इस्लाम का सर्वोच्च अधिकारी (भाग 10)
इस्लाम के सच्चे धर्माधिकारी को न तो गरीबी परेशान करती है और न ही हुकूमत, तख्त या दौलत उन्हें इंसानियत से गाफिल करती है। वह हर हाल में व हर मौके पर इंसानियत की भलाई के लिये ही काम करते हैं। कुछ ऐसी ही मिसाल पेश की इमाम अली रज़ा(अ.) ने जो इमाम मूसा काज़िम(अ.) के बेटे थे और उनके बाद इस्लाम के सर्वोच्च धर्माधिकारी हुए।
इमाम अली रज़ा(अ.) के दौर में खलीफा हारून रशीद के बेटों अमीन और मामून में हुकूमत का झगड़ा चला। उस ज़माने में अपने हामियों की तादाद बढ़ाने के मामून ने इमाम अली रज़ा(अ.) को अपना वली अहद बनाने का एलान कर दिया। और उन्हें राजधानी बुलवा भेजा। जब इमाम(अ.) के चाहने वालों ने इस हुक्मनामे को देखा तो खुश हो गये
लेकिन इमाम(अ.) ने फरमाया कि इस अहदनामे में जिंदगी नहीं बल्कि मौत है। न चाहने के बावजूद इमाम(अ.) को मामून के पास जाना पड़ा। उसके पास जाने से पहले इमाम(अ.) हारून रशीद की क़ब्र पर गये और उसके बगल में इशारा करके कहा कि मैं यहीं पर दफ्न किया जाऊंगा।
जब इमाम अली रज़ा(अ.) मामून के पास पहुंचे तो उसने इमाम(अ.) की वलीअहदी का एलान किया। इमाम(अ.) ने शर्त रखी कि वे बादशाहत के किसी काम में हिस्सा नहीं लेंगे। जिसे मामून ने मान लिया। मामून ने अपनी बेटी की शादी इमाम(अ.) से कर दी और उनके नाम का सिक्का भी चलवाया। हालांकि इमाम(अ.) ने अपने चाहने वालों को ये बता दिया था कि ये उन्हें वली अहद बनाने के पीछे मामून के इरादे नेक नहीं हैं और वह सिर्फ अपने हामियों की तादाद बढ़ाना चाहता है। बाद में यही हुआ कि जब अब्बासियों ने इमाम का विरोध किया तो मामून ने इमाम(अ.) को ज़हर देकर धोखे से शहीद कर दिया।
तमाम इस्लामी धर्माधिकारियों की तरह इमाम अली रज़ा(अ.) ने भी खुद को जिंदगी के हर क्षेत्र में नमूनये अमल बनकर दिखाया।
सोशल वेलफेयर और इंसानियत को संवारने के लिये इमाम(अ.) ने कुछ क़ौल इस तरह दिये,
1. हर शख्स का दोस्त उसकी अक्ल होती है और जिहालत उसकी दुश्मन होती है।
2. जिसने मख्लूक में से एहसान करने वाले का शुक्रिया अदा नहीं किया उसने अल्लाह तआला का भी शुक्रिया अदा नहीं किया।
3. जो किसी औरत की महर न दे या मज़दूर की मज़दूरी रोके या किसी को फरोख्त कर दे वह बख्शा न जायेगा।
4. खामोशी अक्ल के दरवाज़ों में से एक दरवाज़ा है।
5. दूसरों के लिये वही चाहो जो तुम अपने लिये चाहते हो।
6. जो अपने पड़ोसी को सताता है वह हममें से नहीं।
7. बड़ा भाई बाप की तरह होता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में इमाम अली रज़ा(अ.) के बताये हुए नुस्खों को आज की मेडिकल साइंस तमाम रिसर्च के बाद बेस्ट साबित करती है।
इमाम(अ.) के कुछ और सेहत से मुताल्लिक कान्सेप्ट जो साइंस ने बाद में साबित किये हैं इस तरह हैं:
1. बच्चों के लिये माँ के दूध से बेहतर कोई दूध नहीं। 2. सिरका बेहतरीन सालन है। 3. मुनक्क़ा बलगम को दूर करता है। पुट्ठों को मज़बूत करता है। नफ्स को पाकीज़ा बनाता और रन्ज व गम को दूर करता है। 4. शहद में शिफा है। 5. खाने की शुरूआत नमक से करनी चाहिए क्योंकि इससे सत्तर बीमारियों से हिफाज़त होती है। जिनमें जज़्ज़ाम भी शामिल है। 6. शहद को दूध के साथ लेने पर याद्दाश्त मज़बूत होती है। 7. खाना न बहुत गर्म न बहुत ठंडा खाना चाहिए।
इमाम अली रज़ा(अ.) को होम्योपैथी का ईजादकर्दा कहा जा सकता है। एक बार खलीफा मामून ने इमाम(अ.) से कहा कि जब वह कहीं बाहर जाता है तो पानी की तब्दीली से बीमार हो जाता है। जवाब ने इमाम(अ.) ने फरमाया कि जब वह बाहर सफर करे तो एक बोतल पानी अपने साथ ले जाये। और जब इस्तेमाल करते हुए बोतल कुछ खाली हो जाये तो उसमें वहां का पानी मिलाकर उसे फिर से पूरी भर ले। और इस्तेमाल करता रहे। ऐसा करने से पानी की तब्दीली उसपर असर नहीं करेगी। यानि घर के पानी का सूक्ष्म मिक्सचर पूरे पानी के मिजाज़ को बदल रहा था। जो कि होम्योपैथी का बेसिक कान्सेप्ट है।
अपने ज़माने में धर्म के सिलसिले में इमाम(अ.) से बेहतर कोई बताने वाला न था। किसी ने सवाल किया कि अल्लाह कैसा है? और कहाँ है? तो इमाम अली रज़ा(अ.) ने जवाब दिया, ‘वह कहाँ है और कैसा है? यह सवाल उसके लिये नहीं। उसी ने तो जगह और मकान बनाये हैं। वह तो उस वक्त भी था जबकि कोई जगह मौजूद न थी। उसी ने तो कैफियतों को पैदा किया है। वह तो उस वक्त भी मौजूद था जबकि कोई कैफियत मौजूद न थी।
शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब अल तौहीद में दर्ज कुछ हदीसों में इमाम ने बताया कि हर चीज़ एटम से मिलकर बनी है। और तमाम चीज़ों की बनावट के बारे में कुछ इस तरह बताया, ‘फिर उसने (अल्लाह ने) मख्लूक़ को जौहर (एटम) के साथ क़ायम रहने वाली अशिया और मुख्तलिफ हदों के साथ खल्क़ किया। न उसको किसी चीज़ में क़ायम व दायम रखा और न किसी शय में उसको महदूद किया और न किसी शय पर मुकाबला किया और न उसके लिये कोई तमशील बयान की।
एक सवाली ने सवाल किया कि सृजन कितने तरह का है? इसके जवाब में इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि ‘‘अल्लाह के हुदूद खल्क (सृजन) छह तरह के हैं। मलमूस (छुआ हुआ) मौज़ून, मंज़ूर इलैह (जिसकी तरफ देखा जाये) और वह जिसका वज़न न हो और वह रूह है और उसी में से मंज़ूर इलैह है उसका न वज़न है न लम्स है, न हिस है न रंग है और न मज़ा है। और तकदीर, आराज़ (जो क़ायम बिलज़ात न हो), सूरतें और चैड़ाई व लम्बाई हैं और उन ही में से अमल और वह हरकात हैं जो अशिया को बनाती हैं और उनकी अलामत बनती हैं और उनको एक हालत से दूसरी हालत में तब्दील करती हैं और उनमें ज्यादती व कमी करती हैं। लेकिन आमाल व हरकात तो उससे वह अशिया चलती हैं क्योंकि उन अशिया के लिये कोई मुकर्ररा वक्त इतना नहीं है जिसकी वह मोहताज हैं। फिर जब वह किसी शय से फारिग हो जाता है तो हरकत जारी हो जाती है और असर बाकी रहता है। और इसी तरह वह गुफ्तगू जारी रहती है जो क़रार पाती है और उसका असर बाकी रहता है।’’
आम ज़बान में कहा जाये तो इमाम ने बताया है कि एक सृजन तो वह है जिसको हम छूकर महसूस कर सकते हैं और जिनमें वज़न होता है। हर तरह का मैटर जैसे कि दरख्त, पहाड़, पत्थर, पानी वगैरा इनमें शामिल हैं। इंसान और दूसरे जानदारों के जिस्म भी इसी खिलक़त का हिस्सा हैं।
दूसरे तरह का सृजन वह है जिसको देख सकते हैं लेकिन उसमें न तो वज़न होता है और न ही उसे छूकर महसूस कर सकते हैं। जैसे रोषनी जिसको हम देखते तो हैं लेकिन न तो छू सकते हैं और न ही रोशनी में वज़न होता है।
तीसरे तरह का सृजन तकदीर यानि भाग्य है। भाग्य के बारे में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम उसूले काफी में बताते हैं कि ‘अन्दाज़ा करना किसी चीज़ के तूल व अर्ज़ वगैरा का।’ यानि हर चीज़ में क्या चीज़ किस मात्रा में शामिल होगी और किस तरह बदलेगी यही तकदीर है। और ये अल्लाह के सृजन की एक किस्म है।
चौथे तरह के सृजन का नाम है आराज़। यह वह सृजन है जो दूसरी खिलक़तों की वजह से मालूम होता है, और अगर वह दूसरी खिलक़तें न हों तो यह भी महसूस नहीं किया जा सकता। मिसाल के तौर पर वक्त और ताकत। ताकत तभी होगी जब उसको पैदा करने वाली कोई चीज़ मौजूद होगी। इसी तरह वक्त के बारे में इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि वक्त अपना खुद का अस्तित्व नहीं रखता बल्कि हमारे एहसासात के नतीजे में अस्तित्व में आता है। और हमारे लिये दो वाकियात के दरमियानी फासले का नाम ज़माना है। यही बात आधुनिक साइंस भी कहती है और आइंस्टीन की स्पेशल थ्योरी आॅफ रिलेटिविटी के मुताबिक वक्त अलग अलग हालात में अलग अलग रफ्तार से गुज़रता है।
पाँचवीं तरह का सृजन है सूरतें यानि डिज़ाइन। मिसाल के तौर पर एटम में इलेक्ट्रान के न्यूक्लियस के चारों तरफ चक्कर लगाना या सूरज के चारों तरफ ग्रहों का चक्कर लगाना ये सब अलग अलग सूरतें या डिज़ाइन बनाते हैं। हर जानदार और बेजान की अपनी अलग सूरत होती है चाहे वह पेड़ पौधे हों या फिर इंसान।
और छठी तरह का सृजन है चौड़ाई व लम्बाई यानि कि डाईमेन्शन। जिसके ज़रिये हम चीजों की लोकेशन और साइज़ को पहचानते हैं। इसी में चीज़ें अपनी पोजीशन और हालत बदलती हैं। अगर डाईमेन्शन न हों तो चीज़ें किसी फोटोग्राफ की तरह फ्रीज़ हो जायें।
इमाम अली रज़ा(अ.) की किताबों में सहीफतुर्ररज़ा, सहीफा-रिज़विया, तिब-अलरज़ा, मसन्द इमाम रज़ा वगैरा शामिल हैं।
इस्लाम व इमामत की हक़्क़ानियत को ज़ाहिर करने के लिये कई बार इमाम(अ.) ने चमत्कार भी दिखाये। एक बार जब मुल्क में अकाल पड़ा तो इमाम(अ.) की दुआ से बारिश हो गयी। इसपर मामून के कुछ दरबारियों में हसद पैदा हुआ और एक दिन उनमें से एक भरे दरबार में ही कहने लगा कि चूंकि बारिश बहुत दिन से नहीं हुई थी अतः अगर आप दुआ न भी करते तो बारिश हो जाती। इसमें आपकी कोई करामत नहीं। करामत तो तब होगी जब यहाँ बिछे कालीन पर बने शेर की तस्वीर जिंदा हो जाये और मुझे फाड़ खाये।
इमाम अली रज़ा(अ.) ने फरमाया कि बारिश अल्लाह की रहमत से हुई थी और मैं उसमें अपनी कोई तारीफ नहीं चाहता। अलबत्ता अगर तेरी ख्वाहिश है कि कालीन पर बना शेर तुझे फाड़ खाये तो तेरी ये इच्छा पूरी कर देता हूं। कहते हुए इमाम ने कालीन के शेर को जिंदा होकर उस शख्स को खा जाने का हुक्म दिया। जैसे ही इमाम ने अपने जुमले को पूरा किया, कालीन पर बनी शेर की तस्वीर जिंदा हो गयी और हमीद बिन मेहरान नामी उस शख्स पर हमला कर दिया। और पल भर में उसे बोटी बोटी करके खा गया। मामून यह देखकर बेहोश हो गया। इमाम(अ.) उसे होश में लाये और शेरों को दोबारा तस्वीर बन जाने का हुक्म दिया। शेर फिर से अपनी पुरानी हालत में पलट गया।
इस्लाम के सच्चे धर्माधिकारी इसी तरह के बन्दे होते हैं जिनकी आबो ताब का सूरज हर तरफ रोशनी फैलाता है।