शायरे अहलैबैत जनाब वासिफ आबदी सहारनपुरी
नाम
जनाब वासिफ आबदी का अस्ल नाम सैय्यद अख़लाक़ हुसैन आबदी था, वासिफ आपका तख़ल्लुस था।
अलकाब
आपको ताजदारे सुखन, सिराजुल अदब और शाएरे क़ौमो मिल्लत के अलक़ाब अता किये गये।
माता पिता
जनाब वासिफ आबदी के पिता जनाब सैय्यद अशफ़ाक़ हुसैन व आपकी माता नूर जहाँ बेगम थी। आपके दो भाई और तीन बहने थी।
जन्म स्थान
जनाब वासिफ आबदी ने सहारनपुर के एक इल्म और अहलैबेत दोस्त घराने मे अपनी आँखे खोली जिसका समरा हमारे सामने उनकी इल्मी सलाहियते थी।
इलमी सरमाया
आपका पहला शाईरी मजमुआ हरीमे फिक्र था कि जो कि आपका एक ग़ज़लियाती मजमुआ था और सन् 1975 मे शाया हुआ था उसके बाद आपके इंतेकाल तक लगातार आपके अदबी और अकीदती अशआर की किताबे मंज़रे आम पर आती रही कि जिनके नाम ये हैः मौजे कौसर (1984), महराबे नज़र (1986), लहजो के चिराग़ (1991), सहीफाऐ इस्मत (1993), सदाऐ अबुज़र (1996), अहसास (1998), वलअस्र (1999) और आपकी आखरी किताब शुआए क़लम है कि जो आँजनाब की बीमारी की वजह से शाया नही हो सकी और फिलहाल हक़ीर के पास है और मै भी अपनी नाअहली और कम तोफीक़ी कि बिना पर इसे शाया न करा सका।
संतान
आपके चार बेटे शादाब मेहदी, निशान हैदर, सफीर हैदर व पयाम हैदर है तथा तीन बेटी हसीन फातेमा,(कि जो अल्लाह के करम से मेरी वालिदा है) मेहजबीन फातेमा और निशात फातेमा है।
स्वर्गवास
आपने 27 जिलहिज्जा 1427 हिजरी मुताबिक 16 जनवरी 2007 को इस दुनिया ए फानी से रूखसत होकर आलमे मलकूती को अपनी क़यामगाह बनाया।
सैय्यद मौहम्मद मीसम नकवी
27/6/2015
क़ुम/ईरान