हज़रत रसूले अकरम के इरशाद
१. तुममें सबसे बेहतर वह शख़्स है जो अल्लाह की मासियत (गुनाह) से इज्तेनाब (बचे) करे।
२. अगर तुम से कोई गुनाह सरज़द हो जाए तो उसके बाद नेक काम फ़ौरन करो ताकि (शायद) कुछ तलाफ़ी हो जाये।
३. आपस में मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करो क्योंकि उससे कीना (मन में शत्रुता) ख़त्म होता हैं।
४. तुम्हारा बेहतरीन दोस्त वह शख़्स है जो तुम को नेक काम की तरफ़ मुतावज्जेह करे।
५. तुम्हारा बेहतरीन दोस्त वह शख़्स है जो तुम को तुम्हारी ग़लतियों की तरफ़ तुमको मुतावज्जेह करे।
६. सरवतमन्द वह शख़्स नहीं है जिसके पास माल की फ़रावानी हो बल्कि सरवतमन्द वह है जो लालच में मुबतला न हो।
७. जो शख़्स किसी बेकस व परेशान मेमिन को पनाह दे क़यामत के दिन ख़ुदावन्दा करीम उसे अपनी पनाह में ले लेगा।
८. लोगों से इस तरह मिलो के जब तक ज़िन्दा रहो लोग तुम्हारे पास आना पसन्द करें और जब मर जाओ तो तुम्को याद करके आँसू बहायें।
९. सिल्हे रहम (लोगों से भलाई) तूले उम्र (दीर्घायु) और सरवत का बायस (कारण) है।
१०. ख़ुद पसन्दी (अपने को ऊँचा समझना) से बचो वरना तुम्हारा कोई दोस्त न रह जायेगा।
११. तुम में सबसे नेक शख़्स वह है जो अपने ग़ुस्से को पी जाये और क़ुदरत के बावजूद बुर्दबारी (गंभीरता) से काम ले।
१२. क्या कहना उस शख़्स का जो ऐब (त्रुटियों) की जुस्तजू (ख़ोज) में रहता है और दूसरों के ओयूब (ऐब का बहु) से ग़ाफ़िल है।
१३. अपने बदन को काम और कोशिश (प्रयत्न) पर आमादा करो और हर्गिज़ काहिली और सुस्ती की तरफ़ न जाओ।
१४. आपस में एक दूसरे को तोहफ़े (उपहार) भेजो ताकि आपस में मुहब्बत बढ़े।
१५. जब तुमसे कोई मुलाक़ात के लिये आए तो उसका एहतेराम (आदर) करो।
१६. बुरे से भी नेकी करो ताकि उनकी बुराई से महफ़ूज़ (बचो) रहो।
१७. जो शख़्स दूसरों की ख़ताओं से दरगुज़र करता है ख़ुदावन्दे आलम उसकी ख़ताओ से दरगुज़र करता है।
१८. भाई वह है जो बुरे वक़्त (समय) में काम आये।
१९. ताक़तवर वह है जो अपने नफ़्स पर मुसल्लत (हावी) रहे।
२०. बदतरीन शख़्स वह है जो अपने घर वालों पर बेजा सख़्ती करे।
२१. कोई हसब व नसब ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) से बेहतर नहीं।
२२. जो शख़्स लोगों पर रहम नहीं करता ख़ुदा उस पर रहम न करेगा।
२३. हमेशा अच्छी बातें करो ताकि नेकी से याद किये जाओ।
२४. बेहतरीन नेकी लोगों से इत्तेहाद (एकता) क़ायम (स्थापित) करना है।
२५. जो शख़्स ना-मशरू (ग़लत) तरीक़े से किसी चीज़ को हासिल करना चाहता है तो ज़्यादा तर नाकामयाब रहता है और अक्सर परेशानी में मुबतला ही रहता है।
२६. तुम्हारे घर की अच्छाई यह है कि वह तुम्हारे बे बज़ाअत (ग़रीब) रिश्तेदारों और बे-चारे लोगों की मेहमान सरा हो।
२७. लोगों में ज़लील शख़्स वह है जो मख़्लूक़े ख़ूदा (ईशवर के बन्दों) को ज़लील समझे।
२८. अपने बच्चों का एहतेराम (आदर) करो और उनकी अच्छी तरबियत करो।
२९. सच हमेशा आसूदगी का बायस और झूठ हमेशा तशवीश (परेशानी) का मोजिब (कारण)।
३०. ज़रूरतमन्दों की मदद करने से बुरी मौत से निजात मिलती है।
३१. अफ़सोस उस शख़्स पर जिसकी मदह व सना (तारीफ़ ,प्रशंसा) सिर्फ़ उसके शर से महफ़ूज़ रहने के लिए की जाती है।
३२. अफ़सोस उस शख़्स पर जिसके सितम के ख़ौफ़ से लोग उसकी इताअत (आदेशानुपालन) करते हों।
३३. ख़ुदा की लानत हो उन माँ बाप पर जो अपने बच्चों की सही तरबियत (शिक्षा- दीक्षा) न करें और अपने आक़ किये जाने के बायस (कारण) बनें।
३४. जो शख़्स अपने अहद व पैमान (वचन) को पूरा न करे वह मुसलमान नहीं।
३५. ख़ुदा की लानत हो उस शख़्स पर जो ज़िन्दगी का बार (बोझ) दूसरों पर डाले रहे।
३६. जो शख़्स चाहे के लोगों में महबूब रहे उसे गुनाह से इज्तेनाब (बचना) चाहिये।
३७. छोटे बच्चों के साथ बच्चों की तरह बर्ताव (व्यवहार) करो।
३८. नेकी और अच्छाई यह है कि अयादत (बीमार को पूछना) के वक़्त मरीज़ से हाथ मिलाओ मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाना) करो।
३९. बच्चों के जो हक़ूक़ (हक़ का बहु) माँ बाप पर हैं उनमें यह भी है कि उनका ख़ूबसूरत नाम रखें और उनकी नेक तरबियत (शिक्षा- दीक्षा) करें।
४०. इमान वह दरख़्त (पेड़) है जिसके रेशे यक़ीन ,जिसका तना तक़वा ,जिसके शिगोफ़े हया और जिसका फल सख़ावत है।