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ग़ुस्ले जनाबत

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363. ग़ुस्ले जनाबत वाजिब नमाज़ पढ़ने के लिये और ऐसी दूसरी इबादत के लिये वाजिब हो जाता है लेकिन नमाज़े मैयित, सज्दा ए सहव, सज्दा ए शुक्र और क़ुरआने मजीद के वाजिब सज्दों के लिये ग़ुस्ले जनाबत ज़रूरी नहीं है।


364. यह ज़रूरी नहीं कि ग़ुस्ल के वक़्त नीयत करे कि वाजिब ग़ुस्ल कर रहा है, बल्कि फ़क़त क़ुर्बतन इलल्लाह यानी अल्लाह तआला की रिज़ा के इरादे से ग़ुस्ल करे तो काफ़ी है।


365. अगर किसी शख़्स को यक़ीन हो कि नमाज़ का वक़्त हो गया है और ग़ुस्ले जनाबत की नियत कर ले लेकिन बाद में पता चले कि उसने वक़्त से पहले ग़ुस्ल कर लिया है तो उसका वुज़ू सहीह है।


366. ग़ुस्ले जनाबत दो तरीक़ों से अन्जाम दिया जा सकता हैः-


तरतीबी व इरतिमासी


तरतीबी ग़ुस्ल

367. तरतीबी ग़ुस्ल में एहतियाते लाज़िम की बिना पर ग़ुस्ल की नियत से पहले पूरा सर और गर्दन और बाद में बदन धोना ज़रूरी है और बेहतर यह है कि बदन को पहले दाई तरफ़ से धोए बाद में बाई तरफ़ से धोए। और तीनो अअज़ा में से हर एक को ग़ुस्ल की नियत से पानी के नीचे हरकत देने से तरतीबी ग़ुस्ल का सहीह होना इशक़ाल से ख़ाली नहीं है और एहतियात इस पर इक़्तिफ़ा न करने में है। और अगर वह शख़्स जान बूझ कर या भूल कर या मस्अला न जानने की वजह से बदन को सर से पहले धोए तो उसका ग़ुस्ल बातिल है।


368. अगर कोई शख़्स बदन को सर से पहले धोए तो उसके लिये ग़ुस्ल का एआदा करना ज़रूरी नहीं बल्कि अगर बदन को दोबारा धो ले तो उसका ग़ुस्ल सहीह हो जायेगा।


369. अगर किसी शख़्स को इस बात का यक़ीन न हो कि उसने सर, गर्दन व जिस्म का दायां व बायां हिस्सा मुकम्मल तौर पर धो लिया है तो इस बात का यक़ीन करने के लिये जिस हिस्से को धोए उसके साथ दूसरे हिस्से की कुछ मिक़्दार भी दोना ज़रूरी है।


370. अगर किसी शख़्स को ग़ुस्ल के बाद पता चला की बदन का कुछ हिस्सा धुलने से रह गया है लेकिन यह इल्म न हो कि वह कौन सा हिस्सा है तो सर को दोबारा धोना ज़रूरी नहीं और बदन का सिर्फ़ वह हिस्सा धोना ज़रूरी है जिसके न धोए जाने के बारे में एहतिमाल पैदा हुआ हो।


371. अगर किसी को ग़ुस्ल के बाद पता चले कि उसने बदन का कुछ हिस्सा नहीं धोया तो अगर वह बाई तरफ़ हो तो सिर्फ़ उसी मिक़्दार का धो लेना काफ़ी है और अगर दाई तरफ़ हो तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि उतनी मिक़्दार धोने के बाद बाई तरफ़ को दोबारा धोए और अगर सर और गर्दन धुलने से रह गई हो तो ज़रूरी है कि उतनी मिक़्दार धोने के बाद दोबारा बदन को धोए।


372. अगर किसी शख़्स को दाई या बाई तरफ़ का कुछ हिस्सा धोए जाने के बारे में शक गुज़रे तो उसके लिये ज़रूरी है कि उतनी मिक़्दार धोए और अगर उसे सर या गर्दन का कुछ हिस्सा धोए जाने के बारे में शक हो तो एहतियाते लाज़िम की बिना पर सर और गर्दन धोने के बाद दायें और बायें हिस्से को दोबारा धोना ज़रूरी है।


इरतिमासी ग़ुस्ल

इरतिमासी ग़ुस्ल दो तरीक़ो से अन्जाम दिया जा सकता हैः- दफ़्ई और तद्रीज़ी।


373. ग़ुस्ले इरतिमासी दफ़्ई में ज़रूरी है कि एक लम्हे में पूरे बदन के साथ पानी में डुबकी लगाए लेकिन ग़ुस्ल करने से पहले एक शख़्स के सारे बदन का पानी से बाहर होना मोतबर नहीं है। बल्कि अगर बदन का कुछ हिस्सा पानी से बाहर हो और ग़ुस्ल की नीयत से पानी में ग़ोता लगाए तो काफ़ी है।


374. ग़ुस्ले इरतिमासी तद्रीजी में ज़रूरी है कि ग़ुस्ल की नीयत से एक दफ़्आ बदन को धोने का ख़्याल रखते हुए आहिस्ता आहिस्ता पानी में ग़ोता लगाए। इस ग़ुस्ल में ज़रूरी है कि बदन का पूरा हिस्सा ग़ुस्ल करने से पहले पानी से बाहर हो।


375. अगर किसी शख़्स को ग़ुस्ले तरतीबी के बाद पता चले कि उसके बदन के कुछ हिस्से तक पानी नहीं पहुंचा है तो ख़्वाह वह उस मख़्सूस हिस्से के मुतअल्लिक़ जानता हो या न जानता हो ज़रूरी है कि दोबारा ग़ुस्ल करे।


376. अगर किसी शख़्स के पास ग़ुस्ले तरतीबी के लिये वक़्त न हो लेकिन इरतीमासी ग़ुस्ल के लिये वक़्त हो तो ज़रूरी है कि इरतिमासी ग़ुस्ल करे।


377. जिस शख़्स ने हज या उमरे के लिये एहराम बांधा हो वह इरतिमासी ग़ुस्ल नहीं कर सकता लेकिन अगर उसने भूल कर इरतीमासी ग़ुस्ल कर लिया हो तो उसका ग़ुस्ल सहीह है।

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