हज़रत इमामे हसन (अ.स.) के इरशाद
१. जो शख़्स (मनुष्य) हराम ज़राये से दौलत (धन) जमा करता है ख़ुदावन्दे आलम उसे फ़क़ीरी और बेकसी में मुबतला करता है।
२. दो चीज़ो से बेहतर कोई शैय (चीज़) नहीं एक अल्लाह पर ईमान और दूसरे ख़िदमते ख़ल्क (परोपकार)।
३. ख़ामोश सदक़ा (गुप्त दान) ख़ुदावन्दे आलम के ग़ज़ब (प्रकोप) को ख़त्म कर देता है।
४. हमेशा नेक लोगों की सोहबत (संगत) इख़्तेयार (ग्रहण) करो ताकि अगर कोई कारे नेक (अच्छा कार्य) करो
तो तुम्हारी सताएश (प्रशंसा) करें और अगर कोई ग़लती हो जाये तो मुतावज्जेह (ध्यान दियालें) करें।
५. जिसने ग़लत तरीक़े से माल जमा किया वह माल ग़लत जगहों पर और नागहानि-ए-हवादिस (अचानक घटित होने) में सर्फ़ होता है।
६. हर शख़्स की क़ीमत उसके इल्म के बराबर है।
७. तक़वा (सँयम ,ईश्वर से भय) से बेहतर लिबास ,क़नाअत (आत्मसंतोष) से बेहतर माल ,मेहरबानी व रहम से बेहतर एहसान मुझे न मिला।
८. बुरी आदतें जाहिलों की मुआशेरत (कुसंग) में और नेक ख़साएल (अच्छी आदतें) अक़्लमन्दों (बुध्दिमानों) की सोहबत (संगत) से मिलते हैं।
९. अपने दिल को वाएज़ व नसीहत (अच्छे उपदेश) से ज़िन्दा रखो।
१०. गुनाहगारों (पापियों) को नाउम्मीद (निराश) मत करो (क्योंकि) कितने गुनाहगार ऐसे गुज़रे जिनकी आक़ेबत ब-ख़ैर हुई।
११. सबसे बेचारा वह शख़्स है जो अपने लिये दोस्त (मित्र) न बना पाये।
१२. जो शख़्स दुनिया की बेऐतबारी को जानते हुए उस पर ग़ुरूर (घमण्ड) करे बड़ा नादान है।
१३. ख़ुश अख़लाक़ (सुशील) बनो ताकि क़यामत (महाप्रलय) के दिन तुम पर नर्मी की जाए।
१४. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह इन्सान को नेकियों से महरूम कर देता है।
१५. हमेशा नेक बात कहो ताकि नेकि से याद किये जाओ।
१६. अल्लाह की ख़ुशनूदी माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है और अल्लाह का ग़ज़ब उनके ग़ज़ब के साथ है।
१७. अल्लाह की किताब पढ़ा करो और अल्लाह की नाराज़गी और ग़ज़ब से ख़बरदार रहो।
१८. बुख़्ल (कंजूसी) और ईमान एक साथ किसी के दिल में जमा नहीं हो सकता।
१९. किसी इन्सान को दूसरे पर तरजीह (प्राथमिकता) नहीं दी जा सकती मगर दीन या किसी नेक काम की वजह से।
२०. मैने किसी सितमगर को सितम रसीदा के मानिन्द नहीं देखा मगर हासिद (ईर्ष्यालु) को।
२१. अपने इल्म (ज्ञान) को दूसरों तक पहुँचाओ और दूसरों के इल्म (ज्ञान) को ख़ुद हासिल करो।
२२. अपने भाईयें से फ़ी सबीलिल्लाह (केवल ईशवर के लिए) भाई चारा रखो।
२३. नेकियों और अच्छाइयों का अन्जाम उसके आग़ाज़ (प्रारम्भ) से बेहतर है।
२४. अच्छाई से लज़्ज़त बख़्श कोई और मसर्रत नहीं।
२५. अक़्लमन्द (बुध्दिमान) वह है जो लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) से पेश आती हो।
२६. जिसका हाफ़ेज़ा (याद्दाश्त) क़वी (ताक़तवर) न हो और अपना दर्स (पाठ) पूरे तौर से याद न कर पाता हो उसे चाहिये के वह उस्ताद के बयान करदा मतालिब (मतलब का बहु) पर ग़ौर करे और अपने पास महफ़ूज़ (सुरक्षित) करे ताकि वक़्ते ज़रूरत काम आये।
२७. जितना मिले उसपर ख़ुश रहना इन्सान को पाकदामनी तक ले जाता है।
२८. नुक़सान उठाने वाला वह शख़्स है जो ओमूरे दुनिया (सांसारिक कार्य) में इस तरह मश्ग़ूल रहे के आख़ेरत (आख़रत) के ओमूर रह जायें।
२९. धोका और मक्र (छल) ख़ासतौर से उस शख़्स के साथ जिसने तुमको अमीन (सच्चा) समझा कुफ़्र है।
३०. गुनाह क़ुबूलियते दुआ में मानेअ और बदख़ुल्क़ी शर व फ़साद का बायस (कारण) है।
३१. तेज़ चलने से मोमिन का वेक़ार (आत्मसम्मान) कम होता है और बाज़ार में चलते हुए खाना पस्ती (नीचता) की अलामत है।
३२. जब कोई तुम्हारा ख़ैर अन्देश (शुभचिन्तक) अक़्लमन्द तुमको कुछ बताये तो उसे क़ुबूल करो और उसकी ख़िलाफ़ वर्ज़ी (विरोध) से बचो क्योंकि उसमें हलाक़त है।
३३. नादानों की बातों की बेहतरीन जवाब ख़ामोशी है।
३४. हासिद (ईर्ष्यालु) को लज़्ज़त ,बख़ील (कंजूस) को आराम और फ़ासिक़ (ईशवरीय आदेशों का मन से विरोध) को एहतेराम (आदर) तमाम लोगों से कम मिलता है।
३५. बेहतरीन किरदार गुर्सना (भूखे) को खाना खिलाना और बेहतरीन काम जाएज़ काम में मशग़ूल (लिप्त) रहना।
३६. जब तुम बुरे काम से परेशान हो और नेक कामों से ख़ुशहाल तो समझ लो के तुम मोमिन हो।
३७. बेहतर यह है के तुम अपने दुश्मन पर ग़लबा (विजय) हासिल (प्राप्त) करने से पहले अपने नफ़्स पर क़ाबू पा लो।
३८. बख़ील (कंजूस) इन्सान अपने अज़ीज़ों (रिश्तेदारों) में ख़ार रहता है।
३९. गुनाहों (पापों) से बचो क्योंकि गुनाह (पाप) इन्सान के हस्नात (अच्छाइयों) को भी तबाह (बर्बाद) कर देता है।
४०. जिसके पास अज़्म (द्रढ़ता) व इरादा है वह दूसरों लोगों के मुक़ाबले में अपने ऊपर मुसल्लत (हावी) है।