विभिन्न
मैथून का उचित समय
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- मौलाना डा0 तकी अली आबदी
इसी तरह की बात इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.) ने इरशाद फरमाया कि मर्द को उस मकान मे जिसमे कोई बच्चा हो अपनी औरत या कनीज़ से मैथून नही करना चाहिऐ वरना वह बच्चा बलात्कारी होगा।
तबर्रा कितना सहीह कितना ग़लत?
- में प्रकाशित
जब लानत मलामत और अपमानित करने का द्वार खुलता है, तो उसका उत्तर भी मिलता है, अगर आप किसी के विश्वासों और आस्थाओं का मज़ाक़ उड़ाएंगे तो वह भी आपके साथ वैसा ही करेगा, क्या यह सहीह है कि हमारी नासमझी या हमारे ग़लत कार्यों के कारण अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की तौहीन और अनका अपमान किया जाए?
नाखून कतरने की फजीलत
- में प्रकाशित
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- लेखक:
- अल्लामा मजलिसी
- स्रोत:
- तहज़ीबुल इस्लाम
नाखून कतरने से बहुत बड़े अमराज़ खत्म होते है और रोज़ी फऱाख़ होती है।
इस्लाम में महेर की हैसियत
- में प्रकाशित
महेर वो रक़म है जो किसी लड़की का होने वाला शौहर लड़की तो तोहफे के तौर पे दिया करता है लेकिन यह रक़म लड़की तय किया करती है इस महेर को न तो वापस लिया जा सकता है और ना ही माफ़ करने के लिए लड़की पे दबाव डाला जा सकता है । इस रक़म के निकाह के पहले अदा किया जाना चाहिए या फिर लड़की जैसी शर्त रखे उसके अनुसार अदा किया जाना चाहिए।
बच्चा नासमझ क्यों पैदा होता है
- में प्रकाशित
अगर बच्चा अक़्लमंद और समझदार पैदा होता तो जब खुद को देखता कि कोई उसे गोद में उठाए हुऐ है, उसको दूध पिलाया जाता है, उसे ज़बरदस्ती कपड़ों में लपेटा जाता है,उसे झूले में लिटाया जाता है तो उसे कितनी झंझलाहट और ज़िल्लत महसूस होती।
वो कपड़े जिनका पहनना हराम है
- में प्रकाशित
टोपी और जेब वग़ैरह (यानी वह लिबास जो शर्मगाह छुपाने के लिये इस्तेमाल नही होता) भी हरीर (रेशमी) कपड़े का न हो और ऐहतियात यह चाहती है कि अजज़ा ए लिबास जैसे सन्जाफ़ (झालर, गोट) और मग़ज़ी (कोर पतली गोट) भी ख़ालिस रेशम की न हो
मोमिन की प्रसन्नता
- में प्रकाशित
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- स्रोत:
- tvshia.com
सुगन्ध लगाना अच्छी चीज़ है इससे जहां सुगंध लगाने वाले को खुशी होती है और उसे अच्छी लगती है वहीं दूसरों को
ख़ुश कैसे रहें
- में प्रकाशित
हम बहुत कम हंसी मज़ाक़ करते हैं। इमाम ने फ़रमाया, ऐसा नहीं करो, निःसंदेह हंसी मज़ाक़ अच्छे आचरण का भाग है
ईमान क्या है?
- में प्रकाशित
ईमान का शाब्दिक अर्थ होता है अपनाना। ईमान शब्द की व्याख्या करते हुए हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि इसका अर्थ है किसी को हृद्य की गहराई से पहचानना, मौखिक रूप से उसे स्वीकार करना और फिर उसे व्यवहारिक बनाना है। वे कहते हैं कि वास्तविक ईमान, स्पष्टतम मार्ग और प्रज्वलित दीप के समान है। ईमान का मनुष्य के हृदय से बहुत ही निकट का संबन्ध होता है।
नुस्ख़हाए जामेअ
- में प्रकाशित
दफ़ाए हेफ़क़ान (दिल की बेचैनी और घबराहट वग़ैरा) के लिये एक गोली ज़ीरा के ख़ुशान्द़ह के साथ खिलाएं।
इस्लाम लोगों की आवश्यक्ताओं का उत्तर देने वाला धर्म
- में प्रकाशित
इस आधार पर पवित्र क़ुरआन की दृष्टि में मनुष्य की रचना और प्रवृत्ति, उसको धर्म परायणता अर्थात बेहतर जीवन के लिए वैचारिक व व्यवहारिक सिद्धांतों की ओर मार्ग
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