सूरए माएदा की तफसीर
कुरआने मजीद के पांचवें सूरे का नाम माएदा है। माएदा का अर्थ दस्तरखान होता है और चूंकि इस सूरे में उस घटना का वर्णन है जिसमें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने ईश्वरीय भोजन और दस्तरखान के लिए प्रार्थना की थी इस लिए इस का नाम माएदा अर्थात दस्तरखान पड़ गया। वास्तव में यह पैगम्बरे इस्लाम को सूरे के रूप में प्राप्त होने वाला अंतिम संदेश है इसी लिए इस सूरे में कुछ इस्लामी विषयों, इस्लाम धर्म की योजनाओं तथा पैगम्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी के विषय पर चर्चा की गयी है। इसी प्रकार इस सूरे में त्रिश्वर संबंधी ईसाईयों की विचाराधरा तथा प्रलय से संबंधित विषयों को उठाया गया है। इस सूरे के अह्द और उक़ूद के नामों से भी याद किया जाता है क्योंकि इस सूरे में वचन के प्रति प्रतिबद्धता पर बल दिया और कहा गया है कि हे ईमान लाने वालोः अपने वचनों और प्रतिज्ञाओं का पालन करो। इस प्रकार से इस सूरे में ईमान लाने वालों को अतीत और वर्तमान की सभी प्रतिज्ञाओं और वचनों की प्रतिबद्धता करने को कहा गया है।
कुरआने मजीद की समीक्षा करने वालों के विचार में इस आयत में सभी ईश्वरीय, मानवीय, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और व्यापारिक आदि समझौतों और प्रतिज्ञाओं की प्रतिबद्धता करने का आदेश दिया गया है यहां तक कि उन समझौते की ओर भी संकेत है जो मुसलमानों और गैर मुस्लिमों के मध्य होते हैं। वचन और समझौते की प्रतिबद्धता के महत्व का वर्णन करते हुए, इमाम अली अलैहिस्सलाम ने मालिके अश्तर को लिखे गये अपने पत्र में कहा है कि ईश्वर की ओर से अनिवार्य कर्मों में वचन की प्रतिबद्धता के अधिक किसी भी काम पर लोगों में सहमित नहीं है इसी लिए अरब की अज्ञानता के काल में अनेकेश्वरवादी भी वचन का सम्मान करते थे क्योंकि वचन तोड़ने के परिणामों का उन्हें ज्ञान था।
इस सूरे की आयतों में वचन की प्रतिबद्धता की सिफारिश के बाद कुछ इस्लामी नियमों का वर्णन किया गया है जिनमें सब से पहले कुछ पशुओं के मांस के हलाल होने का वर्णन किया गया है। इस सूरे की दूसरी आयत में कुछ महत्वपूर्ण इस्लामी आदेशों का वर्णन किया गया है जिनमें से अधिकांश, हज और काबे के दर्शन से संबंधित हैं। हम सूरे माएदा की जिस आयात की बात कर रहे हैं और जिसका उल्लेख किया गया है उसका मुख्य संदेश यह है कि ईश्वरीय पंरपराओं का उल्लंघन न किया जाए और उनका सम्मान किया जाए। एसा लगता है कि इन परंपराओं से आशय, हज के संस्कार हैं जिनका सम्मान करना हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है। इसी प्रकार जिन महीनों में हज के संस्कार किये जाते हैं और हज के अवसर पर जो जानवर की कुरबानी दी जाती है उन सब का सम्मान किया जाना चाहिए। जो लोग ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए बल्कि व्यापारिक लाभ के लिए भी काबे का दर्शन करने मक्का जाते हैं उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए। इस महाकार्यक्रम में काबे का दर्शन करने वालों को हर प्रकार की सुरक्षा प्राप्त होती है और उन्हें पूर्ण रूप से स्वतंत्रता मिली चाहिए। इसके साथ ही आयत में इस बात का भी उल्लेख किया है कि हज के संस्कार समाप्त होने के बाद हाजी के लिए शिकार करना सही होता है जो हज के दौरान वर्जित कर दिया जाता है।
सूरए माएदा की तीसरी आयत कुछ हराम आहारों की ओर संकेत करती हैं । इन की संख्या ग्यारह है। जैसे, मरे हुए पशु, रक्त, सूअर का मांस आदि और फिर इस्लामी इतिहास की एक अत्याधिक महत्वपूर्ण घटना का वर्णन किया जाता है। यह उस दिन की घटना का वर्णन है जिस दिन कुरआन के अनुसार अनेकेश्वरवादी, इस्लाम पर विजय प्राप्त करने की ओर से निराश हो गये, इस्लाम धर्म पूरा हुआ और लोगों पर ईश्वर की कृपाएं सम्पूर्ण हो गयीं। आयत में कहा गया है कि आज इन्कार करने वाले निराश हो गये इस लिए उन से न डरो और केवल मुझ से डरो। आज मैंने तुम्हारे धर्म को पूरा कर दिया और अपनी कृपा को तुम पर सम्पूर्ण कर दिया तथा इस्लाम को तुम्हारे लिए एक धर्म के रूप में स्वीकार कर लिया।
शीआ और सुन्नी धर्मगुरुओं ने एसे बहुत से कथनों और इतिहासिक तथ्यों का वर्णन किया है जिनसे यह सिद्ध होता है कि इस आयत में जिस दिन की ओर संकेत किया गया है वह गदीरे खुम का दिन था जिस दिन पैगम्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्साम को औपचारिक रूप से अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। इस दिन इस्लाम धर्म सम्पूर्ण हुआ और अनेकेश्वरवादी निराशा के सागर में डूब गये क्योंकि वह यह समझते थे कि इस्लाम, पैगम्बरे इस्लाम पर ही निर्भर है और उनके स्वर्गवास के साथ, इस्लाम धर्म का नाम भी मिट जाएगा किंतु जब पैगम्बरे इस्लाम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तो उन पर निराशा छा गयी।
पैगम्बरे इस्लाम ने अपने अंतिम हज से वापसी के समय, ग़दीर ख़ुम नामक स्थान पर अपने साथ हज करने वाले लाखों हाजियों को एक एकत्रित होने का आदेश दिया ताकि उन्हें एक महत्वपूर्ण समाचार सुनाया जाए। जब सारे हाजी एकत्रित हो गये तो पैगम्बरे इस्लाम ने एक भाषण दिया और फिर हज़रत अली अलैहिस्सलाम का हाथ पकड़ कर ऊपर डइया और उन्हें अपना उत्तराधिकारी और इस्लामी समाज का मार्गदर्शक घोषित किया। इस भाषण और घोषणा के बाद अभी लोग वहां से हटे नहीं थे कि ईश्वर की ओर से यह संदेश आया आज मैंने तुम्हारे धर्म को पूरा और अपनी कृपाओं को तुम पर सम्पूर्ण किया। इसके बाद पैगम्बरे इस्लाम ने कहा कि ईश्वर महान है, वही ईश्वर जिसने अपने धर्म को पूरा किया और अपनी कृपा को सम्पूर्ण किया और मेरे ईश्वरीय दूत होने और अली के उत्तराधिकारी होने पर प्रसन्न हुआ।
ग़दीर की घटना के बाद, शत्रुओं को इस बात का भली भांति ज्ञात हो गया कि इस्लाम एक मज़बूत और व्यापक धर्म है। इन आयतों में, ईश्वर लोगों को यह बताता है कि उसने उनका धर्म पूरा कर दिया और अपनी कृपाएं उन पर सम्पूर्ण कर दी। इस लिए लोगों को योग्य मार्गदर्शक का आदेश मानना चाहिए और उन्हें अपना आदर्श समझना चाहिए। कुरआने मजीद के अनुसार, लोगों का वास्तविक अभिभावक ईश्वर है और दूसरे किसी को नेतृत्व और अभिभावकता का पद संभालने का उसी समय अधिकार होगा जब उसके पद की पुष्टि ईश्वर की ओर से की जाए।
सूरए माएदा में जिस विषय पर कई स्थानों पर चर्चा की गयी है वह ईश्वरीय ग्रंथों को मानने वालों के वैचारिक भ्रष्टाचार का विषय है। इस संदर्भ में उस काल के ईसाई धर्मगुरुओं के विचारों पर भी चर्चा की गयी है। इस सूरे की कई आयतों में हज़रत ईसा को ईश्वर मानने जैसे ईसाई धर्म के विचारों पर चर्चा की गयी है। जैसे कहा गया है कि और वह लोग जो यह कहते हैं कि ईश्वर, वही मरयम का पुत्र ईसा है वह निश्चित रूप से इन्कार करने वाले हैं हालांकि स्वंय ईसा मसीह ने कहा है कि हे बनी इस्राईल! उस एक पालनहार की जो मेरा और तुम्हारा पालनहार है, उपासना करो और जो भी ईश्वर के लिए किसी सहभागी में विश्वास रखता है तो ईश्वर उस पर स्वर्ग हराम कर देता है और उसका ठिकाना नर्क है। इसी प्रकार एक अन्य आयत में कहा गया है कि जिन लोगों ने कहा कि ईश्वर तीन में से एक है वह निश्चित रूप से धर्मभ्रष्ट हो गये क्योंकि उस एक ईश्वर के अलावा कोई पूज्य नहीं है।
इन आयातों में त्रिश्वर की विचारधारा को , जो ईसाई धर्म में प्रचलित है, अस्वीकारीय बताया गया है और इसके लिए यह तर्क दिया गया है कि स्वंय हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने इस्राईल नामक जाति और अपने अनुयाइयों से कहा है कि एक ईश्वर की उपासना करें जो मेरा और तुम सब का पालनहार है। इस के साथ ही उन्होंने ईश्वर के भागीदार होने के विचार का भी कड़ाई से खंडन किया है और यह कहा है कि एसे लोगों का ठिकाना नर्क है।
सूरए माएदा की आयत नंबर ७५ में इस बात को अधिक स्पष्ट करने के लिए कहा गया है कि ईसा, ईश्वर के दूत थे और उनसे पूर्व भी ईश्वर की ओर से बहुत से दूत धरती पर आए। इसके अलावा यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हज़रत ईसा और उनकी माता हज़रत मरयम आम लोगों की भांति थीं और दोनों की खाते पीते थे। इस आधार पर रचना की दृष्टि से वे भी ईश्वर की समस्त रचनाओं की भांति थे और एक दिन उन्हें भी खत्म हो जाना था। तो इस प्रकार के लोग कैसे ईश्वर हो सकते हैं? इसी प्रकार यह सब को मालूम है कि हज़रत ईसा ने अपना माता हज़रत मरयम के गर्भ से जन्म लिया और किसी भी अन्य मनुष्य की भांति बाल्यकाल गुज़ारा और पले बढ़े और युवा हुए। क्या यह संभव है कि ईश्वर किसी महिला के गर्भ में पले और फिर उसे अपने लिए किसी महिला की आवश्यकता पड़े और वह कई चरणों में युवा हो?
सूरए माएदा की आयत नंबर ११० और उसके बाद से अंत तक हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की जीवनी तथा उन्हें प्राप्त ईश्वरीय उपहारों पर चर्चा की गयी है और यह बताया गया है कि किस प्रकार पालने में ही उन्होंने बात की थी और किताब व तत्वदर्शिता और तौरैत व इंजील नामक ईश्वरीय ग्रंथों का ज्ञान उन्हें दिया गया था। सूरए माएदा की ११२ से ११५ नंबर की आयतों में आसमान से दस्तरखान भेजे जाने की घटना की ओर संकेत किया गया है। आयत नंबर ११४ में कहा गया है कि मरयम के पुत्र ईसा ने कहा हे पालनहार! आकाश से हमारे लिए दस्तरखान भेज दे ताकि यह हमारे पहलों और अंतिम लोगों के लिए ईद हो जाए और तेरी निशानी बन जाए। तू हमें अजीविका दे और तू सब से अच्छा अजीविका देने वाला है।
इसके बाद की आयतों में प्रलय के दिन ईश्वर और हज़रत ईसा के मध्य वार्ता की ओर संकेत किया गया है और कहा गया है कि और जब ईश्वर, मरयम के पुत्र, ईसा से पूछेगा कि तुम ने लोगों से कहा था कि ईश्वर के अलावा मुझे और मेरी माता को पूजनीय बनाओ, ईसा कहेंगेः हे ईश्वर तू पवित्र है मैं एसी बात कैसे कह सकता हूं जिसका अधिकार ही मुझे न हो और यदि एसा कुछ मैंने कहा होता तो उसका तुमझे ज्ञान होता।
हज़रत ईसा आगे कहते हैं कि मैंने उनसे उसके अलावा जिसकी ज़िम्मेदारी तूने मुझे सौंपी थी कुछ भी नहीं कहा कि उस ईश्वर की उपासना करो जो मेरा और तुम्हारा पालनहार है।