अलहसनैन इस्लामी नेटवर्क

हमारे अइम्मा(अ)

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हम शियों का अक़ीदा है कि ख़ुदा वंदे आलम ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की रिसालत को जारी रखने के लिये बारह मासूम इमामों को आप (स) के जानशीन के उनवान से इंतिख़ाब किया है और हुज़ूरे अकरम (स) के बाद इनमें से हर इमाम ने अपने ज़माने में मुसलमानों का क़यादत व रहबरी की ज़िम्मेदारी संभाली, इमामत का यह सिलसिला जारी रहा यहाँ तक कि इमामे ज़माना (अ) की इमामत शुऱू हुई। जो अल्लाह के करम से आज तक जारी है और रोज़े क़यामत तक जारी रहेगी।

हमारे अइम्मा बारह हैं

इस बात पर बहुत सी शिया व सुन्नी रिवायतें दलालत करती हैं कि रसूले इस्लाम (स) के ख़लीफ़ाओं की तादाद बारह हैं। अहले सुन्नत की मोतबर किताबों सही बुख़ारी, सही मुस्लिम, सुनने तिरमिज़ी, सुनने इबने दाऊद, मुसनदे अहमद वग़ैरा में इस तरह की रिवायात वारिद हुई हैं, मिसाल के तौर पर जाबिर बिन समरा कहते हैं कि मैंने पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सुना है कि मेरे बाद बारह अमीर (ख़लीफ़ा) आयेगें। फिर आपने कुछ कहा जो मैं सुन न सका ...... लेकिन मेरे वालिद ने बताया कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा सबके सब क़ुरैश से होंगें। इसी तरह एक मर्तबा जब आप (स) के जानशीनों के बारे में सवाल हुआ तो आपने (स) फ़रमाया:

اثنا عشر کعدة نقباء بنی اسرائیل

मेरे जानशीन बनी इस्राइल के नोक़बा की तरह बारह हैं।

इमामों की नाम बनाम वज़ाहत

शिया रिवायतों के अलावा सुन्नी रिवायतों में भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने हमारे इमामों की नाम बनाम वज़ाहत फ़रमाई है। मशहूर सुन्नी आलिमे दीन शैख़ सुलैमान क़ंदूज़ी अपनी किताब ‘’यनाबीउल मवद्दा’’ में नक़्ल करते हैं कि एक बार नासल नाम का एक यहूदी हुज़ूरे अकरम (स) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अपने दूसरे सवालों के ज़िम्न में उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) से आपके (स) जानशीनों के बारे में भी पूछा तो आपने (स) फ़रमाया: ‘’अली बिन अबी तालिब (अ) मेरे वसी हैं और उनके बाद मेरे दो फ़रज़ंद, हसन (अ) व हुसैन (अ) और फिर हुसैन (अ) की नस्ल में आने वाले नौ इमाम मेरे वसी हैं’’ उस यहूदी ने उनके नाम पूछे तो आपने (स) फ़रमाया: ‘’हुसैन (अ) के बाद उनके फ़रज़ंद अली (अ) (इमाम सज्जाद), अली (अ) के बाद उनके फ़रज़ंद मोहम्मद (अ) (इमाम बाक़िर), मोहम्मद (अ) के बाद उनके फ़रज़ंद जाफ़र (अ), जाफ़र (अ) के बाद उनके फ़रज़ंद मूसा (अ), मूसा (अ) के बाद उनके फ़रज़ंद अली (अ) (इमाम रिज़ा) अली (अ) के बाद उनके फ़रज़ंद मोहम्मद (अ) (इमाम मोहम्मद तक़ी), अली (अ) के बाद उनके फ़रज़ंद हसन (अ) (इमाम हसन असकरी), और हसन (अ) के बाद उनके फ़रज़ंद हुज्जतुल मेहदी (अज) (इमाम ज़माना) हैं और यही बारह इमाम हैं। ‘’

ज़माने के इमाम को पहचानना

सुन्नी किताबों में पैग़म्बरे इस्लाम (स) से ये हदीस नक़्ल हुई है कि

من مات بغیر امام مات میتة جاهلیة

‘’यानी जो शख़्स किसी इमाम के बग़ैर मर जाये वह जाहिलीयत की मौत मरता है।’’

इसी तरह की अहादीस शिया किताबों में भी मौजूद हैं, जैसा कि एक हदीस में वारिद हुआ है:

من مات ولم یعرف امامه مات میتة جاهلیة

‘’जो शख़्स अपने ज़माने के इमाम को पहचाने बग़ैर मर जाये वह जाहिलीयत की मौत मरता है’’

इन अहादीस से यह बात वाज़ेह हो जाती है कि हर ज़माने में एक इमाम मौजूद होता है जिसको पहचानना वाजिब है और उसकी मारिफ़त हासिल न करना इंसान के जाहिलीयत और कुफ़्र के दौर में लौटने का सबब बनता है।

ख़ुलासा

- हम शियों का अक़ीदा है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के जानशीन औऱ हमारे इमामों की तादाद बारह है। हर ज़माने में इमाम का होना ज़रूरी है और आज तक इमामे ज़माना (अज) की इमामत जारी है और रोज़े क़यामत तक जारी रहेगी।

- शिया किताबों के अलावा सही बुख़ारी, सही मुस्लिम, सुनने अबी दाऊद, और मुसनदे अहमद जैसी किताबों में भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) की यह हदीस नक़्ल है कि मेरे ख़ुलफ़ा बारह हैं और सबके सब कुरैश से हैं।

- शिया और सुन्नी किताबों में पैग़म्बरे इस्लाम (स) की ये हदीस नक़्ल हुई है कि जो शख़्स अपने ज़माने के इमाम को न पहचाने, वह जाहिलीयत की मौत मरता है। इस हदीस से मालूम होता है कि हर ज़माने में एक इमाम मौजूद होता है जिसकी मारिफ़त हासिल करना वाजिब है।

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