इमाम हुसैन का छः महीने का सिपाही "अली असग़र"
इमाम हुसैन (अ) का दूध पीता बच्चा अब्दुल्लाह बिन हुसैन जो कि अली असग़र के नाम से प्रसिद्ध है उनकी माँ का नाम रबाब था जो कि इमरउल क़ैस बिन अदी बिन औस बिन जाबिर बिन कअब बिन अलीम बिन जनाब बिन कल्ब की बेटी थी। (1)
इमरउल क़ैस ने अपनी अपनी तीन बेटियों की शादी इमाम अली (अ) इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) से की जिसमें इमाम हुसैन (अ) से सकीना और उब्दुल्लाह पैदा हुए (2)
अली असग़र 10 रजब सन 60 हिजरी को मदीने में पैदा हुए (3) और 10 मोहर्रम सन 61 हिजरी को 6 महीने की आयु में करबला में शहीद हुए। समावी कहते हैं कि कुछ लोगों का कहना है कि अली असग़र करबला मे पैदा हुए थे सही नहीं लगता है क्योंकि इमाम हुसैन (अ) की तरफ़ एक शेर की निस्बत दी गई है जो आपने हज़रत रबाब की प्रशंसा में पढ़ा
«اعمرك انني لاحب دارا تكون بها سكينة والرباب
احبهما و ابذل جل مالي و ليس لعاتب عندي عتاب(4)
तुम्हारी जान की सौगंध मैं उस घर को पसंद करता हूँ कि जिसमें सकीना और रबाब हों,
मैं उनको पसंद करता हूँ और अपना सारा माल उनके लिये ख़र्च करता हूँ और कदापि थकाने वाले मुझे थका न सकेगा।
शहादत
आपकी शहादत के बारे में इतिहासकारों के बीच मतभेद पाया जाता है, लेकिन कहा यह जा सकता है कि उलेमा ने आपकी शहादत के बारे में इस प्रकार बयान किया है।
आशूरा के दिन करबला में अली असग़र दूध पीते बच्चे थे और आप प्यास से बेचैन थे, हुसैन इब्ने अली (अ) उनको मैदान में लेकर आए और आपको अपने दोनों हाथों में उठाकर कहते हैं:
मेरे साधियों और बेटों में से इस बच्चे के अतिरिक्त कोई भी अब नहीं बचा है, क्या तुम नहीं देखते हो कि कैसे प्यास से बेचैन हो रहा है? अगर तुमको मुझ पर रहम नहीं आता है तो कम से कम इस बच्चे पर तो रहम करो।
जब उमरे सअद की सेना ने अली असग़र का यह हाल देखा तो उसकी सेना में विरोध स्वर उठने लगे वह कहने लगे कि हम बच्चों से लड़ने के लिये नहीं आए हैं यही वह समय था कि जब उमरे सअद ने हुर्मुला बिन काहिल असदी को आदेश दिया कि इस बच्चे को क़त्ल कर दो उसने तीन भाल का तीर चलाया जिसने अली असग़र के गले को एक कान से दूरे कान तक चीर दिया, हुसैन ने उनके ख़ून को अपने हाथ में लिया और आसमान की तरफ़ उछाल दिया। (5)
इमाम बाक़िर (अ) फ़रमाते हैं:
انه لم تقع من ذلک الدّم قطره الي الارض
उस ख़ून का एक क़तरा भी ज़मीन पर नहीं गिरा। (6)
ज़ियारते नाहिया मुक़द्दसा
पवित्र ज़ियारते नाहिज में केवल यह शब्द आए हैं
أَلسَّلامُ عَلَی الرَّضیـعِ الصَّغیرِ (7)
सलाम हो उस दूध पीते बच्चे पर
लेकिन किताबे अलमज़ार (8) और किताबे एक़बाल सैय्यद बिन ताऊस (9)में ज़ियारते मंसूब ब ज़ियारते नाहिया में इस प्रकार आया हैः
السلام على عبد الله بن الحسين الطفل الرضيع، المرمي الصريع، المتشحط دما، المصعد دمه في السماء، المذبوح بالسهم في حجر أبيه، لعن الله راميه حرملة بن كاهل الاسدي وذوية
सलाम हो हुसैन के बेटे अब्दुल्लाह पर, तीर खाकर, ज़मीन पर गिरा ख़ून में रंगा बच्चा जिसका ख़ून आसमान में चला गया और अपने पिता की गोद में तीर से ज़िब्ह कर दिया गया, अल्लाह तीर चलाने वाले और उसको मारने वाले हुर्मुला बिन काहिल असदी पर लानत करे।
**************
(1) मक़तलुत्तालेबीन, पेज 89
(2) अबसारुल ऐन, पेज 54
(3) अबसारुल ऐन पेज 54
(4) अबसारुल ऐन, पेज 54, मक़तलुत्तालेबीन, पेज 90
(5) मक़तलुल हुसैन, ख़्वारज़मी, जिल्द 2, पेज 32
(6) अलमलहूफ़ अला क़तलित तुफ़ूफ़, पेज 169, लहूफ़, पेज 59, बिहारुल अनवार, जिल्द 45, पेज 46, मसीरुल अहज़ान, पेज 70
(7) ज़ियारते नाहिया
(8) अलमज़ार मोहम्मद बिन मशहदी
(9) अंसारुल हुसैन (अ) मोहम्मद मेहदी शमसुद्दीन, ज़ियारतुल मंसूबा एला नाहियतिल मुक़द्दसा पेज 147