफ़ पलट जाओगे और दीन से पलट जाओगे? और जो दीन से पलट जाए वह ख़ुदा को कोई हानि नहीं पहुंचाता है, और ख़ुदा शुक्र करने वालों को नेक अज्र देता है”। (6)
लोगों के सामने फ़ातेमा (स) पर अत्याचार
हे क़ैला (औस एवं ख़ज़रज के क़बीले वाले) के बेटों तुम से यह आशा नहीं थी! क्या यह सही है कि मेरे पिता की मीरास के सम्बंध में मुझ पर अत्याचार हो जब्कि तुम मेरी हालत को देख रहे हो और मेरी आवाज़ को सुन रहे हो और तुममे एकता है और मैं तुमको सहायता के लिए पुकार रही हूं और मेरी मज़लूमियत से तुम्हारे सामने है और तुम उसकी जानकारी रखते हो। और तुम घटना को जानते भी हो।
ऐसा उस समय है कि जब्कि तुम्हारे पास संसाधन भी है और तुम्हारी संख्या भी अधिक है घर भी है और ज़िरह भी, हथियार भी है और सुरक्षा की चीज़ें भी, मैं तुमको पुकार रही हूं लेकिन तुम जवाब नहीं देते! मेरी फ़रियाद तुम तक पहुंच रही है लेकिन तुम लेकिन सहायता नहीं करते!
तुम प्रसिद्ध हो इस बात के लिए कि शत्रु पर बिना ढाल और ज़िरह के आक्रमण करते हो और नेकी एवं भलाई के लिए मशहूर हो, और तुम वह लोग हो जो हम अहलेबैत के लिए ख़ुदा के चुने हुए हो। तुम वही हो जो अरब से लड़े, और स्वंय को कठोर कार्यों में झोंक दिया और कठिनाईयां और परेशानियां झेलीं और तुमने उम्मतों से युद्ध किया और सूरमाओं से टकराए।
हम और तुम ऐसे थे कि हम तुमको आदेश देते थे और तुम पालन करते थे, यहां तक कि हमारे माध्यम से तुमको स्थिर स्थान मिल गया और हमारे माध्यम से इस्लाम की चक्की तुम्हारे लिए चलने लगी और नेमतें व बरकतें अधिक हो गईं, शिर्क का घमंड अपमान में बदल गया, और असत्य का सम्मान और जोश ठंडा पड़ गया, और जंग की आग ठंडी हो गई, और दीन का निज़ाम शक्तिशाली हो गया। (7)
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(1) सूरा नमल आयत 16
(2) सूरा मरयम आयत 4,5,6
(3) सूरा अनफ़ाल आयत 75
(4) सूरा निसा आयत 11
(5) सूरा बक़रा आयत 180
(6) सूरा आले इमरान आयत 144
(7) असरारे फ़िदक पेज 246 से 251