हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के इरशाद
१. जो शख़्स किसी मोमिन को खाना खिलाता है ख़ुदावन्दे आलम उसे जन्नत के मेवों से नवाज़ेगा।
२. किसी नेक काम को ख़ुदनुमाई (दिखलाना) के लिये अन्जाम मत दो और किसी नेक काम को ख़ेजालत (शर्मिन्दगी) की बिना पर तर्क न करो।
३. जिसे कोई नेमत (अच्छी वस्तु) मिले उसे शुक्र करना चाहिये।
४. किसी इमारत में हराम चीज़ों का इस्तेमाल न करो के वह वीरानी का बायस (कारण) है।
५. जो शख़्स अमानतदार नहीं वह ईमानदार नहीं और जिसे अपने अहद व पैमान का ख़्याल नहीं तो वह दीनदार नहीं।
६. नेक बातें तूले उम्र (दीर्घायु) का बायस (कारण) और ख़ानदान में महबूबियत (जनप्रिय) और जन्नत में दाख़िले का मोजिब (ज़रिया) है।
७. जिस तरह तुम्हें अपने ऊपर ज़ुल्म पसन्द नहीं दूसरों पर ज़ुल्म मत करो।
८. दो चीज़ों की क़ीमत का अन्दाज़ा नहीं किया जाता मगर उनके गुज़र जाने के बाद ,एक जवानी दूसरे तन्दरूस्ती।
९. कितने ग़ैर हैं जो अपनों से बेहतर हैं (और बुरे वक़्त काम आते हैं) ।
१०. बख़ील (कंजूस) लोगों से मशविरा (परामर्श) मत करो वरना वह तुमको भी सख़ावत (दान) व बख़्शिश से रोक देंगे।
११. नेक लोगों की लग़ज़िशों (त्रुटियों) से चश्मपोशी (अनदेखी) करो क्योंकि ख़ुदावन्दे आलम उनका नासिर व मददगार (सहायक) है।
१२. झूठ से बचो क्योंकि झूठ और ईमान में तज़ाद (टकराव) है।
१३. बड़ी अज़ीम है वह मुसीबत जो इन्सान के दीन पर आये।
१४. जो शख़्स अल्लाह के दोस्तों को दोस्त रखता है ,क़यामत (महाप्रलय) के दिन उन्हीं के साथ महशूर होगा (उठाया जायेगा) ।
१५. मुसलमान जब किसी से वायदा करता है तो फिर वायदा ख़िलाफ़ी नहीं करता।
१६. बदख़्वाही (बुरा चाहना) बदगुमानी (बुरा सोचना) चुग़लख़ोरी ,ज़ुल्म व सितम और फ़ालेबद (अभिशाप) कहने से इज्तेनाब (बचो) करो।
१७. तोहफ़ा दोस्ती को परवान चढ़ाता है भाई चारगी में इज़ाफ़ा करता है और कीने (मन में शत्रुता) को ख़त्म करता है।
१८. कितनी ही ऐसी जल्द ख़त्म हो जाने वाली लज़्ज़ात (मज़े) हैं जिनके नतीजे में एक तुलानी (दीर्घकालीन) रन्ज व अफ़सोस हैं।
१९. लोगों से उन मौज़ूआत (विषयों) पर बात करो जिसे वह समझ सकें।
२०. लोगों से ख़ुश अख़लाक़ी (सुशीलता) ,दुरूस्तकारी से मिलो और उन पर ग़ुस्सा करने से बचो।
२१. ईमान वाला ख़ुदावन्दे आलम से दो चीज़ें तलब करता है ,दुनिया में आसूदगी (संतोष) और आख़ेरत में नेमात (परलोक में मनपसन्द वस्तु) ।
२२. मोमिन तमलक़ (चापलूसी) और चापलूसी नहीं करता।
२३. जब तुम्हारा दामन ख़ुद ही गुनाहों (पापों) से और बुराईयों से आलूदा है तो नही अनिल मुन्कर (बुराई से रोकना) तुम्हारी ज़िम्मेदारी नहीं।
२४. हक़ की पैरवी किये पग़ैर इन्सान की अक़्ल (बुध्दि) कामिल (पूर्ण) नहीं होती।
२५. जिस चीज़ तक पहुँचना मोहाल (दुशवार) है उसकी आरज़ू (इच्छा) मत करो।
२६. डरपोक और गुनाहगार (पापी) हमेशा परेशान रहते हैं।
२७. इज़्ज़त व मसर्रत परहेज़गारी (बुराईयों से बचना) में है।
२८. ईमान वाला इन्सान न ग़लत काम करता है न ही उसे माज़ेरत (पश्चाताप) करना पड़ती है।
२९. इन्सान की इज़्ज़त इसमें है कि वह दूसरों का मोहताज न रहे।
३०. जो तुम्हारा दोस्त (मित्र) होगा वह तुम्हें बुरे कामों से बचायेगा।
३१. मुसलमान से मुजादला (झगड़ा करना) नादानी की अलामत (जिन्ह) है।
३२. जितना काम किया हो उससे ज़्यादा के सिले (बदले या मज़दूरी) की उम्मीद (आशा) मत रखो।
३३. बख़ील (कंजूस) वह है जो सलाम में बुख़्ल (कंजूसी) करे।
३४. मुनाफ़िक़ (जिसका बाहरी व आन्तरिक एक न हो) रोज़ ग़लती करता है और रोज़ उसे माज़ेरत करना पड़ती है। मोमिन न ग़लती करता है न उसे माज़ेरत (क्षमायाचना) की ज़रूरत होती है।
३५. सलाम में सत्तर ( 70)हस्ना (अच्छाईयाँ) उन्हत्तर ( 69)सलाम करने वाले को और एक जवाब देने वाले को।
३६. जब तक कोई सलाम से इब्तेदा (शुरूआत) न करे उसकी बात का जवाब न दो।
३७. लोगों का अपनी ज़रूरेयात में तुम्हारी तरफ़ रूख़ करना अल्लाह की नेमतों में से एक नेमत है उसे ठुकराओ नहीं।
३८. ज़िन्दगी अक़ीदा (विशवास) और अमले पैयहम (निरन्तर कार्य करना) का नाम है।
३९. मोमिन का क़ौल (कथन) उसकी शख़्सियत (व्यक्तित्व) का आइना होता है।
४०. अपनी ज़रूरत सिर्फ़ तीन तरह के लोगों से बयान करो।
(1).दीनदार , (2).साहिबे मुरव्वत , (3).शराफ़तमन्द।