क्या इमाम हुसैन को शियों ने शहीद किया?
इधर मोहर्रम का चाँद दिखाई नहीं दिया कि हर तरफ़ से आशूरा, हुसैनी आन्दोलन के विरुद्ध बातें आरम्भ हो गई और दुषप्रचार शुरू कर दिया गया, और इस विरोध का कारण यह है कि आज संसार में इस आन्दोलन की तूती बोल रही है, आज सारी इस्लामी दुनिया का नारा आशूराई नारा यानी हो चुका है जिसको आज सुन्नी और शिया दोनों शैतानों, शैतानी गुणों वालों और ज़ुल्म एवं अत्याचार के विरुद्ध लगा रहे हैं «هیهات منّ الذلة» और सब मिलकर इस्लाम के शत्रुओं के विरुद्ध खड़े हो चुके हैं चाहे वह शत्रु खुलकर इस्लाम के विरुद्ध आ गये हो या फिर मुनाफ़िक़ हो, और यहीं कारण है कि साम्राजी शक्तियों और शैतान सिफ़त लोगों से यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है इसीलिये इस क्रांति और हक़ की आवाज़ को दबाने के लिये रोज़ाना कुछ न कुछ किया करते हैं कभी कहते हैं कि हुसैन का मातम न करो, तो कभी कहते हैं कि अलम और ताजिया उठाना बिदअत हैं...
इन सबसे बढ़कर आज सोशल मीडिया, एसएमएस, वाट्सऐप, ट्वीटर.... आदि पर यह फैलाया जा रहा है कि यह शिया जो आज हुसैन का मातम कर रहे हैं, यह जो आज हुसैन पर रो रहे हैं कल स्वंय इन्हीं शियों ने इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला में हत्या की थी।
आज हम अपने इस लेख में इसी के बारे में खोजबीन कर रहे हैं।
इतना जान लीजिये कि जो लोग यह कह रहे हैं वह न केवल यह कि शिया नहीं हैं बल्कि सुन्नी भी नहीं है और न ही इन लोगों को इमाम हुसैन से कोई हमदर्दी है बल्कि
«فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ فَزَادَهُمُ اللّهُ مَرَضًا وَلَهُم عَذَابٌ أَلِيمٌ بِمَا كَانُوا يَكْذِبُونَ» (البقره، 10)
उनके दिलों में रोग है तो अल्लाह ने उनके रोग को और बढ़ा दिया और झूठ बोल रहे थे उनके लिये भयानक अज़ाब है।
लेकिन इमाम सज्जाद के कथनुसार “ईश्वर का धन्यावाद है कि उसने हमारे शत्रुओं को बेवक़ूफ़ बनाया है” वह लोग जो इन बातों को फैला रहे हैं स्वंय उनकी बातों में कुछ ऐसी बातें है जो उनके विरुद्ध है यह लोग जो यह कह रहे हैं कि इमाम हुसैन को शियों ने ही क़त्ल किया है उनकी बातों में विरोधाभास पाया जाता हैः
1. आशूरा और कर्बला के विरुद्ध बोलने वालों की सारी बातों का आधार यह है कि वह कहते हैं कि शिया जो यह कहते हैं कि इमाम हुसैन और उनके साथियों को कर्बला में शहीद किया गया है यह उनकी मनगढ़ंत बातें है और सच्चाई से इसका कोई लेना देना नहीं है, लेकिन कितने आशचर्य की बात है कि एक तरफ़ तो यह स्वंय कह रहे हैं कि आशूरा नाम की कोई घटना नहीं हुई है और दूसरी तरफ़ यह भी कह रहे हैं कि इमाम हुसैन को स्वंय शियों ने शहीद किया है!!
2. वह इस बात को स्वीकार करते हैं कि इमाम हुसैन और उनके साथियों को जुल्म और अत्याचार के साथ शहीद किया गया और जिसने भी यह कार्य किया वह अत्याचारी है और यह कार्य निंदनीय है, लेकिन जब शिया निंदा के तौर पर अज़ादारी करते हैं मातम करते हैं शहीद की याद मनाते हैं तो उनको बिदअत कहते हैं!!
3. यह दावा करने वाले न केवल यह कि शियों के विरुद्ध अपनी नफ़रत और जलन को दिखाते हैं बल्कि इस प्रकार अपनी अज्ञानता और इतिहास की जानकारी न होने को भी दर्शाते हैं, जो यह बताता है कि यह लोग बिना ज्ञान और जानकारी के केवल नारे और आरोप लगाना जानते हैं दूसरे शब्दों मे यह कहा जाए कि यह लोग दूसरों के ख़रीदे हुए ग़ुलाम है जो उनसे कहा जाता है वह करते हैं और बस
ऐसे लोगों से हमारा प्रश्न यह है कि हमें बताओं को मोआविया शिया था या यज़ीद? अबू सुफ़ियान की आल शिया थी या बनी उमय्या और मरवान की आल और औलाद? उमरे सअद शिया था या इब्ने ज़ियाद? शिम्र शिया था या हुर्मुला? क्या वह सनान बिन अनस जिसने इमाम हुसैन की गर्दन पर तलवार मारी वह शिया था? या वह हकीम बिन तुफ़ैल जिसने हज़रत अब्बास को शहीद किया वह शिया था? वह हसीन बिन नुमैर जिसने आशूरा के दिन इमाम हुसैन और उनकी नमाज़ का मज़ाक़ उड़ाया और हबीब इब्ने मज़ाहिर को शहीद किया वह शिया था या....?
यह लोक किसी एक भी प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकते हैं।
हमारी बात
शिया का अर्थ है अनुसरण करने वाला है, स्पष्ट है कि जो किसी का अनुसरण करता है वह उसका विरोध तक नहीं करता है, हत्या तो बहुत दूर की बात है। इसलिये जो भी लोग इमाम हुसैन के विरुद्ध जंग में उतरे या ज़बान से उनके विरुद्ध बोले या उन पर आरोप लगाया, या ऐसे लोगों की सहायता की, उनके विरोधियों के लिये संसाधनों की व्यवस्था की या क़यामत तक जो भी इन लोगों के साथ और इनके पद चिन्हों पर चले वह इमाम हुसैन के शियों या उनके अनुसरण करने वालों में से न था और न ही हो सकता है, और ऐसे लोग न केवल यह कि शिया नहीं है बल्कि सुन्नी भी नहीं है, वास्तव में यह लोग मुसलमान नहीं है, बल्कि यह लोग तो इन्सान कहे जाने के लायक़ भी नहीं हैं, यह लोग इस्लाम और मुसलमानों के भेस में शत्रु है भेड़ की खाल में भेड़िये हैं इसलिये इनसे होशियार रहने की ज़रूरत है।
و َلَعَنَ اللَّهُ اُمَّةً قَتَلَتْكُمْ وَ لَعَنَ اللَّهُ الْمُمَهِّدينَ لَهُمْ بِالتَّمْكينِ مِنْ قِتالِكُمْ.
ईश्वर लानत करे उन लोगों पर जिन्होंने आप की हत्या की और ईश्वर लानत करे उन पर जिन्होंने आपके हत्यारों के लिये संसाधनों की व्यवस्था की जिससे वह आपके विरुद्ध जंग कर सके।