इमाम को मनसूस होना चाहिए
हमारा अक़ीदह है कि इमाम (पैगम्बरे इस्लाम स. का जानशीन)मनसूस होना चाहिए। यानी इमाम का ताय्युन पैग़म्बरे इस्लाम(स.)की नस व तस्रीह के ज़रिये हो और इसी तरह हर इमाम की नस व तस्रीह अपने बाद वाले इमाम के लिए हो। दूसरे अल्फ़ाज़ में इमाम का ताय्युन भी पैग़म्बर की तरह अल्लाह की तरफ़ से (पैग़म्बर के ज़रिये) होता है। जैसा कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की इमामत के सिलसिले में क़ुरआने करीम में बयान किया गया है। “इन्नी जाइलुका लिन्नासि इमामन ” यानी मैनें तुम को लोगों का इमाम बनाया।
इस के इलावा असमत और इल्म का वह बलन्द दर्जा (जो किसी ख़ता व ग़लती के बग़ैर तमाम अहकाम व तालीमात इलाही का इहाता किये हो)ऐसी चीज़ें हैं जिन से अल्लाह व उस के पैग़म्बर के इलावा कोई आगाह नही है।
इस बिना पर हम आइम्मा-ए-मासूमीन अलैहिम अस्सलाम की इमामत को लोगों के इंतेख़ाब के ज़रिये नही मानते।