नबी और रसूल
रसूल का अर्थ संदेश लाने वाला और नबी का अर्थ अगर यह शब्द नबा से हो तो इस का अर्थ महत्वपूर्ण संदेश वाला और अगर नुबू से हो तो उच्च स्थान वाला व्यक्ति होता है।
कुछ लोगों का यह विचार है कि नबी का अर्थ रसूल से अधिक व्यापक होता है इस प्रकार से कि नबी उसे कहते है जिस पर र्इश्वर की ओर संदेश से आता हो चाहे दूसरो तक पहुँचाना उस की ज़िम्मदारी हो या न हो किन्तु रसूल का अर्थ होता है वह जिस का कर्तव्य संदेश को पहुँचाना हो।
किन्तु यह दावा, सही नही है क्योंकि कुरआन की कुछ आयतों में नबी को रसूल के शब्द के बाद प्रयोग किया गया है किन्तु इस दावे के अनुसार अधिक व्यापक अर्थ वाले शब्द अर्थात नबी को रसूल के शब्द से पहले आना चाहिए। इस के अलावा भी कोर्इ ऐसा प्रमाण भी मौजूद नही है जिससे यह सिध्द होता हो कि संदेश पहूँचाने की ज़िम्मेदारी केवल रसूलो पर ही होती है।
कुछ कथनो मे आया है कि नबी के लिए यह आवश्यक है कि वह र्इश्वरीय संदेश लाने वाले फ़रिश्ते को नीन्द की अवस्था में देखे और जागते समय केवल उस की आवाज़ सुने जबकि जो रसुल होता है वह सोते जागते दोनों अवस्था में र्इश्वरीय संदेश को लाने वाले फरिश्ते को देखता है। प्रत्येक दशा मे जो बात स्वीकार की जा सकती है वह यह है कि नबी जिन लोगों पर यथार्थ होता है उन को अगर दृष्टिगत रखा जाए तो स्पष्ट होता है कि नबी का अर्थ रसूल से अधिक व्यापक होता है अर्थात सारे र्इश्वरीय दूत नबी थे किंतु कुछ लोग रसुल भी थे औऱ इतिहासिक कथनो से अनुसार उनकी संख्या तीन सौ तेरह थी और निश्चित रुप से उन का स्थान अन्य र्इश्वरीय दूतों से उच्च था जैसा कि स्वंय रसूलों के मध्य भी स्थान व पदवी में अंतर था। और उनमे से कुछ लोग इमाम भी थे।
अतिविशिष्ट पैग़म्बर
क़ुरआने मजीद मे कुछ पैग़ंबरो को उलुल अज़्म के नाम से याद किया गया है किंतु उनकी विशेषताओ के बारे मे कुछ नही कहा गया है जबकि इतिहासिक पुस्तको मे इमामो के कथनो से जो बात पता लगती है वह यह है कि उनकी संख्या पाँच थी। जो इस प्रकार हैः
हज़रते नूह (अ)
हज़रत इब्राहीम (अ)
हज़रत मूसा (अ)
हज़रत ईसा (अ)
और हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.व)।
इन लोगो की विशेषता, संयम व संघर्ष के अलावा, कि जिसपर क़ुरआन मजीद मे भी बल दिया गया है, यह थी कि इन लोगों में प्रत्येक किताब और विशेष धर्म रखता था और उनके समकालीन व उनके बाद आने वाले पैग़ंबर उन्ही के धर्म का प्रचार करते थे यहाँ तक कि कोर्इ अन्य अतिविशिष्ट पैगम्बर र्इश्वर की ओर से भेजा जाता।
इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हुआ है कि काल मे दो पैगम्बरों की उपस्थिति संभव है जैसा कि हज़रत लूत, हज़रत इब्राहीम अलैहिमुस्सलाम के काल में मौजूद थे और इसी प्रकार हज़रत हारुन, हज़रत मुसा अलैहिमुस्सलाम के काल में मौजूद थे तथा हज़रत यहया, हज़रत र्इसा अलैहिस्सलाम के काल में थे।
कुछ बातें
इस पाठ के अंत में पैगम्बरी के बारे में कुछ बातों की ओर संक्षिप्त रुप से संकेत कर रहे हैः
1.र्इश्वरीय पैगम्बरो ने एक दुसरे की पुष्टि की है अपने बाद आने वाले पैगम्बर की सूचना दी है। इस आधार पर अगर कोर्इ पैगमबर होने का दावा करे किंतु अपने से पहले वाले पैगम्बरो को झुठलाए तो स्वंय झुठा होगा।
2. पैगम्बर और र्इश्वरीय दूत अपने कर्तव्यों के पालन और लोगों तक र्इश्वरीय संदेश पहुँचाने के बदले उनसे कुछ नही लेते थे। केवल पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने लोगों से इस के बदले अपने अनुसरण की माँग की थी जो वास्तव मे लोगों के हित में था।
3. कुछ र्इश्वरीय दूतो के पास लोगों के मध्य फैसला करने और उन पर शासन करने जैसे अधिकार भी थे उदाहरण स्वरुप हज़रत दाउद और हज़रत सुलैमान अलैहिमुस्सलाम को पेश किया जा सकता है और सुरए निसाअ की आयत न. 64 मे समस्त पैगम्बरो के पूर्ण रुप से अनुसरण व आज्ञापालन पर जो बल दिया गया है उससे यह समझा जा सकता है कि यह अधिकार समस्त र्इश्वरीय दूतों को प्राप्त था।
4. जिन्नों मे से, जो इच्छा व चयन शक्ति रखन् वाली र्इश्वरीय रचना हैं और सामान्य परिस्थिति मे मुनष्य उन्हे देख नही सकता, कुछ जिन्न पैगम्बरों के संदेशो का ज्ञान रखते थे और उन मे से अच्छे लोग पैगम्बरों का अनुसरण भी करते थे तथा उन लोगों में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के अनुयार्इ मोजूद हैं इसी प्रकार बहुत से जिन्न शैतान के अनुयार्इ हैं और उन्होने पैगम्बरों की पैगम्बरी का इन्कार किया हैं।