इस्लाम की पहली शहीद खातून
सुमय्या बिन्ते खय्यात इस्लाम की उन बुज़ुर्ग खवातीन मे से थी कि जिन्होने मुसलमान होने की वजह से बेहद तकलीफें उठाई और आखिरे कार इस्लाम की पहली शहीद खातून होने का शरफ हासिल किया।
शौहर
जनाबे सुमय्या अबुहुज़ैफा इबने मुगीरा की कनीज़ थी और अबुहुज़ैफा ने ही आपका अक़्द जनाबे यासिर के साथ किया था इसके बाद जनाबे सुमय्या आज़ाद हो गई और ये तय हुआ था कि आपके शौहर और औलाद को आज़ाद लोगो मे शुमार किया जाऐगा।
जनाबे यासिर
जनाबे यासिर बिन आमिर यमन के रहने वाले थे और अपने भाई को ढ़ूढ़ते हुऐ मक्का पहुंचे थे और जब भाई के मिलने से मायूस हो गऐ तो मक्का ही मे रहने लगे थे।
इस्लाम
जनाबे सुमय्या और उनके शौहर जनाबे यासिर व बेटा अम्मार उसी वक्त इस्लाम ले आऐ थे कि जब रसूले खुदा (स.अ.व.व) पोशीदा तौर पर इस्लाम की तबलीग़ कर रहे थे और सिवाऐ चंद लोगो के कोई मुसलमान नही हुआ था।
जनाबे सुमय्या और कुफ्फार
जैसे ही जनाबे सुमय्या और उनके खानदान के मुसलमान होने की खबर कुरैश को लगी कुफ्फार के ज़ुल्म ने इस खानदान को घेर लिया और हद ये थी कि लोहे की ज़िरहे इन तीनो अफराद को पहना कर मक्का के सहरा मे धूप मे छोड़ दिया करते थे ताकि सूरज की गरमी इन के जिस्मो की ईमान की गरमी को पिघला सके।
लेकिन अल्लाह अल्लाह किस शान के मुसलमान थे कि सिवाऐ ला इलाहा इल्लल लाह और अल्लाहो अकबर के कोई कलमा ज़बान से जारी न करते थे यहाँ तक कि अबुजहल मलऊन की कनीज़े भी इन अफराद के हाल पर रहम खा अबुजहल से रहम की दरखास्त करती है लेकिन वो मलऊन क़ुबुल नही करता है।
जन्नत की बशारत
इन हज़रात का हाल देख कर रसूले खुदा (स.अ.व.व) फरमाया करते थे कि ऐ खानदाने अम्मार सब्र करो बेशक तुम्हारी जज़ा जन्नत है।
पैग़म्बर की दुआ
एक रोज़ जनाबे सुमय्या के बेटे अम्मार रसूले खुदा (स.अ.व.व) की खिदमत मे आऐ और आपसे शिकायत करने लगे कि या रसूल अल्लाह कुफ्फार मेरी माँ पर हद से ज़्यादा ज़ुल्म ढ़ाते है ये सुनकर रसूले खुदा (स.अ.व.व) ने दुआ फरमाईः खुदाया यासिर और इसके खानदान मे से किसी को जहन्नुम की आग मे न जलाना।
शहादत
कुरैश ने अपनी सारी ताक़त के साथ मुसलमानो कि जिन मे जनाबे सुमय्या और उनका खानदान भी था, पर ज़ुल्म ढ़ा रखे थे और कुफ्फार इन लोगो पर ज़ुल्म करने का कोई मौक़ा नही छोड़ते थे इसी तरह बैसत के पाँच साल गुज़र गऐ।
एक दिन अबुजहल मलऊन ने जनाबे सुमय्या पर ज़ुल्म करते करते एक नेज़ा इस तरह से उस ज़ईफा के दिल मे मारा कि वही उनकी रूह जन्नत को परवाज़ कर गई और इसी रोज़ जनाबे यासिर भी ज़ालिमो के ज़ुल्म से निजात पाकर अपने खुदा से जा मिले।
जनाबे सुमय्या का आखरी जुमला
जिस वक्त अबुजहले लानती जनाबे सुमय्या के सीने मे नेज़ा मार रहा था तो जनाबे सुमय्या फख्र के साथ ये जुमला कह रही थी हमने अपने रास्ते को पा लिया और मौहम्मद (स.अ.व.व) पर ईमान ले आऐ और उनकी रहबरी को क़ुबुल कर लिया और कभी अपने ईमान और मकसद को खत्म नही होने देंगे।
क़ब्रे मुबारक
अबुजहले मलऊन ने किसी तरह जनाबे अम्मार को इजाज़त दी और आपने अपने वालैदेन को मक्का के कब्रिस्तान मे दफ्न किया।