इस्लाम शान्ति पसन्द है
इस्लाम अत्याचर-ज़ूल्म-सित्म को दूर करने व एक वेरासती हुकूमत, और सल्तनती हकुमत को दूर व किनार रखने, और राष्ट्र कि तक़दीर को संम्भलने के लिए मासूमीन (अ0) व्यतीत एक कमेटी ( शुरा) का बन्दो बस्त किया है। चीज़ में समस्त प्रकार के जनता अपना समर्थन पेश कर सकता है। इस स्थान पर एक मात्र फुकहा व मराजे तक़्लीद है. जो मासूमीन (अ0) के बाद राष्ट्र प्रचलन का अधिकार क़रार पाए हैं।
अपर तरफ़ प्रत्येक इस्लामी क़ौम, अपने अपने समर्थन में अज़ाद थे और हैं, चीज़ समय तक राष्ट्र चलाने के लिए कोई एक व्यक्ति समस्त प्रकार की शराएत उस में ना पाए जाते हो, इस समय तक राष्ट्र, मराजे के रहब्री में बाक़ी रहेगी, इस सूरत में उस स्थान को सम्पूर्ण करने के लिए किसी एक को निर्वाचन करे. जो समस्त प्रकार शरायेत के मालिक हों. और उसी तरह उम्मते इस्लामी सम्पूर्ण पद्धति से अपने समर्थन में आज़ाद है एक शूरा बनाने के लिए ताकि सभ इस्लामी क़ानून के मुताविक़ इमाम ज़मान (अ0) के गैबत तक एक फुकहा अदिल व मराजा-ए तक़्लीद के द्बारा जो सम्पूर्ण पद्धति से इस्लाम के क़वानीन से वाक़िफ हो और इस्लामी समाज को क़ुरआन और मासूमीन (अ0) के सुन्नत अक़्ल व इजमा पर अधिक से अदिक ज्ञान रखता हो, जो समस्त प्रकार के निर्देश जारी कर सकता हो, और इस सूरत में अगर कोई क़ानून पास हुआ हो तो उस क़ानून को इस्लामी दायित्व कर्मोंचारों के निकट भेज दे, ताकि वह सठिक पद्धति और न्याय के साथ व आज़ाद पद्धति से जनता के लिए प्रचलन करे और जनता की शान्ति के लिए शान्तिपूर्ण विधान जारी-सारी करे।
अपर तरफ सब का अधिकार नहीं पहुंचता, कि वह किसी एक क़ानून जो क़ानून धर्मानुसार के मुताविक़ हो उस क़ानून को परिवर्तन करे, या कम बेशि करे, (क्योंकि हलाले मुहम्मदी हलाल है क़्यामत तक और हरामें मुहम्मदी हराम है क़्यामत तक)) इस्लाम में सब का काम व दायित्व महदुद है। जब तक एक हाकिम धर्मानुसारके मुताबिक़ कोई अच्छा क़ानून निर्दृष्ट न दें।
जैसे शरीयत निर्दृष्ट किया है कि तिजारत जनता के हाथ में होना चाहीए, इस स्थान पर सब का अधिकार नहीं पहुंचता कि वह इस व्यापारी को किसी राष्ट्र व्यक्ति के निकट दे, या किसी एक विशेष व्यक्ति को दे दें। लेकिन शरए ने निर्दृष्ट नहीं किया कि गाड़ी दाहने हाथ की तरफ से चले अथवा बाएं हाथ की तरफ से, इस स्थान पर मंत्रालाय परिषद अधिकार रखता है कि इस क़ानून में परिवर्तन करें।
उस के बाद शारए उत्तम क़ानून निर्दृष्ट करने के बाद इस्लामी राष्ट्र पर फ़र्ज़ है कि वह उस क़ानून को प्रचलन के लिए चेष्टा-प्रचेष्टा करे. और समस्त प्रकार कि सामान जो समाजिक और समाज के फ़िक्र कि उन्नति के लिए है उस को प्रदान करे। और जनता को शान्ति बिस्तार करने के लिए वह कानून को व्यबाहर करे, ताकि जनता उस से आज़ादी अनुभव कर सकें।