जंगे सिफ़्फ़ीन
(36 , 37 हिजरी)
सिफ़्फ़ीन नाम है उस मक़ाम का जो फ़ुरात के ग़रबी जानिब बरक़ा और बालस के दरमियान वाक़े है।(माजमुल बलदान सफ़ा 370 ) इसी जगह अमीरल मोमेनीन और माविया में ज़बरदस्त जंग हुई थी। इस जगह के मुताअल्लिक़ उलेमा व मुवर्रेख़ीन का बयान है कि बानीए जंगे जमल आयशा की मानिन्द माविया भी लोगों को क़त्ले उस्मान के फ़र्ज़ी अफ़साने के हवाले से हज़रते अली (अ.स.) के खि़लाफ़ भड़काता और उभारता था। जंगे जमल के बाद हज़रते अली (अ.स.) के शाम पर मुक़र्रर किये हुए हाकिम सुहैल इब्ने हनीफ़ ने कूफ़े आ कर हज़रत को ख़बर दी कि माविया ने ऐलाने बग़ावत कर दिया है और उस्मान की कटी हुई ऊँगलियों और ख़ून आलूद कुर्ता लोगों को दिखा कर अपना साथी बना रहा है और यह हालत हो चुकी है कि लोगों ने क़समे खा ली हैं कि ख़ूने उस्मान का बदला लिये बग़ैर न नरम बिस्तर पर सोयगें न ठंडा पानी पियेंगे। उमरे आस वहां पहुँच चुका है जो उसे मदद दे रहा है। हज़रते अली (अ.स.) ने माविया को एक ख़त मदीने से दूसरा कूफ़े से इरसाल कर के दावते बैयत दी लेकिन कोई नतीजा बरामद न हुआ। माविया जो जमए लशकर में मशग़ूलो मसरूफ़ था एक लाख बीस हज़ार (1,20,000) अफ़राद पर मुशतमिल लश्कर ले कर मक़ामे सिफ़्फ़ीन में जा पहुँचा। हज़रते अली (अ.स.) भी शव्वाल 36 हिजरी में (नख़लिया और मदाएन) होते हुये रक़ा में जा पहुँचे। हज़रत के लशकर की तादाद नब्बे हज़ार (90,000) थी। रास्ते में लशकर सख़्त प्यासा हो गया। एक राहिब के इशारे से हज़रत ने ज़मीन से एक ऐसा चश्मा बरामद किया जो नबी और वसी के सिवा किसी के बस का न था।(आसम कूफ़ी सफ़ा 212, रौज़तुल सफ़ा जिल्द 2 सफ़ा 392 ) हज़रत ने अपने लशकर को सात हिस्सों में तक़सीम किया और माविया ने भी सात टुकड़े कर दिये। मक़ामे रका़ से रवाना हो कर आबे फ़रात उबूर किया। हज़रत के मुक़द्देमातुल जैश से माविया के मुक़द्दम ने मज़ाहेमत की और वह शिकस्त खा कर माविया से जा मिला। हज़रत का लशकर जब वारिदे सिफ़्फ़ीन हुआ तो मालूम हुआ की माविया ने घाट पर क़ब्ज़ा कर लिया है और अलवी लशकर को पानी देना नहीं चाहता। हज़रत ने कई पैग़ाम्बर भेजे और बन्दिशे आब को तोड़ने के लिये कहा मगर समाअत न की गई। बिल आखि़र हज़रत की फ़ौज ने ज़बर दस्त हमला कर के घाट छीन लिया। मुवर्रेख़ीन का बयान है कि घाट पर क़ब्ज़ा करने वालों में इमाम हुसैन (अ.स.) और हज़रते अब्बास इब्ने अली (अ.स.) ने कमाल जुरअत का सुबूत दिया था।(जि़करूल अब्बास सफ़ा 26 मोअल्लेफ़ा हकी़र) हज़रत अली (अ.स.) ने घाट पर क़ब्ज़ा करने के बाद ऐलान करा दिया कि पानी किसी के लिये बन्द नहीं है। मतालेबुस सूऊल में है कि हज़रत अली (अ.स.) बार बार माविया को दावते मसालेहत देते रहे लेकिन कोई असर न हुआ आखि़र कार माहे जि़ल्हिज में लड़ाई शुरू हुई और इन्फ़ेरादी तौर पर सारे महीने होती रही। मोहर्रम 37 हिजरी में जंग बन्द रही और यकुम सफ़र से घमासान की जंग शुरू हो गई। एयरविंग लिखता है अली (अ.स.) को अपनी मरज़ी के खि़लाफ़ तलवार ख़ैंचना पड़ी। चार महीने तक छोटी छोटी लड़ाईयां होती रहीं जिन्मे माविया के 45,000(पैंतालिस हज़ार) आदमी काम आये और अली (अ.स.) की फ़ौज ने उससे आधा नुकसान उठाया। जि़करूल अब्बास सफ़ा 27 में है कि अमीरल मोमेनीन अपनी रवायती बहादुरी से दुशमने इस्लाम के छक्के छुड़ा देते थे। अमरू बिन आस और बशर इब्ने अरताता पर जब आपने हमले किये तो यह लोग ज़मीन पर लेट कर बरेहना हो गये। हज़रते अली (अ.स.) ने मुँह फेर लिया , यह उठ कर भाग निकले। माविया ने अमरू आस पर ताना ज़नी करते हुये कहा कि दर पनाह औरत खुद गि़रीख़्ती तूने अपनी शर्मगाह के सदक़े में जान बचा ली। मुवर्रेख़ीन कर बयान है कि यकुम सफ़र से सात शाबान रोज़ जंग जारी रही। लोगों ने माविया को राय दी कि अली (अ.स.) के मुक़ाबले मे ख़ुद निकलें मगर वह न माने। एक दिन जंग के दौरान में अली (अ.स.) ने भी यही फ़रमाया था कि ऐ जिगर ख़्वारा के बेटे क्यों मुसलमानों को कटवा रहा है तू ख़ुद सामने आजा और हम दोनों आपस में फ़ैसला कुन जंग कर लें। बहुत सी तवारीख़ में है कि इस जंग में नब्बे (90) लड़ाईयां वुक़ू में आईं। 110 रोज़ तक फ़रीक़ैन का क़याम सिफ़्फ़ीन में रहा। माविया के 90,000 (नब्बे हज़ार) और हज़रते अली (अ.स.) के 20,000 (बीस हज़ार) सिपाही मारे गये। 13 सफ़र 37 हिजरी को माविया की चाल बाजि़यों और अवाम की बग़ावत के बाएस फ़ैसला हकमैन के हवाले से जंग बन्द हो गई। तवारीख़ में है कि हज़रते अली (अ.स.) ने जंगे सिफ़्फ़ीन में कई बार अपना लिबास बदल कर हमला किया है। तीन मरतबा इब्ने अब्बस का लिबास पहना , एक बार अब्बास इब्ने रबिया का भेस बदला , एक दफ़ा अब्बास इब्ने हारिस का रूप् इख़्तेयार किया और जब क़रीब इब्ने सबा हमीरी मुक़ाबले के लिये निकला तो अपने बेटे हज़रते अब्बास (अ.स.) का लिबास बदला और ज़बरदस्त हमला किया। मुलाहेज़ा हो मुनाकि़बे(एहज़ब ख़वारज़मी सफ़ा 196 क़लमी) लड़ाई निहायत तेज़ी से जारी थी कि अम्मारे यासिर जिनकी उम्र 93 साल थी , मैदान में आ निकले और अट्ठारा शामियों को क़त्ल कर के शहीद हो गये। हज़रत अली (अ.स.) ने आपकी शहादत को बहुत महसूस किया। एयर विंग लिखता है कि अम्मार की शहादत के बाद अली (अ.स.) ने बारह हज़ार सवारों को ले कर पुर ग़ज़ब हमला किया और दुशमनो की सफ़ें उलट दी और मालिके अशतर ने भी ज़बर दस्त बेशुमार हमले किये।
दूसरे दिल सुबह को हज़रत अली (अ.स.) फिर लशकरे माविया को मुखातिब कर के फ़रमाया कि लोगों सुन लो कि अहकामे ख़ुदा मोअत्तल को जा रहे हैं इस लिये मजबूरन लड़ रहा हूं। इस के बाद हमला शुरू कर दिया और कुशतों के पुश्ते लग गये।
लैलतुल हरीर
जंग निहायत तेज़ी के साथ जारी थी मैमना और मैसरा अब्दुल्लाह और मालिके अशतर के क़ब्ज़े में था। जुमे की रात थी , सारी रात जंग जारी रही। बरवायत आसम कूफ़ी 36,000 (छत्तीस हज़ार) सिपाही तरफ़ैन के मारे गये। 900 (नौ सौ) आदमी हज़रत अली (अ.स.) के हाथों क़त्ल हुए। लशकरे माविया से अल ग़यास , अल ग़यास की आवाज़ें बलन्द हो गईं। यहां तक कि सुबह हो गई और दोपहर तक जंग का सिलसिला जारी रहा। मालिके अशतर दुशमन के ख़ेमे तक जा पहुँचे क़रीब था कि , माविया ज़द में आ जाऐ और लशकर भाग खड़ा हो। नागाह उमरो बिन आस ने 500 (पांच सौ) क़ुरआन नैजा़ पर बलन्द कर दिये और आवाज़ दी कि हमारे और तुम्हारे दरमियान क़ुरआन है। वह लोग जो माविया से रिशवत खा चुके थे फ़ौरत ताईद के लिये खड़े हो गये और अशअस बिन क़ैस , मसूद इब्ने नदक़ , ज़ैद इब्ने हसीन ने आवाम को इस दरजा वरग़लाया कि वह लोग वही कुछ करने पर आमादा हो गये जो उस्मान के साथ कर चुके थे मजबूरन मालिके अशतर को बढ़ते हुए क़दम और चलती हुई तलवार रोकना पड़ी। मुवर्रिख़ गिबन लिखता है कि अमीरे शाम भागने का तहय्या कर रहा था लेकिन यक़ीनी फ़तेह , फ़ौज के जोश और नाफ़रमानी की बदौलत अली (अ.स.) के हाथ से छीन ली गई। ज़रजी ज़ैदान लिखता है कि नैजा़ पर क़ुरआन शरीफ़ देख कर हज़रत अली (अ.स.) की फ़ौज के लोग धोखा खा गये। नाचार अली (अ.स.) को जंग मुलतवी करनी पड़ी। बिल आखि़र अवाम ने माविया की तरफ़ उमरो आस और हज़रत की तरफ़ से उनकी मरज़ी के खि़लाफ़ अबू मूसा अशअरी को हकम मुक़र्रर करके माहे रमज़ान में बामक़ाम जोमतुल जन्दल फ़ैसला सुनाने को तय किया।
हकमैन का फ़ैसला
अल ग़रज़ माहे रमज़ान में बमुक़ाम अज़रह चार चार सौ अफ़राद समेत उमरो बिन आस और अबू मूसा अशअरी जमा हुये और अपना वह बाहमी फ़ैसला जिसकी रू से दोनों को खि़लाफ़त से माज़ूल करना था , सुनाने का इन्तेज़ाम किया। जब मिम्बर पर जा कर ऐलान करने का मौक़ा आया तो अबू मूसा ने उमरो बिन आस को कहा कि आप जा कर पहले बयान दें। उन्होंने जवाब दिया , आप बुज़ुर्ग हैं पहले आप फ़रमायें। अबू मूसा मिम्बर पर गये और लोगों को मुख़ातिब कर के कहा कि मैं अली (अ.स.) को खि़लाफ़त से माज़ूल करता हूं। यह कह कर उतर आये। उमरो बिन आस जिससे फ़ैसले के मुताबिक़ अबू मूसा को यह तवक़्क़ो थी कि वह भी माविया की माज़ूली का ऐलान कर देगा लेकिन उस मक्कार ने इसके बर अक्स यह कहा कि मैं अबू मूसा की ताईद करता हूँ और अली (अ.स.) को हुकूमत से हटा कर माविया को ख़लीफ़ा बनाता हूँ। यह सुन कर अबू मूसा अशअरी बहुत ख़फ़ा हुए लेकिन तीर तरकश से निकल चुका था। यह सुन कर मजमे पर सन्नाटा छा गया। अली (अ.स.) ने मुसकुरा कर अपने तरफ़दारों से कहा कि मैं न कहता था कि दुशमन फ़रेब देने की फि़क्र में है।