पैग़म्बर (स) की सीरत के जलते चराग़
1- हमेशा ग़ोर व फ़िक्र करते थे।
2- ज़्यादा तर चुप रहते थे।
3- अच्छे अख़लाक़ के मालिक थे।
4- किसी का भी अपमान नहीं करते थे।
5- दुनिया की मुशकिलात पर कभी ग़ुस्सा नहीं करते थे।
6- अगर किसी का हक़ पामाल होता देखते थे तो जब तक हक़ न मिल जाऐ ग़ुस्सा रहते थे और उन को कोई पहचान नहीं पाता था।
7- इशारा करते समय पूरे हाथ से इशारा करते थे।
8- जब वह खुश होते थे तो पलकों को बन्द कर लिया करते थे।
9- ज़ौर से हसने की जगह आप सिर्फ़ मुसकुराते थे।
10- फ़रमाते थे जो कोई ज़रूरत मन्द मुझ तक नहीं पहुंच सकता तुम उस तक पहुंचो।
11- जिस के पास जितना ईमान होता था रसूल उसका उतना ही ऐहतेराम किया करते थे।
12- लोगों से प्रेम करते थे और उन को कभी अपने आप से दूर नहीं करते थे।
13- हर काम में ऐतेदाल पसन्द थे और कमी और ज़्यादती का परहेज़ करते थे।
14- बिला वजह की बातों से परहेज़ करते थे।
15- ज़िम्मेदारी को अंजाम देने में किसी भी तरह की सुसती नहीं करते थे।
16- रसूल (स.) के नज़दीक सब से अच्छा शख़्स वोह है जो लोगों की भलाई चाहता है।
17- पैग़म्बर (स.) किसी मेहफ़िल, अंजुमन, और जलसे में नहीं बेठते थे जो यादे ख़ुदा से ख़ाली हो।
18- मजलिस में अपने लिये कोई ख़ास जगह मोअय्यन नहीं करते थे।
19- जब किसी मजमे में जाते थे तो ख़ाली जगह ठूंड कर बैठ जाते थे और अपने असहाब को भी हुक्म देते थे कि इस तरह किया करें।
20- जब कोई ज़रूरत मन्द आप के पास आता था तो उसकी ज़रूरत को पूरा करते थे या फिर अपनी बातों से उसको राज़ी कर लेते थे।
21- आप का तर्ज़े अमल इतना अच्छा था कि लोग आपको एक शफ़ीक़ बाप समझते थे और सब लोग उन के नज़दीक एक जैसे थे
22- आप की नशिस्त व बरख़्वास्त बुर्दबारी, शर्म व हया, सच्चाई और अमानत पर होती थी।
23- किसी की बुराई नहीं करते थे और न किसी की ज़्यादा तारीफ़ करते थे।
24- रसूले ख़ुदा (स.) तीन चीज़ों से परहेज़ करते थे झगड़ा, बिला वजह बोलना, बिना ज़रूरत के बात करना।
25- कभी किसी को बुरा भला नहीं कहते थे।
26- लोगों की बुराईयों को तलाश नहीं करते थे।
27- बिना किसी ज़रूरत के गुफ़तगू नहीं करते थे।
28- किसी की बात नहीं काटते थे मगर यह कि ज़रूरत से ज़्यादा हो।
29- बड़े इतमेनान और आराम के साथ क़दम उठाते थे।
30- आप की गुफ़तगू मुख़तसर, जामे और पुर सुकून और मझी हुई होती थी और आप की आवाज़ तमाम लोगों से अच्छी और दिल नशीन होती थी।
31- रसूले ख़ुदा (स.) सब से ज़्यादा बहादुर, और सब से ज़्यादा सख़ी थे।
32- पैग़म्बर (स.) तमाम मुशकिलात में सब्र से काम लिया करते थे।
33- पैग़म्बर (स.) ज़मीर पर बैठ कर ख़ाना ख़ाते थे।
34- अपने हाथों से अपने जूते टांकते और कपड़े सिलते थे।
35- इतना ख़ुदा से डरते थे कि आंसूओं से जानमाज़ भीग जाया करती थी।
36- हर रोज़ सत्तर बार इसतग़फ़ार पढ़ते थे।
37- अपनी ज़िन्दगी का एक लमहा भी बेकार नहीं गुज़ारा।
38- तमाम लोगों के बाद रसूल को ग़ुस्सा आता था और सब से पहले राज़ी होते थे।
39- आप मालदार और फ़क़ीर दोनों से एक ही तरह से मिलते थे और मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाते) करते थे और अपने हाथ को दूसरों से पहले नहीं खींचते थे।
40- आप लोगों से मिज़ाह (हसी मज़ाक) फ़रमाते थे ताकि लोगों को ख़ुश कर सकें
इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः मैं उसको पसन्द नहीं करता कि जिस इंसान को मौत आ जाऐ और वह रसूल (स.) की सीरत पर अमल न करता हो।