सूरए हिज्र की तफसीर 1
क़ुराने मजीद के 15वें सूरे ‘हिज्र’ है। इस सूरे में 99 आयतें हैं। यह हिजरत से पूर्व मक्के में नाज़िल हुआ था।
इस सूरे का नाम आयत क्रमाक 80 में असहाबे हिज्र अर्थात हज़रत सालेह की क़ौम के नाम पर पड़ा है।
इस सूरे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ख़िलाफ़ काफ़िरों के निराधार और तुच्छ आरोपों की ओर संकेत किया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम पर काफ़िर पागलपन का आरोप लगाते थे और क़ुरान को पागलों का कथन बताते थे। इस सूरे की आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सहानुभूति और हमदर्दी जताई गई है। इसमे दुश्मनों की साज़िशों के मुक़ाबले में पैग़म्बर से धैर्य रखने और डटे रहने का आहवान किया गया है।
सूरए हिज्र में ब्रह्माण्ड में मौजूद रहस्यों के अध्ययन द्वारा सृष्टिकर्ता की पहचान और ईश्वर पर ईमान का उल्लेख किया गया है। इस सूरे में कुरान का महत्व और उसकी महानता, प्रलय और बुरे काम करने वालों को दंड, हज़रत आदम (अ) के अस्तित्व में आने और शैतान का सजदा करने से इनकार करने तथा कुछ इतिहास की क़ौमों का उल्लेख किया गया है।
सूरए हिज्र की पहली, दूसरी और तीसरी आयतों में क़ुराने मजीद की महानता के उल्लेख के साथ साथ उन लोगों को चेतावनी दी गई है जो ईश्वर की स्पष्ट आयतों का विरोध करते हैं और हठधर्मी से काम लेते हैं। ऐसे लोगों को सचेत किया गया है कि एक ऐसा भी दिन आएगा कि जब वे अपने किए धरे पर लज्जित होंगे। उस समय यह काफ़िर मनोकामना करेंगे कि काश हम मुसलमान होते। इस संदर्भ में इमाम जाफ़िर सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं, प्रलय के दिन अग्रदूत पुकारेगा, इस प्रकाक कि हर कोई उसकी आवाज़ सुनेगा, (वह कहेगा कि आज) केवल वे लोग स्वर्ग में प्रवेश करेंगे जो इस्लाम लाए हैं। उस समय समस्त लोग मनोकामना करेंगे कि काश हम भी मुसलमान होते।
उसके बाद बहुत ही कड़े शब्दों में कहा गया है कि हे पैग़म्बर उन्हें उनके हाल पर छोड़ दो (ताकि जानवरों की भांति) खाएं और दुनिया की अस्थिर ख़ुशियों में मस्त रहें और इच्छाएं इन्हें घेरे रहें, लेकिन शीघ्र ही उन्हें वास्तविकता का ज्ञान हो जाएगा। ऐसे लोग जानवरों की भांति हैं जो भौतिक इच्छाओं और खाने पीने के अतिरिक्त कुछ नहीं समझते, और जो भी प्रयास करते हैं केवल उनकी प्राप्ति के लिए। अंहकार और बड़ी बड़ी इच्छाएं उन्हें इस प्रकार जकड़ लेती हैं कि वे वास्तविकताओं को समझने योग्य नहीं रहते। लेकिन जैसे ही उनकी आँखों के सामने से पर्दे हटते हैं और मौत उनके सामने खड़ी होती है तो उस समय उन्हें पता चलता है कि उन्हें कितनी हानि पुहंची है और वे कितने दुर्भाग्यशाली रहे हैं।
इसी आयत में एक बारीक बिंदु की ओर संकेत किया गया है और वह है इन्सान की इच्छाएं। यह बात स्पष्ट है कि आशा और इच्छा मानव जीवन को गतिशीलता प्रदान करते हैं, इस प्रकार से कि अगर एक दिन के लिए भी लोगों के दिल में इच्छा एवं आशा न रहे तो जीने की भी इच्छा नहीं रहेगी। पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं, “आशा मेरी उम्मत अर्थात मुसलमानों के लिए रहमत का कारण है, अगर आशा की किरण नहीं होती तो कोई माँ अपने बच्चे को दूध नहीं पिलाती और कोई माली पौधा नहीं लगाता।”
लेकिन अगर यही आशा तार्किक सीमा से लांघ जाए और ऊटपटांग इच्छाओं का रूप धारण कर ले तो भटकाव का कारण बन जाती है। जिस तरह से कि बारिश जीवन प्रदान करती है और खुशहाली लाती है, लेकिन अगर अपनी सीमा से बढ़ जाए तो बाढ़ के रूप में विनाश का कारण बन जाती है। क़ुरान उल्लेख करता है कि बड़ी बड़ी इच्छाएं और बेतुकी आशाएं इन्सान को अंधविश्वास में जकड़ देती हैं और उसे उसके मूल लक्ष्यों से भटका देती हैं।
सूरए हिज्र की नवीं आयत में उल्लेख है कि हमने क़ुरान को नाज़िल किया और निःसंदेह हम ही उसकी सुरक्षा करते हैं।
इस आयत में काफ़िरों द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम (स) और क़ुरान का मज़ाक़ उड़ाए जाने और उनके ख़िलाफ़ निराधार आरोप लगाए जाने की वास्तविकता का उल्लेख किया गया है। इस आयत में कहा गया है कि क़ुरान ऐसा दीप है जिसे ईश्वर ने जलाया है, इसलिए यह बुझने वाला नहीं है, यह ऐसा सूर्य है जो कभी डूबेगा नहीं इसलिए कि ईश्वर स्वयं इसे सुरक्षा प्रदान करता है। अगर समस्त अत्याचारी, शक्तिशाली लोग और बुद्धिजीवी एक दूसरे का साथ दें तो भी इसे बुझा नहीं सकते।
इसलिए कि ईश्वर इसे हर प्रकार के परिवर्तन या इसमें कुछ कम होने या वृद्धि होने से सुरक्षित रखता है। जब तक यह दुनिया है मार्गदर्शन का यह दीप जलता रहेगा और कदापि नष्ट नहीं होगा।
पैग़म्बरे इस्लाम पर आयतों के नाज़िल होते ही उसके साथी बहुत ही ध्यानपूर्वक उन्हें लिख लिया करते थे। क़ुरान का इतिहास नामक किताब में अबू अब्दुल्लाह ज़ंजानी लिखते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम के पास अनेक लेखक थे जो ईश्वरीय संदेश को लिखते थे। उनकी कुल संख्या 43 थी कि जिनमें सबसे प्रसिद्ध पहले चार ख़लीफ़ा थे, लेकिन इसकी सबसे अधिक ज़िम्मेदारी ज़ैद बिन साबित और हज़रत अली इब्ने अबि तालिब (अ) पर थी।
समस्त मुस्लिम बुद्धिजीवी वे शिया हों या सुन्नी इस बात पर सहमत हैं कि क़ुरान में किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, जो क़ुरान आज हमारे पास है वही है जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर नाज़िल हुआ था, यहां तक कि एक शब्द या अक्षर न ही उसमें से कम हुआ है और न ही उसमें उसकी वृद्धि हुई है। इस प्रकार यह ईश्वरीय ग्रंथ अवतरित होने से लेकर आज तक अपनी मूल रूप में बाक़ी है और अपनी किरणों से मानवता का कल्याण की ओर मार्गदर्शन कर रहा है।
आज सब इस बात के साक्षी हैं कि क़ुराने मजीद का अपमान करने के लिए दुश्मनों के नाना प्रकार की साज़िशे विफल हो गई है। बल्कि मानव के ज्ञान में जितनी वृद्धि हो रही है, उतना ही इस पुस्तक के रहस्यों से पर्दा उठ रहा है। बुद्धिजीवियों को उसकी अथाह गहराई में ज्ञान एवं रहस्यों के मोती मिल रहे हैं। क़ुरान मूल संविधान, जीवन का क़ानून, शासन करने का मूलमंत्र और कल्याण एवं मुक्ति का रहस्य है।
पवित्र पुस्तक नहजुल बलाग़ा में उल्लेख है कि ईश्वर ने अपने पैग़म्बर पर ऐसी किताब नाज़िल की जो कभी नहीं बुझने वाला दीप है। वह ऐसा दीप है जो सदैव प्रकाश बिखेरता रहेगा, यह ऐसा मार्ग है जिस पर चलने वाले कभी भटकेंगे नहीं, जो वास्तविकता को मिथक से अलग करता है और उसका तर्क कभी कमज़ोर पड़ने वाला नहीं है।
सूरए हिज्र की अगली आयतों में सृष्टिकर्ता की शक्ति एवं महानता का उल्लेख है। इन आयतों में आशाकों और उनकी सुन्दरता को ब्रह्माण्ड के रचनाकर्ता की निशानी बताया गया है। उसके बाद पृथ्वी पर व्याप्त अनुकंपाओं का उल्लेख किया गया है।
“और हमने पृथ्वी का फ़र्श बिछाया और उसमें पहाड़ों को स्थिर किया और उसमें हर संतुलित चीज़ को उगाया। और तुम्हारे जीवन के लिए अनेक प्रकार के संसाधन क़रार दिए, और इसी प्रकार उनके लिए जिनकी आजीविका की तुम आपूर्ति नहीं करते।”
पहाड़ क्योंकि एकेश्वरवाद की निशानियों में से है इसलिए आयत ने पहाड़ों का उल्लेख किया कहा गया कि हमने पृथ्वी में पहाड़ों को स्थिर किया। पहाड़ पृथ्वी की ऐसी सिलवटें हैं कि जो धीरे धीरे ज़मीन के ठंडा होने या फिर ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थ से अस्तित्व में आई हैं। पहाड़ों की जड़ें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं जो ज़मीन के भीतरी दबाव के कारण बाहरी झटकों से रोकते हैं। दूसरे शब्दों में पहाड़ पृथ्वी की स्थिरता का कारण हैं और इसी प्रकार मानव एवं दूसरे जीवित प्राणियों के लिए। पहाड़ तूफ़ानों की शक्ति को क्षीण कर देते हैं और हवा की तेज़ी को निंयत्रण करते हैं। इसके अलावा, बर्फ़ और स्रोतों के रूप में पानी के भंडारण के लिए वे उचित स्थान हैं।
उसके बाद वनस्पतियों का उल्लेख है कि जिनका समस्त प्राणियों के जीवन में बहुत महत्व है। उल्लेख है कि हमने ज़मीन पर हर संतुलित वनस्पति को उगाया है। संतुलन का शब्द इस बात की ओर संकेत करता है कि वनस्पतियों को उगाने में बहुत ही सटीक और गहरा हिसाब किताब रखा गया है। इस अर्थ में कि उनके प्रत्येक भाग का भी बहुत सटीक हिसाब किताब है। निःसंदेह वनस्पतियां अपने विविध एवं विशेष प्रभावों द्वारा ईश्वर को पहचानने का एक माध्यम हैं।
उससे बाद वाली आयत में मनुष्य की ज़रूरतों के टृष्टिगत प्रदान की जाने वाली अनुकंपाओं की ओर संकेत किया गया है। इसमें उल्लेख है कि हमने विविध प्रकार के संसाधन और तुम्हारी आवश्यकता के अनुसार चीज़े पृथ्वी में क़रार दीं। न केवल तुम्हारे लिए बल्कि हर जीव जंतू के लिए और उन चीज़ों के लिए जिन्हें तुम आजीविका उपलब्ध नहीं कराते हो और वे तुम्हारी पुहंच से बाहर हैं। वास्तव में पृथ्वी पर मौजूद हर चीज़ बहुत ही सटीक हिसाब किताब और दूरदर्शिता से अस्तित्व में लाई गई है। यह बिना योजना के और अचानक अस्तित्व में नहीं आ गई है, बल्कि उनका उद्देश्य मनुष्य की आर्थिक ज़रूरतों की आपूर्ति करना है।
21वीं आयत में उल्लेख है कि कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसके ख़ज़ाने हमारे पास न हों, लेकिन हम एक निर्धारित मात्रा में उन्हें नीचे भेजते हैं।
हर वस्तु का ख़ज़ाना एवं स्रोत ईश्वर के पास है और किसी भी प्रकार से वह सीमित नहीं है। हालांकि हर चीज़ हिसाब किताब से है और ईश्वर की ओर से आजीविका भी निर्धारित मात्रा में प्रदान की जाती है। इसी लिए मनुष्य को अपनी आजीविका प्राप्त करने और जीवन व्यतीत करने के लिए प्रयास करने चाहिएं। यह प्रयास उससे आलस्य और सुस्ती दूर करने के अलावा उसे ख़ुशी प्रदान करता है। अगर प्रयास एवं परिश्रम की आवश्यकता नहीं होती और समस्त चीज़े मनुष्य को असीमित रूप से प्रदान कर दी जातीं तो कुछ नहीं पता इस दुनिया का भविष्य क्या होता? ऐसे निकम्मे लोग कि जिनके पेट भरे हुए होंते और उनके व्यवहार पर किसी प्रकार की कोई रोक टोक नहीं होती तो वे उपद्रव एवं बवाल मचाते। इसलिए इंसान इस दुनिया की कठिनाईयों की भट्टी में तपकर कुन्दन बनता है। क्या कोई चीज़ प्रयास के अलावा इंसान को कुन्दन बना सकती है?