हज़रत अमीरूल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के इरशाद
1. जिस चीज़ की काश्त करोगे वही महसूल (हासिल) हासिल होगा और जो अमल करोगे उसकी जज़ा (इनाम) पाओगे।
2. अमानत (धरोहर) की हिफ़ाज़त (रक्षा) में तसाहुली (काहिली) न करो। अमानत में ख़यानत फ़क़्र और तहीदस्ती (ग़रीबी) का बायस (कारण) है।
3. जिसने क़ुरान को अपना रहनुमा (मार्गदर्शक) बनाया उसकी हिदायत जन्नत की तरफ़ होगी।
4. जो क़ुरान के हराम को हलाल जाने उसका ईमान क़ुरान पर नहीं।
5. मुसलमान मुसलमान का भाई है न उसपर ज़ुल्म करें न उसको सतायें।
6. क्या कहना उस शख़्स का जो अपनी ख़ामियों (कमियों) की तलाश में रहे और दूसरों की कमज़ोरी पर नज़र न करे और जो माल मयस्सर (पास) हो ,उसको गुनाह (पाप) में सर्फ़ (ख़र्च) न करे।
7. जहाँ भी रहो ख़ुदा से डरो हमेशा हक़ बात कहो अगरचे तल्ख़ (कड़वी) हो।
8. हर काम को पहले अन्दाज़ा करके और उसकी तदबीर करके शुरू करो ताकि नफ़रत से महफ़ूज़ (बचे) रहो।
9. अपने वाजेबात (जिसका न करना पाप हो) को पूरा करो ताकि परहेज़गार (बुराइयों से बचने वाले) रहो और मुक़द्देरात इलाही पर राज़ी रहो ताकि सबसे बेनियाज़ रहो।
10. जो कोई अपने बरादरे मोमिन की हाजत पूरी करेगा ख़ुदावन्दे आलम उसकी बहुत सी हाजतें पूरी करेगा।
11. कितनी बुरी बात है के आदमी मतलब के वक़्त (समय) ख़ाकसार बना रहे और मतलब निकल जाने पर जफ़ाकार (ज़ुल्म करने वाला)।
12. जितना हक़ तुम दूसरों पर रखते हो उतना ही हक़ वह तुम पर भी रखते हैं।
13. जब दुश्मन पर फ़त्ह (विजय) पाओ तो कामयाबी (सफ़लता) का शुक्राना यह है के उसे माफ़ (क्षमा) कर दो।
14. पोशीदा सदक़ा (गुप्तदान) इन्सान के गुनाहों (पापों) की तलाफ़ी (बदल) करता है।
15. बदतरीन दोस्त (ख़राब दोस्त) वह है जो तुम्हें मासियत (गुनाहों) की तरफ़ मायल (सुझाव) करे।
16. अपने को उन आमाल के लिये तैयान करो जिसकी ज़रूरत क़यामत (महाप्रलय) के दिन होगी।
17. अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह शख़्स (मनुष्य) है जो दूसरों की मालूमात (ज्ञान) से अपनी मालूमात (ज्ञान) में इज़ाफ़ा (बढ़ोतरी) करे।
18. हद से ज़्यादा मेज़ाह (मज़ाक़) आबरू (इज़्ज़त) को ख़त्म कर देता है और झूठ शख़्सियत की इज़्ज़त को ज़लील कर देता है।
19. अजीब बात है कि हासिद (ईष्य्रालु) अपनी तन्दरूस्ती की फ़िक्र नहीं करते।
20. हमेशा ख़ुदा की याद रखो के वह दिल की नूरानी का बायस (कारण) और इबादत (तपस्या) है।
21. अपने ईमान को एहसान और बख़्शिश के ज़रिये महफ़ूज़ (बचाये) रखो।
22. किसी की बुराई को फ़ाश करने वाला (प्रकट करने वाला) बुराई करने वाले की मिस्ल (समान) है और ग़ीबत का सुनने वाला ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई करना) करने वाले के मानिन्द (समान) है।
23. वह लोग जो बुरे और बदकार हैं वह दूसरों के उयूब (ऐब का बहु) को फ़ाश (प्रकट) किया करते हैं ताकि अपनी ख़ामियों (कमियों) के लिये बहाना मिल जाए।
24. तीन चीज़ों में कोई शर्मिन्दगी नहीं। मेहमान की ख़िदमत करना ,उस्ताद और बाप के लिये अपनी जगह से उठना और अपने हक़ को तलब करना।
25. तीन चीज़ें ही ज़िन्दगी को मुसीबत में डाल देती हैं कीना (मन में शत्रुता) ,रश्क (किसी को हानि पहुँचाये बिना उस जैसा बनने की भावना) ,बदमेजाज़ी।
26. इल्म (ज्ञान) का पूरा फ़ायदा (लाभ) उस वक़्त (समय) हासिल (प्राप्त) होता है जब उसे काम में लायें (प्रयोग में लायें)
27. जो शख़्स तुम्हारी ख़ामियों (कमियों) पर तुम को मुतावज्जेह करे तुम्हारा दोस्त और जो ख़ामियों को छिपाये वह तुम्हारा दुश्मन (शत्रु)।
28. हर शख़्स के माल के दो शरीक हैं एक वारिस दूसरे हवादिस (हादिसे का बहु)।
29. तुम जिसके मरकज़े उम्मीद हो उसका दिल (मन) मत तोड़ो।
30. जो यतीम (जिनके पिता न हों) बच्चों पर मेहरबानी करता है उसके बच्चों पर मेहरबानी की जाती है।
31. सब्र (सहनशीलता) व ज़ब्त (बर्दाश्त) ज़माने की सख़्तियों को आसान कर देता है।
32. किसी के गिरफ़्तारे बला हो जाने से ख़ुश न हो क्योंकि ख़ुदा जाने फ़लक कज रफ़्तार तुम्हारे साथ क्या करे।
33. दीनदार वह है जो दूसरों के सितम् तो सह ले मगर कोई उससे सितम न उठाये।
34. उस शख़्स पर ज़ुल्म करने से ख़बरदार जिसका ख़ुदा के अलावा कोई हमनवा (साथी) नहीं।
35. दुश्मन पर हमला करने से पहले सोच लो।
36. बुरों की तारीफ़ करना बहुत बड़ा गुनाह (पाप) है।
37. जानने के लिये सवाल करो फ़ित्ना बर्पा करने के लिये नहीं।
38. तुम्हारा बेहतरीन दोस्त वह है जो तुम्को ताअते इलाही (ईशवरीय भक्ति) पर मजबूर करे।
39. अपनी बीमारी का इलाज बेकसों की दस्तगीरी (गिरते को थामना) और मदद (सहायता) से करो।
40. बला के तूफ़ान को इबादत (तपस्या) व दुआ के ज़रिये (द्वारा) दूर करो।