इस्लाम और इंसान की सरिश्त
हमारा अक़ीदह है कि अल्लाह, उसकी वहदानियत और अंबिया की तालीमात के उसूल पर ईमान का मफ़हूम अज़ लिहाज़े फ़ितरत इजमाली तौर पर हर इँसान के अन्दर पाया जाता हैं। बस पैग़म्बरों ने यह काम किया कि दिल की ज़मीन में मौजूद ईमान के इस बीज को वही के पानी से सीँचा और इस के चारों तरफ़ जो शिर्के व इँहेराफ़ की घास उग आई थी उस को उखाड़ कर बाहर फेंक दिया।“फ़ितरता अल्लाहि अल्लती फ़तर अन्नासा अलैहा ला तबदीला लिख़लक़ि अल्लाहि ज़ालिका अद्दीनु अलक़य्यिमु व लाकिन्ना अक्सरा अन्नासि ला यअलमूना। ”[61] यानी यह (अल्लाह का ख़ालिस आईन)वह सरिश्त है जिस पर अल्लाह ने तमाम इंसानों को पैदा किया है और अल्लाह की ख़िल्क़त में कोई तबदीली नही है। (और यह फ़ितरत हर इंसान में पाई जाती है)यह आईन मज़बूत है मगर अक्सर लोग इस बारे में नही जानते।
इसी वजह से इंसान हर ज़माने में दीन से वाबस्ता रहे हैं। दुनिया के बड़े तारीख दाँ हज़रात का अक़ीदह यह है कि दुनिया में ला दीनी बहुत कम रही है और यह कहीँ कहीँ पाई जाती थी। यहाँ तक कि वह क़ौमे जो कई कई साल तक दीन मुख़ालिफ तबलीग़ात का सामना करते हुए ज़ुल्म व जोर को बर्दाश्त करती रहीँ उन को जैसे ही आज़ादी मिली वह फ़ौरन दीन की तरफ़ पलट गईँ। लेकिन इस बात से इंकार नही किया जा सकता कि गुज़िश्ता ज़माने में बहुत सी क़ौमों की समाजी सतह का बहुत नीचा होना इस बात का सबब बना कि उनके दीनी अक़ाइद व आदाब व रसूम ख़ुराफ़ात से आलूदा हो गये और पैग़म्बराने ख़ुदा का सब से अहम काम इंसान के आईना-ए-फ़ितरत से ख़ुराफ़ात के इसी ज़ंग को साफ़ करना था।