अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

जब इमाम हुसैन को पता था कि कर्बला में क्या होगा तो वह गये ही क्यों?

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इमाम हुसैन (अ) ने जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सुन रखा था कि कर्बला में क्या होगा और उनपर कितने अत्याचार किये जाएंगे और इमाम होने के नाते उनको स्वंय इन चीज़ों का ज्ञान था तो फिर वह कर्बला क्यों गये?


इससे पहले कि हम आपके सामने इस प्रश्न का उत्तर रखें और आपकी शंकाओं का निवारण करें एक बात ध्यान देने योग्य यह है कि इस प्रकार के प्रश्न जो रखे जाते हैं उनके पीछे विशेष प्रकार का लक्ष्य होता है इस प्रकार के लोग बजाए इसके के सत्य और असत्य के बारे में ग़ौर करें, इतिहास को पढ़ें और समझें कि आख़िर इस्लामी दुनिया में ऐसा क्या और कैसे हो गया कि यज़ीद और मुआविया जैसे लोग ख़लीफ़ा की गद्दी पर बैठ गये और आख़िर ऐसा क्या हो गया कि मुसलमान पैग़म्बर (स) के परिवार वालों की हत्या करने पर आमादा हो गये और उनके परिवार वालों को बंदी बना लिया, यह लोग इस बारे में जांच पड़ताल करें यह प्रश्न करते हैं कि इमाम हुसैन को जब बता था तो कर्बला में गये ही क्यों?


उनका यह प्रश्न ऐसा ही है कि जैसे आज कोई यह कहेः कि जब आपको पता है कि अमरीका ब्रिटेन और ज़ायोनी शासन (इस्राईल) ज़ालिम अत्याचारी और अपराधी हैं तो आप क्यों उनके सामने झुक नहीं जाते हैं, आख़िर इन सबको जानने के बाद भी आप क्यों उनके सामने खड़े हुए हैं और ज़ुल्म, अत्याचार, पीड़ा, हत्या... आदि को बर्दाश्त कर रहे हैं?!


यानी इस प्रकार के लोग कभी भी ज़ालिम और अत्याचारी की उसको अपराधों और ज़ुल्मों के कारण निंदा नहीं करते हैं बल्कि प्रयत्न करते हैं कि पीड़ित और मज़लूम की निंदा करते हैं कि क्यों वह उनके सामने खड़ा हुआ है, उनकी बातों को स्वीकार नहीं कर रहा है, क्या उसके इस डटे रहने का अंजाम नहीं पता है?!


उत्तर


अब हम आपके सामने प्रश्न के रूप में ऊपर बयान की गई शंका का उत्तर और निवारण पेश कर रहे हैं


1.    याद रखिये की जीवन इस बात का नाम नहीं है कि जब भी कोई समस्या या मुसीबत दिखाई दे उससे इंसान जिस प्रकार भी संभव हो सके दूर भागे, बल्कि कभी कभी सर्वश्रेष्ठ इंसान मुसीबतों में अपने आप को डाल देते हैं ताकि दूसरे लोगों को मुसीबतों से बचाया जा सके, और इसके लिये इंसान का नबी, इमाम या मासूम होना आवश्यक नहीं है बल्कि हम देखते हैं कि हमारी सेना का एक जवान यह जानते हुए भी कि अगर वह शत्रु के सामने गया तो मार दिया जाएगा फिर भी वह अपनी ड्यूटी निभाता है और सारे ख़तरों के बाद भी वह शत्रु के सामने डट जाता है, ताकि सारे देश को इस ख़तरे से बचा सके।


इंसान का दायित्व केवल इतना नहीं है कि वह अपने शरीर की जो समाप्त हो जाने वाला है सुरक्षा करे बल्कि इंसान का दायित्व इससे कहीं बड़ा है,


अगर किसी के बच्चे की जान पर बन आए और उसको पता हो कि उसकी जान को तभी बचाया जा सकता है जब वह अपने माल और जान को ख़तरे में डाल दे तो वह क्या करेगा?


2.    इमाम हुसैन (अ) केवल कर्बला में पड़ने वाली मुसीबतों को ही नहीं जानते थे बल्कि इस्लाम और मुसलमानों की अवस्था और ईश्वर के मर्ज़ी को भी जानते थे, एक मुसलमान, एक मोमिन बल्कि इन सबसे बढ़कर एक इमाम के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारियों का भी ज्ञान रखते थे।


आप इस्लाम को बचाने के रास्तों के बारे में जानते थे ताकि इस्लाम को सुरक्षित बाद वाली नस्लों तक पहुँचाया जा सके, और यह भी जानते थे कि इसके लिये इमाम के तौर पर आपको जो क़ीमत चुकानी है वह शहादत है लेकिन आपने यह किया ताकि लोगों को नींद से जगा सकें, लोगों को ज़ुल्म, ख़ुराफ़ात, दुनिया परस्ती के विरुद्ध खड़ा कर सकें।


अब आप बताएं कि अगर आप इमाम हुसैन (अ) के स्थान पर होते तो क्या करते? यह सही है कि हम कभी भी इमाम हुसैन (अ) जैसे नहीं हो सकते लेकिन कम से कम हम यह तो समझ सकते हैं कि आपने जो सबसे सही कार्य हो सकता था वह किया, यह सही है कि इस कार्य में आपने मुसीबतें, सख़्तियां बर्दाश्त कीं।


3.    अगर उस दिन इमाम यज़ीदी ख़तरे पर ध्यान न देते और कहतेः मुझे क्या जब लोग स्वंय ही सो रहे हैं, और यह सही भी था कि यह मुसलमान ही थे जिन्होंने दुनिया को सब कुछ समझ लिया था और जाहेलीयत की तरफ़ पलट गये थे जिसके कारण इमाम अली (अ) और इमाम हसन (अ) को घर में बंद कर दिया था और यज़ीद व मोआविया जैसे लोगों को अपना बादशाह बना लिया था, तो अब मुझे क्या, चाहे वह इनको मारे हत्या करे या लूटे, यह इन्ही लोगों का चुना हुआ है, तो क्या आज हम और आप यह न कहते कि जब इमाम को पता था कि आपके उठ खड़े होने से इस्लाम बच जाएगा, क़ुरआन बच जाएगा, और दरबारी इस्लाम और मोहम्मदी इस्लाम पहचान लिये जाएंगे और.... तो आख़िर आपने ऐसा क्यों नहीं किया?


और क्या हम यह न कहते कि अम्रबिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर अत्याचार के विरुद्ध उठ खड़े होने, जिहाद, इस्लाम की सुरक्षा आदि के बारे में वह सारी आयतें और हदीस किस के लिये उतरी थीं?


यह ऐसा ही है कि जैसे अगर कल अंग्रेज़ों के सामने गाँधी ने आन्दोलन न चलाया होता और चुप रह गये होतो तो आज हर भारतीय यह कहता कि जब गाँधी को पता था कि उनके उठ खड़े होने के भारत आज़ाद हो जाएगा तो आख़िर वह क्यों नहीं खड़े हुए, और भारत को ग़ुलाम रहने दिया?

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