वहाबियों और सुन्नियों में फ़र्क़।
बहुत सारे जवानों के दिमाग़ में यह सवाल बार बार आता है और अधिकतर हमारे सामने यह सवाल आता भी है कि सुन्नियों और वहाबियों के बीच क्या फ़र्क़ है, क्या सच में वहाबियत नाम का कोई गिरोह या संगठन है, या यूँ कहा जाये कि वहाबियों की पहचान का सबसे आसान रास्ता क्या है, इन सभी सवालों के जवाब आप को इस लेख में मिलेंगे। वहाबियत का परिचय वहाबियत ऐसा गिरोह है जिसे साम्राज्यवाद ने जन्म दिया है, वहाबियत की सबसे बड़ी चाल अपने आप आयतों और हदीसों की मनचाही तफ़सीर करना है, लोगों को धौका देने के लिए वह हर बात में अल्लाह और क़ुर्आन का बार बार नाम बिल्कुल उसी प्रकार लेते हैं जिस प्रकार जंगे सिफ़्फ़ीन में ख़ारजियों ने इमाम अली अ.स. के विरुध्द क़ुर्आन की आयत का सहारा लेकर, क़ुर्आन को तलवारों की नोक पर उठा कर नारे लगाये थे, जबकि इमाम अली अ.स. बार बार कह रहे थे इन शब्दों की सच्चाई में कोई शक नहीं है लेकिन इसकी तफ़सीर ग़लत की जा रही है।
जैसा कि आप लोग जानते हैं कि अहले सुन्नत चार अहम गिरोह, हनफ़ी, हंबली, शाफेई और मालिकी में बँटे हुए हैं, यह चार गिरोह समय के साथ साथ कई अन्य गिरोहों में बँटते चले गए, और हर गिरोह ने अपने लिए विशेष रूप से कुछ नए अक़ाएद और नई परंपराओं को तैयार कर के एक फ़िरक़े का रूप दे दिया, वहाबी भी इन्ही फ़िरक़ों में से एक है कि जो अपने आप को हंबली फ़िरक़े से जोड़ते हैं, और ऐसा इसलिए क्योंकि उनके अधिकतर अक़ाएद अहमद इब्ने हंबल के अक़ाएद से लिए गए हैं, इन सब के बावजूद हंबली उलेमा वहाबियत को अपने से अलग कहते हैं और ज़ोर दे कर इस बात का ऐलान करते हैं कि वहाबियों का उन से किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं है।
वहाबियों के प्रचारक इब्ने तैमिया के बारे में हंबली उलेमा की प्रतिक्रिया अहले सुन्नत के मशहूर विद्वान जिनका नाम ज़हबी है, जिनका संबंध हंबली फ़िरक़े से है, और अपने समय में इल्मे हदीस और रेजाल के नामचीन उलेमा में जाने जाते थे, उन्होंने इब्ने तैमिया के विरुध्द एक ख़त के द्वारा इस प्रकार प्रतिक्रिया ज़ाहिर की..... जो तेरी पैरवी कर रहे हैं वह सब के सब कुफ़्र और हलाकत के दलदल मे धँस रहे हैं, तेरी पैरवी करने वाले अधिकतर गंवार, कम बुद्धी वाले, झूठे, जाहिल, मक्कार, ना समझ लोग हैं, और अगर मेरी बात पर भरोसा नहीं है तो उनको अदालत का ख़्याल करते हुए आज़मा लो, फिर लिखते हैं कि, मुझे पता है कि तू मेरी बात स्वीकार नहीं करेगा, मेरी नसीहत पर कान नहीं धरेगा, जब मैं तेरा दोस्त हूँ तू मेरे साथ यह कर रहा है तो जो तेरे दुश्मन हैं उनके साथ क्या करता होगा, अल्लाह की क़सम तेरे दुश्मनों में नेक, गंभीर, अक़्लमंद और पढ़े लिखे लोग मौजूद हैं और तेरे दोस्तों में झूठे, गुनहगार, जाहिल और गंवार लोग ही दिखाई देते हैं। (अल-ऐलान बित तौबीख़, पेज 77, तकमेलतुस—सैफ़ुस-सैक़ल, पेज 218)
मोहम्मद इब्ने अबदुल वहाब जिस ने वहाबियत को नया जीवन दिया, और हक़ीक़त में उसी के द्वारा वहाबियत की बुनियाद डाली गई, उसके बाप का ख़ुद उसके बारे में यह विचार था कि वह उसे गुमराह कहते थे और लोगों को उस से मिलने जुलने से रोकते थे। (अद्दुरररोस-सुन्निय्यत फ़िर-रद अला-अलवहाबियत पेज 42) इस विश्लेषण से यह बात तो कम से कम साबित हो जाती है कि अहले सुन्नत के उलेमा विशेष रूप से हंबली फ़िरक़े के उलेमा अपने आप को वहाबी फ़िरक़े और उस से जुड़े लोगों से अलग ही रखते हैं, जिसका सीधा मतलब यह होता है कि सुन्नी भी इस टोले को गुमराह समझते और उनकी रद करते हैं।
वहाबियों को सुन्नियों से बुनियादी फ़र्क़ अगर हम अहले सुन्नत के सभी उलेमा की वहाबियों के विरुध्द प्रतिक्रिया का विश्लेषण करना चाहें तो इस प्रकार करेंगे, कि अहले सुन्नत के महान विद्वानों की इस गुमराह टोले और इसकी बुनियाद रखने वाले इब्ने तैमिया के विरुध्द तीन प्रकार के विचार हैं...
1. उनका मानना है कि इब्ने तैमिया मुशब्बहा (यानी अल्लाह को मख़लूक़ से मिलाने वाला) था। अहले सुन्नत अल्लाह को मख़लूक़ से मिलाने वाले और उनके जैसा कहने वालों को काफ़िर कहते हैं, और इब्ने तैमिया का खुलेआम यह कहना था कि अल्लाह के हाथ, पैर और चेहरा है, जैसे अबू यअली का कहना है कि अल्लाह दाढ़ी और गुप्तांग के अलावा सब चीज़ रखता है (माज़अल्लाह)। (पढ़ें वहाबियत अज़ मंज़रे अक़्ल व शरअ )
2. कुछ उसे नास्तिक और बे दीन कहते हैं, चूँकि पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के बारे में इस नास्तिक का यह कहना था कि पैग़म्बर की वफ़ात के बाद वह आम इंसानों ही की तरह हैं, उन्हें किसी प्रकार की विशेषता हासिल नहीं है, यहाँ तक (माज़अल्लाह) वह अपने तक आने वाले नुक़सान को भी अपने से दूर नहीं कर सकते। इब्ने तैमिया ने बिल्कुल वही कहा जैसा हज्जाज ने कहा था कि (माज़अल्लाह) मेरी लाठी का सम्मान पैग़म्बर से अधिक है, क्योंकि इस समय मैं अपनी लाठी से साँप या बिच्छू को मार सकता हूँ लेकिन पैग़म्बर इस समय यह भी नहीं कर सकते।
3. कुछ ने मुनाफ़िक कहा है, क्योंकि इस ने सुन्नियों के चौथे ख़लीफ़ा का अपमान करते हुए कहता है कि इमाम अली अ.स. ने (माज़अल्लाह) 17 जगहों पर क़ुर्आन के विरुध्द फ़तवा दिया है, और आप ने जितनी भी जंग लड़ी हैं वह सब केवल हुकूमत को पाने के लिए थीं। जबकि सुन्नियों के मशहूर आलिम मुस्लिम ने अपनी सहीह में पैग़म्बर की इमाम अली अ.स. के बारे में यह हदीस नक़्ल की है कि आप से केवल मोमिन मोहब्बत करेगा और केवल मुनाफ़िक़ नफ़रत करेगा। (सहीह मुस्लिम, जिल्द 1, पेज 60) इब्ने तैमिया के दिल में इमाम अली अ.स. की दुश्मनी इस हद तक थी कि वह कहता था कि शिया भी यह साबित नहीं कर सकते कि अली (अ.स.) मुसलमान थे, या यह कि उन्होंने जो सीखा अबू बकर से ही सीखा, इल्म में उनकी अपनी कोई महानता नहीं है, या यह कि उस्मान हाफ़िज़े क़ुर्आन थे कभी कभी तो एक रात में पूरा क़ुर्आन ख़त्म कर लेते थे, लेकिन अली (अ.स.) के बारे में यह भी पता नहीं था कि उनको क़ुर्आन समझ में भी आता था या नहीं। (अल-तंबीह वल-रद ले हुसनिस-सक़ाफ़, पेज 7, कलेमतुल-राएद ले मोहम्मद ज़कीउद्दीन इब्राहीम, जिल्द 2, पेज 546) आप को कोई एक सुन्नी भी इस प्रकार के अक़ाएद रखने वाला नहीं मिलेगा, और इस प्रकार का अक़ीदा इस गुमराह फ़िरक़े की गंदी मानसिकता को ज़ाहिर करता है कि जिसका सुन्नी अक़ाएद से कोई लेना देना नहीं है।