हज़रत इमामे जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) के इरशाद
१. हर बुज़ुर्गी और शरफ़ की अस्ल तवाज़ो है।
२. जिन कामों के लिये बाद में माज़ेरत करना पड़े उनसे परहेज़ (बचो) करो।
३. अपने दिलों (मन का बहु) को क़ुराने मजीद की तिलावत और अस्तग़फ़ार (प्रायश्चित) से नूरानी रखो।
४. अगर कोई तुम पर एहसान करे तो तुम उसके एहसान को चुकाओ और अगर यह न कर सकते हो तो उसके लिये दुआ करो।
५. जिस तरह तुम यह चाहते हो की लोग तुमसे नेकी करें तुम भी दूसरों से नेकी करो।
६. सफ़र (यात्रा) से पहले हमसफ़र (जिसके साथ सफ़र कर रहा है) को और घर लेने से पहले हमसाया (पड़ोसी) को ख़ूब परख लो।
७. किसी फ़क़ीर को ख़ाली वापिस न करो कुछ न कुछ ज़रूर दे दो ।
८. अव्वल वक़्त नमाज़ अदा (पढ़ो) करो अपने दीन के सुतून (खम्भो) को मज़बूत करो।
९. लोगों को ख़ुश करने के लिये ऐसा काम न करो जो ख़ुदावन्दे आलम को नापसन्द हो।
१०. दोस्तों (मित्रों) को हज़र (मौजूदगी) में एक दूसरे से मिलते रहना चाहिये और सफ़र में ख़ुतूत (ख़त का बहु वचन) के ज़रिये राबता (सम्बन्ध) रखना चाहिये।
११. शराबियों से दोस्ती मत करो।
१२. अच्छे काम इन्सान को बूरे वक़्त में बचाते है।
१३. (अगर) आज तुम अपने किसी भाई की मदद करोगे तो कल हज़ारों लोग तुम्हारी मदद करेगें।
१४. मौत की याद बुरी ख़्वाहिशों (इच्छाओं) को दिल से (मन से) ज़ाएल (दूर) करती है।
१५. माँ बाप की फ़रमांबरदारी ख़ुदावन्दे आलम की इताअत (आज्ञा का पालन) है।
१६. हसद ,कीना और ख़ुद पसन्दी (स्वार्थ) दीन के लिये आफ़त हैं।
१७. सिले रहम आमाल को पाकीज़ा (पवित्र) करता है।
१८. ख़ुदावन्दे आलम उस शख़्स पर रहमत करे जो इल्म (ज्ञान) को ज़िन्दा रखे।
१९. ग़ुस्सा हर बुराई का पेशख़ेमा है।
२०. जिसकी ज़बान सच बोलती है उसका अमल भी पाक होता है।
२१. अपने वालदैन (माता पिता) से नेकी करो ताकि तुम्हारी औलाद (बच्चे) तुम से नेकी करें।
२२. ख़ामोंशी से बेहतर कोई चीज़ नहीं है।
२३. कुफ़्र की बुनियाद तीन चीज़ हैं 1.लालच , 2.तकब्बुर (घमण्ड) , 3.हसद।
२४. नेक बातें तहरीर (लिखावट) में लाओ और उसे अपने भाईयों में तक़सीम करो।
२५. मुझे वह शख़्स नापसन्द है जो अपने काम में सुस्ती करे।
२६. हरीस (लालची) मत बनो क्योंकि उससे इन्सान की आबरू चली जाती है और वह दाग़दार हो जाता है।
२७. बदतरीन लग़्ज़िश यह है के इन्सान अपने उयूब (ऐब का बहु वचन) की तरफ़ मुतावज्जेह (ध्यान) न दे।
२८. शराबियों से कोई राबता (सम्बन्ध) न रखो।
२९. जिस घर या जिस नशिस्त में मोहम्मद (स 0)का नाम मौजूद हो वह बा बरकत व मुबारक है।
३०. लिखे हुए कागज़ात को नज़्रे आतिश (जलाओ नहीं) न करो अगर जलाना है तो पहले नविश्त ए जात (लिखे हुए को) को महो (मिटा) कर दो।
३१. कभी गुनाह को कम न समझो मगर गुनाह से इज्तेनाब (बचो) करो।
३२. जिसने लालच को अपना पेशा बनाया उसने ख़ुद को रूसवा (ज़लील) कर लिया।
३३. जल्दबाज़ी हमेशा पशेमानी (पश्चाताप) का बायस (कारण) होती है।
३४. मौत की याद बेतुकी ख़्वाहिशों (व्यर्थ इच्छाओं) को दिल से निकाल देती है।
३५. निजात व सलामती हमेशा (सदैव) ग़ौर व फ़िक्र (सोचविचार) से हासिल (प्राप्त) होती है।
३६. ख़ुदावन्दे आलम की ख़ुशनूदी (ख़ुशी) माँ बाप की ख़ुशनूदी के साथ है।
३७. जो शख़्स कम अक़्लों और बेवकूफ़ों से दोस्ती करता है वह अपनी आबरू ख़ुद कम करता है।
३८. शराब से बचो के यह तमाम बुराईयों की कुंजी है।
३९. मेदा तमाम बुराईयों का ख़ज़ाना है और परहेज़ हर इलाज का पेशख़ेमा है।
४०. जिस तरह ज़्यादा पानी से सब्ज़ा पज़मुर्दा हो जाता है उसी तरह ज़्यादा खाने से दिल मुर्दा हो जाता है।