तिब्बे इमामे सदिक़(अ)
मन्सूर दवानीक़ी के दरबार में सादिक़े आले मोहम्मद अलैहिस्सलाम तशरीफ़ फ़रमा थे, एक हिन्दी तबीब ने अपने इल्म पर नाज़ किया, मालूमात का इज़हार किया, इमाम ख़ामोशी से सुनते रहे,
हिन्दी ने जराअत की और कहा के आप इस इल्म से ज़रूर इस्तेफ़ादा करें। इरशाद हुआ के मुझे तेरे इल्म की कोई ज़रूरत नहीं, तेरे मालूमात से मेरे इल्म कहीं ज़्यादा हैं
उसने अज़ की कुछ इरशाद हो। फ़रमाया ख़ुदा पर भरोसा रख कर हर मर्ज़ का इलाज उसकी ज़िद से किया जाए, यानी गर्मी का इलाज ठण्डक से और ख़नकी का इलाज हरारत से, ख़ुश्की का तरी से और तरी का ख़ुश्की से।
ऐ तबीब! जान ले के मेदा बीमारियों का घर है और बहुत बेहतरीन इलाज परहेज़ है और इन्सान जिस चीज़ का आदी हो वही उसके मिज़ाज के मवाफ़िक़ और सबबे सेहत होगी।
तबीब ने अर्ज़ किया, यही उसूले तिब है, इरशाद फ़रमाया के यह इल्म मिनजानिब इलाही है। क्या तू बता सकता है के आंसू व रुतूबत के जारी होने की जगह सर में क्यों क़रार पाई?
सर पर बाल क्यों पैदा किये गये? पेशानी बालों से क्यों ख़ाली हुई? माथे पर ख़ुतूत व शिकन क्यों होते हैं? दोनों पलकें आंखों के ऊपर क्यों हैं? दोनों आंखें बादाम की शक्ल जैसी क्यों हैं?
नाक दोनों आंखों के दरम्यान में क्यों है? नाक का सूराख़ नीचे की जानिब क्यों हुआ? मुंह के ऊपर दोनों होंठ क्यों बनाए गए? सामने के दाँत तेज़ क्यों हुए?
दाढ़ चैड़ी क्यों हुई और दोनों के दरम्यान लम्बे दांव क्यों हैं? दोनों हथेलियाँ बालों से ख़ाली क्यों हैं? मर्दों को दाढ़ी किस लिये होती है? नाख़ून और बाल में जान क्यों नहीं दी गई?
दिल सनोबर का हमशक्ल क्यों हुआ? फेफड़ों को दो टुकड़ों में क्यों तक़सीम किया गया और वह मुतहर्रिक क्यों है? जिगर की शक्ल महदब (कुबड़ी) क्यों है?
गुर्दा लूबिये की तरह पर क्यों बनाया गया? दोनों घुटने आगे की तरफ़ झुकते हैं, पीछे की तरफ़ क्यों नहीं झुकते? दोनों पांव के तलवे बीच से ख़ाली क्यों हैं?
और आखि़र में जब उसने महवे हैरत होकर इन सवालात के जवाबात में अपनी लाइल्मी का इज़हार किया तो ख़ुद ही इरशाद फ़रमाया के-अगर सर में रूतूबत व फ़ज़ालत की जगह न होती तो
ख़ुश्की के बाएस फट जाता इसलिये ख़ुदा ने आँसुओं की रवानी का बन्दोबस्त वहाँ किया ताके इस रूतूबत से दिमाग़ तर रहे और फटने न पाए।
बाल सर के ऊपर इसलिये उगते हैं के इनकी जड़ों से रौग़न वग़ैरा दिमाग़ तक पहुंच जाए, इन मसामों से दिमाग़ी बुख़ारात भी निकलते हैं।
दिमाग़ ज़्यादा गर्मी और ज़्यादा सर्दी से महफ़ूज़ रहता है, पेशानी बालों से इसलिये ख़ाली हुई के इस जगह से आँखों में नूर पहुंचता है
और माथे में ख़ुतूते शिकन इसलिये हुए के सर से जो पसीना गिरे वह आँखों में न पड़ जाए।
जब शिकनों में पसीना जमा हो तो इन्सान पोंछ कर फेंक दे जिस तरह ज़मीन पर पानी फैल कर गड्ढों में जमा हो जाता है
और दोनों पलकें इसलिये आंखों पर क़रार दी गईं के आफ़ताब की रौशनी उसी क़द्र आँखों पर पड़े जिस क़द्र के ज़रूरत हो,
तूने देखा होगा जब इन्सान ज़्यादा रोशनी में बलन्दी की जानिब किसी चीज़ को देखना चाहता है
तो हाथ को आंखों पर रखकर साया कर लेता है और नाक को दोनों आंखों के बीच में इसलिये क़रार दिया के मुनब्बेअ नूर से रोशनी तक़सीम होकर दोनों आँखों में बराबर पहुँचे,
आँखों की बादामी शक्ल इसलिये है के इसमें सुर्मा और दवाई वग़ैरा आसानी से डाली जा सके, अगर मुरब्बेअ शक्ल या गोल होती तो इसमें सलाई का लगाना या दवाई डालना मुश्किल होता और आँखों की बीमारी आसानी से रफ़ा न होती।
नाक का सूराख़ नीचे की तरफ़ इसलिये बनाया गया के दिमाग़ के फ़ाज़िल व ग़ैर ज़रूरी माद्दे ब-आसानी दफ़ा होँ और हर शै की बू बसहूलत दिमाग़ तक पहुँच जाए,
अगर नाक का सूराख़ ऊपर की जानिब होता तो न ही फ़ुज़ूलात ख़ारिज होते और न ही दिमाग़ तक बू व ख़ुशबू पहुंच पाती।
दोनों होंठ इसलिये मुंह के ऊपर बनाए गए के जो रुतूबतें दिमाग़ से मुंह में आ जाएं वह रूकी रहें और खाना-पीना भी इन्सान के इख़्तेयार में रहे, खाए चाहे फेंक दे।
मर्दों की दाढ़ी इसलिये है के औरत और मर्द में तमीज़ हो सके और आगे के दाँत इसलिये तेज़ हुए के किसी शै का काटना सहल हो और दाढ़ें चैड़ी इस वास्ते बनाईं के ग़िज़ा का चबाना और पीसना आसान हो और उनके दरम्यान वाले दाँत लम्बे इसलिये बनाए के दोनों के इस्तेहकाम और क़याम का बाएसे सुतून होँ।
हथेलियों पर बाल इसलिये नहीं हुए के किसी चीज़ को छू लेने से उसकी मुलाएमी, गर्मी, सर्दी वग़ैरा का एहसास हो सके अगर हथेलियों पर बाल उगे होते तो इन बातों का महसूस करना मुश्किल हो जाता।
बाल व नाख़ून बेजान इसलिये हैं के इसका ज़्यादा बढ़ जाना ख़राबी पैदा करता है और इसकी कमी हुस्न पैदा करती है, अगर इनमें जान व हिस होती तो इनको काटते वक़्त इन्सान को तकलीफ़ शदीद होती।
दिल की शक सनोबर के मानिन्द इसलिये (यानी इसका सर पतला और जड़ चैड़ी है) के आसानी से फेफड़ों में टिका रहे और फेफड़ों की हवा उसे मिलती रहे और ठण्डक पहुंचती रहे ताके दिमाग़ की तरफ़ बुख़ारात चढ़ कर बीमारियां पैदा न करें और
फेफड़े के दो हिस्से इसलिये हुए के दिल उनके दरम्यान में महफ़ूज़ रहे और फेफड़े बतौर पंखे उसको हवा मुहय्या करते रहें। जिगर को झुका हुआ और ख़मीदा इसलिये बनाया गया के पूरे तौर पर मेदा क़रार ले और अपने बोझ व गर्मी से ग़िज़ा हज़म करे और बुख़ारात को दफ़ा करे, गुर्दे को लोबिया के दाने की तरह इसलिये बनाया के पुश्त की जानिब से इसमें माद्दहे तौलीद आता है
और ब-सबब कुशादगी व तंगी के इसमें से बतदरीज थोड़ा थोड़ा निकलता है जिसके बाएस लज़्ज़त महसूस होती है अगर वह गोल या चैकोर होता तो उससे यह बात हासिल न होती और घुटने पीछे की तरफ़ इसलिये नहीं झुकते हैं के चलने में आसानी हो ताके इन्सान आगे को सहूलत के साथ चल सके अगर ऐसा न होता तो चलने में इन्सान गिर पड़ता और दोनों क़दम बीच से ख़ाली
इसलिये हुए के अगर ख़ाली न होते तो पूरा बोझ ज़मीन पर पड़ता और सारे बदन का बोझ उठाना मुश्किल होता और क़दम के किनारे पर बोझ पड़ने से ब-आसानी पाँव उठा सकते हैं जब कोई बच्चा मुंह के बल गिरने लगे तो बच्चों पन्जों के ज़ोर पर सम्हल सकता है यह फ़रमाकर तबीबे हिन्दी से इरशाद हुआ के यह इल्म रसूल (स0) रब्बुल आलमीन से हासिल किया है और यह इल्मे लदन्नी है’’