क़यामत के बग़ैर ज़िन्दगी बेमफ़हूम है
हमारा अक़ीदह है कि मरने के बाद एक दिन तमाम इंसान ज़िन्दा होगें और आमाल के हिसाब किताब के बाद नेक लोगों को जन्नत में व गुनाहगारों को दोज़ख़ में भेज दिया जायेगा और वह हमेशा वहीँ पर रहे गें। “अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवा लयजमअन्नाकुम इला यौमिल क़ियामति ला रैबा फ़ीहि।”[89] यानी अल्लाह के अलावा कोई माबूद नही है,यक़ीनन क़ियामत के दिन जिस में कोई शक नही है तुम सब को जमा करे गा।
“फ़अम्मा मन तग़ा * व आसरा अलहयाता अद्दुनिया * फ़इन्ना अलजहीमा हिया अलमावा * व अम्मा मन ख़ाफ़ा मक़ामा रब्बिहि व नहा अन्नफ़सा अन अलहवा * फ़इन्ना अलजन्नता हिया अलमावा।”[90]यानी जिस ने सर कशी की और दुनिया की ज़िन्दगी को इख्तियार किया उसका ठिकाना जहन्नम है और जिस ने अपने रब के मक़ाम(अदालत)का खौफ़ पैदा किया और अपने नफ़्स को ख़वाहिशात से रोका उसका ठिकाना जन्नत है।
हमारा अक़ीदह है कि यह दुनिया एक पुल है जिस से गुज़र कर इंसान आखेरत में पहुँच जाता है। या दूसरे अलफ़ाज़ में दुनिया आख़ेरत के लिए बज़ारे तिजारत है,या दुनिया आख़ेरत की खेती है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम दुनिया के बारे में फ़रमाते हैं कि “इन्ना अद्दुनिया दारु सिदक़िन लिमन सदक़ाहा .........व दारु ग़िनयिन लिमन तज़व्वदा मिनहा,व दारु मोएज़तिन लिमन इत्तअज़ा बिहा ,मस्जिदु अहिब्बाइ अल्लाहि व मुसल्ला मलाइकति अल्लाहि व महबितु वहयि अल्लाहि व मतजरु औलियाइ अल्लाहि ”[91] यानी दुनिया सच्चाई की जगह है उस के लिए जो दुनिया के साथ सच्ची रफ़्तार करे,.....और बेनियाज़ी की जगह है उस के लिए जो इस से ज़ख़ीरा करे,और आगाही व बेदारी की जगह है उस के लिए जो इस से नसीहत हासिल करे, हुनिया दोस्ताने ख़ुदा के लिए मस्जिद,मलाएका के लिए नमाज़ की जगह,अल्लाह की वही के नाज़िल होने का मक़ाम और औलिया-ए- खुदा की तिजारत का मकान है।