अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

वो कार्य जिसे सबसे पहले इमाम हुसैन ने किया!!!

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यह वह कार्य था जिसे सैय्यदुश शोहदा ने किया था और आप वह पहले व्यक्ति थे जिसने यह काम किया था। आप से पहले इस प्रकार का क़दम किसी ने नहीं उठाया था क्योंकि रसूले इस्लाम के युग में न इस प्रकार की बिदअतें थी और न ही अमीरुल मोमिनीन (अ) को दौर में इस प्रकार की पथभ्रष्ठता अस्तित्व में आई थी या अगर कुछ स्थानों पर इस प्रकार की चीज़ें थीं भी तो उनके विरुद्ध उठने की शर्तें पूरी नहीं हुई थीं और न ही खड़े होने के लिए समय और माहौल सही था, लेकिन इमाम हुसैन (अ) के युग में समय भी था और माहौल भी, और यही कारण है कि इमाम हुसैन का हुसैनी आन्दोलन रहती दुनिया तक के लिए जानदार हो गया।


तो हम संक्षिप्त रूप में यह कह सकते हैं कि इमाम हुसैन (अ) ने यह क्रांति इस लिए की कि आप उस महान वाजिब कार्य को कर सकें जो इस्लामी व्यवस्था और समाज को नए सिरे से बनाने या इस्लामी समाज से पथभ्रष्ठता को समाप्त करने में सहायक हो सके।


यह महान कार्य अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर के माध्यम से ही हो सकता है बल्कि बुराईयों का रास्ता रोकना स्वंय एक प्रकार का अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर है। हां यह और बात है कि इस कार्य का नतीजा कभी हुकूमत और सत्ता होती है कि जिसके लिए इमाम हुसैन (अ) तैयार थे और कभी इन्सान को शहादत के महान स्थान तक पहुँचा देता है और सैय्यदुश शोहदा ने अपने को इसके लिए भी तैयार कर रखा था।


यज़ीदी  हुकूमत इस्लाम के लिए बहुत बड़ा ख़तरा


प्रश्न यह है कि हम किस आधार पर यह कह रहे हैं कि यज़ीद की सत्ता से इस्लाम को ख़तरा था?


तो इसका उत्तर यह है कि यह बातें स्वंय इमाम हुसैन (अ) के कथनों से निकल कर आती है। हमने इमाम हुसैन (अ) के कथनों और क़ौल में से कुछ को चुना है जो यहां पर प्रस्तुत करेंगे।


जब मदीने में वहां के राज्यपाल वहीद ने इमाम हुसैन (अ) को बुलाकर कहाः मोआविया का निधन हो गया है और आपको (नए ख़लीफ़ा)  बैअत करनी चाहिए


इमाम हुसैन (अ) ने उसे उत्तर दियाः


’’نَنظُرُ وَ تَنظُرُونَ اَيُّنَا اَحَقُّ بِالبَيعَۃِ وَ الخِلَافَۃِ ‘‘


सुबह तक प्रतीक्षा करों हम सोंचते हैं कि हम (हुसैन और यज़ीद) में से कौन ख़िलाफ़त और बैअत का अधिक हक़दार है।


अगले दिन जब मरवान ने इमाम हुसैन (अ) को देखा तो कहने लगाः हे अबा अब्दिल्लाह, आप अपने आप को हलाकत में क्यों डाल रहे हैं! आप आज के ख़लीफ़ा की बैअत क्यों नहीं कर लेते ? आप अपनी मौत को दावत न दें! इमाम हुसैन (अ) ने उसके उत्तर में फ़रमायाः


’’اِنَّا لِلّٰہِ وَ اِنَّا اِلَيہِ رَاجِعُونَ وَ عَلَي الاِسلَامِ السَّلَامُ، اِذ قَد بُلِيَتِ الاُمَّۃُ بِرَاعٍ مِثلَ يَزِيد ‘‘


हम अल्लाह की तरफ़ से आए हैं और हमें उसी की तरफ़ लौट कर जाना है, जब यज़ीद जैसा व्यक्ति मुसलमानों का ख़लीफ़ा बन जाए तो इस्लाम को ख़ुदा हाफ़िज़ कह देना चाहिए। यानी इस्लाम पर फ़ातेहा पढ़ लेना चाहिए कि जब यज़ीद जैसा पापी इन्सान सत्ता को संभाल ले और इस्लाम यज़ीदियत जैसी भयानक बीमारी में गिरफ़्तार हो जाए! यहां पर मसला यज़ीद का नहीं है बल्कि जो भी यज़ीद के जैसा हो। ( बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 325)


इमाम हुसैन (अ) यह कहना चाहते हैं कि पैग़म्बर के बाद से अब तक जो कुछ भी हुआ उसको बर्दाश्त किया जा सकता था लेकिन अब ख़ुद दीन और इस्लामी व्यवस्था (और उसके स्तंभ) निशाने पर हैं और यज़ीद जैसे किसी भी व्यक्ति के हुकूमत करने से इस्लाम समाप्त हो जाएगा। यही कारण है कि इस भटकाव का ख़तरा बहुत अधिक है क्योंकि यहां स्वंय इस्लाम ख़तरे में है।


इमाम हुसैन (अ) ने मदीने और इसी प्रकार मक्के से रवाना होते समय मोहम्मद बिन हनफ़िया से बात की है। मुझे ऐसा लगता है कि मोहम्मद बिन हनफ़िया की हज़रत से यह बात आप की रवानगी के समय की है। ज़िलहिज़ के महीने में मोहम्मद हनफ़िया भी मक्के आ चुके ते और उन्होंने कई बार इमाम हुसैन (अ) के बातचीत की है। यह वह स्थान है कि जहां हज़रत ने अपने भाई को वसीयत लिख कर दी है।


मेरी क्रांति का मक़सद मुसलमानों का सुधार


इमाम हुसैल (अ) ख़ुदा के एक होने की गवाही देते हैं और विभिन्न चीज़ों को बयान करने के बाद लिखते हैं किः


اِنِّي لَم اَخرُج اَشِرًا وَّلَا بَطَراً وَّلَا مُفسِدًا وَّلَا ظَالِماً ‘‘


( बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 329)


आप फ़रमाते हैं कि लोग ग़लत न समझें और शत्रु का प्रोपगंडा उन्हें धोखा न दे कि इमाम हुसैन भी दूसरों की तरह है जो विभिन्न स्थानों पर ख़लीफ़ा के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं और विद्रोह कर देते हैं, केवल इसलिए ताकि सत्ता को अपने हाथ में ले सकें, अपने आप को बड़ा दिखाने अत्याचार फ़ैलाने के लिए मैदान में आते हैं।


आप फ़रमाते हैं कि हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है बल्कि


’’وَ اِنَّمَا خَرَجتُ لِطَلَبِ الاِصلَاحِ فِي اُمَّۃِ جَدِّي ‘‘


मैं केवल अपने नाना की उम्मत के सुधार के लिए मैदान में आया हूँ, मैं केवल सुधार करना चाहता हूँ। ( बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 329)


और यह वह वाजिब कार्य है जिसको इमाम हुसैन (अ) से पहले किसी ने नहीं किया था।


यह सुधार "विद्रोह" के माध्यम से होगा, विद्रोह यानी "क्रांति" और इमाम हुसैन ने इस बात को अपनी वसीयत में लिखा है और विस्तार के साथ इसके बारे में बताया है।


यानी पहला यह कि वह क़याम करना चाहते हैं और यह क़याम इसलिए है कि हम सुधार चाहते हैं, न यह कि हुकूमत और सत्ता ज़रूर हमारे हाथ में आ जाए, और न इसलिए कि हम जा कर शहीद होना चाहते हैं, नहीं! हमारा मक़सज केवल उम्मत का सुधार है।


लेकिन यह बात भी ध्यान दिए जाने योग्य है कि सुधार का कार्य कोई मामूली स्तर का कार्य नहीं है। इसी सुधार के दौरान कभी कभी ऐसे हालात आ जाते हैं कि इन्सान हुकूमत तक पहुँच जाता है और सत्ता को अपने हाथ में ले लेता है और कभी ऐसा होता है कि वह इस कार्य में शहीद हो जाता है और शहादत के महान दर्जे पर पहुँच जाता है, लेकिन इन दोनों सूरतों में उसका क़याम और क्रांति सुधार के लिए होनी चाहिए।


उसके बाद इमाम हुसैन (अ) फ़रमाते हैं:

’’ اُرِيدُ اَن آمُرَ بِالمَعرُوفِ وَاَنہٰي عَنِ المُنکَرِ وَاُسِيرُ بِسِيرَۃِ جَدِّ وَ اَبِ ‘‘


मैं चाहता हूँ कि अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर करूँ और मैं अपने नाना और बाबा की शैली पर क़दम उठानना चाहता हूँ।

( बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 329)


सुधार का एक मक़सद अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर है।


इमाम हूसैन (अ) ने मक्के में दो गुटों को पत्र लिखे हैं, एक बसरे के महत्व पूर्ण लोगों को और दूसरे कूफ़ा के महत्व पूर्ण लोगों को।


बसरे के महत्वपूर्ण लोगों को जो आपने पत्र लिखे हैं उसमें इस प्रकार लिखते हैं:


 ’’ وقَد بَعَثَ رَسُولِي اِلَيکُم بِھٰذَا الکِتَابِ وَاَنَا اَدعُوکُم اِلٰے کِتَابِ اللّٰہِ و سُنَّۃِ نَبِيِّہِ فَاِنَّ سَنَّۃَ قَد اُمِيتَت وَالبِدعَدَّ اُوحِيَت فَاِن تَسمَعُوا قَولِي اَھدِيکُم اِلٰي سَبِيلِ الرِّشَادِ ‘‘


( बिहारुल अनवार जिल्द 44, पेज 329)


मेरा प्रतिनिधि मेरे पत्र के साथ तुम्हारे पास आया है और मैं तुम लोगों को ख़ुदा की किताब (क़ुरआन) और उसके रसूल की सुन्नत की तरफ़ दावत देता हूँ।


निःसंदेह रसूल की सुन्नत (शैली) को जीवित ही दफ़्न कर दिया गया है और जिहालत के ज़माने की बिदअतों और ख़ुराफ़ात को जीवित कर दिया गया है, अगर तुम मेरा अनुसरण करो तो मैं तुमको सीधे रास्ते का मार्गदर्शन करूँगा


यानी मैं बिदअतों को समाप्त करना और रसूल की सीरत को जीवित करना चाहता हूँ क्योंकि सत्ताधारियों ने सुन्नत को मार दिया है और बिदअतों को जीवित कर दिया है। अगर तुम लोग मेरी बात मानों और मेरा साथ दो तो जान लो कि हिदायत का रास्ता केवल मेरे पास है, मैं एक बहुत बड़ा कार्य करना चाहता हूँ जो कि इस्लाम, रसूल की सुन्नत और इस्लामी व्यवस्था को जीवित करना है

 

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