पवित्र माहे रमज़ान-1
हर गतिविधि का शुभारंभ, मानव जीवन में एक नए अध्याय का आरंभ हो सकता है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी निर्धारित जीवनयर्चा को ही पर्याप्त जानते हैं किंतु इसके विपरीत कुछ लोग एसे भी हैं जो प्रतिदिन कुछ नयापन चाहते हैं। इस संबन्ध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस नएपन का समापन कैसा है? तात्पर्य यह है कि मनुष्य हर नए कार्य के आरंभ के साथ ही उसकी समाप्ति के बारे में भी विचार करे और जब भी किसी नए कार्य को आरंभ करे तो उसका पूरा प्रयास इस कार्य को सही ढ़ंग से समाप्त करने की ओर ही होना चाहिए।
दयावान व ज्ञानी ईश्वर ने मानव की परिपूर्णता के लिए धरती तथा आकाशों में जो कुछ भी है उसे मानव के लिए विशेष कर दिया है ताकि मनुष्य, जीवन को सही ढ़ग से आरंभ कर सके। वह जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव से बड़ी ही होशियारी से निबट सके ताकि अच्छे परिणाम को प्राप्त कर सके। पवित्रता तथा मानवीयता से परिपूर्ण वातावरण में प्रवेश, परिवर्तन के लिए उचित अवसर है। इन उचित अवसरों में से एक अवसर पवित्र माहे रमज़ान का महीना है।
पवित्र माहे रमज़ान का महीना, हिजरी क़मरी महीनों में सर्वोत्तम महीना है। माहे रमज़ान शब्द रम्ज़ से लिया गया है जिसका अर्थ होता है छोटे पत्थरों पर पड़ने वाली सूर्य की अत्याधिक गर्मी। माहे रमज़ान ईश्वरीय नामों में से एक नाम है। इसी महीने में पवित्र क़ुरआन नाज़िल हुआ था। यह ईश्वर का महीना है। इसी महीने की जिनती भी प्रशंसा की जाए वह कम है।
माहे रमज़ान का पवित्र महीना, ईश्वर का महीना, क़ुरआन के उतरने का महीना तथा सबसे सम्मानजनक महीना है। इस महीने में आकाश तथा स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं तथा नरक के द्वार बंद हो जाते हैं। इस महीने की एक रात की उपासना, जिसे "शबे क़द्र" के नाम से जाना जात है, एक हज़ार महीनों की उपासना से बढ़ कर है। इस महीने मे रोज़ा रखने वाले का कर्तव्य, ईश्वर की अधिक से अधिक प्रार्थना करना है।
इस वर्ष भी माहे रमज़ान धीरे-धीरे हमारे हृदय रूपी घरों की ओर आ रहा है ताकि हमको अपनी विस्तृत एवं असीमित कृपा का पात्र बनाए। माहे रमज़ान, जीवन के दिनों और रातों के अपने मानवीय क्षणों के साथ हमारा साथी बनता है और फिर कुछ ही समय के पश्चात पुनः हमसे अलग हो जाने के लिए जल्दी करने लगता है। क्या कभी आपने इस बात का आभास किया है कि माहे रमज़ान के महीने में हम ईश्वर से अधिक निकट होने का आभास करने लगते हैं। यह विषय, इस शुभसूचना का सूचक है कि यदि उचित ढ़ंग से योजना बनाई जाए तो हमारा अंत अच्छा होगा। माहे रमज़ान के महीने में हम यदि आत्ममंथन करें तथा ईश्वरीय अनुकंपाओं की छाया में आत्मनिर्माण करें तो निःसन्देह, हमारा जीवन परिवर्तित हो जाएगा। ईश्वर की खोज में रहने वालों के लिए माहे रमज़ान का पवित्र महीना एक स्वर्णिम अवसर है। माहे रमज़ान आ चुका है अतः हमको ईश्वर की उपासना के बसंत में नए परिवर्तन का अनुभव करना चाहिए।
वे लोग जो वास्तविक आनंद की खोज में हैं उनके लिए माहे रमज़ान एक बहुमूल्य अवसर है। इस महीने में वे अपनी इच्छाओं को त्याग करते हुए पवित्र मानवीय आनंद की मिठास को प्राप्त कर सकते हैं। माहे रमज़ान के महीने में लोगों के लिए ईश्वरीय दस्तरख़ान बिछाया जाता है ताकि हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार ईश्वरीय अनुकंपाओं से लाभ उठाए। इस दावत का मेज़बान दयालु ईश्वर है। इसके माध्यम से उसने व्यापक स्तर पर लोगों को दावत दी है"।
माहे रमज़ान का महीना दैनिक जीवन की नीरसता को समाप्त कर देता है ताकि मनुष्य स्वयं को समझते हुए सचेत हो जाए कि कहीं ऐसा न हो कि उसकी आवश्यकताएं और निर्भरता उसे बुराइयों के मुक़ाबले में अक्षम बना दें। माहे रमज़ान का महीना उन लोगों के लिए मार्गदर्शक तथा मशाल की भांति है जो वास्तविकता के मार्ग से हट गए हैं। हालांकि ईश्वर की क्षमा के द्वार सदा ही लोगों के लिए खुले हुए हैं। वास्तविकता यह है कि ईश्वर को भूल जाने वाले लोगों ने ही स्वयं को ईश्वर की कृपा से दूर कर रखा है।
माहे रमज़ान की एक विशेषता उसका पवित्र व शुभ होना है। यही कारण है कि बहुत से स्थानों पर माहे रमज़ान को मुबारक अर्थात पवित्र और शुभ जैसे शब्दों से संबोधित किया गया है। यह विशेषता उन बहुत से लाभों के कारण है जो इस महीने में लोगों को प्राप्त होते हैं। पवित्र माहे रमज़ान के आरंभ होने के साथ ही रोज़ा रखने वाला व्यक्ति, ईश्वरीय दया और उसकी विभूतियों से परिपूर्ण वातावरण का आभास करता है तथा इस दौरान उसका समय बरकत या विभूतियों से भरा हुआ होता है। यह समय उसके लिए मुबारक होता है।
जैसाकि आप जानते हैं कि मानव जीवन के दो आयाम हैं, भौतिक तथा आध्यात्मिक। मनुष्य के अस्तित्व मे पाया जाने वाला आध्यात्मिक आयाम, ईश्वर की ओर से उसे दिया गया विशेष उपहार है। ऐसी वास्तविकता जो सृष्टि का आधार है तथा मनुष्य के अस्तित्व के निर्माण का मूल तत्व है। यह वही आत्मा है जिससे अन्य जीव वंचित हैं।
इस संदर्भ में ईश्वर, सूरए हजर की 27वीं आयत में कहता है कि मैंने मानव में अपनी आत्मा फूंकी। इस बहुमूल्य तत्व के न होने की स्थिति में मानव, अन्य पशुओं की श्रेणी में आ जाता। निश्चित रूप से मानव के असित्तव के इस तत्व को फलने-फूलने तथा विकसित होने की आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए भौतिक्ता से अलग होकर अन्य तत्वों की खोज में जाना होगा।
माहे रमज़ान महीने के मानवीय कार्यक्रम, मानव के झुकाव को संतुलित करने के उद्देश्य से है ताकि वह अपने अस्तित्व के प्रमुख तत्व का उचित ढंग से पालन-पोषण कर सके। हालांकि रोज़े से व्यक्ति तथा मानव समाज को बहुत अधिक भौतिक लाभ हैं किंतु पवित्र माहे रमज़ान का मुख्य उद्देश्य, मनुष्य के आध्यात्मिक आयाम को सचेत करना है। इस महीने में रोज़ा रखना, प्रार्थना करना, क़ुरआन का पाठ, दान-दक्षिणा, लोगों की सहायता तथा अन्य भले कार्य आत्मा को ताज़गी प्रदान करते हैं। यह महीना लोगों के आध्यात्म के विकास तथा परिपूर्णता की भूमिका प्रशस्त करता है। इस स्थिति में हम इस पवित्र महीने से अधिक से अधिक लाभ उठाएंगे। इस संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम का कथन हैः-
पवित्र माहे रमज़ान के आरंभ पर हम आप सबकी सेवा में बधाई देते हुए आपकी सेवा में पैग़म्बरे इस्लाम के उस ख़ुत्बे का एक भाग प्रस्तुत कर रहे हैं जो उन्होंने माहे रमज़ान के आगमन से पूर्व दिया था।
हे लोगों, ईश्वर का महीना बरकत, विभूतियों तथा क्षमा के साथ तुम्हारी ओर आ रहा है। ऐसा महीना जो ईश्वर के निकट सर्वोत्तम महीना है, इसके दिन बेहतरीन दिनों में से हैं, इसकी रातें बेहतरीन राते हैं और इसका समय बेहतरीन समय है। इस महीने में सांस लेना पुण्य है जो ईश्वर की प्रार्थना करने के समान है, तुम्हारी नींद भी इबादत है। इस महीने में जब भी तुम ईश्वर की ओर उन्मुख होगे और उससे प्रार्थना करोगे ईश्वर तुम्हारी प्रार्थना को अवश्य स्वीकार करेगा। अतः स्वचछ तथा सच्चे मन से ईश्वर से कामना करो कि वह तुमको रोज़ा रखने तथा ४पवित्र कुरआन का पाठ करने का अवसर प्रदान करे क्योंकि दुर्भाग्यपूर्ण वह है जो इस पवित्र तथा विभूतियों से भरे महीने में ईश्वर की अनुकंपाओं और उसकी क्षमा से वंचित रह जाए।