दुआ
दुआ-ऐ-मशलूल
- में प्रकाशित
सैय्यद इब्ने तावूस ने अपनी किताब मह्जूले-दावत में हज़रत इमाम हुसैन (अ:स) से रिवायत की है के आप फरमाते हैं की एक शब् मै अपने पदरे बुज़ुर्गवार आली मश्दार हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ:स) के हमराह तावाफे खाने काबा में था और वो शब् बहुत तारीक थी और कोई मशगूले तवाफ़ न था।
ज़ोहर की नमाज़ की दुआऐ
- में प्रकाशित
ऐ मेरे माबूद, मेरे ज़िम्मे कोई ऐसा गुनाह न छोड़ जिसे तू माफ़ न करे,
फ़ज्र के नमाज़ के बाद की दुआऐ
- में प्रकाशित
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- स्रोत:
- दुआ डाट आर्ग
ऐ माबूद! मोहम्मद व आले मोहम्मद पर रहमत नाजिल फ़रमा और हक में इख्तालाफ़ के मकाम पर अपने हुक्म से मुझे हिदायत ...
दुआ - उल - अ'दीला
- में प्रकाशित
फ़ख़रुल मोहक़'क़े'क़ीन ने फ़रमाया के जो मौत के वक़्त ईस ख़तरे से महफूज़ रहना चाहता है इसे ईमान और उसूले दीन की दलीलें ज़ेहन में रखना चाहिए
दुआए अहद
- में प्रकाशित
जो शख्स चालीस रोज़ तक हर सुबह इस दुआए अहद तो पढ़े तो वोह इमाम (अ:त:फ) के मददगारों में से होगा
हदीसे किसा
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हदीसे किसा एक विनीत वर्णन है, जो एक परम्परा भी है और एक घटना का विवरण भी, यह उत्कृष्टता का एक भी वर्णन है और समृद्धि का कारण भी
दुआए तवस्सुल
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इमाम हसन-बिन-अल-अस्करी (अ:स) ने यह दुआ अबू मुहम्मद के आग्रह पर उस समय लिखी जब उन्हों ने इमाम (अ:स) से सही तरीक़े से सलवात पढ़ने के बारे में पूछा!
दुआए फरज 2
- में प्रकाशित
अगर कोई शख्स बिना वजह क़ैदी या बंदी बना लिया गया है, अगर इस दुआ को पढेगा तो उसे तुरंत रिहाई मिलेगी!
दुआ-ए-सनमी क़ुरैश
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- स्रोत:
- ज़ुल्मत से निजात
फ़रमाया क़सम है उस ख़ुदा की जिसके क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत में मुहम्मद (स.अ.) और अली (अ.स.) की जान है ,जो शख़्स इस दुआ को पढ़गा उसको ऐसा अज्र नसीब होगा कि गोया उसने ऑहज़रत सलल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के साथ जंगे ओहद और जंगे तबूक में जिहाद किया हो और हज़रत के सामने शहीद हुआ हो ,नीज़ उसको ऐसो 100हज व उमरे का सवाब मिलेगा जो हज़रत के साथ बजा लाये गये हों और हज़ार महीनों के रोज़ों का सवाब भी हासिल होगा और क़यामत के दिन उसका हश्र जनाबे रिसालतमआब (स.अ.) और आईम्मा-ए-मासूमीन (अ.स.) के साथ होगा और
वुज़ू के वक़्त की दुआऐ
- में प्रकाशित
270 वुज़ू करने वाले इंसान की नज़र जब पानी पर पड़े तो यह दुआ पढ़े- बिस्मिल्लाहि व बिल्लाहि व अलहम्दु लिल्लाहि अल्लज़ी जअला अल माआ तहूरन व लम यजअलहु नजसन।
दुआए कुमैल
- में प्रकाशित
इमाम अली (अस) ने कुमैल को सलाह दी की इस दुआ को हर जुमा के पहले वाली रात (शबे जुमा) को, या महीने में एक बार, या साल में एक बार या ज़िंदगी में एक बार पढो ताकी अल्लाह तुम्हे बुराईओं और
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