आसमान... ख़ून...बारिश
بسم الله الرحمن الرحیم
السلام علیک یا ابا عبد الله اشهد ان مصیبتک اعظم المصیبة فی السماوات و الارض و علی جمیع اهل السماوات و الارض
ध्यान दिए जाने योग्य बात है कि यूरोप की जिन इतिहासिक पुस्तकों में इस प्रकार की घटना का उल्लेख किया गया है वह केवल एंगलो सैक्सन की किताब ही नहीं है और यह एक से अधिक पुस्तकों हैं इन पुस्तकों में से वर्च लेतिंक क्रोनिल या क्रोनिल आव प्रिंसेस का नाम लिया जा सकता है।
जान वाडे बिर्टेन के डाक्युमेंट्री फ़िल्म निर्माता और शोधकर्ता ने इस बारे में हमको और अधिक जानकारी दी हैं।
एंग्लो सैक्सन की किताब पर अपने शोध में मुझे कुछ चौकाने वाली इबारतें मिली इसमें लिखा हुआ है किः 689 ई में बिर्टेन में ख़ून की बारिश हुई और मख्खन और दूध ख़ून में बदल गए।
यह एकेला लेख असमान्य लगता है लेकिन इसके अतिरिक्त दो दूसरी एतिहासिक महत्व रखने वाली किताबों में भी पहली वेल्श ग्रोनकेल और दूसरी क्रोनकेल उफ दि प्रिंसेस हैं ने भी इसी घटना को बयान किया है, और चूकि उत्तर पूर्वीय योरोप की विभिन्न तीन पुस्तकों में इस प्रकार की बात लिखी गई है, इसने आश्चर्च चकित कर दिया और हमारा ध्यान ख़ीचा ताकि पता लागएं कि इस घटना की वजह क्या है।
अलबत्ता यह किताबें मध्ययुग के इतिहास की किताबें हैं।
यानी जब समाज पर चर्च की हुक्मरानी थी और दीन के बारे में बात करना एक आम बात मानी जाती थी।
इस बार हमने ईसाई धर्म को स्रोतों को खंगाला ताकि उनकी राय का भी पता लगा सकें।
इस ईसाई वेबसाइट का अध्ययन करने से जिसने बाइबिल की बशारतों को बयान किया था ने कुछ घटनाओं को ख़ुदा का अज़ाब बताया है और उनका नाम लिखा है इनमें से एक, ख़ून की वह बारिश है जो 685 ई में यूरोपीय देशों में हुई थी और उसको ख़ुदा का एक अज़ाब बताया है।
यह कैसे संभव है कि मध्ययुग के प्रतिबंधित और डर भरे मालौल में उस समय कि किताबों मे लिखी जानी वाली चीज़ों को एक एतिहासिक तथ्य के तौर पर स्वीकार किया जाए।
इसी बदगुमानी ने हमको मजबूर किया कि हम उस ज़माने की सबसे बड़ी और सबसे प्रतिष्ठित सभ्यता की एतिहासिक सनद को खंगालें।
इस्लाम!
गोस्ताव लीबॉन उन्नीसवीं सदी का फ्रांसीसी इतिहासकार और समाजशास्त्री कहता है कि 15वीं शताब्दी तक यूरोपियन विद्वान किसी भी उस बात का जिसे मुसलमान विद्वानों से न लिया गया हो ताईद नहीं करते थे।
इस्लाम की तरक़्क़ी का युग, दुनिया की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित सभ्यता, ठीक मध्ययुग से साथ साथ थी, आश्यर्च की बात यह है कि इस महान सभ्यता की एहतिहासिक किताबों ने भी इस घटना यानी ख़ून की बारिश को लगभग उन्ही सालों यानी 685 ई में विभिन्न श्रेत्रों में जैसे रोम, ईरान इराक़ यमन और दूसरे स्थानों पर होने को बयान किया है या तायीद की है।
इसी मुहिम के लिए हम इस्लामी सभ्यता के इतिहास विशेषग्यों के पास दुनिया के विभिन्न देशों में गए ताकि इस माध्यम से हम इन उल्लेखों और यूरोपीय इतिहास में लिखी गई बातों के बीच की कड़ी को तलाश कर सकें।
बयान किया गया है कि सीरिया, हिजाज़, ख़ुरासान और बैतुल मुक़द्दस में ख़ून की बारिश देखी गई।
अहले सुन्नत की एक प्रतिष्ठित एतिहासिक किताब बग़यतुत तलब फ़ी तारीख़े हलब में जाफ़र बिन सुलैमान नामी व्यक्ति से इस प्रकार लिखा गया हैः इतनी ख़ून की बारिश हुई कि उसका असर मुद्दतों तक घरों की दीवारों और दरवाज़ों पर देखा जा सकता था और वह ख़ून से सन गए थे।
ख़ून की बारिश बसरा, कूफ़ा, सीरिया और ख़ुरासान भी पहुँची और हमको यक़ीन था कि बहुत जल्द अज़ाब नाज़िल होने वाला है।
सुन्नियों की हदीसी और इतिहासिक किताबों में इस घटना को विस्तार से बयान किया गया है।
और ध्यान देने योग्य बात यह है कि यूरोप की किताबों को ख़िलाफ़ इनमें आसमान से इस बारिश की वजह को भी बयान किया गया है।
तमाम इस्लामी मज़हबों के स्रोतों और किताबों में ख़ून की बारिश को रसूले इस्लाम (स) के नवासे और शियों के तीसरे इमाम, इमाम हुसैन (अ) की शहादत के बाद मोहर्रम की दसवीं तारीख़ सन 61 हिजरी को बयान किया गया है, जो एक जंग में कर्बला नाम की ज़मीन पर शहीद हुए और उनके पूरे परिवार को गिरफ़्तार किया गया और आपकी बहन ज़ैनब (स) ने एक स्थान पर अपने भाई के क़ातिलों को संबोधित करते हुए इस ख़ून की बारिश की घटना की तरफ़ इशारा किया है।
इसी प्रकार हमको मिलता है कि जब हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा यज़ीद के दरबार में गई थीं और आपने वह मशहूर ख़ुतबा पढ़ा, ख़ुतबे के आख़िर में कहा तुम लोग तअज्जुब न करना अगर इस मुसीबत पर आसमान से ख़ून बरसे और अगर नदी और नाले खून से भर जाएं अगर तुम्हारे कुँएं ख़ून की बारिश के कारण ख़ून से भर जाएं।
यह रिवायतें भी किताबे सवाएके मोहरेक़ा पेज नम्बर 116 और 192 और तफ़्सीरे इबने कसीर जिल्द 9 पेज 162 बर दर्ज है।
तो इस घटना को आशूरा के दिन शिया और सुन्नी दोनों रिवायतों में मुतावातिर तौर पर ज़िक्र किया गया है।
इसी प्रकार किताबे उयूने अख़्बारे रज़ा में शियों के आठवें इमाम, हज़रत रज़ा (अ) से इस प्रकार बयान किया गया है कि आपके दादा इमाम बाक़िर अलैलिस्सलाम फ़रमाते हैं
لما قتل جدی الحسین امطرت السماء دما و ترابا احمر .
जब मेरे दादा इमाम हुसैन क़त्ल किए गए कि ख़ुद इमाम बाक़िर भी इस घटना के समय मौजूद थे और लगभग पाँच साल के थे फ़रमाते हैं कि जब इमाम हुसैन क़त्ल कर दिए गए तो आसमान से ख़ून और लाल मिट्टी बरसी।
विशेषकर सुन्नी किताबों ने अपने विश्वासों पर तअस्सबु के बावजूद हम देखते हैं कि उनहोंने इस मसअले की तरफ़ इशारा किया है और स्वीकार किया है यह दिखाता है कि यह सच्ची घटना है कि और यह हुआ है यहां तक कि ज़ोहरी, ज़ोहरी जिसकी बनी उमय्या से वाबस्तगी वाज़ेह और रौशन है और इबने अब्दे रब्बे उनदलोसी जिसने अपनी अल इक़दुल फ़रीद नामी किताब में इस तरफ़ इशारा किया है कि वह अमवी उनदलुस में रहता था और बनी उम्मया का समर्थक है जैसे ने भी इस घटना को बयान किया है और उसका एतेराफ़ किया है।
हम जितना आगे बढ़ते जाते हैं और अधिक रोचक चीज़ें हमारी राहनुमाई करती हैं जैसे कि इस्लामी किताबों में इस घटना यानी ख़ून की बारिश के बारे में इस्लामी राहनुमाओं और रहबरों की तरफ़ से भविष्यवाणी की गई है और उसकी कैफ़ियत के बारे में बात कही गई है।
बिहारुल अनवार की 45वी जिल्द में अल्लामा मजलिसी एक बाब लाए हैं “आसमान का गिरया” के बाब में और किस प्रकार रोया और यह कि यह लाली किस तरह की थी, 57वी जिल्द में भी रिवायात हैं बिहार की 79वीं जिल्द में फिर रिवायात ज़िक्र की है, और शियों की विभन्न किताबों में है और इसको हमने इशारे के तौर पर नक़्ल किया है।
हमे अपनी तहक़ीक़ में इसी बारे यानी ख़ून बरसने की भविष्यवाणी के बारे में रिवायात दिखाई दीं।
उम्मे सलमा, पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी ने शियों के तीसरे इमाम की कर्बला की ज़मीन पर शहादत की भविष्यवाणी और इस घटना के होने को रसूले ख़ुदा के क़ौल से बयान किया है जिसको अल मजमउल कबीर, मजमउल जवाएद और कनज़ुल उम्माल जैसी किताबों में लिखा गया है।
एक हदीस में मीसमे तम्मार सलामुल्लाह अलैह से हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) से इस प्रकार ज़िक्र किया गया है कि जब आपने अपने बेटे की शहादत की सूचना दी फ़रमाया उसकी शहादत पर हर चीज़ रोएगीः
و تمطر السماء دما و رمادا
और उस समय है जब आसमान से ख़ून और ख़ाक बरसेगी।
इसी प्रकार शियों के आलिम शेख़ सदूक़ अपनी किताब अमाली में लिखा है कि शियों के दूसरे इमाम, हसन अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के अंतिम पलों में अपने भाई हुसैन को संभोधित कर के कहाः कोई भी दिन तुम्हारी शहादत के दिन की तरह नहीं हो सकता और जिस दिन आसमान से ख़ून बरसेगा, और यह भविष्यवाणी भी इस घटना से सालों पहले की गई थी।
अब इस पूरे शोध और तहक़ीक के टुकड़ों मिलाने पर हमको कुछ रोचक तथ्य मिलते हैं।
यूरोप की इतिहास की किताबों का अध्यय करने से हमको पता चला कि 684 और 685 ई के साल वह साल हैं कि जिनमें ख़ून की बारिश का ज़िक्र किया गया है जब्कि आशूरा का वाक़ेआ 680 ई में हुआ है।
सालों के इस अतंर की किस प्रकार तौजीह कर सकते हैं?
उत्तर बहुत ही आसान है , प्रोफ़ेसर रिचर्ड नोरस के अनुसार यह यूरोपीय इतिहास की यह किताबें आशूरा के वाक़ए के 300 साल बाद लिखी गई हैं यानी इन एतिहासिक लेखों का आधार मौखिक था। इसलिए चार या पाँच साल की गल्ती की संभावना प्रकृतिक होगी, जब्कि इस्लामी तारीख़ के तमाम स्रोतों में ख़ून की बारिश को एक ही तारीख़ में बताया गया है।
इसी प्रकार ईसवी तारीख़ का आधार दिन का बीतना है जब्कि चाँद का निकलना और रातें क़मरी साल का आधार हैं, और यह आधार का अंतर ख़ुद गिनती में थोड़े इख़्तेलाफ़ का कारण बन सकता है।
लेकिन ख़ून की वह बारिश जिसको यूरोप और इस्लामी किताबों में बयान किया गया है, वह क्या वास्तव में ख़ून था या केवल उसका रंग लाल था?
यह बहुत आवश्यक है ध्यान रखा जाए कि वह ख़ून की बारिश जो यूरोप और इस्लाम की एतिहासिक किताबों में बयान की गई है और वह घटनाएं जो दूसरे स्थानों पर हुई हैं जैसे हिन्दुस्तान के केरला में लाल बारिश या ख़ून की बारिश की रिपोर्ट दी गई है के बीच बहुत अंतर है।
यूरोप और इस्लामी दुनिया की इतिहास की किताबों में लिखी गई हैं और केरला में लाल बारिश में अंतर यह है कि जिन लोगों ने इस घटना को लिखा है वह आलिम थे और उन लोगों ने इस घटना को ख़ून के शब्द में लिखा है जो ख़ून के लोथड़ों और मोटाई को बयान करता है उन्होंने यह नहीं कहा है कि उसका रंग लाल था और विशेषकर ताज़ा ख़ून के शब्द का प्रयोग किया है, यह हमको इस नतीजे पर पहुँचाता है कि जिस चीज़ की उन्होंने रिपोर्ट दी है वह उनकी निगाह में वास्तव में ख़ून था, ख़ून के जैसी कोई दूसरी चीज़ नहीं।
अबी सईद सवाएक़े मोहरक़ा में लिखते हैः और आसमान से भी ख़ून बरसा और उसका प्रभाव मुद्दतों तक कपड़ों पर बाक़ी था यहां तक कि यह कपड़े फट गए। यानी यह ख़ून साफ़ नहीं होता था जितना भी वह धोते थे फिर भी उसका असर बाक़ी था यहा तक कि कपड़े तार तार हो गए।
शायद यह नुक्ता भी ध्यान देने योग्य हो ख़ून की बारिश की वजह यानी हुसैन अलैहिस्सलाम का शहीद होना यूरोप की एतिहासिक किताबों में बयान नहीं किया गया है।
क्यों?
पश्चिमी यूरोप में पश्चिमी रोम के पतन के बाद वह क्षेत्र जो इटली से पश्चिमी यूरोप की तरफ़ हैं वह सब टूट फूट और एक दूसरे की विरोधी स्वतंत्र हुकूमतों में बट गए और इल्म का चिराग़ इनमें ख़ामोश हो गया और वह जिहालत की तरफ़ पलट गए यूरोप उस समय इल्मी पिछड़ेपन का शिकार था और इंग्लैंड भी इस यूरोप का एक भाग था जो इत्तेफ़ाक़न एक जज़ीरा होने के कारण बाक़ी यूरोप से अहमियत में भी कम था।
संबंधित विशेषज्ञों की बातों से पता चलता है कि यूरोप की तारीख़ के लिखे जाने के समय अस्ली सभ्यता के न होने के कारण घटनाओं के सही और इल्मी स्तर पर लिखे जाने का इमकान नहीं था, तो इन घटनाओं के कारण के बारे में क्या बात की जाए।
और अब अंत में इन तमाम शोधों और तहक़ीक के बाद जो इस डाक्यूमेंट्री के बनने का सबब बनी हम इस नुक्ते पर पहुँचे हैं कि विश्व इतिहास में केवल एक दिन, केवल एक दिन पूर्व से लेकर पश्चिम तक ख़ून की बारिश हुई है और वह दिन हुसैन इब्ने अली (अ) की मज़लूमाना शहादत का दिन था जो तमाम लोगो, विचारों और तमाम धर्मों को अनुसार इन्सानी इतिहास के सबसे अधिक प्रभावित करने वाले इन्सान थे।