सबसे पहली मुस्लिम ख़ातून
हर दौर में अब तक सैंकड़ों की तादाद में ख़्वातीन दीने इस्लाम से मुशर्रफ़ होकर फ़ज़ायल व मनाक़िब के बाब खोलने में कामयाब हुई हैं और जहाने इस्लाम के लिये बाइसे इफ़्तेख़ार बनी हैं लेकिन हज़रत ख़दीजा (स) का नाम सरे फेहरिस्त, सबसे पहली ख़ातून के उनवान से तारीख़ के सफ़हात पर सुनहरे क़लम से लिखा नज़र आता है।[1]
बेसते पैग़म्बरे इस्लाम (स) से क़ब्ल हज़रत ख़दीजा (स) अपने जद्दे बुज़ुर्गवार हज़रत इब्राहीम (अ) के दीन की पैरव थीं दूसरे लफ़्ज़ों में कहा जा सकता है कि दीने हनीफ़ की पैरों थीं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेसत के पहले दिन आपने आपके दीन के सामने तसलीम होने का ऐलान कर दिया जैसा कि एक हदीस में मिलता है कि मर्दों में सबसे पहले पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर ईमान लाने वाले हज़रत अली (अ) और औरतों में हज़रत खदीजा (स) थीं।[2]
एक मरतबा एक यहूदी आलिम ने अमीने क़ुरैश (पैग़म्बर (स)) को हज़रत ख़दीजा (स) के घर देखा तो हज़रत खदीजा (स) से अर्ज़ करने लगा कि ऐ ख़दीजा, यह वही पैग़म्बरे मौऊद है जिसकी ख़ुसूसियात को मैंने तौरेत में पढ़ा है कि क़ुरैश की ख़्वातीन की सरदार उससे शादी करेगी। शायद यह शरफ़ आपको नसीब हो।[3]
शाम के एक तिजारती सफ़र में पैग़म्बरे इस्लाम (स) से मुतअद्दिद गै़र मामूली उमूर मुशाहेदे में आए। उस की एक एक ख़बर हज़रत ख़दीजा (स) के ख़िदमत में पहुचाई गई जिसके नतीजे में आप पैग़म्बर (स) पर फ़िदा हो गई।[4] हज़रत खदीजा (स) के चचाज़ाद भाई वरक़ा बिन नौफ़ल ने भी इस काम में आपकी रहनुमाई की और कहने लगें कि ख़ुदा की क़सम वह ऐसा नबी है जिसकी बेसत के हम सब मुन्तज़िर हैं।[5] वरक़ा बिन नौफ़ल ऐसी शख़्सियत थीं जो बुत परस्ती से बर सरे पैकार रही।[6] और हज़रत ख़दीजा (स) के लिये पैग़म्बरे इस्लाम (स) की मुहब्बत का बाइस बनी।[7] जब पैग़म्बर अकरम (स) ग़ारे हिरा से बेसत के पहले दिन मंसबे रिसालत के साथ आ रहे थे तो ख़्वातीन क़ुरैश की सरदार हज़रत ख़दीजा (स) आपके इस्तिक़बाल में बढ़ीं और अर्ज़ करने लगीं कि यह नूर कैसा है जो आपकी पेशानी ए मुबारक पर नज़र आ रहा है? आप (स) ने फ़रमाया कि यह नूर नबुव्वत का है। फिर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अरकाने इस्लाम हज़रत ख़दीजा (स) के ख़िदमत में बयान किये तो हज़रत ख़दीजा (स) बे साख़्ता कहने लगीं:आमनतो व सद्दक़तो व रज़ियतो व सल्लमतो मैं ईमान ले आई, आपके नबी होने की तसदीक़ कर रही हूँ, इस्लाम के आईन से राज़ी हूँ और उसके सामने तसलीम हूँ।{8}
हवालेः
[1] . आयशा बिन्तुश शाती, मौसूआतो आलिन नबी (स) पेज 230
[2] . शेख़ तूसी, अल अमाली, पेज 259, मजलिस 10 हदीस 467
[3] . अल्लामा मजलिसी, बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 20
[4] . अल्लामा मजलिसी, बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 35, 50
[5] . दख़ील, उम्मुल मोमिनीन ख़दीजा (स) पेज 41
[6] . इब्ने हेशाम, अस सीरतुन नबविया जिल्द 1 पेज 222
[7] . अल्लामा मजलिसी, बिहारुल अनवार जिल्द 16 पेज 21
[8] . अल्लामा मजलिसी, बिहारुल अनवार जिल्द 18 पेज 232