क़ज़ा व क़दर अर्थात भाग्य पर विश्वास के प्रभाव
र्इश्वर के क़ज़ा व क़दर अर्थात र्इश्वर द्वारा निर्धारित भाग्य व सीमा पर विश्वास र्इश्वर की पहचान के महत्वपूर्ण चरण तक मनुष्य को पहुँचाने के साथ ही साथ बौध्दिक रूप से मनुष्य के विकास का भी कारण समझा जाता है और इस के बहुत से व्यवारिक प्रभाव हैं जिन में से कुछ की ओर संकेत किया गया है और कुछ अन्य का यहॉ पर वर्णन किया जा रहा है।
जो व्यक्ति विभिन्न घटनाओं को र्इश्वर बुध्दिमत्ता पूर्ण इरादे का परिणाम मानता है, वह दुर्घटनाओं से डरता नहीं और घटित होने के अवसर पर आपा नही खोता और न ही चीख पुकार करता हैं बल्कि यह समझते हुए कि यह घटना, र्इश्वर द्वारा निर्धारित इस व्यवस्था का एक भाग है और यह घटना हितकारी है, खुले मन से उस का स्वागत करता है और संयम व भरोसे व विश्वास जैसी नैतिक विशेषताओ से सुसज्जित होता है।
इसी प्रकार जीवन के खुशियो के अवसर पर आत्ममुग्ध नही होता और न ही उनके कारण घमंडी होता है। वह ईश्वर द्वारा प्रदान की हुई नेमतो और इसकी कृपाओ को दूसरो पर अपने बडप्पन दर्शाने और गर्व का कारण नही समझता है।
यह वही प्रभाव हैं जिन की एर इस आयत मे संकेत किया गया हैः
धरती पर या तुम पर जब भी कोई मुसीबत आती है तो वह स्पष्ट रुप से किताब मे लिखी हुई होती है इससे पूर्व कि वह मुसीबत आए और यह ईश्वर के लिए सरल है ताकि तुम उन वस्तुओ के लिए कि जिन्हे खो चुके हो निराश न हो और जो कुछ तुम्हे प्रदाम किया गया है उस पर प्रसन्न न हो और घमंडी और गर्व करने वालो को पसंद नही करता।
इसी के साथ इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि क़ज़ा व क़दर अर्थात भाग्य तथा स्वतंत्र प्रभाव से सम्बंधित की ग़लत समझ, दायित्व निर्वाह से भागने और अत्याचार सहन करने का कारण न बन जाए और हमे जान लेना चाहिए कि कल्याण तथा भाग्य व दुर्भाग्य मनुष्य के स्वेच्छा से किए जाने वाले कामो पर निर्भर है।
जैसा की क़ुरआन मे वर्णन किया गया है कि हर मनुष्य का हित अहित स्वयं उसके कार्यो द्वारा होता है और यह कि मनुष्य को वही प्राप्त होता है जिसके लिए वह प्रयास करता है।