मोहर्रम
चेहलुम, इमाम हुसैन की ज़ियारत पर न जाने का अज़ाब
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
ज़ियारत पर न जाना आयु को घटाता है
आसमान... ख़ून...बारिश
- में प्रकाशित
ध्यान दिए जाने योग्य बात है कि यूरोप की जिन इतिहासिक पुस्तकों में इस प्रकार की घटना का उल्लेख किया गया है वह केवल एंगलो सैक्सन की किताब ही नहीं है और यह एक से अधिक पुस्तकों हैं इन पुस्तकों में से वर्च लेतिंक क्रोनिल या क्रोनिल आव प्रिंसेस का नाम लिया जा सकता है।
क्या इमाम हुसैन को शियों ने शहीद किया?
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
ईश्वर लानत करे उन लोगों पर जिन्होंने आप की हत्या की और ईश्वर लानत करे उन पर जिन्होंने आपके हत्यारों के लिये संसाधनों की व्यवस्था की जिससे वह आपके विरुद्ध जंग कर सके।
इमाम हुसैन आज भी अकेले हैं!
- में प्रकाशित
लेकिन उसका सर कटने के बाद उस पर जो अत्याचार किए गए उन्हें किसी इतिहासकार ने नहीं लिखा है
20 सफ़र करबला के शहीदो का चेहलुम
- में प्रकाशित
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की होशियारी व जानकारी ने आशूरा की एतिहासिक घटना को इतिहास की अमर घटना के रूप में सुरक्षित रखा।
आशूर की हृदय विदारक घटना का चालीसवां दिन
- में प्रकाशित
आशूर की हृदय विदारक घटना का चालीसवां दिन गुज़र रहा है। आशूर के दिन का ख़्याल आते ही ख़ून, अत्याचार के ख़िलाफ़ आंदोलन, भाले पर इतिहास लिखने वाले अमर बलिदानों के सिर और चेहरे पर तमांचे खाए हुए बच्चों के चेहरे मन में उभरते है।
क़ब्रे इमाम हुसैन की ज़ियारत न करना ज़ुल्म है।
- में प्रकाशित
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- स्रोत:
- (कामिलुज़ ज़ियारात)
इमाम काज़िम अ.स. अपने असहाब से फरमाते है कि तुम्हारे और क़ब्रे हुसैन अ.स. के दरमियान कितना फासला है।
मारेकए बद्र व ओहद और शोहदा ए करबला मुशाहिद आलम
- में प्रकाशित
हज़रत सैय्यदुश शोहदा यूँ गोया हुए: ऐ करीम लोगो, सब्र से काम लो, इस लिये कि मौत तुम्हारे लिये एक पुल है, जिस से तुम सख़्तियों और मुसीबतों से उबूप कर के ख़ुदा की वसीअ व अरीज़ जन्नत और
कर्बला में कौन सफल हुआ? हुसैन (अ) या यज़ीद
- में प्रकाशित
कर्बला की घटना के बाद जितने इंक़ेलाब हुए शोहदा ए करबला के बदले (प्रतिशोध) के नाम से शुरू हुए, सभी का नारा था कि हम शोहदा ए करबला का बदला लेंगे।
चेहलुम, इमाम हुसैन अहलैबैत की नज़र में
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
शाबाश मेरी आंखों के नूर, शाबाश मेरे दिल के टुकड़े,
क्यों इमाम हुसैन यज़ीद के विरुद्ध उठ खड़े हुए?
- में प्रकाशित
जब इमाम हुसैन अ. नें देखा कि ज़िन्दा रह कर इस्लाम और दीन के लिये कुछ नहीं किया जा सकता तो मर कर ही कुछ करते हैं
वो कार्य जिसे सबसे पहले इमाम हुसैन ने किया!!!
- में प्रकाशित
प्रश्न यह है कि हम किस आधार पर यह कह रहे हैं कि यज़ीद की सत्ता से इस्लाम को ख़तरा था?
अज़ादारों की 8 ज़िम्मेदारियां
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
- स्रोत:
- tvshia.com
1. काले कपड़े पहनना। 2. संवेदना या तलसियत व्यक्त करना। 3. आशूरा के दिन काम धंधा छोड़ देना। 4. ज़ियारत और ज़ियारत पढ़ना। 5. रोना और आँसू बहाना।
करबला मे इमाम हुसैन अ.स. का पहला खुतबा
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- सैय्यद इब्ने ताऊस
- स्रोत:
- लहूफ
आपने जो कुछ बयान फरमाया ये सब हम जानते है लेकिन जब तक आप भूखे प्यासे जान न देदे हम आपको छोड़ने वाले नही है।
पैग़ामे कर्बला
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- एम मासूम सैय्यद
यह कारवां ६० हिजरी क़मरी वर्ष के छठे महीने सफ़र की २८ तारीख़ को मदीने से मक्का की ओर चला था।
कर्बला के शहीदों की श्रेष्ठ्ता का रहस्य
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- आयतुल्लाह ख़ामेनई की ज़बानी
- स्रोत:
- wilayat.in
इसी वजह से इमाम हुसैन अ. को सय्यदुश् शोहदा यानी दुनिया के तमाम शहीदों का सरदार कहा जाता है और कर्बला के शहीदों को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ शहीद माना जाता है।
आशूरा का रोज़ा
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- लेखक:
- मौलाना पैग़म्बर अब्बास नौगाँवी
न बुख़ारी की मज़कूरा दूसरी रिवायत कहती है के रसूले ख़ुदा (स) जिस वक़्त मक्का से मदीना हिजरत फ़रमाई तो न सिर्फ़ ये के आप आशूर को रोज़ा नहीं रखते थे बल्कि आपको इसके बारे में कोई इत्तला भी नहीं थी और जब आपने यहूदीयों को रोज़ा रखते हुए देखा तो तअज्जुब के साथ इस रोज़े के बारे में सवाल किया, आपने जवाब में सुना के यहूद जनाबे मूसा और बनी इस्राईल की नजात की ख़ुशी में इस दिन रोज़ा रखते हैं, तो रसूले ख़ुदा ने फ़रमाया किः
अज़ादारी क्या है?
- में प्रकाशित
अगर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने मक़सद में कामयाब हुए हैं तो खुशी में जश्न क्यों नहीं मनाया जाता और इसके विपरीत क्यों रोया जाता है? क्या यह रोना और मातम इस सफलता के मुक़ाबले में सही है? जो लोग ऐतराज़ करते हैं उन्होंने वास्तव में अज़ादारी के फ़लसफ़े को समझा ही नहीं है बल्कि उन्होंने अज़ादारी को आम तौर पर कमज़ोरी से पैदा होने वाले रोने की तरह माना है।
पहली मोहर्रमुल हराम से दसवी मोहर्रमुल हराम तक
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
इस्लाम से पहले अरब के लोग इस महीने में युद्ध को वर्जित समझते थे और लड़ाई झगड़ा बंद कर दिया करते थे और यही कारण है कि उसी युग से इस महीने को यह नाम यानी मोहर्रमुल हराम दिया गया। (1) और मोहर्रम के महीने को चाँद पर आधारित कलंडर का पहला महीना महीना माना जाता है। (2)